बहन अंजुम को ब्लोगवाणी ने अपनी वाणी नहीं बनाई, इसलिए मैंने कोशिश की है कि उनकी वाणी को हमारी अंजुमन का मंच दे सकूँ.
http://anjumsheikh.blogspot.com
मैं एक साधारण सी गृहणी हूँ. हिंदुस्तान से बाहर रहती हूँ और आजकल अपने प्यारे वतन आई हुई हूँ. कोई लेखक नहीं हूँ, मगर फिरदौस जी के लेख ने मुझे मजबूर किया यहाँ लिखने के लिए.
वह कहती हैं कि परदे पर बैन महिलाओं की जीत है और मैं कहती हूँ की पर्दा मेरा हक है?
आखिर कैसे कोई सरकार मेरे हक को छीन सकती है? यह मसअला तो मेरे और मेरे खुदा की बीच का है. यह तो एक इंसान का अपने रब के लिए प्यार है, आखिर इसका अंदाज़ा कोई सरकार कैसे लगा सकती है????
मैं अपने खुदा के आदेशों को मानु अथवा नहीं, इसके बीच में सरकार कहाँ से आ गई?
अगर कोई सरकार किसी महिला पर ज़बरदस्ती पर्दा करने के खिलाफ कानून बनती तो यकीनन मैं उस फैसले का समर्थन करती. और फिरदौस जी के समर्थन पर खुश होती. परन्तु यहाँ तो किसी देश की सरकार के द्वारा हम औरतों के हक का हनन किया जा रहा है, और एक औरत (फिरदौस जी) बड़े फख्र के साथ उसका समर्थन कर रही हैं. अगर ऐसा कोई कानून मेरे देश में होता अथवा वहां जहाँ मैं रहती हूँ तो एक महिला होने के नाते मैं इसके खिलाफ आखिरी साँस तक क़ानूनी लड़ाई लडती. परन्तु मुझे रंज हुआ कि यहाँ एक महिला ही महिलाओं के हक के खिलाफ बन रहे कानून का पक्ष ले रही है.
यहाँ जो बुरखे का ज़िक्र सभी लोग कर रहे हैं, इस्लाम में उसका कोई महत्त्व नहीं है. असल लफ्ज़ 'हिजाब' है और हिजाब का मतलब अलग-अलग परिस्तिथियों के हिसाब से अलग-अलग होता है. यह कोई ज़रूरी नहीं है, कि औरतें काले रंग का बुरखा पहने. वह मोटे दुपट्टे अथवा शाल से भी अपने बदन को अच्छी तरह से ढक सकती हैं. क्योंकि असल मकसद तो बदन को ढकना है. औरतों के लिए महरम के सामने का हिजाब अपने बदन को ढकना है, वहीँ ग़ैर-महरम रिश्तेदारों के सामने हिजाब का मतलब मुंह और हाथ के पंजे छोड़ कर पुरे बदन को ढंकना है.
अल्लाह ने कुरआन में मर्दों और औरतों को अपनी आंख्ने नीची करने, और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने का हुक्म दिया है. वहीँ औरतों को ऐसे कपडे पेहेन्ने का हुक्म दिया है, जिसे उनका बदन अच्छी तरह से ढका रहे. अल्लाह ने कुरआन में फ़रमाया है -
[सुर: 24, अन-नूर, 30] इमान वाले पुरुषों से कह दो कि अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपनी शर्म गाहों की हिफाज़त करें. यही उनके लिए ज्यादा अच्छी बात है. अल्लाह को उसकी पूरी खबर रहती है, जो कुछ वे किया करते हैं.
[31] और ईमान वाली औरतों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखे और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें. और अपने श्रृंगार ज़ाहिर न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है (अर्थात महरम) और अपने सीनों पर दुपट्टे डाले रहे और अपना श्रृंगार किसी पर ज़ाहिर न करे सिवाह अपने शौहर के या अपने पिता के या अपने शौहर के पिता के या अपने बेटों के अपने पति के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भानजो के या अपने मेल-जोल की औरतों के या जो उनकी अपनी मिलकियत में हो उनके, या उन गुलाम पुरुषों के जो उस हालात को पार कर चुके हों जिसमें स्त्री की ज़रूरत होती है, या उन बच्चो के जो औरतों के परदे की बातों को ना जानते हों. और औरतों अपने पांव ज़मीन पर मरकर न चलें कि अपना जो श्रृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए. ऐ ईमान वालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हे सफलता प्राप्त हो.
मैंने उनके लेख पर भी कमेंट्स लिखा था, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया. पता नहीं क्यों? क्योंकि वहां मैंने प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद (सल.) के खिलाफ बहुत ही गंदे कमेंट्स देखे हैं, जिन्हें फिरदौस जी ने कुबूल कर लिया और मेरे सवालों को क़ुबूल नहीं किया. आखिर क्यों? मैंने उनको जानती नहीं हूँ, पर उनके इस फैसले से मुझे शक होता है, क्या वह मुसलमान है? और मुसलमान छोडो, क्या वह एक इन्साफ पसंद महिला हैं???
- Anjum Sheikh
मैं एक साधारण सी गृहणी हूँ. हिंदुस्तान से बाहर रहती हूँ और आजकल अपने प्यारे वतन आई हुई हूँ. कोई लेखक नहीं हूँ, मगर फिरदौस जी के लेख ने मुझे मजबूर किया यहाँ लिखने के लिए.
वह कहती हैं कि परदे पर बैन महिलाओं की जीत है और मैं कहती हूँ की पर्दा मेरा हक है?
आखिर कैसे कोई सरकार मेरे हक को छीन सकती है? यह मसअला तो मेरे और मेरे खुदा की बीच का है. यह तो एक इंसान का अपने रब के लिए प्यार है, आखिर इसका अंदाज़ा कोई सरकार कैसे लगा सकती है????
मैं अपने खुदा के आदेशों को मानु अथवा नहीं, इसके बीच में सरकार कहाँ से आ गई?
अगर कोई सरकार किसी महिला पर ज़बरदस्ती पर्दा करने के खिलाफ कानून बनती तो यकीनन मैं उस फैसले का समर्थन करती. और फिरदौस जी के समर्थन पर खुश होती. परन्तु यहाँ तो किसी देश की सरकार के द्वारा हम औरतों के हक का हनन किया जा रहा है, और एक औरत (फिरदौस जी) बड़े फख्र के साथ उसका समर्थन कर रही हैं. अगर ऐसा कोई कानून मेरे देश में होता अथवा वहां जहाँ मैं रहती हूँ तो एक महिला होने के नाते मैं इसके खिलाफ आखिरी साँस तक क़ानूनी लड़ाई लडती. परन्तु मुझे रंज हुआ कि यहाँ एक महिला ही महिलाओं के हक के खिलाफ बन रहे कानून का पक्ष ले रही है.
यहाँ जो बुरखे का ज़िक्र सभी लोग कर रहे हैं, इस्लाम में उसका कोई महत्त्व नहीं है. असल लफ्ज़ 'हिजाब' है और हिजाब का मतलब अलग-अलग परिस्तिथियों के हिसाब से अलग-अलग होता है. यह कोई ज़रूरी नहीं है, कि औरतें काले रंग का बुरखा पहने. वह मोटे दुपट्टे अथवा शाल से भी अपने बदन को अच्छी तरह से ढक सकती हैं. क्योंकि असल मकसद तो बदन को ढकना है. औरतों के लिए महरम के सामने का हिजाब अपने बदन को ढकना है, वहीँ ग़ैर-महरम रिश्तेदारों के सामने हिजाब का मतलब मुंह और हाथ के पंजे छोड़ कर पुरे बदन को ढंकना है.
अल्लाह ने कुरआन में मर्दों और औरतों को अपनी आंख्ने नीची करने, और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने का हुक्म दिया है. वहीँ औरतों को ऐसे कपडे पेहेन्ने का हुक्म दिया है, जिसे उनका बदन अच्छी तरह से ढका रहे. अल्लाह ने कुरआन में फ़रमाया है -
[सुर: 24, अन-नूर, 30] इमान वाले पुरुषों से कह दो कि अपनी निगाहें बचाकर रखें और अपनी शर्म गाहों की हिफाज़त करें. यही उनके लिए ज्यादा अच्छी बात है. अल्लाह को उसकी पूरी खबर रहती है, जो कुछ वे किया करते हैं.
[31] और ईमान वाली औरतों से कह दो कि वे भी अपनी निगाहें बचाकर रखे और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें. और अपने श्रृंगार ज़ाहिर न करें, सिवाय उसके जो उनमें खुला रहता है (अर्थात महरम) और अपने सीनों पर दुपट्टे डाले रहे और अपना श्रृंगार किसी पर ज़ाहिर न करे सिवाह अपने शौहर के या अपने पिता के या अपने शौहर के पिता के या अपने बेटों के अपने पति के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भानजो के या अपने मेल-जोल की औरतों के या जो उनकी अपनी मिलकियत में हो उनके, या उन गुलाम पुरुषों के जो उस हालात को पार कर चुके हों जिसमें स्त्री की ज़रूरत होती है, या उन बच्चो के जो औरतों के परदे की बातों को ना जानते हों. और औरतों अपने पांव ज़मीन पर मरकर न चलें कि अपना जो श्रृंगार छिपा रखा हो, वह मालूम हो जाए. ऐ ईमान वालो! तुम सब मिलकर अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम्हे सफलता प्राप्त हो.
मैंने उनके लेख पर भी कमेंट्स लिखा था, जिसे उन्होंने स्वीकार नहीं किया. पता नहीं क्यों? क्योंकि वहां मैंने प्यारे नबी हज़रत मुहम्मद (सल.) के खिलाफ बहुत ही गंदे कमेंट्स देखे हैं, जिन्हें फिरदौस जी ने कुबूल कर लिया और मेरे सवालों को क़ुबूल नहीं किया. आखिर क्यों? मैंने उनको जानती नहीं हूँ, पर उनके इस फैसले से मुझे शक होता है, क्या वह मुसलमान है? और मुसलमान छोडो, क्या वह एक इन्साफ पसंद महिला हैं???
- Anjum Sheikh
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Aapka bahut bahut shukriya, Shahnaawz Bhai, jo aapne mere lekh ko "Hamari Anjuman" mein jagah di. Ab to wakai yeh Anjuman "Hamari Anjuman" ban gai hai.
ReplyDeleteबहुत ही ज़बरदस्त लेख है, अंजुम जी. बधाई.
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDelete"मैं अपने खुदा के आदेशों को मानु अथवा नहीं, इसके बीच में सरकार कहाँ से आ गई?"
"वह कहती हैं कि परदे पर बैन महिलाओं की जीत है और मैं कहती हूँ की पर्दा मेरा हक है?"
ReplyDeleteअंजुमन जी अब तो परदे या बुर्केवालियाँ कम होती जा रही हैं अब इस्लाम का क्या होगा; क्या खतरे में पद जायेगा ? या "वो " मुसलमान नहीं रह जाएँगी.
ReplyDeleteवाह अंजुम बाजी आपने कमाल कर दिया
ReplyDeleteयह सब मनुष्य पर छोड़ दिया जाए कि वो क्या करना चाहता है .........ना तो आप खुद बदलें और ना ही दूसरों को बदलने की कोशिश करें"
ReplyDeleteबहुत ज़रूरी आलेख था ये, जिसे सही वक्त पर पोस्ट करके एक नेक काम किया है शाहनवाज़ जी आपने.
ReplyDeleteनिश्चित रूप से पर्दा करना या नहीं करना बहुत व्यक्तिगत मामला है, इसमें किसी सरकार या कानून का दखल नहीं होना चाहिये. हां, यदि कोई महिला पर इस पर्दे को जबरन थोपा जा रहा हो, और वह महिला कानूनी मदद मांगे, तो उसे मदद मिलनी चाहिये. लेकिन सब पर इस आदेश को लागू करने की बाध्यता किसी भी धर्म और उससे जुड़ी मान्यताओं को ठेस पहुंचाने जैसा है.
असल में यह परदे का विरोध नहीं है, बल्कि इस बहाने एक समुदाय का विरोध है. वर्ना फ्रांस, या अमेरिका जैसी जगह पर भी क्या कोई औरतों को ज़बरदस्ती पर्दा करवा सकता है?
ReplyDelete@ वन्दना अवस्थी
ReplyDeleteआपने बिलकुल ठीक कहा वंदना जी, किसी को ज़बरदस्ती पर्दा करना अथवा पर्दा करने से रोकना दोनों एक ही तरह के जुर्म हैं. और दोनों ही का विरोध होना चाहिए.
@ शंकर फुलारा
ReplyDeleteशंकर जी, शायद आपको यह जानकार दुःख होगा कि अब हिजाब ग्रहण करने वाली महिलाऐं और साथ ही साथ इस्लाम धर्म का अनुसरण करने वाले मर्द एवं महिलाऐं के मुकाबले बहुत ज्यादा तादाद में बढ़ रहे हैं. परन्तु आप जैसो को तो सिर्फ गलत चीज़ें देखने की आदत है. अच्छाई कहाँ दिखाई देती है?
Amitraghat ji aur वन्दना अवस्थी दुबे ji, Aapka kehna bilkul sach hai. Parda ya Allah ka koi bhi Huqm, aur kuchh nahi balki Rab aur bande ke beech pyar ko darshata hai. Jise rab se pyar hi nahi hai, vah dusre ke pyar ko kaise samajh sakta hai?
ReplyDeleteKya kisi mein himmat hai, jo mujhe apne rab se pyar karne se Rok de???? Himmat hai to rok kar dikhae..............
Sabhi Sathiyon ka bahut-bahut shukriya.
ReplyDeleteAnjum ji, apne bilkul sahi keha he. Parda ho athva koi bhi dharmik kary, koi bhi kisi ke Dharmik Kartavy ko Nibhane se nehi rok sakta he.
ReplyDeleteAapne kafi achha lekh likha he. Firdaus ji ke pas iska jawab ho hi nahi sakta hai.
बहिन अंजुम आपने पर्दे को अच्छे अंदाज में पेश किया।
ReplyDeleteआपने अपनी बात मजबूत तरीके से रखी। बड़ी हैरत होती है कि लोग बुर्के को जाहिलियत का निशान बताते हैं और सौंदर्यपन की नंगी प्रतियोगिता को तालियां पीटकर बढ़ावा देते हैं। वाह रे आधुनिक इंसान की अजीब सोच।
बहिन अंजुम का बार फिर से शुक्रिया।
आंकड़ खुद बताते हैं कि वे औरतें शोषण की शिकार ज्यादा होती है जो ज्यादा खुली रहती है। पाश्चात्य देशों की महिलाएं आज शोषण की ज्यादा शिकार है। आखिर खुलेपन में ही महिला की हिफाजत होती तो फिर ये शोषित क्यों होती? सच्चाई यह है कि महिला को आधुनिकता का जामा पहनाकर उसका जमकर शोषण किया जा रहा है। उसके नंगेपन को कला और और आधुनिकता का नाम दिया जा रहा है।
ReplyDeleteसच लिखा है आपने
ReplyDeleteकिसी देश की सरकार के द्वारा हम औरतों के हक का हनन किया जा रहा है, और एक औरत (फिरदौस जी) बड़े फख्र के साथ उसका समर्थन कर रही हैं. अगर ऐसा कोई कानून मेरे देश में होता अथवा वहां जहाँ मैं रहती हूँ तो एक महिला होने के नाते मैं इसके खिलाफ आखिरी साँस तक क़ानूनी लड़ाई लडती. परन्तु मुझे रंज हुआ कि यहाँ एक महिला ही महिलाओं के हक के खिलाफ बन रहे कानून का पक्ष ले रही है.
भाई शाहनवाज आपने बहन अंजुम शेख की फरियाद पर ध्यान दिया अच्छा किया, मैं समझता हूँ दूसरे के दर्द को अपना दर्द समझना भी आरकुट में आपकी सफलता का कारण है, इधर भी आपने वहीं अन्दाज अपनाया बेहद अच्छा लगा, आपको इधर बहुत जल्द सफलता मिलने पर मैं बेहद खुश हूँ
ReplyDeleteमैं इस मामले में वन्दना जी की बात से सहमत हूँ. पर्दा करना या न करना व्यक्तिगत मामला है, लेकिन कुछ जगहें ऐसी हैं, जहाँ पर्दा व्यक्तिगत नहीं रह जाता. जैसे यदि वोटर आइ कार्ड में या ऐसे ही किसी अन्य पहचान पत्र में फोटो लगवानी हो तो ऐसी जगह सरकार पर्दा न करने का आदेश दे सकती है, क्योंकि यहाँ प्रश्न देश की सुरक्षा का होता है. लेकिन हमें ये भी देखना होगा कि सरकार का इस तरह का आदेश जारी करने के पीछे इरादा क्या है? अगर सरकार किसी गलत इरादे से ऐसा कर रही है, तो उसका विरोध करना चाहिये.
ReplyDeleteअपने मनपसंद पहनावा औरतों का हक है, लेकिन मैं ये नहीं मानती कि कम कपड़े पहनने के कारण औरतों के साथ दुर्व्यवहार होता है. ये हर जगह होता है, कहीं पता चल जाता है और कहीं नहीं पता चलता है. पिछड़े देशों में औरतों पर अत्याचार के मामले सामने नहीं आते इसका ये मतलब नहीं है कि अत्याचार होते ही नहीं हैं.
फ़िरदौस जी भी अपनी जगह पर सही हैं. वो यही चाहती हैं कि सरकार पर्दा पर बैन लगा दे क्योंकि ये औरतों की गुलामी की निशानी है. आप इसे स्वीकार कर रही हैं, पर जो औरतें पर्दा नहीं करना चाहतीं, उन्हें भी तो अपने मनमुताबिक जीने का हक है, उन्हें ये हक अगर सरकार के हस्तक्षेप से मिल रहा है, तो इसमें हर्ज़ ही क्या है?
sister anjum sheikh!
ReplyDeletevery nice article. allah bless u.
Anjum sahiba,
ReplyDeletevery good article.
@ मुक्ति जी,
ReplyDeleteआपने कहा की पर्दा करना या न करना व्यक्तिगत मामला है, और यही हम भी कह रहे हैं. ज़बरदस्ती पर्दा कराना भी गलत है और बैन लगाकर पर्दा उतारना भी गलत है. कनाडा और बेल्जियम सरकारों का पर्दा उतारने के पीछे की मंशा यही है की मुस्लिमों को नीचा दिखाया जाए, इसलिए हम उसका विरोध करते हैं.
अब सवाल उठता है की क्या पर्दा गुलामी की निशानी है? तो ऐसा हरगिज़ नहीं, और ये मैंने इससे पहले की पोस्ट में सिद्ध किया. जो औरतें पर्दा नहीं करना चाहतीं, उन्हें मनमुताबिक जीने से अगर कोई रोक रहा है तो ये गलत है, लेकिन कानून बनाकर पर्दा उतारना तो पूरी तरह गलत है, क्योंकि ये औरतों के मौलिक अधिकारों का हनन है.
कुछ लोगों को दिखाई गई तस्वीर में पर्दा नहीं दिख रहा है, जबकि ये पूरी तरह इस्लामी हिजाब है और ईरानियों व शीयों में परदे का यही तरीका प्रचलन में है.
ReplyDeleteआज फिर मैंने फिरदौस जी के सवालों के जवाब देने की कोशिश की है.
ReplyDeletehttp://anjumsheikh.blogspot.com
पता नहीं यह लेख उन तक पहुंचेगा या नहीं.
बहन Anjum Sheikh तुम्हारा ब्लाग ब्लॉगवाणी में जोड लिया गया है मुबारक हो, अब आपका कोई कमेंटस पब्लिश न करे तो आप खुद अपनी बात सब के सामने रख सकती हो
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