पिछली पोस्ट ''पवित्र कुरआन में गणितीय चमत्कार'' की सफलता को देखते हुये, पुस्तक ''दयानन्द जी ने क्या खोजा, क्या पाया'' के लेखक श्री डाक्टर अनवर जमाल साहब से मैं ने फरमाईश की थी कि इस सिलसिले को आगे बढाया जाये, जबकि जमाल साहब चाहते थे ''वन्दे ईश्वरम" मासिक पत्रिका में, अगली कडी छप जाये तब इधर ब्लागस में दी जाये, परन्तु इधर ''हमारी अन्जुमन'' में पोस्ट की अपार सफलता को देखते हुये आपने निर्णय बदला और इस विषय पर ''हमारी अन्जुमन'' के लिये यह पोस्ट तैयार कर दी , धन्यवाद
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‘बिस्मिल्लाह’ के अक्षरों में छिपा रहस्य
पवित्र कुरआन का आरम्भ जिस आयत से होता है वह खुद इतना बड़ा गणितीय चमत्कार अपने अन्दर समाये हुए है जिसे देखकर हरेक आदमी जान सकता है कि ऐसी वाणी बना लेना किसी मुनष्य के बस का काम नहीं है। एकल संख्याओं में 1 सबसे छोटा अंक है तो 9 सबसे बड़ा अंक है और इन दोनों से मिलकर बना 19 का अंक जो किसी भी संख्या से विभाजित नहीं होता।
पवित्र कुरआन का आरम्भ ‘बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर रहीम’ से होता है। इसमें कुल 19 अक्षर हैं। इसमें चार शब्द ‘इस्म’(नाम), अल्लाह,अलरहमान व अलरहीम मौजूद हैं। परमेश्वर के इन पवित्र नामों को पूरे कुरआन में गिना जाये तो इनकी संख्या इस प्रकार है-
इस्म-19,
अल्लाह- 2698,
अलरहमान -57,
अलरहीम -114
अब अगर इन नामों की हरेक संख्या को ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम’ के अक्षरों की संख्या 19 से भाग दिया जाये तो हरेक संख्या 19, 2698, 57 व 114 पूरी विभाजित होती है कुछ शेष नहीं बचता।
है न पवित्र कुरआन का अद्भुत गणितीय चमत्कार-
# 19 ÷ 19 =1 शेष = 0
# 2698 ÷ 19 = 142 शेष = 0
# 57 ÷ 19 = 3 शेष = 0
# 114 ÷ 19 = 6 शेष = 0
पवित्र कुरआन में कुल 114 सूरतें हैं यह संख्या भी 19 से पूर्ण विभाजित है।
पवित्र कुरआन की 113 सूरतों के शुरू में ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम’ मौजूद है, लेकिन सूरा-ए-तौबा के शुरू में नहीं है। जबकि सूरा-ए-नम्ल में एक जगह सूरः के अन्दर, 30वीं आयत में बिस्मिल्लाहिर्रमानिर्रहीम आती है। इस तरह खुद ‘बिस्मिल्ला- हर्रहमानिर्रहीम’ की संख्या भी पूरे कुरआन में 114 ही बनी रहती है जो कि 19 से पूर्ण विभाजित है। अगर हरेक सूरत की तरह सूरा-ए-तौबा भी ‘बिस्मिल्लाह’ से शुरू होती तो ‘बिस्मिल्लाह’ की संख्या पूरे कुरआन में 115 बार हो जाती और तब 19 से भाग देने पर शेष 1 बचता।
क्या यह सब एक मनुष्य के लिए सम्भव है कि वह विषय को भी सार्थकता से बयान करे और अलग-अलग सैंकड़ों जगह आ रहे शब्दों की गिनती और सन्तुलन को भी बनाये रखे, जबकि यह गिनती हजारों से भी ऊपर पहुँच रही हो?
पहली प्रकाशना में 19 का चमत्कार
पवित्र कुरआन का एक और चमत्कार देखिये-
अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) के अन्तःकरण पर परमेश्वर की ओर से सबसे पहली प्रकाशना (वह्या) में ‘सूरा-ए-अलक़’ की पहली पांच आयतें अवतरित हुईं। इसमें भी 19 शब्द और 76 अक्षर हैं।
76÷19=4 यह संख्या भी पूरी तरह विभाजित है। इस सूरत की आयतों की संख्या भी 19 है।
कुरआन शरीफ़ की कुल 114 सूरतों में यह 96 वें नम्बर पर स्थित है। यदि पीछे से गिना जाये तो यह ठीक 19वें नम्बर पर मिलेगी क्या यह एक कुशल गणितज्ञ की योजना का प्रमाण नहीं है?
कुल संख्याओं का योग और विभाजन
पवित्र कुरआन की आयातों में कुछ संख्याएं आयी हैं। उदाहरणार्थ-
कह दीजिए,“ वह अल्लाह एक है” (कुरआन 112:1)
और वे अपनी गुफा में तीन सौ साल और नौ साल ज़्यादा रहे। (कुरआन 18:25)
इन सारी संख्याओं को इकटठा किया जाए तो वे इस प्रकार होंगी-1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 19,20, 30, 40, 50, 60, 70, 80, 99, 100, 200, 300, 1,000, 2,000, 3,000, 5,000, 50,000, 100,000
इन सारी संख्याओं का कुल योग है 16,21,46
यह योग भी 19 से पूरी तरह विभाजित है 162146÷19=8534
क्या अब भी कोई आदमी कह सकता है कि यह कुरआन तो मुहम्मद साहब की रचना है? ध्यान रहे कि उन्हें ईश्वर ने ‘अनपढ़’ (उम्मी) रखा था।
क्या आज का कोई भी पढ़ा लिखा आदमी पवित्र कुरआन जैसा ग्रन्थ बना सकता है।?
क्या अब भी शक-शुबहे और इनकार की कोई गंन्जाइश बाक़ी बचती है?
नर्क पर भी नियुक्त हैं 19 रखवाले
पवित्र कुरआन के इस गणितीय चमत्कार को देखकर आस्तिकों का ईमान बढ़ता है और आचरण सुधरता है जबकि अपने निहित स्वार्थ और अहंकार के वशीभूत होकर जो लोग पवित्र कुरआन को ईश्वरकृत नहीं मानते और उसके बताये मार्ग को ग्रहण नहीं करते। वे मार्ग से भटककर दुनिया में भी कष्ट भोगते हैं और मरने के बाद भी आग के गडढ़े में जा गिरेंगे। उस आग पर नियुक्त देवदूतों की संख्या भी 19 ही होगी।
19 की संख्या विश्वास बढ़ाने का ज़रिया
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है-
फिर उसने (कुरआन को) देखा। फिर (घृणा से) मुँह मोड़ा और फिर अहंकार किया। फिर बोला,“ यह एक जादू है जो पहले से चला आ रहा है, यह मनुष्य का वचन (वाणी है)”
‘मैं, शीघ्र ही उसे ‘सक़र’ (नर्क) में झोंक दूँगा, और तुम्हें क्या मालूम कि सक़र क्या है?
वह न बाक़ी रखेगी, और न छोड़ेगी। वह शरीर को बिगाड़ देने वाली है। उस पर 19 (देवदूत) नियुक्त हैं। और ‘हमने’ उस अग्नि के रखवाले केवल देवदूत (फरिश्ते) बनाए हैं, और ‘हमने’ उनकी संख्या को इनकार करने वालों के लिए मुसीबत और आज़माइश बनाकर रखा है। ताकि पूर्व ग्रन्थ वालों को (कुरआन की सत्यता का) विश्वास हो जाए और आस्तिक किसी शक में न पडें। (पवित्र कुरआन 29:21:31)
मनुष्य का मार्ग और धर्म
पालनहार प्रभु ने मनुष्य की रचना दुख भोगने के लिए नहीं की है। दुख तो मनुष्य तब भोगता है जब वह ‘मार्ग’ से विचलित हो जाता है। मार्ग पर चलना ही मनुष्य का कत्र्तव्य और धर्म है। मार्ग से हटना अज्ञान और अधर्म है जो सारे दूखों का मूल है।
पालनहार प्रभु ने अपनी दया से मनुष्य की रचना की उसे ‘मार्ग’ दिखाया ताकि वह निरन्तर ज्ञान के द्वारा विकास और आनन्द के सोपान तय करता हुआ उस पद को प्राप्त कर ले जहाँ रोग,शोक, भय और मृत्यु की परछाइयाँ तक उसे न छू सकें। मार्ग सरल है, धर्म स्वाभाविक है। इसके लिए अप्राकृतिक और कष्टदायक साधनाओं को करने की नहीं बल्कि उन्हें छोड़ने की ज़रूरत है।
ईश्वर प्राप्ति सरल है
ईश्वर सबको सर्वत्र उपलब्ध है। केवल उसके बोध और स्मृति की ज़रूरत है। पवित्र कुरआन इनसान की हर ज़रूरत को पूरा करता है। इसकी शिक्षाएं स्पष्ट,सरल हैं और वर्तमान काल में आसानी से उनका पालन हो सकता है। पवित्र कुरआन की रचना किसी मनुष्य के द्वारा किया जाना संभव नहीं है। इसके विषयों की व्यापकता और प्रामाणिकता देखकर कोई भी व्यक्ति आसानी से यह जान सकता है कि इसका एक-एक शब्द सत्य है।
आधुनिक वैज्ञानिक खोजों के बाद भी पवित्र कुरआन में वर्णित कोई भी तथ्य गलत नहीं पाया गया बल्कि उनकी सत्यता ही प्रमाणित हुई है। कुरआन की शब्द योजना में छिपी गणितीय योजना भी उसकी सत्यता का एक ऐसा अकाट्य प्रमाण है जिसे कोई भी व्यक्ति जाँच परख सकता है।
प्राचीन धर्म का सीधा मार्ग
ईश्वर का नाम लेने मात्र से ही कोई व्यक्ति दुखों से मुक्ति नहीं पा सकता जब तक कि वह ईश्वर के निश्चित किये हुए मार्ग पर न चले। पवित्र कुरआन किसी नये ईश्वर,नये धर्म और नये मार्ग की शिक्षा नहीं देता। बल्कि प्राचीन ऋषियों के लुप्त हो गए मार्ग की ही शिक्षा देता है और उसी मार्ग पर चलने हेतु प्रार्थना करना सिखाता है।
‘हमें सीधे मार्ग पर चला, उन लोगों का मार्ग जिन पर तूने कृपा की।’ (पवित्र कुरआन 1:5-6)
ईश्वर की उपासना की सही रीति
मनुष्य दुखों से मुक्ति पा सकता है। लेकिन यह इस पर निर्भर है कि वह ईश्वर को अपना मार्गदर्शक स्वीकार करना कब सीखेगा? वह पवित्र कुरआन की सत्यता को कब मानेगा? और सामाजिक कुरीतियों और धर्मिक पाखण्डों का व्यवहारतः उन्मूलन करने वाले अन्तिम सन्देष्टा हज़रत मुहम्मद (स.) को अपना आदर्श मानकर जीवन गुज़ारना कब सीखेगा?
सर्मपण से होता है दुखों का अन्त
ईश्वर सर्वशक्तिमान है वह आपके दुखों का अन्त करने की शक्ति रखता है। अपने जीवन की बागडोर उसे सौंपकर तो देखिये। पूर्वाग्रह,द्वेष और संकीर्णता के कारण सत्य का इनकार करके कष्ट भोगना उचित नहीं है। उठिये,जागिये और ईश्वर का वरदान पाने के लिए उसकी सुरक्षित वाणी पवित्र कुरआन का स्वागत कीजिए।
भारत को शान्त समृद्ध और विश्व गुरू बनाने का उपाय भी यही है।
क्या कोई भी आदमी दुःख, पाप और निराशा से मुक्ति के लिये इससे ज़्यादा बेहतर, सरल और ईश्वर की ओर से अवतरित किसी मार्ग या ग्रन्थ के बारे में मानवता को बता सकता है? (...जारी)
आज का कोई भी पढ़ा लिखा आदमी पवित्र कुरआन जैसा ग्रन्थ बना सकता है।? का जवाब वही है कि सारी दुनिया मिलकर भी कुरआन में दिये 114 नमूनों अर्थात सूरतों में से किसी एक की नकल भी न बना सकी न बना सकेगी
ReplyDeleteआपकी मेहनत सराहनीय है । यदि पाठक निष्पक्ष होकर पढ़ेंगे तो
ReplyDeleteज्ञान के साथ सदभाव अवश्य बढ़ेगा ।
good job .
ReplyDeleteआपने दिये से दिये को रौशन करने वाली कहावत सचमुच चरितार्थ कर दिखाई ।
@ अन्जुमन के दोस्तो, अनवर जमाल साहब से हम सब परिचित हो चुके, हमारे इस ब्लाग और दूसरे ब्लागस पर आप उनके कमेंटस देख रहे रहे होंगे,उनका अपना ब्लागस भी है, आगे उनकी ब्लागिंग में सहायता को मैं और आप हैं ही, मेरा आपसे मशवरा था कि मैं अनवर साहब को अन्जुमन में शामिल होने को कहना चाहता हू, अगर आपकी इजाजत हो तो, मुझे लगता है यह हमारी तरफ से उनकी सराहना, हौसला अफजाई होगी
ReplyDeleteanwer bhai ki mehnat lajawab he.. aapsi bhai chaare par aapne bhot kaam kiya he..achhi jaankari dene par meri taraf se mubarkbaad
ReplyDeleteमियां साहब हम इन चमत्कारों का क्या करें? कहना राहुल का अपनी अपनी कहते हो
ReplyDelete@रामपाल - हम अपनी-अपनी नहीं सबकी और सबके भले की बात करते हैं, यह राहुल कुछ कहे तो सुनें इसकी बात से पता नहीं चल रहा यह वेदों में विज्ञान है या वेदों मैं विज्ञान था कह रहा है हम नहीं समझ पा रहे, इससे वाक्य पूरा करवाओ या आप समझ लो फिर हमें समझाना, तब इसकी भी सुनेंगे तुम्हारी भी सुनेंगे
ReplyDeletenice post
ReplyDeleteapan hisab men kamzor hen,, bete se jama ghata karke dikhwata hoon,, ghalat huwa to bataunga
ReplyDeleteVery good
ReplyDeleteaapne jo kuch bhi bataya hai wo adbhut hai,waqai aapka kaam sarahniye hai,its wonderful.
ReplyDeleteउमर भाई, आप लोगो की मेहनत माशाल्लाह रंग ला रही है, समझने वाले के लिए सब कुछ है, काफ़ी अच्छी जानकारी मिल रही है अनवर साहब को और आप सभी को मुबारकबाद
ReplyDeletechalo ab kam se kam kuch to padhe likhe log aa rahe hai, blob par. badiya jankari, magar jarurat hai dusaro ki bhi samjhne ki na ki apni kahne ki.
ReplyDeletekuran se pahle vedo ki jankari le aap log, ghyan badega.
@TARKESHWAR JI
ReplyDeleteWe have faith in the real and good teachings of Vedas , Puranas and other divine scriptures. please see our other blogs like
antimawtar.blogspot.com
and my blog
vedquran.blogspot.com
Okey I will be online at night.
बहुत ही अच्छी तरह से डॉ अनवर जमाल साहब ने "पवित्र कुरआन में गणितीय चमत्कार" को इस सिरीज़ के ज़रिये यह लोगों को बताने की कोशिश की कि कुरआन (जैसा कि अल्लाह स्वयं फ़रमाता हैं) ईश्वरीय ग्रन्थ है और अंतिम ईश्वरीय ग्रन्थ है.
ReplyDeleteउम्दा और सशक्त लेख !!!
उमर भाई, डॉ अनवर जमाल साहब के लिए हमारी अन्जुमन का मेम्बर बनाने के लिए मेरी स्वीकृति है!!! आप बकिया मेम्बरान से मशविरा कर उन्हें आमंत्रण ईमेल भेज सकते हैं !!!
ReplyDeleteसलीम साहब का धन्यवाद दूसरे मेम्बरस के ध्यान हेतु कमेंट फिर से
ReplyDelete@ अन्जुमन के दोस्तो, अनवर जमाल साहब से हम सब परिचित हो चुके, हमारे इस ब्लाग और दूसरे ब्लागस पर आप उनके कमेंटस देख रहे रहे होंगे,उनका अपना ब्लागस भी है, आगे उनकी ब्लागिंग में सहायता को मैं और आप हैं ही, मेरा आपसे मशवरा था कि मैं अनवर साहब को अन्जुमन में शामिल होने को कहना चाहता हू, अगर आपकी इजाजत हो तो, मुझे लगता है यह हमारी तरफ से उनकी सराहना, हौसला अफजाई होगी
@Umar bhai
ReplyDeleteZeeshan zaidi aaj kahan hain?
Islamic webduniya ki kami bhi khal rahi hai?
assalaimulaikum good work keep going
ReplyDeleteआपका स्टेमिना तो बड़े गज़ब का है । गणित कब तक पढ़ाओगे ?
ReplyDeleteकाम’ की बात कब करोगे?
प्रश्नपूछू व्रद्ध’ के एबसैन्ट रहने से मजा नहीं आया ।
क्या हमें कलिमा ही पढ़ाके छोड़ोगे ?
ReplyDeleteमिले सुर मेरा तुम्हारा ........
ReplyDeleteलेकिन अभी अड़चनें बहुत हैं ।
@ भाईयों आपको अनवर साहब याद कर रहे हैं, मेंने भी कुछ मशवरा आप से मांगा है, अनवर साहब बारे में और जानने के लिये देखें वन्दे ईश्वरम मासिक के अन्तिम पृष्ठ, फिर तुरन्त जवाब से नवाजो
ReplyDeleteवेद और कुरान कराते मेल
ReplyDeleteदंगे नेता करते खिलाते जेल
आज मेरे मुंहफट शेख़चिल्ली ने कुछ नहीं पूछा ?
ReplyDeleteभाई डॉक्टर साहब को तो हमसे भी पहले अंजुमन में शामिल होना चाहिए था. अब तो मेरा ख्याल है उन्हें अंजुमन में शामिल करने के लिए बिलकुल देर नहीं करनी चाहिए.
ReplyDeleteDr. Sahab, aapka kahna sahi hai. mujhe bhi Islamic Webdunia ki kamin bahut khal rahi hai...
ReplyDeletekahan hain aajkal !!!
@zishaan bhai aapke lekh ka intezar hai.
@All members, aap log pliz post se pahle hamari anjuman ke disha nirdesh aur term and condition zaroor dekh lijiye
उमर भाई,
ReplyDeleteआप अनवर जमाल सहाब को अन्जुमन में शामिल कर सकते है.........मुझे मन्ज़ुर है...
माफ़ी चाहता हूं कुछ ज़रुरी काम में फ़ंसने की वजह से आपका दिया हुआ काम नही कर सका सनीचर के बाद से आज अपने कम्पुयटर पर बैठ पाया हूं....
@ काशिफ साहब, जीशान और सलीम खान से मशवरे के बाद मैंने अनवर साहब को ईमेल से अन्जुमन में शामिल होने की दरखास्त की है, उम्मीद है जल्द वह कमेंटस से अपना जवाब देंगें फिर उनको invite कर लिया जायेगा, धन्यवाद
ReplyDeleteअस्सलामु अलैकुम
ReplyDeleteमैं आपकी अंजुमन में शामिल होना चाहता हूं ।
मेरा विचार है कि पवित्र कुरआन की शिक्षा के ज़रिये वसुधैव कुटुम्बकम का सपना साकार किया जा सकता हैा
सलीम खान भाई और उमर कैरानवी भाई तथा हमारी अंजुमन के अन्य सदस्य ! डा0 अनवर जमाल साहिब को अवश्य हमारी अनजुमन में शामिल करें। शुक्रिया
ReplyDeleteanwer ko Lao ya anwaar ka Lao, do ko Lao ya chaar ko Laao Pajame ko Lao ya shalwar ko Lao, ham pe koi farq padne wala nahin he
ReplyDeletebharat bhaarti साहिब !
ReplyDeleteहमारी अंजुमन का उद्धेश्य किसी को बदलना नहीं मात्र संदेश पहुंचाना है। उस धरोहर का परिचय कराना है जिसे लोग भूले हुए हैं। कि हे मानव! तेरी अमानत तेरी सेवा में प्रस्तुत कर दी गई। आओ और पहचानो अपनी अमानत को। "हमारा काम तो बस पहुंचा देना है"
"मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया!"
ReplyDelete"मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया!"
"मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया!"
"मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया!"
sab bakwas hai esse jyada bkwas hai
ReplyDeleteमुझे अन्जुमन में शामिल कर लेने का शुक्रिया
ReplyDeleteमाफी चाहूँगा सभी भाइयों से खास तौर पर डा अनवर जमाल साहब से की उनके इस्तकबल में बहुत पीछे रह गया . दुनियावी कामों की मसरुफ़ियत और कंप्यूटर की बेवफ़ाई के चलते मैं बहुत पीछे रह गया
ReplyDeleteअनवर जमाल साहब का तहेदिल से शुकरिया
उमर साहब से शिकायत यह है की आपको अनवर जमाल साहब के मामले में इज़ाज़त की कहाँ ज़रूरत थी
@ इस्लामिक भाई आप देर से आये लेकिन आपके कमेंटस ने जो प्यार और सम्मान से भरा है, सब शिकवा दूर कर दिया, अनवर साहब ने आपको याद भी किया था, बात तो आपकी भी ठीक है अनवर साहब बारे में हमें ऐसे मशवरा नहीं करना चाहिये था, लेकिन साथ ही यह भी आप समझते होंगे कि अन्जुमन में ऐसी एक भी मिशाल बन जायेगी तो आगे चलकर वह परेशानी का सबब बन सकती थी, खेर सब ठीक रहा, अल्लाह करे आगे भी सब ठीक रहे, आखिर में अनवर साहब के बारे में बता दूं आप दिन रात इस्लाम के फरोग में फिक्रमन्द रहते हैं और सर्वधर्म ज्ञान तो इतना है कि मुझे उन्हें अपना धर्मगुरू कहना ही पडा
ReplyDeleteज़र्रा नवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteअल्लाह हमे़ सिराते मुस्तक़ीम पर चलाये
और उसी की तरफ़ आमन्त्रित करने वाला बनाये ।
BAHOOT KHOOB
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