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हैरत मत कीजिए,सच्चाई यही है कि दुनिया में वक्त का निर्धारण काबा को केन्द्रित करके किया जाना चाहिए क्योंकि काबा दुनिया के बीचों बीच है। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर यह साबित कर चुका है। सेन्टर का दावा है कि ग्रीनविचमीन टाइम में खामियां हैं।
दुनिया में वक्त का निर्धारण ग्रीनविच रेखा के बजाय काबा को केन्दित रखकर किया जाना चाहिए क्योंकि काबा शरीफ दुनिया के एकदम बीच में है। विभिन्न शोध इस बात को साबित कर चुके हैं। वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो चुका है कि ग्रीनविच मीन टाइम में खामी है जबकि काबा के मुताबिक वक्त का निर्धारण एकदम सटीक बैठता है। ग्रीनवीच मानक समय को लेकर दुनिया में एक नई बहस शुरू हो गई है और और कोशिश की जा रही है कि ग्रीनविचमीन टाइम पर फिर से विचार किया जाए।ग्रीनविचमीन टाइम को चुनौति देकर काबा समय-निर्धारण का सही केन्द्र होने का दावा किया है इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर ने। रिसर्च सेन्टर ने वैज्ञानिक तरीके से इसे सिध्द कर दिया है और यह सच्चाई दुनिया के सामने लाने की मुहिम में जुटा है। वे कॉन्फे्रस के जरिए दुनिया को यह हकीकत बताने जा रहे हैं। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर के डॉ। अब्द अल बासेत सैयद इस संबंध में कहते हैं कि जब अंग्रेजों के शासन में सूर्यास्त नहीं हुआ करता था, तब ग्रीनविच टाइम को मानक समय बनाकर पूरी दुनिया पर थोप दिया गया। डॉ। अब्द अल बासेत सैयद के मुताबिक ग्रीनविच टाइम में समस्या यह है कि ग्रीनविच रेखा पर धरती की चुम्बकीय क्षमता ८.५डिग्री है जबकि मक्का में चुम्बकीय क्षमता शून्य है। डॉ.सैयद के अनुसार जीरो डिग्री चुम्बकीय क्षमता वाले स्थान को आधार मानकर टाइम का निर्धारण ही वैज्ञानिक रूप से सही है। जीरो डिग्री चुम्बकीय क्षमता दोनों ध्रुवों के बीच में यानी दुनिया के केन्द्र में होगी।
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दोस्तों इस चर्चा को हिन्दी में सफलता के साथ करने के बाद यह चर्चा अब उर्दू में दो बडें अखबारों से शुरू करादी है, अल्लाह करे हम इधर भी कामयाब रहें
अच्छा लेख प्रस्तुत किया आपने। आज वास्तव में आवश्यकता है कि इनसान अपने केंद्रिय स्थान की खोज करे। बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत बढिया जानकारी,
ReplyDeleteबहुत बढिया जानकारी परन्तु देर से, पहले बतादेते कि काबा दुनिया के बीच में है तो काशिफ से सवाल न किया जाता कि तुम पश्चिम की ओर को नमाज़ पढते हो, अब उसे पता चल जाएगा हम तो काबा की ओर पढते हैं जिस कारण दुनिया में अलग अलग दिशाऐं हो सकती है, और हां ब्लागवाणी चटका कत लगाया करो, यह अच्छी बात नहीं है
ReplyDeleteमैने सुना था कि धरती गोल है। और गोल वस्तु का केन्द्र (सेन्टर) उसके सतह पर नहीं, अन्दर होता है।
ReplyDeleteतो काबा या ग्रीनविच या इस्लामाबाद धरती के केन्द्र में कैसे हो सकते हैं?
भाई अनुनाद जी
ReplyDeleteयहाँ बात पृथ्वी के बीच से मतलब उत्तर और दक्षिण चुम्बकीय धुर्वों के बीच से है
आप पूरा लेख पढ़िए बात समझ आ जाएगी
@ भाई अनुवाद जी, कुछ भाग और पढ लिजिए,
ReplyDeleteडॉ. अब्द अल बासेत सैयद के मुताबिक ग्रीनविच टाइम में समस्या यह है कि ग्रीनविच रेखा पर धरती की चुम्बकीय क्षमता ८.५डिग्री है जबकि मक्का में चुम्बकीय क्षमता शून्य है। डॉ.सैयद के अनुसार जीरो डिग्री चुम्बकीय क्षमता वाले स्थान को आधार मानकर टाइम का निर्धारण ही वैज्ञानिक रूप से सही है। जीरो डिग्री चुम्बकीय क्षमता दोनों ध्रुवों के बीच में यानी दुनिया के केन्द्र में होगी। अगर काबा में कंपास रखा जाता है तो कंपास की सुई नहीं हिलेगी क्योंकि वहां से उत्तरी और दक्षिणी गोलाध्र्द बराबर दूरी पर है।
वे आगे बताते हैं-मानव सरंचना के बारे में इल्म रखने वाला व्यक्ति जानता है कि शरीर के सभी प्रवाह दाईं ओर है। जब कोई व्यक्ति काबा का तवाफ करता है,जो घडी की विपरीत दिशा में यानी दायीं तरफ से बाईं तरफ होता है, तो वह उर्जा से भरपूर हो जाता है। तवाफ से शरीर के दाईं ओर के प्रवाह को अधिक गति मिलती है और उर्जा हासिल होती है। इन सब बातों से जाहिर होता है कि अल्लाह ने अपने घर को कितना बुलंद मुकाम अता किया है।
ReplyDeleteडॉ.अब्द अल बासेत कहते हैं कि चांद पर जाने वाले नील आर्मस्टांग भी मान चुके हैं कि काबा दुनिया के बीचोंबीच है। जब अंतरिक्ष से पथ्वी के फोटो लिए गए थे तो मालूम हुआ कि काबा से खास किस्म की अनन्त किरणें निकल रही हैं। डॉ. अब्द अलबासेत सैयद ने एक टीवी चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में इन सब बातों का खुलासा किया। उन्होने बताया कि ग्रीनविचमीन टाइम के मुताबिक उत्तरी और दक्षिणी गोलाध्र्द के बीच साढे आठ मिनट का फर्क पड जाता है,जो इस टाइम-निर्धारण की खामी को उजागर करता है। टाइम निर्धारण की इस गडबड से हवाई यातायात में व्यवधान पैदा हो जाता है। यही वजह है कि हवाई यातायात के दौरान इन साढे आठ मिनटों को एडजेस्ट करके हवाई यातायात का संचालन किया जाता है। अगर काबा को केन्द्रित रखकर समय तय हो तो साढे आठ मिनट वाली यह परेशानी भी दूर हो जाएगी। डॉ. सैयद के मुताबिक मक्का में प्रथ्वी की चुम्बकीय क्षमता जीरो डिग्री होने से वहां जाने वाले लोगों को सेहत के हिसाब से भी काफी फायदा होता है क्योंकि उन्हें वहां एक खास तरह की उर्जा हासिल होती है। जब कोई मक्का में होता है तो उस व्यक्ति के रक्त की आक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता दुनिया के अन्य स्थानों से कहीं अधिक होती है। मक्का में आपको अधिक मेहनत करने की जरूरत नहीं पडती। यही वजह है कि अच्छी तरह नहीं चल पाने वाला बुजुर्ग व्यक्ति भी हज के दौरान जबर्दस्त भीड होने के बावजूद काबा का तवाफ उत्साहित होकर कर लेता है। वहां लोग उर्जा से भरे रहते हैं क्योंकि वे उस खास मुकाम पर होते हैं जहां पथ्वी का चुम्बकीय बल जीरो है।
ReplyDeleteहो सकता है भाई, तभे वहाँ कभी शिवलिंग हुआ करता था.
ReplyDelete@बैंगाणी भाई - शिव लिंग जैसे सवालों के जवाब निम्न पुस्तक में हैं, इसमें आपकी बहुतसी बातों का इन्कार नहीं किया गया, पढ लो तो आपस में प्रेम बढे
ReplyDeleteजिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं विद्वान मौलाना आचार्य शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक योग्य शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकाने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है,
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/08/famous-book-ab-bhi-na-jage-to.html
Direct link
Though on sphere it has no significance, The point at which the equator (0° latitude) and the prime meridian (0° longitude) intersect has no real significane but it is in the Atlantic Ocean, about 380 miles (611 kilometers) south of Ghana and 670 miles (1078 km) west of Gabon.
ReplyDeleteOur earth is insignificant plant of one of millions stars of galaxy milky way which is one of billion of galaxies.
Though on sphere it has no significance, The point at which the equator (0° latitude) and the prime meridian (0° longitude) intersect has no real significane but it is in the Atlantic Ocean, about 380 miles (611 kilometers) south of Ghana and 670 miles (1078 km) west of Gabon.
ReplyDeleteOur earth is insignificant plant of one of millions stars of galaxy milky way which is one of billion of galaxies.
सऊदी अरब इसकी शुरुआत करे.. फिर बाकि इस्लामिक देश... अगर फायदा हो तो बाकि देश भी.. हर्जा क्या है.. पर शरुआत तो करो..
ReplyDeleteबहुत सही जानकारी ! मैंने तो अपने ब्लॉग पर इसे नेविगेटर में लगा रखा है .
ReplyDeleteकाबा दुनियां के बीचों बीच है और वहां कोई लिंग विंग नहीं. पत्थर का मतलब लिंग नहीं होता...
भिया ये "चुम्बकीय क्षमता" कौन सा जानवर है? मैने भी बहुत चुम्बकत्व और भौतिकी पढ़ा है। पहले यह शब्द क्या है यह तो शुद्ध-शुद्ध लिखो। (हिन्दी में नहीं पता तो अंग्रेजी या उर्दू में लिखो)। इसके बाद भी बात खत्म नहीं होती। इसके बाद देखना है कि वह तथाकथित "चुम्बकीय क्षमता" क्या सचमुच काबा में शून्य है और साथ ही यह भी कि क्या यह केवल काबा में शून्य है या संसार में बहुत से स्थानों पर है। अभी भी बात नहीं खतम होती। देखना यह है कि घड़ी और समय के साथ इस "चुम्बकीय क्षमता" के शून्य होने का क्या सम्बन्ध है।
ReplyDeleteमेरी जानकारी में लोलक के आधार पर चलने वाली घड़िया 'केवल' गुरुत्वीय त्वरण (g) से प्रभावित होती हैं; चुम्बकीय क्षेत्र आदि से नहीं। इसके साथ आजकल तो दसों तरह की घड़ियाँ हैं - मेकैनिकल (यांत्रिक); एलेक्ट्रानिक; सौर घड़ी; परमाणु घड़ी आदि।
तो जरा इस अल्प-बुद्धि को वैज्ञानिक भाषा में तर्कपूर्वक समझावो। कुरान का तर्क मुझे नहीं समझ आता!!!
दुनिया में काफी सारे मुस्लिम देश हैं. सभी इस्लामिक मुल्क मिलकर अपने देशों के अन्दर काबा स्टेंडर्ड टाइम के मुताबिक काम करें, अंग्रेजी कलेंडर का बहिष्कार करें, हिजरी कलेंडर लागू करें, हर तरह के ब्याज पर पाबन्दी लगायें, गैर मुस्लिम देशों और व्यक्तियों से किसी प्रकार का सम्बन्ध न रखें (कुरआन के मुताबिक), यूरोप और अमेरिका को न तेल बेचें न उनसे उधार या सहायता लें. हर मुस्लिम देश अनिवार्य रूप से शरिया लागू करे और कुरआन को संविधान माने. अगर अच्छे परिणाम रहे तो सारी दुनिया इसे अपनाने के बारे में सोच सकती है. पर चैरिटी बिगंस एट होम.
ReplyDeleteदक्षिण अमेरिका के देश ऐसा कर सकते हैं तो मुस्लिम देश क्यों नहीं करते. कायर साउदी अरब खुद अमेरिका का पिट्ठू है.
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साउदी में तो फिर कोई दवाखाना, अस्पताल या डॉक्टर नहीं होगा?
चलवाओ भाई चलवाओ जल्दी चलवाओ जो चलवाना है चलवाओ क्योकि १५ वी सदी चल रही है .
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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सबसे पहले यह स्पष्ट कर दूं कि किसी भी धर्म से मेरा कोई विरोध नहीं पर धर्म या किसी भी अन्य चीज मे नाम पर फैलाई जा रही छद्म-वैज्ञानिकता का मैं विरोधी हूं और रहूंगा।
डॉ.अब्द अल बासेत सईद के बारे में खोजबीन की और जो पाया वह प्रस्तुत करूंगा, आगे आप किसे मानते हैं या नहीं यह निर्णय आपका होगा।
सबसे पहले पढ़िये....
http://drsanity.blogspot.com/2007/08/scientific-progress-goes-boink.html
Meanwhile,here is an example of Islamic "science" :
"TOPIC: Islamic Science: Neil Armstrong Proved Mecca is the Center of the World
The following are excerpts from an interview with Dr. Abd Al-Baset Al-Sayyed of the Egyptian National Research Center. Al-Majd TV aired this interview on January 16, 2005
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: The centrality [of Mecca] has been proven scientifically. How? When they traveled to outer space and took pictures of the earth, they saw that it is a dark, hanging sphere. The man said, "Earth is a dark hanging sphere – who hung it?"
Interviewer: Who said that?
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: [Neil] Armstrong. Armstrong was basically trying to say: Allah is the one who hung it. They discovered that Earth emits radiation, and they wrote about this on the web. They left the item there for 21 days, and then they made it disappear.
Interviewer: Why did they make it disappear?
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: There was intent there…
Interviewer: So it may be said that this suppression of information was significant.
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: It was very significant, since…the Ka'ba [in Mecca]… They said it emits radiation. This radiation is short-wave.
When they discovered this radiation, they started to zoom in, and they found that it emanates from Mecca – and, to be precise, from the Ka'ba.
Interviewer: My God!!
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: It was said…
जारी है भाग-२ में
भाग-२
ReplyDeleteInterviewer: Does this radiation have an effect?
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: They found that this radiation is infinite. When they reached Mars and began to take pictures, they found that the radiation continues beyond. They said that the wavelength known to us… or rather the shortness of the wavelength known to us… This radiation had a special characteristic: It is infinite, and I believe that the reason is that this radiation connects the [earthly] Ka'ba with the celestial Ka'ba.
Imagine that you are the North Pole and I am the South Pole – in the middle there's what is called the magnetic equilibrium zone. If you place a compass there, the needle won't move.
Interviewer: You mean that the pull is equal from both sides?
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: Yes, and that's why it's called zero-magnetism zone, since the magnetic force has no effect there. That's why if someone travels to Mecca or lives there, he lives longer, is healthier, and is less affected by Earth's gravity. That's why when you circle the Ka'ba, you get charged with energy.
Interviewer: Allah be praised.
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: Yes, this is a fact.
This is a scientific fact…
Interviewer: Because you are distant from…
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: Earth's magnetic fields have no effect on you in this case.
There's a study that proves that the black basalt rocks in Mecca are the oldest rocks in the world. This is the truth.
Interviewer: The oldest rocks? Yes. Has this been proved scientifically?
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: It's been scientifically proven, and the study has been published.
Interviewer: They took basalt rocks from Mecca…
Dr. 'Abd Al-Baset Sayyid: …Basalt rocks from Mecca, and investigated the places where they were formed.
In the British Museum there are three pieces of the black stone [from the Ka'ba] …and they said that this rock didn't come from our solar system. "
And some Muslims wonder why they don't receive more Nobel Prizes?
अभी जारी है....
भाग-३
ReplyDeleteअब दूसरे दावे के बारे में पढ़िये...
http://blogs.discovermagazine.com/badastronomy/2007/01/16/mecca-lecca-hi/
Some people have accused me of being anti-religious, anti-christian, whatever. The truth is, I am anti-irrational. As long as you make sense, you’ll have no quarrel with me (well, that’s not strictly true– you can make sense and still be wrong… but if you don’t make sense then I guarantee you’ll be wrong).
But if you want to make absolutely no sense, spew irrationalities, and then claim that you are irrevocably correct and that everyone else is wrong, then fundamentalist religiosity is a great place to start.Acording to Dr. Abd Al-Baset Al-Sayyid, a "scientist" at the Egyptian National Research Center, we should dump Greenwich time and switch to… wait for it… Mecca time!
Abd Al-Baset Al-Sayyid: When British colonialism or the British kingdom were in control, and it was “an empire on which the sun never sets,” it imposed Greenwich Mean Time. This creates two problems for the world. The first problem is that in Greenwich, the magnetic field of Earth is 8.5 degrees, whereas in Mecca the magnetic field is zero.
[...]
Interviewer: What other benefits are there to calculating time according to Mecca?
Abd Al-Baset Al-Sayyid: If you calculate time according to Mecca, those 8.5 minutes… The magnetic field of Earth, for example… What I say is that there are people at the North Pole and the South Pole who cannot come here in multitudes.
Interviewer: Really?
Abd Al-Baset Al-Sayyid: This is because the magnetic force is concentrated there, which affects people’s blood and the biological movement of life. It has been proven that if magnetism, anywhere, exceeds 1,000 gauss, which equals one tenth of a tesla, it affects the ability of the hemoglobin in the blood to carry oxygen to the body’s tissues, the ability of the blood to carry oxygen to the tissues.
Interviewer: In other words, the ability to live…
Abd Al-Baset Al-Sayyid: Yes, to live… This means is that when you are in Mecca, the ability of the blood to carry oxygen to the tissues is greater than anywhere else in the world.
अभी और भी है...
@ प्रवीण बेटे पहली किस्त से साबित हुआ काबा सेंटर है, तुम्हें अपना सेंटर पता है या अगली किस्तों में वह बताओगे, उल्लू की दुम यह हिन्दी का चिटठा है, कभी अवध जाना हो तो हमारा सलाम ले के जाना
ReplyDeleteअवधिया चाचा
जो कभी अवध ना गया
अंतिम भाग...
ReplyDeleteInterviewer: That’s why, when people travel to Mecca, they return full of energy.
Abd Al-Baset Al-Sayyid: In Mecca, you don’t exert any effort. That’s why you may see an old man, who cannot walk, or who walks with crutches, and even though it gets very crowded around the Ka’ba, he is filled with great strength, and he circles the Ka’ba. You do not exert any effort, and you are filled with energy, because you are in a place in which there is no magnetic force.
I was going to tear this apart step by step, but c’mon, why bother. This guy is so full of crap it would just be kind of sad to do it. People want to visit Mecca from the north and south poles? That ought to be a short list. And the stuff about magnetic fields and blood is utter garbage. I have had MRIs on my back and my knee in the past, and if blood flowed differently depending on magnetic field strength, my body would have exploded like an overstuffed balloon during the procedure. MRIs use a huge magnetic field, tens of thousands of times stronger than the Earth’s field. Plus, what doesanything he is saying have to do with Greenwich time? It’s like Al-Sayyid wrote down scientific-sounding words on a piece of paper, cut it into pieces, and drew them randomly out of a hat.
So this guy is full of it. But why get upset?
What makes me so angry about stuff like this is that he claims he’s a scientist, when he is anything but, together with the fact that this is all based on fundamentalist Islam. So what we have here is a middle-eastern version of the young Earth creationist, someone who has the incredible ability to totally ignore every single fact and observation about reality, and instead substitute them with fantasy based on something in an ancient book written before we understood germs and electricity.
But what really, really makes me angry is that I know that this twinkie will be praised by millions of people who will take his word as, pardon the expression, gospel. They won’t wonder that Dr. Al-Sayyid’s words were sent over the Internet — a triumph of human engineering knowledge — or that what he said was broadcast over a television signal that took centuries of scientific progress to create.
Fundamentalist ignorance is many things, but irony is one of of its most obvious properties. But another property, and its most insidious, is its infection rate. The only cure for this sort of thing is knowledge.
Arm yourself.
January 16th, 2007 12:34 PM by Phil Plait in Antiscience, Astronomy, Debunking, Piece of mind, Rant, Religion, Science, Skepticism, Time Sink
तो मित्रों मेरा भी मानना है कि So what we have here is a middle-eastern version of the young Earth creationist, someone who has the incredible ability to totally ignore every single fact and observation about reality, and instead substitute them with fantasy.
आप क्या सोचते हैं ?
भाई अनुनाद जी
ReplyDeleteजैसा कि आप जानते हैं पूरी पृथ्वी को ३६० डिग्री देशातंर में बांटकर समय का निर्धारण किया गया है। देशातंर यानी उत्तर से दक्षिण की ओर की खड़ी रेखा। इंग्लेण्ड के ग्रीनविच शहर को जीरो डिग्री देशान्तर मानते हुए पूरी पृथ्वी को ३६० देशातंर में बांटा गया।
जाहिर है गोल पृथ्वी पर कहीं भी खड़ी रेखा खींचकर उसे जीरो माना जा सकता था और अंगे्रजों ने इसे अपने देश के ग्रीनविच शहर से माना और इस तरह देशातंर को समय का आधार मानकर पूरी दुनिया के लिए इस समय को स्टेडर्ड टाइम करार दे दिया। मुद्दा यह है कि समय का निर्धारण भौगोलिक उत्तर और दक्षिण धु्रवों का आधार बनाकर किया गया ना कि चुम्बकीय उत्तर और दक्षिण धु्रवों को आधार बनाकर। चूंकि चुम्बकीय धु्रव कुदरती है जबकि भौगोलिक ध्रुव मानव द्वारा तय किए गए। चुम्बकीय ध्रुव के सेन्टर का मतलब है,वह जगह जहां चुम्बकीय क्षेत्र जीरो हो जैसा कि साबित हो चुका है कि काबा में ऐसा ही है।
व्यावहारिक रूप में ग्रीनविच टाइम में साढे आठ मिनट की गड़बड़ी सामने आती है जबकि मक्का को टाइम का आधार मानने पर ऐसा नहीं होता क्योंकि मक्का चुम्बकीय धु्रवों के ठीक बीच में है। यानी कुदरती रूप से ठीक बीच में।
रही बात चुम्बकीय क्षमता से मतलब तो यहां चुम्बकीय क्षमता से मतलब चुम्बकीय क्षेत्र से है।
भाई पोस्ट वाले , समय पर आये वरना मने निम्न उत्तर बनाया था, सब बच्चें को ठीक से जवा दो, हम दूसरी क्लास में जाते हैं तब तक,
ReplyDelete@ भाईयों & प्रवीण शाह, मैं सोचता हूँ जिसने यह पोस्ट डाली वह जवाब दे, देगा उसे फोन द्वारा खबर करदी, हमने अपनी जिम्मेदारी निभाई, अब उसके बसका नहीं तो यह जिम्मेदारी भी हम निभाऐंगे, वह इस विषय का प्रोफेसर है तो हम भी ब्लाग युनिवर्सिटी के चांसलर हैं, इसका मतलब यह है कि पहले इस विषय के प्रोफेसर को भेजता हूँ वह नहीं आसका तो चांसलर आएगा, आखिर यूँही नहीं हम इस ब््लाग के मुख्य सलाहकार बना दिये गये, तब तक आओ विचार करें कि महाशक्ति वाले निम्न सिगनेचर को वाइरस कहते हैं
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विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
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अल्लाह का चैलेंज पूरी मानव-जाति को
अल्लाह का चैलेंज है कि कुरआन में कोई रद्दोबदल नहीं कर सकता
अल्लाह का चैलेंजः कुरआन में विरोधाभास नहीं
अल्लाह का चैलेंजः आसमानी पुस्तक केवल चार
अल्लाह का चैलेंज वैज्ञानिकों को सृष्टि रचना बारे में
अल्लाह का चैलेंज: यहूदियों (इसराईलियों) को कभी शांति नहीं मिलेगी
छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्लामिक पुस्तकें
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शुक्रिया प्रवीण शाह
ReplyDeleteआपने इस विषय का अच्छा खुलासा किया है।
भाईयों विज्ञान से साबित कर चुके कि घडिया काबे के मुताबिक चलनी चाहिए क्यूंकि वह ही असल सेंटर है, अब कुछ धार्मिक टच भी देदिया जाए तो मुनासिब रहेगा, निम्न वेदमन्त्र में दूर देश में समुद्र तट पर विचार किजिए
ReplyDeleteदारू काबनः
''है उपासक! दूर देश में समुद्र तट पर जो दारू काबन है, वह किसी मनुष्य से निर्मित नहीं है इसमें आराधना करके उनकी कृपा से बैकुण्ठ को प्राप्त हो'' -- (ऋः 10-155-3)
निम्न वेदमन्त्र में विचार किजिए नाफ़े ज़मीन शब्द पर
इलास्पदः 'इलायास्तवा पदे वयं नाभा पृथिव्या अधि'
''हमारा इला का स्थान नाफ़े ज़मीन (पृथ्वी की नाभि) पर है'' -- (ऋः 3-29-4)
नाभा पृथिव्या, नाभि कमल आदि बारे में अधिक जानने के लिए देखें ''वैदिक धर्म में काबे की हक़ीकत'' अध्याय 14, वेद और कुरआन की शिक्षाओं पर आधारित पुस्तक ''अगर अब भी ना जागे तो''
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/08/famous-book-ab-bhi-na-jage-to.html
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ReplyDelete.
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??????
यह हो क्या रहा है? मै्ने जो कुछ लिखा है उसे पढ़कर ही कुछ कहिये... कुछ दोस्त मेरे लिखे का बिल्कुल विपरीत अर्थ ले रहे हैं।
@प्रवीण शाह जी आपको शुक्रिया कहा जा चुका, अब भाई अंग्रजी में लिखोगे,फिर अंत में हिन्दी में कहोगे आपकी क्या राय है, तो ऐसी बातें तो होंगी है फिक्र न करो, जिससे जवाब मांग रहे हो वह केवल रात में जवाब देता है अगर मूड हुआ तो अन्यथा हम हैं 24 घंटे, कुछ धार्मिक भी हमारी सहायता करो जैसे
ReplyDeleteनिम्न वेदमन्त्र में दूर देश में समुद्र तट पर विचार किजिए
दारू काबनः
''है उपासक! दूर देश में समुद्र तट पर जो दारू काबन है, वह किसी मनुष्य से निर्मित नहीं है इसमें आराधना करके उनकी कृपा से बैकुण्ठ को प्राप्त हो'' -- (ऋः 10-155-3)
निम्न वेदमन्त्र में विचार किजिए नाफ़े ज़मीन शब्द पर
इलास्पदः 'इलायास्तवा पदे वयं नाभा पृथिव्या अधि'
''हमारा इला का स्थान नाफ़े ज़मीन (पृथ्वी की नाभि) पर है'' -- (ऋः 3-29-4)
नाभा पृथिव्या, नाभि कमल आदि बारे में अधिक जानने के लिए देखें ''वैदिक धर्म में काबे की हक़ीकत'' अध्याय 14, वेद और कुरआन की शिक्षाओं पर आधारित पुस्तक ''अगर अब भी ना जागे तो''
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/08/famous-book-ab-bhi-na-jage-to.html
@ इस्लामिक वेबदुनिया,
ReplyDeleteयदि पृथ्वी के चुम्बकत्व के बारे में पता हो तो तर्क-वितर्क कीजिये अन्यथा बहस करने का कोई मतलब नहीं है। साफ-साफ बताइये कि काबा में कौन सा चुम्बकीय क्षेत्र शून्य है और उसका सन्दर्भ दीजीये (मुझे बार-बार क्यों पूछना पड़ रहा है कि सही-सही वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग करते हुए बताइये कि काबा में 'अमुक चीज' का मान शून्य है)। इसके साथ ही यह भी लिखिये कि चुम्बकीय क्षेत्र का उक्त घटक (कम्पोनेन्ट) दुनिया में और कहाँ-कहाँ शून्य है।
मुझे अच्छी तरह पता है कि अंग्रेजों ने ग्रीनविच से जाने वाली देशानतर को शून्य देशान्तर मानकर उसे वैश्विक समय के मापन का आधार बनाया।
इसमें उनका पक्षपात साफ दिखता है। किन्तु इससे यह सिद्ध नहीं होता कि काबा विश्व का केन्द्र है या विश्व की घड़ियाँ काबा के स्थानीय समय के अनुसार चलाना 'अधिक' वैज्ञानिक होगा।
जब किसी चीज को मापना होता है तो कुछ तो सन्दर्भ (रिफरेंस) मानना पड़ेगा। पानी के बर्फ बनने के ताप को शून्य डिग्री सेल्सियस ही क्यों माना गया? सरसो के तेल के ठोस बनने के ताप को क्यों नहीं? एक मीटर की लम्बाई, काबा के लिंग के बराबर भी रखी जा सकती थी। १ किग्रा का द्रव्यमान खजूर के सौ फलों के बराबर भी हो सकता था। कुछ तो सन्दर्भ लेकर ही मापन होता है।
ग्रीनविच टाइम में समस्या यह है कि ग्रीनविच रेखा पर धरती की चुम्बकीय क्षमता ८.५डिग्री है जबकि मक्का में चुम्बकीय क्षमता शून्य है...
ReplyDeleteलगता है इसमें अभी काफी बहस और डाटा की ज़रुरत है.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी।
ReplyDeleteअनुनाद साहब एक बार इस लेख को पूरा पढ़ो लो यार।
ReplyDeleteइसमें साफ है कि जहां काबा है उस इलाके का चुम्बकीय बल जीरो है यानी वहां पर कम्पास रखने पर वह न्यूट्रल हो जाता है क्योंकि वह उत्तरी और दक्षिणी चुम्बकीय धु्रवों के ठीक बीच में है।
रही बात और दुनिया में ऐसी जगह कौनसी है? यह तो आप बताओ यह सवाल ही आपने खड़ा किया है कि दुनिया में और भी ऐसी जगह हो सकती है।
समझ सकते हो तो प्रवीण शाह की टिप्पणी गौर से पढ़ो सारी बात का खुलासा हो जाएगा
"चुम्बकीय क्षमता" नाम की कोई चीज नहीं होती है। होती हो तो इसका सन्दर्भ दीजिये। सबसे अच्छी चीज है कि इसके तुल्य अंग्रेजी शब्द बताइये। उसके बाद देखते हैं कि यह काबा में शून्य है कि नहीं। भागने से काम नहीं चलेगा!!!
ReplyDelete@दस्तक,
ReplyDelete"कम्पास रखने पर न्यूट्रल हो जाता है", इसका मतलब क्या है? जरा इस वाक्य की व्याख्या कीजिये। कपास कभी देखा है आपने? क्या काबा में चुम्बकीय सुई (कम्पास) उत्तर-दक्षिण में खड़ा नहीं होता बल्कि एक बार जिधर करके छोड़ देते हैं उधर ही खड़ा रहता है? चुम्बकीय सूई में न्यूट्रल क्या चीज होती है?
भाईयों विज्ञान से साबित कर चुके कि घडिया काबे के मुताबिक चलनी चाहिए क्यूंकि वह ही असल सेंटर है, अब कुछ धार्मिक टच भी देदिया जाए तो मुनासिब रहेगा, निम्न वेदमन्त्र में दूर देश में समुद्र तट पर विचार किजिए
ReplyDeleteदारू काबनः
''है उपासक! दूर देश में समुद्र तट पर जो दारू काबन है, वह किसी मनुष्य से निर्मित नहीं है इसमें आराधना करके उनकी कृपा से बैकुण्ठ को प्राप्त हो'' -- (ऋः 10-155-3)
निम्न वेदमन्त्र में विचार किजिए नाफ़े ज़मीन शब्द पर
इलास्पदः 'इलायास्तवा पदे वयं नाभा पृथिव्या अधि'
''हमारा इला का स्थान नाफ़े ज़मीन (पृथ्वी की नाभि) पर है'' -- (ऋः 3-29-4)
नाभा पृथिव्या, नाभि कमल आदि बारे में अधिक जानने के लिए देखें ''वैदिक धर्म में काबे की हक़ीकत'' अध्याय 14, वेद और कुरआन की शिक्षाओं पर आधारित पुस्तक ''अगर अब भी ना जागे तो''
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/08/famous-book-ab-bhi-na-jage-to.html
अरे अनुनाद भाई
ReplyDeleteप्रवीण शाह की टिप्पणी पढ़ो तो सही उसमें सब है
न्यूट्रल की व्याख्या और चुम्बकीय क्षमता के मायने भी
बात का अजीब पूंछड़ा पकड़कर बैठ जाते हो भाई
थोड़ा मैटर भी पढ़ लो मेरे भाई
@दस्तक मियाँ,
ReplyDeleteये विज्ञान है, कविता नहीं। प्रवीण शाह की टिप्पणी से कोई चार-पाँच वाक्य निकालकर बताओ कि उसमें कहाँ लिखा है कि काबा में 'अमुक चीज' शून्य है। गोलमाल तो बहुत लिखा है लेकिन विज्ञान और गोलमाल में यही फर्क है। भागने नहीं दूँगा।
@ भाई अनुवाद सिंह, जवाब देने वाला बंदा बडा पत्रकार है, उसे रात में समय मिलता है, इसलिए सबर करो, सब भाग गये तो भी हम तो हैं न चाणक्य पतिपादित तुम तब तक और पढ लो,
ReplyDeleteजब तक कोई धर्मगुरू हमारी बातों का जवाब नहीं देगा तब तक हम अर्थात साइबर मौलाना भी बार-बार पुकारते रहेंगे कि
भाईयों विज्ञान से साबित कर चुके कि घडिया काबे के मुताबिक चलनी चाहिए क्यूंकि वह ही असल सेंटर है, अब कुछ धार्मिक टच भी देदिया जाए तो मुनासिब रहेगा, निम्न वेदमन्त्र में दूर देश में समुद्र तट पर विचार किजिए
दारू काबनः
''है उपासक! दूर देश में समुद्र तट पर जो दारू काबन है, वह किसी मनुष्य से निर्मित नहीं है इसमें आराधना करके उनकी कृपा से बैकुण्ठ को प्राप्त हो'' -- (ऋः 10-155-3)
निम्न वेदमन्त्र में विचार किजिए नाफ़े ज़मीन शब्द पर
इलास्पदः 'इलायास्तवा पदे वयं नाभा पृथिव्या अधि'
''हमारा इला का स्थान नाफ़े ज़मीन (पृथ्वी की नाभि) पर है'' -- (ऋः 3-29-4)
नाभा पृथिव्या, नाभि कमल आदि बारे में अधिक जानने के लिए देखें ''वैदिक धर्म में काबे की हक़ीकत'' अध्याय 14, वेद और कुरआन की शिक्षाओं पर आधारित पुस्तक ''अगर अब भी ना जागे तो''
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/08/famous-book-ab-bhi-na-jage-to.html
@ कौरवानी भिया,
ReplyDeleteमैं बहुत धीरज वाला व्यक्ति हूँ। आपसे कुरान के केवल पाँच सदवाक्य लिखने के लिये लगभग एक साल पहले निवेदन किया था। आप आज तक नहीं दे पाये। प्रतीक्षा कर रहा हूँ। मुझे पूरी आशा है कि यदि कुरान में मानवता के हित की कोई अच्छी बात होगी तो आप उसे सबके सामने लाने में देरी नहीं करेंगे।
पहले मैं विज्ञान की टांग खींचने वालों की खबर ले रहा हूँ। इससे निपटने के बाद वेदान्त के मनमानी अर्थ निकालने वालों की सुधि भी लूँगा। मुझे पता है कि तुम विषयान्तर करके मस्तगुल की तरह बच निकलना चाहते हो। यहाँ ऐसा सम्भव नहीं है।
लो अब और समझो अच्छी तरह
ReplyDeleteअब भी ना समझ आए तो फिर गलती तुम्हारी नहीं है।
फिर तो-------
Abd Al-Baset Al-Sayyid: When British colonialism or the British kingdom were in control, and it was “an empire on which the sun never sets,” it imposed Greenwich Mean Time. This creates two problems for the world. The first problem is that in Greenwich, the magnetic field of Earth is 8.5 degrees, whereas in Mecca the magnetic field is zero.
[...]
Interviewer: What other benefits are there to calculating time according to Mecca?
Abd Al-Baset Al-Sayyid: If you calculate time according to Mecca, those 8.5 minutes… The magnetic field of Earth, for example… What I say is that there are people at the North Pole and the South Pole who cannot come here in multitudes.
Interviewer: Really?
Abd Al-Baset Al-Sayyid: This is because the magnetic force is concentrated there, which affects people’s blood and the biological movement of life. It has been proven that if magnetism, anywhere, exceeds 1,000 gauss, which equals one tenth of a tesla, it affects the ability of the hemoglobin in the blood to carry oxygen to the body’s tissues, the ability of the blood to carry oxygen to the tissues.
Interviewer: In other words, the ability to live…
Abd Al-Baset Al-Sayyid: Yes, to live… This means is that when you are in Mecca, the ability of the blood to carry oxygen to the tissues is greater than anywhere else in the world.
Interviewer: That’s why, when people travel to Mecca, they return full of energy.
Abd Al-Baset Al-Sayyid: In Mecca, you don’t exert any effort. That’s why you may see an old man, who cannot walk, or who walks with crutches, and even though it gets very crowded around the Ka’ba, he is filled with great strength, and he circles the Ka’ba. You do not exert any effort, and you are filled with energy, because you are in a place in which there is no magnetic force.
बहुत ख़ूब दस्तक भाई
ReplyDeleteशायद अनुनाद को समझ आ जाये
और समझ न आये तो सीधी सी बात है इन्हें तक्लीफ कुछ और है ।
@दस्तक मियाँ,
ReplyDeleteअब भी बात नहीं बनी। लगता है कि मेरी तरह आप भी नहीं समझ रहे हो। इसी लिये तो समुद्र में सुई खोजने का काम दे रहे हो। भाई, प्रश्न इतना साफ है तो उसका उत्तर भी उतना ही साफ मिलना चाहिये।
जो इतना बड़ा कॉपी-पेस्ट कर दिये हो उसमे पढ़कर बताओ कि काबा में क्या शून्य है?
थोड़ा भूचुम्बकत्व के बारे मे पढ़ो। (लेकिन मुझे तो ऐसा लग रहा है कि चुम्बकत्व का क ख ग भी नहीं जानते हो)। धरती के प्रत्येक स्थान के चुम्बकत्व को पारिभाषित करने के लिये क्या-क्या बताना पड़ता है? जरा काबा का नति (I), दिग्पात (D) एवं चुम्बकीय क्षेत्र की सम्पूर्ण तीव्रता (F) का मान तो बताओ (कहीं से खोजो)
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ReplyDelete.
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क्षमा करें मित्रों,
या तो मेरी टिप्पणियों में जो कुछ QUOTE किया गया है वह लोग समझ नहीं रहे या जानबूझ कर केवल वह ही पढ़ रहे हैं जो वह पढ़ना चाहते हैं...
जबकि मैंने स्पष्ट रूप से कहा है...
"तो मित्रों मेरा भी मानना है कि So what we have here is a middle-eastern version of the young Earth creationist, someone who has the incredible ability to totally ignore every single fact and observation about reality, and instead substitute them with fantasy."
हिन्दी में कहूँ, तो डॉ० अब्द अल बसत-सैयिद के यह सभी दावे और कथन तर्क, विज्ञान, हकीकत और तथ्यों को नजरअंदाज कर सोची गई एक FANTASY मात्र हैं।
एक बात और यहां बताना चाहूंगा कि दसियों ईस्लामी देशों में सैकड़ों विश्वविद्यालय होंगे, जिनमें हजारों की तादाद में PHYSICISTS, ASTROPHYSICISTS, SPACE SCIENTISTS, ASTRONOMER आदि होंगे, और आज तक उनमें से एक ने भी २००५ में डॉ० अब्द अल बसत-सैयिद द्वारा किये इन अजीबोगरीब दावों के पक्ष में कुछ नहीं कहा है।
@भैया अनुवाद सिंह - भागने की बात करते हो तो एक राज की बताऊँ , कैरानवी कभी भागा तो मदरसे से भागा, एक साल तो हमने पढ लिया दूसरे साल भाग लिए, अब बात यूँ समझो एक साल के मौलाना हैं हम, भागे इस लिए कि माशाअल्लाह हमें तो कई तरह के ज्ञान प्राप्त करने थे, देख लो उसकी का फल ब्लागिंग में कितने प्रकार की उपाधियाँ हमसे जुडी हैं, लेकिन हमें अच्छा लगता है खुद को कहना 'साइबर मौलाना'
ReplyDeleteरही बात कुरआन से 5 सदवाक्य की तो, वह अल्लाह का कलाम है, उसमें तो 6666 सूरतों (वाक्य) में मुझे एक में ही 40 नज़र आ रही हैं, लेकिन वह तब मानोगे जब तुम प्राइमरी की बातें तो मानो कि कुरआन शब्द ऐसे बनता है और यह उर्दू का नहीं अरबी का शब्द है, यह मान लो तो फिर अगला सबक़ दूं,
माशाअल्लाह मैंने तो ढूंड ली दो दिन लगे थे मुझे, लेकिन बडे-बडे मौलाना नहीं जानते इसका जवाब यह तो हम बडा खेल बनाऐंगे, इसमें तो मुझे अपने महान बनने के बहुत आसार दिखाए दे रहे हैं,
अगर मैं ना भी ढूंड पाता तो भी तुम कौनसा जीत जाते, जीतता हमारे नूह अलैहिस्सलाम, मनु पर तो मैं काफी कुछ जानगया भूल गए ब्लागिंग मनु की कश्ती कौन लाया, दर्शन तो कर लिए होंगे, अब भी समय है उसमें सवार हो जाओ,
हमें खबर है तुम विक्कीपीडिया में गंदगी भर रहे हो जैसे उर्दू वाले उर्दू में, अपनी-अपनी लिखे जा रहे हैं, इधर तो एक-दो महीने का काम लग रहा है फिर हम पर्सियन ब्लागिंग या विक्कीपीडिया को देखेंगे इन्शाअल्लाह (अगर अल्लाह ने चाहा तो)
@ बेटे प्रवीण शाह मुझे तुम्हारी सूरत कुछ जानी-पहचानी सी लग रही है, कभी अवध गये हो तुम , वैसे हम तो नहीं गए इसलिए हमारी सूरत देखकर कोई नही कहता कि कहीं देखा है तुम्हें, कभी जाओ तो अवध को हमारा सलाम कहना
ReplyDeleteअवधिया चाचा
जो कभी अवध ना गया
भाई अनुनाद जी
ReplyDeleteइस विषय पर हमारे पास जो जानकारी थी उसको इमानदारीपूर्वक सरल तरीके से पहुंचाने की कोशिश की है। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर के अब्द अल बासेत का इन्टव्यू भी आप लाइव देख सकते हैं। और भाई प्रवीण शाह ने भी इस इन्टरव्यू का अंग्रेजी वर्जन अपनी टिप्पणियों में दिया है। दस्तक की टिप्पणी मेें भी काफी कुछ बताया गया है।
हमने इसे नाक का सवाल नहीं बनाया है कि अब तो यही समय लागू कर देना चाहिए। समय को लेकर एक नई जानकारी हमारे सामने आई,वो हमने इमानदारीपूर्वक पेश करने की कोशिश की है। हमारा तो यह यकीन है कि सच्चाई को साबित करने की जरूरत नहीं होती अगर सच्चाई यही है तो आज नहीं तो कल यह खुद को साबित कर देगी।
अनुनाद जी आपने हमारी पोस्ट पर टिप्पणियों के लिए वक्त दिया इसके लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया।
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ReplyDelete.
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@ अवधिया चाचा,
मेरे संस्कार मुझे बताते हैं कि अगर कोई जानवर तुम्हारे ऊपर पेशाब भी कर दे तो जवाब में उसके ऊपर पेशाब करने के बजाय उसे माफ कर एक बार और नहा लो, लेकिन क्योंकि ऐसी ही एक टिप्पणी तुमने 'वीर सावरकर' नाम से मेरे ऊपर मेरे ही ब्लॉग में की थी और आज फिर उसे दोहराया है, तो तुम्हें बता देता हूँ कि यद्यपि मेरा मानना है कि नैट पर तेरे जैसे जानवरों के लिये भी जगह है...पर मुझे इतना मजबूर न कर कि पूरे ब्लॉगजगत के सामने तेरा नाम उजागर कर तेरे लिये डूब मरने लायक जगह भी न छोड़ूं ब्लॉगजगत में...
बहुत उम्दा जानकारी....
ReplyDeleteप्रवीण शाह ने इसमें इज़ाफ़ा कर दिया...
जहां तक मुझे जानकारी है,
ReplyDeleteपृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र का साउथ पोल वर्तमान में कनाडा की दिशा में है. इस तरह चुम्बकीय क्षेत्र की equitorial line मक्का से गुज़रती है. इस लाइन पर सभी जगह चुम्बकीय क्षेत्र का Vertical Component शून्य होता है.
मुझे खुशी है कि इस विषय में अंधकार फैला था वह काफी हद तक साफ हो गया है।
ReplyDeleteहम सभी "सत्यमेव जयते" (सत्य की ही विजय होती है) को मानने वाले हैं और " असतो मा सदगमय; तमसो मा ज्योतिर्गमय; मृत्योर्माऽमृतमगमय" (मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो; अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो; मृत्यु से अमरता की तरफ ले चलो) की प्रार्थना करने वाले हैं। इसलिये यह टिप्पणीमय चर्चा सभी 'सत्य की खोज करने वालों' की जीत है।
भाईयों विज्ञान से साबित कर चुके कि घडिया काबे के मुताबिक चलनी चाहिए क्यूंकि वह ही असल सेंटर है, अब कुछ धार्मिक टच भी देदिया जाए तो मुनासिब रहेगा, निम्न वेदमन्त्र में दूर देश में समुद्र तट पर विचार किजिए
ReplyDeleteदारू काबनः
''है उपासक! दूर देश में समुद्र तट पर जो दारू काबन है, वह किसी मनुष्य से निर्मित नहीं है इसमें आराधना करके उनकी कृपा से बैकुण्ठ को प्राप्त हो'' -- (ऋः 10-155-3)
निम्न वेदमन्त्र में विचार किजिए नाफ़े ज़मीन शब्द पर
इलास्पदः 'इलायास्तवा पदे वयं नाभा पृथिव्या अधि'
''हमारा इला का स्थान नाफ़े ज़मीन (पृथ्वी की नाभि) पर है'' -- (ऋः 3-29-4)
नाभा पृथिव्या, नाभि कमल आदि बारे में अधिक जानने के लिए देखें ''वैदिक धर्म में काबे की हक़ीकत'' अध्याय 14, वेद और कुरआन की शिक्षाओं पर आधारित पुस्तक ''अगर अब भी ना जागे तो''
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/08/famous-book-ab-bhi-na-jage-to.html
काबा की ज़मीन की नाभी है,
ReplyDeleteज़मीन का सेंटर पाईंट है ।
इस की ज़्यादा जानकारी के लिये हमारे ब्लाग पर
देखें ।
http://kuchtobadlega.blogspot.com/
वाह भाई काबा की पोस्ट वाले,आपको बधाई की यह पोस्ट हमारे ब्लाग की सबसे कामयाब पोस्ट में से एक रही, रही बात दुनिया के मानने की तो, ऐसा होता रहा है, कुछ मिसालें निम्न किताब में पढी जा सकती हैं,
ReplyDeleteडा. मौरसि बुकैले की पुस्तक - कुरआन और आधुनिक विज्ञान - का जवाहर लाल कौल द्वारा किया अनुवाद
http://www.4shared.com/file/97376800/94de070a/quran-and-modern-science-hindi-book-koran-islam-quran-kuran.html
क़ुरआन में बहुत ऐसी बातें भी हैं जिन्हें आजकी साईंस नहीं समझ पा रही, वह इस लिए भी 1400 साल पूर्व में अवतरित कुरआन केवल आजतक का नहीं दुनिया के अन्त यानि हमेशा रहनुमाई करेगा, ऐसा पहले होता रहा है, बहुत सी बातों को उस समय का विज्ञान नहीं समझ पाता जैसे अंतरिक्ष की बातें, मां के पेट में बच्चा कैसे पलता,बडा होता है, यह आज की आधुनिक मशीनों से साबित हुआ कि कुरआन में जो 1400 साल पूर्व दिया गया वही ठीक है,
आखिर में यही कह सकत हूँ कि आने वाली हिन्दी जानने वालों की नस्लें, जब इस बात को भी मानेंगी तो आपको याद करेंगी दुआऐं देंगी,
मेरी बधाई स्वीकारें
दोस्तों इस चर्चा को हिन्दी में सफलता के साथ करने के बाद अब उर्दू में शुरू करादी है, अल्लाह करे हम इधर भी कामयाब रहें,
ReplyDelete