Sunday, April 18, 2010

हम भी सुधार के हामी हैं.


यहाँ बात हो रही है सुधार की.
वक़्त गुजरने के साथ मज़हब में कुछ ऐसी बातें शामिल हो जाती हैं जो वास्तव में गलत होती हैं और उनका मूल धर्म से कोई लेना देना नहीं होता. मज़हब में फैली हुई कुरीतियों (बल्कि किसी भी तरह की कुरीतियों) के खिलाफ विरोध करना बहुत अच्छी बात है. लेकिन उतना ही ज़रूरी है उसका हल पेश करना. अगर पैगम्बर मोहम्मद (स.अ.) ने उस समय समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाई तो इस्लाम के रूप में उसका हल भी पेश किया. अगर आप कहते हैं की यह गलत है, तो सही क्या है और क्यों है, यह भी आप ही सिद्ध करना है. हम कब तक दूसरों पर दोषारोपण करते रहेंगे? यही काम तो आज के नेता भी कर रहे है, सब एक दूसरे को देश की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहा है. हल कोई नहीं पेश कर रहा. 

किसी भी मज़हब की कुरीतियों को मज़हब के अन्दर ही रहते हुए दूर करने की पूरी गुंजाइश है. इसलिए क्योंकि कोई भी कुरीति मज़हब को ढंग से न समझने के कारण पैदा होती है. यह ज़रूरी नहीं की हमें कहीं कोई बुराई दिख रही है तो उसके लिए सीधे मज़हब पर इलज़ाम लगा दें.  

हमारी अंजुमन ऐसा ही प्रयास कर रही है. कुछ उदाहरण :


सफात साहब ने बताया की इस्लाम में औरतों के अधिकार किस तरह के हैं, क्या वाकई वह मर्दों की गुलाम है?
कुरआन की जिस आयत को लेकर लोग औरतों को पीटने की बात करते हैं, वह आयत दरअसल औरत की प्रोटेक्टर है, बस ज़रुरत है दूसरे नजरिये से देखने की.

अगर आप किसी मज़हब के एक खरब मानने वालों से दलीलों के साथ कहते हैं की जिस कुरीति को तुम धर्म समझ रहे वह धर्म का अंग नहीं है तो एक खरब में शायद हज़ार ऐसे होंगे जो आपकी बात स्वीकार नहीं करेंगे.  लेकिन अगर आप ये कहते हैं की यह तुम्हारे धर्म की कुरीति है और इसको अलग करके बाकी बचे हुए धर्म को मानो तो एक खरब में केवल हज़ार ऐसे होंगे जो आपकी बात को स्वीकार करेंगे.



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16 comments:

  1. हम भी सुधार के हामी हैं और हमें कोई धमकी भी नहीं देता (शायद इस लिये कि हमारे यहाँ कमेंटस खुली हैं (हम झूठ भी नहीं कह सकते, आखिर अल्‍लाह को जवाब देना है)

    आप ठीक लिखते हैं कि मज़हब में कुछ ऐसी बातें शामिल हो जाती हैं जो वास्तव में गलत होती हैं और उनका मूल धर्म से कोई लेना देना नहीं होता.
    हमारी अन्‍जुमन ऐसी गलत बातों को दूर करने की कोशिश करती रही है जैसे काशिफ साहब ने समझाया था की 786 का अर्थ बिस्मिल्‍लाह नहीं है, और मेरे हमनाम मुहम्‍मद उमर की रिसर्च

    उलमाओं का फतवा चाँद तारा मुसलमानों का निशान नहीं है
    http://hamarianjuman.blogspot.com/2009/09/blog-post_491.html

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  2. जिस कुरीति को तुम धर्म समझ रहे वह धर्म का अंग नहीं है तो एक खरब में शायद हज़ार ऐसे होंगे जो आपकी बात स्वीकार नहीं करेंगे. लेकिन अगर आप ये कहते हैं की यह तुम्हारे धर्म की कुरीति है और इसको अलग करके बाकी बचे हुए धर्म को मानो तो एक खरब में केवल हज़ार ऐसे होंगे जो आपकी बात को स्वीकार करेंगे.

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  3. पैगम्बर मोहम्मद (स.अ.) ने उस समय समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज़ उठाई तो इस्लाम के रूप में उसका हल भी पेश किया.

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  4. लाख कोई हम पर कट्टरवादी का आरोप लगाए पर हम हैं शान्तिवाद हैं, शान्ति के लिए जीते हैं, शान्ति के इच्छुक हैं। हमारी अंजुमन में किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाया जाता। लेकिन हम देखते हैं कि कितने ब्लौगर्स हैं जो दिन रात इस्लाम के विरोद्ध में लेख लिख रहे हैं। क्या यह मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं।

    भाईयो! भारत हमारे शरीर के अंग अंग में रचा बसा है। हमें अपने देश से प्रेम है, स्नेह है, मुहब्बत है।
    हमारी अंजुमन का उद्देश्य जहाँ तक मैं समझता हूं यही है कि आज इस्लाम के सम्बन्ध में जो गतल संदेह फैलाए जा रहे हैं उनका निवारण किया जा सके और बस।

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  5. आपकी अन्‍जुमन. हमारी अन्‍जुमन है आप सभी वाकई सुधारक हो

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  6. theek he maan lete hen tum सुधार के हामी ho Lekin tumhara Doctor sudharak nahin he

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  7. सुधार का तो नाम ही है 'इस्लाम.'

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  8. kadwi baaaaaaat ke liye mafi nahin mangoonga

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  9. betuki baton se bacho warna blogvani se gayab kar diye jaoge

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  10. "अगर आप कहते हैं की यह गलत है, तो सही क्या है और क्यों है, यह भी आप ही सिद्ध करना है. हम कब तक दूसरों पर दोषारोपण करते रहेंगे? यही काम तो आज के नेता भी कर रहे है, सब एक दूसरे को देश की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार ठहरा रहा है. हल कोई नहीं पेश कर रहा."
    +1+1+----

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  11. @ आज कल तो हरेक फिसादी सुधारक बना बैठा है . ramp पर बदन दिखने वाली भी दुनिया को अपनी तरह बन्ने कि प्रेरणा देकर समाज को सुधारने में लगी हुई हैं . स्थिति बड़ी विकट है , क्या कहें ?

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  12. लोग हवा में चीख रहे हैं की यह गलत है, गलत है. लेकिन क्यों गलत है इसकी कोई मज़बूत दलील नहीं देते और न ये बताते हैं की सही क्या है और किस दलील से सही है.

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  13. Bilkul sahi baat likhi hai aapne. Ekdum saaf aur suljhe hue lafzon mein, gehraai kee baat.

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  14. एक सुधारवादी का ब्लाग आजकल आगे है उन्हे जमाल जी कुछ फ़िसादियो के नाम बताए पर वे तो हम पर ही ख़ार खाए बैठे है

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  15. एक सुधारवादी ऐसी भी हैं जो छद्म नाम से लिखती हैं ओर वः नाम हे फिरदोस खान उनसे बच कर रहना

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