Tuesday, February 16, 2010

गीत "सारे जहां से अच्छा" - स्वतंत्रता संग्राम की एक अनोखी दास्तान



स्वाधीनता संग्राम संबंधित किस्सों से यूं तो इतिहास भरा पड़ा है लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं जो महत्वपूर्ण होने के बावजूद इतिहास के पन्नों में उचित स्थान प्राप्त नहीं कर सकी हैं। अल्लामा इकबाल द्वारा लिखे गये देश भक्ति गीत सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा' हम हर स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर गाते हैं लेकिन ये गीत किस स्थिति में लिखा गया ये बहुत कम लोगों को मालूम होगा।गीत की रचना हुए एक सदी से ज्यादा बीत गई है लेकिन आज भी तराना हिन्द के बगैर स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस को कोई भी राष्ट्रीय पर्व का समारोह पूरा नहीं हो सकता। इक़बाल ने ये गीत १०३ वर्ष पूर्व १०अगस्त १९०४ को लाहौर में लिखा था देश में उस समय स्वतंत्राता आन्दोलन ज्वार पर था। ऐसे में इक़बाल ने तराना-ए-हिन्द लिखकर लोगों में जोश की वो आग भड़काई जो स्वतंत्राता प्राप्त किये बिना बुझने को किसी भी स्थिति में तैयार नहीं था।इस तराना को पहली बार गाये जाने की कहानी भी काफी रोचक है।

बात उन दिनों की है जब लाहौर में युवाओं के मनोरंजन के लिए एक ही क्लब हुआ करता था। क्लब का नाम था यंग मैन क्रिश्चयन एसोसियेशन।एक बार लाला हरदयाल की क्लब के सचिव से किसी बात को लेकर तीखी बहस हो गई। लाला जी ने आव देखा न ताउ तुरंत ही यंग मैन इंडिया एसोसियेशन की स्थापना कर दी। उस समय लाला हरदयाल लाहौर में एम ए कर रहे थे। लाला जी के कालेज में इक़बाल दर्शन शास्त्र पढ़ाते थे दोनों के बीच दोस्ताना संबंध था जब लाला जी उनसे एसो सियेशन के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करने को कहा तो वह सहर्ष तैयार हो गये ऐसा शायद पहली बार हुआ होगा कि किसी समारोह के अध्यक्ष ने अपने अध्यक्षीय भाषण के स्थान पर कोई तराना गाया हो।इस छोटी लेकिन जोश भरी रचना का श्रोताओं पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि इक़बाल को समारोह के आरंभ और समापण दोनों पर ये गीत सुनाना पड़ा।


ये गीत पहली बार मौलाना शरर की उर्दू पत्रिका इत्तेहाद में १६अगस्त् १९०४ को प्रकाशित हुआ । इस तराने के शीर्षक भी कई बार बदले गये। पहले यह ÷हमारा देश' के शीर्षक से प्रकाशित हुआ फिर हिन्दुस्तां हमारा' के नाम से प्रकाशित हुआ।इस गीत ने लोगों पर ऐसा प्रभाव छोड़ा कि यह सब की जुबान पर चढ़ गया बाद में इक़बाल ने अपने पहले कविता संग्रह ÷बांगे दरा' में इसे तराना-ए-हिन्द के नाम से शामिल कर लिया। स्वतंत्रात आंदोलन में इस गीत का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि १४-१५ अगस्त की रात में ठीक १२ बजे संसद में हुए समारोह में जन गण मन के साथ इक़बाल की इस रचना ÷सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा' को भी समूहगान के रूप में गाया गया।स्वतंत्रता की २५वीं वर्षगांठ पर १५अगस्त १९७२ को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने इस गीत की धुन तय कराई आज कल यही धुन प्रचलित है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस गीत को सुनकर कहा था कि यह हिन्दुतान की क़ौमी जु+बान का नमूना है। ये अलग बात है कि उर्दू हिन्दुस्तान की कौमी जुबान नहीं बन सकी। हिन्दी ने उर्दू पर बाज़ी मार ली

आज जब हम आजादी के ६० वर्ष पूरे कर चुके हैं तब इक़बाल द्वारा लिखे इस तराने का महत्व और भी बढ़ गया है। भारत की एकता आज पहले से अधिक जरूरी हो गई है और ये गीत सर्वधर्म एकता का ही प्रतीक है।इस गीत से संबंधित ये पहलू बहुत दुखदायक है कि कुछ लोग इस गीत को केवल इसलिए नज़र अंदाज करते हैं कि इसे इक़बाल ने लिखा था जिन्हें पाकिस्तान के गठन का समर्थक कहा जाता है। हाल ही में एक और देश भक्ति गीत वंदेमातरम १०० वर्ष पूरे होने पर जिस तरह कुछ लोगों ने हंगामा मचाया वह वास्तव में सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा का विरोध था। हालांकि सरकार की ओर से इस गीत को गाने के लिए बाध्य नहीं किया गया था फिर भी कुछ राज्यों में मुस्लिम संस्थानों को जान बुझ कर इस गीत को गाने पर बाध्य किया गया।

बहरहाल सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा का महत्व आज भी बरकरार है और आगे भी रहेगा क्योंकि स्वतंत्रता से संबंधित ये ऐसा गीत है जो सबकी समझ में बहुत आसानी से आ जाता है


thanks

13 comments:

  1. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस गीत को सुनकर कहा था कि यह हिन्दुतान की क़ौमी जु+बान का नमूना है।


    कुरआन का अनुवाद युनिकोड और भावार्थ pdf में उपलब्‍ध quran-in-unicode
    Direct link
    http://islaminhindi.blogspot.com/2010/02/pdf-quran-in-unicode.html

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  2. जब भी कोई भारतीय अल्लामा इकबाल के इस देशभक्ति से लबरेज़ गीत को सुनता है तो उसमें एक बहुत ही सुखद और अनोखी अनुभूति का संचार होता है. मुझे तो अल्लामा इकबाल का "लैब पे आती है दुआ" भी बहुत पसंद है...

    सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
    हम बुलबुलें है इसकी ये गुलिस्ताँ हमारा

    सलीम ख़ान
    संयोजक
    हमारी अंजुमन

    (विश्व का प्रथम एवम् एकमात्र हिन्‍दी में इस्लाम-धर्म का सामुदायिक चिट्ठा)

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  3. आज भी यह तराना दिलों में देश के लिये जोश की आग भडका देता है।
    सलाम है अल्लामा इकबाल जी को

    प्रणाम

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  4. साहेबान, आदाब
    ये ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी है, जिसे इंटरनेट के हाईटेक आसमान से उतारकर आम लोगों के दिलों की ज़मीन तक पहुंचाने की ज़रूरत है.

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  5. वाक़ई बहोत ही अच्छा देशभक्ति का ये गीत है। बहोत आसांन भी है। हमारा आसानी से और दिल से ईसे पढते-गाते हैं।
    शाहिद मिर्ज़ा साहब ने सच ही कहा है"इंटरनेट के हाईटेक आसमान से उतारकर आम लोगों के दिलों की ज़मीन तक पहुंचाने की ज़रूरत है.है""
    आज चाहे कोई हमारी इस नज़म पे लिखी "भावना" को सराहे- न सराहे पर मैं..आप सभी कमेन्ट देनेवालों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हुं।

    सलीम भाई,शहरोज़ भाई,अन्तर सोहैल भाई,केरियर वर्ल्ड, और शाहिदभाई का शुक्रिया अदा करती हुं।
    ख़ासकर कैरानवी साहब की तहे दिल से शुक्र गुज़ार हुं।

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  6. @ रजिया जी, आपके इस कमेंटस से मुझे बेहद खुशी हुई है, आपका सभी का शुक्रिया अदा करना बता रहा है कि अब आप अन्‍जुमन के लिये समय निकालने लगी हैं जिसकी अन्‍जुमन को बेहद जरूरत थी, इस पोस्‍ट को डालने के मकसद पर आज तालिब साहब से काफी बातें हुई उनको यह पोस्‍ट अन्‍जुमन के मिजाज की नहीं लग रही थी, मकसद बताया तो खुश हुये

    @ शाहिद साहब हम तो अपनी कोशिश कर रहे हैं, इन्‍शाअल्‍लाह दिलों तक भी पहुंचेगी वैसे मोबाइल के जरिये दिल के करीब तक तो पहुंच चुकी है

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  7. सभी साथियों को अस्सलाम अलैकुम ,

    आप लोग बहुत ही माकूल काम कर रहे हैं.यही सब देख-जानकार मैं भी अंजुमन में शामिल हुआ.मुआफी चाहता हूँ कि मैं खुद ज़्यादा वक़्त नहीं दे पाया.लेकिन अब इंशा-अल्लाह कोशिश रहेगी कि आप सभों को न-उम्मीद न करूं.
    इसे शिकायत न समझा जाय , महज़ एक गुजारिश है.
    हेडर के नीचे दर्ज है इस्लाम धर्म का एक मात्र सामुदायिक चिटठा !! लेकिन ब्राद्रान!!यहाँ मज़हब की कम समाज की बातें ज़्यादा होती हैं. क्यों न इसे मुसलामानों का सामुदायिक चिटठा कर दिया जाय !
    या गर इस्लाम का ही सामुदायिक चिटठा रखना है तो पोस्ट सिर्फ ऐसी हो जिसमें सिर्फ़ इस्लाम से मुताल्लिक ही ज़िक्र हो!

    सारे जहाँ से अच्छा..बेशक अच्छी पोस्ट है...या सलीम सिद्दीकी साहब बेशक अच्छे सहाफ़ी हैं...लेकिन उनकी पोस्ट का इस्लाम से क्या-लेना देना है!! भाइयों मुझे तो आज तक समझ नहीं आया..मुमकिन है मेरी ना-अहली इसका बायस हो.वल्लाह-आलम!!

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  8. तालिब साहब यह अफसोस की बात है आपको अन्‍जुमन के ब्‍लाग पर इस पोस्‍ट और सलीम सद्दीकी साहब की चन्‍द पोस्‍टस की वजह से यहाँ मजहब से अधिक समाज नज़र आया, सारे जहाँ से अच्‍छा की एक खास वजह थी जो मुलाकात पर समझायी भी पर अफसोस मैं ही आपको समझाने में ना अहल साबित हुआ, हेडर की बात वेसे तो बहुत मामूली सी है बदला जासकता है मेरी नजर में इस्‍लाम धर्म का और मुसलमानों का में कोई अलग बात नही,
    सौ बात की एक बात अन्‍जुमन में मीन मेख निकालना छोडकर मिसालें पेश किजिये, हम भी तो देखें इस्‍लाम से किन बातों का मतलब होता है और समाज से किन बातों का,

    सलीम सिद्दीकी साहब से मुझे शिकायत है कि वह पोस्‍ट कई ब्‍लाग पर एक साथ डालते हैं जो चिटठाजगत और ब्‍लागवाणी के नियम विरूद्ध भी है इसलिये उन्‍हें चाहिये कि अपनी पोस्‍ट में 1 दिन का गेप रखें
    वह केवल पोस्‍ट डालते हैं पोस्‍ट पर आये कमेंटस से उन्‍हें कोई मतलब नहीं होता, उन्‍हें कमसे कम अपनी पोस्‍ट पर तो जवाब देने चाहिये या कमेंटस आप्‍शन बंद रख कर पब्लिश करें

    अन्‍जुमन के मेम्‍बरों से दरखास्‍त है वह उपरोक्‍त बातों पर अपने विचार रखें, आपके मशवरों से काम होता रहा है होता रहेगा, इन्‍शाअल्‍लाह

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  9. इस्लाम और समाज एक दूसरे से पूरी तरह जुड़े हुए हैं.

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  10. सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा का महत्व आज भी बरकरार है और आगे भी रहेगा क्योंकि स्वतंत्रता से संबंधित ये ऐसा गीत है जो सबकी समझ में बहुत आसानी से आ जाता है।

    please see my new post on
    blogvani.com

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  11. कुरआन को यूनिकोड में मुहैया कराने के लिए मैं उमर साहब का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं। उमर साहब ने यह बहुत ही बेहतर और अच्छा काम अंजाम दिया। इस काम के लिए इनकी जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है। अल्लाह आपको इस काम का अच्छे से अच्छा बदला दे।
    आमीन

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