Saturday, January 2, 2010

अमरीकी करोडपती और माइकल जैक्सन के वकील ने किया इस्लाम कबूल!

सुबहान अल्लाह! प्यारे नबी जिन्हें बचपन में ही अमीन यानी इमानदार कीउपाधि मिल गयी थी, उनका आफाकी और लासानी सदाक़त यानी सच्चाई का परचम आखिर फिर एक अमरीकी ने बुलंद किया.




मार्क शाफ्फेर न सिर्फ करोड़पति हैं बल्कि अमरीका के मशहूर वकील भी हैं.माशा अल्लाह अब मुसलमान हो गए हैं. सऊदी अरब में शनिवार,17 अक्तूबर 2009 को उन्होंने अपने इस्लाम स्वीकार करने की घोषणा की। मार्क सऊदी अरब में एक छुट्टी पर थे और उन्हों ने रियाद, आभा और जेद्दा जैसे कुछ प्रसिद्ध शहरों की सैर की।


Mark is a well-known millionaire and also a practiced lawyer in Los Angeles, specializing in cases of civil laws. The last big case he handled was the case of the famous American pop singer, Michael Jackson, a week before he passed away.
After Mark declared his Islamic faith, he had the chance to express his happiness in Al-Riyadh Newspaper saying: I could not express my feeling at this time but I am being reborn and my life has just started… then he added: I am very happy.



May Allah bless Mark and make him an obedient Muslim.
[आमीन]

13 comments:

  1. करोड़पतियों, अमीरों, जमींदारों और पूंजीपतियों के लिए इस्लाम कबूल करने में बड़ा फायदा है। वे कानूनी तौर पर चार बीबियाँ रख सकते हैं और जब चाहे उन्हें तलाक भी दे सकते हैं।

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  2. dinesh ji aadaab! aap bahut hi qabile adab aur qaabil wakeel hain.jahaan tak mujhe pata hai aapne muslim vivaah par bahut hi umda post bhi likhi hai,qaurtalab hai ki aapko islaam dusri ya teesri shaadi karne ki ijazat kin sharton par deta hai aapko zarur ilm hoga.aur talaaq k liye bhi kin sharton ka hona zaruri hai ye bhi aapko pata hoga.
    bawajoog afsos hai k aap jaisa insaan aise comment kar raha hai.
    comment bina kisi predijuced k hona chahiye.

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  3. दिनेशराय द्विवेदी जी
    हम सब से पहले आपको धन्यवाद पेश करते हैं कि आप ने इस्लाम के सम्बन्ध में टिपण्णी की.
    जनाब! आप वकील होने के बावजूत ऐसी बात कर रहे हैं,अच्छा होगा कि आप ज़रा इस्लाम का अध्ययन कर लें, क्योंकि आप को इस्लाम का ज्ञान रखना चाहिए, आप वकील हैं और महान भी , इस्लाम तो मानव का धर्म है, और आप का भी धर्म यही है

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  4. यदि सर्वे को देखें तो बहुविवाह हिन्दुओं के हाँ ज्यादा है . इस्लामी नियम का अध्ययन करें तो पता चलेगा की इस्लाम ने बहुविवाह की अनुमति उस समय दी है जब एक व्यक्ति न्याय कर सकता हो, तथा उसे इसकी ज़रुरत भी हो, कितनी विधवा महिलाएं आज हमारे समाज में बिलक रही हैं, कितने मर्द गलत सम्बन्ध बना रहे हैं, इस्लाम बुध्दी संगत धर्म है इसलिय उसने जरूरत की इस्थिति में इसकी अनुमति दी है,

    और तलाक के सम्बन्ध में भी इस्लाम ने संतुलन अपनाया, यदि पत्नी से किसी प्रकार का
    विवाद होता है तो तलाक से पहले चार मरहला रखा गया है सब से पहले परस्पर उसे सुलझाने की कोशिश करनी है, अगर सुलझ गया तो ठीक वरना उसका बिस्तर अलग कर देना है, इस से भी पत्नी की स्थिति ठीक न हो सकी तो उसे सुधार के लिय मारना है, अगर समस्या इस से भी ज्यादा गम्भीर हो गई तो उसके घर वालों को बोला कर दोनों तरफ से पंच रख कर सलटने का प्रयास करना है , यदि अब भी समस्सया बढती जा रही हो तो इस्लाम ने दोनों के लिए विहाह के बंधन से निकलने का रास्ता रखा, इसमें भी एक तलाक देना है, इस बीच तीन महीने की मुद्दत रखी गई जिसमें इहसास होने पर फिर पत्नी को लौटा सकता है . यह है इस्लाम का बुध्दी संगत नियम

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  5. इस्लाम अपनाना हरम रखने का अच्छा तरीका है, चार पत्नी रखने की स्वीकृति सिर्फ अमीर मुसलमान शौकीनों के लिए बनाई गई थी, वर्ना गरीब को तो एक बेगम-औलाद का खर्च उठाना भारी पड़ता है, चार चार कैसे संभालता. आज भी अरब के शौक़ीन शेख हैदराबाद, अफगान, पाकिस्तान, बंगाल, नेपाल, बंगलादेश से निकाह के लिए भूख से लाचार गरीब बच्चियां खरीद ले जाते हैं, उनके हरम में यहीं के १२ साल से कम के गिल्मे भी होते हैं. पाकिस्तानी मालगुजार पठान भी कई बीवियों वाले कानून का खूब फायदा उठाते हैं. धर्मेन्द्र ने हेमा से शादी करने के लिए चाँद मोहम्मद की तरह मज़हब बदला था, गोया की यह मज़हब बदलना अय्याशों की पनाहगाह हो.

    ऐसे ज़माने में जब हर हज़ार मर्दों पर कोई केवल आठ सौ औरतें हों तब भी चार शादियों का कानून रखना ठीक है? क्यों नहीं चार शादी करने वाले ऐय्याश को एन डी तिवारी की तरह जूते लगायें जाएं. वही एनडी तिवारी जिसका बेटा या पोता मुसलमान....... एनडी तिवारी को भी अब अपने बच्चों की रह पर चलना चाहिए. इंशाल्लाह.

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  6. तालिब साहब आपने अन्‍जुमन के मिजाज़ के मुताबिक बहुत अच्‍छा लेख दिया है, बधाई, रही बात चतुर्वेदियों की वह जो भूल गए उनको साइबर मौलाना द्वारा याद दिला दिया जाएगा, हो सके तो निम्‍न लिंक पर घूम आओ कहीं कोई बहस करे तो काम आएगी, नीचे कुछ इशारे हैं समझदारों के लिए
    http://islaminhindi.blogspot.com/2009/03/non-muslims-muslims-answer.html
    आपके सवाल हमारे जवाब --- डायरेक्‍ट लिंक
    ‘‘केवल एक से विवाह करो।’’सूरह अन्-निसा’’
    ......पवित्र क़ुरआन विश्व का एकमात्र धर्मग्रंथ है जो केवल ‘‘एक विवाह करो’’ का आदेश देता है
    सम्पूर्ण मानवजगत मे केवल पवित्र क़ुरआन ही एकमात्र धर्म ग्रंथ (ईश्वाक्य) है जिसमें यह वाक्य मौजूद हैः ‘‘केवल एक ही विवाह करो’’, अन्य कोई धर्मग्रंथ ऐसा नहीं है जो पुरुषों को केवल एक ही पत्नी रखने का आदेश देता हो। अन्य धर्मग्रंथों में चाहे वेदों में कोई हो, रामायण, महाभारत, गीता अथवा बाइबल या ज़बूर हो किसी में पुरूष के लिए पत्नियों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया ......
    ......इससे पूर्व हिन्दू पुरूषों पर पत्नियों की संख्या के विषय में कोई प्रतिबन्ध नहीं था। 1954 में ‘‘हिन्दू मैरिज एक्ट’’ लागू होने के पश्चात हिन्दुओं पर एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस समय भी, भारतीय कानून के अनुसार किसी भी हिन्दू पुरूष के लिए एक से अधिक पत्नी रखना कषनूनन वर्जित है। परन्तु हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार आज भी उन पर ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है।.....

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  7. तो मतलब कुरआन में प्रतिबन्ध है, फिर मुस्लिम खुद आगे आ कर चार शादी वाले कानून का विरोध क्यों नहीं करते ? क्यों मुस्लिम समाज एक बीवी के रहते दूसरी शादी करने वाले का हुक्का पानी बंद नहीं करता? चाँद मुहम्मद का मुसलमानों ने स्वागत किया था, जबकि उसने कानून से बचने और अय्याशी के लिए जल्दबाजी में इस्लाम अपनाया था.

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  8. ab inconvenienti जी ! हम मात्र यही कहेंगे कि आप अपने ईश्वर के धर्म का अध्ययन करें,अपने ईश्वर का संदेश अपनाने का प्रयास करें, इस्लाम आपकी अमानत है, धन्यवाद

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  9. द्विवेदी जी एक वकील हैं और इतनी संकीर्ण टिपण्णी करके उन्होंने यह दर्शा दिया कि वह भी एक आम अज्ञानी .... की तरह पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं! अगर वे वास्तव में इस्लाम के बारे में तनिक भी (इस विषय पर) ज्ञान रखते तो वह ऐसा हरगिज़ न कहते.

    बहुविवाह का तर्क देकर उन्होंने इस बहस को थोड़ा विस्तृत सा कर दिया है;

    देखिये ! अमेरिका जैसे देश में अगर यह कहा जाये कि कोई इस्लाम इसलिए कुबूल कर रहा है कि उसको चार शादी करने का तोहफा मिल जायेगा तो यह कुतर्क के सिवा कुछ नहीं (जिसे आम ज़ुबान में ज़ुबानदराज़ी कहते हैं) क्यूंकि अमेरिका में तो वैसे भी इतना खुलापन है कि जब जो चाहे जिससे चाहे शारीरिक सम्बन्ध बना सकता है जब चाहे लीव इन रिलेशनशिप के तहत कितनी ही औरतों के साथ उसे 'इस्तेमाल' कर रिलेशनशिप ब्रेकअप कर सकता है, जब चाहे तलाक़ ले सकता है जब चाहे दुसरी, तीसरी, चौथी, पांचवी और न जाने कितनी शादियाँ कर सकता है (दूर मत जाईये- आजकल टाईगर वूड्स करके नाम बहुत फेमस हुआ है), न जाने कितनी रखैल रख सकता है.

    दिनेश जी को चलते चलते यह बताता जाऊं कि दुनियां में सबसे ज्यादा तेज़ी से इस्लाम अमेरिका में हि फ़ैल रहा है.

    सलीम खान
    स्वच्छ सन्देश: विज्ञान की आवाज़
    svachchhsandesh.blogspot.com

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  10. वाह सलीम, तब अमेरिका के लोग शादी ही क्यों करते हैं? दूध तो पाउच में सस्ते में गली गली मिल जाता है, फिर गाय और बछड़े पालने की झंझट क्यों उठता है वहां का हर आदमी? अमेरिका के बारे में पुर्वाग्राहित दरअसल तुम हो, जो सेक्स, और सूअर के आगे कुछ देख ही नहीं पाते.

    दिनेश जी को चलते चलते यह बताता जाऊं कि दुनियां में सबसे ज्यादा तेज़ी से इस्लाम अमेरिका में हि फ़ैल रहा है.

    ज़रा वहां किस मज़हब में कितने धर्मान्तरण हुए और उन धर्मांतरणों में मुसलमान होने वालों का कितना प्रतिशत रहा है अगली पोस्ट में इसके आंकड़े दे सकते हो?

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  11. धर्म और मज़हब और दीन और अध्यात्म के अंतर को यदि हम सभी जान जाएँ तो ये हिंसक तर्क-कुतर्क ही न हो.
    दिनेश जी के ब्लॉग पर गया था.वो तो भाई महारत रखते हैं इस विषय पर पर आश्चर्य की ऐसी फ़िज़ूल गंवार सी बात वो कैसे कर गए.

    plz send invite at shahroz.syed@gmail.com

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  12. हाहहाहाहाहाह भाई साहब बस इस बहस पर और इसके मुद्दे पर हंस सकता हूं और कुछ कह नहीं सकता, लेकिन आप ये न कहे हंसो मत अगर बोल नहीं सकते तो लिख दूं कि, शर्तो के साथ हो या शर्तो के बिना, कई शादियां करने को जायज़ ठहराया जाना गलत है। जैसा कि चांद मोहम्मद ने किया था शादीशुदा होते हुए भी धर्म बदल कर फिंजा के साथ निकाह कर लिया। दूसरा अरब में इतना पैसा है वहां कुछ भी हो सकता है। तीसरा कहूं तो मैने कहीं इस्लाम के ज्ञानी से सुना था कि दुनिया में औरतों की संख्या ज्यादा है मर्दो के मुकाबले इसलिये इस्लाम में कई शादियां करना जायज़ माना गया है क्या ये सही है? अगर हां तो ये गलत है क्यों आपको नहीं लगता

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