Tuesday, April 6, 2010

एक अमेरिकी पादरी जिसने इस्लाम कबूल किया


जेसॉन क्रुज,पूर्व ईसाई पादरी


अल्लाह का शुक्र है कि मुझे अल्लाह ने 2006 में इस्लाम रूपी बेशकीमती ईनाम से नवाजा। जब भी कोई मुझसे यह पूछता है कि मैं कैसे इस सच्चे धर्म की तरफ आया तो मैं झिझक जाता हूं। क्योंकि यह मेरी काबलियत नहीं बल्कि यह अल्लाह ही की हिदायत और रहमत है कि उसने मुझे सच्ची राह दिखाई। बिना अल्लाह की मर्जी और रहमत के कोई इस सच्चे मार्ग की तरफ नहीं आ सकता।

  मैं न्यूयॉर्क के एक कैथोलिक परिवार में पैदा हुआ। मेरे माता और पिता रोमन कैथोलिक थे। हम इतवार को चर्च जाते थे। पहले मैंने ईसाई धर्म की शिक्षा ली,ईसा मसीह के स्मरणार्थ पहले भोज में शामिल हुआ और फिर मैंने रोमन कैथोलिक चर्च की सदस्यता कबूल कर ली। जब मैं जवान हुआ तो मुझे परमेश्वर की ओर से मार्गदर्शन के संकेत का अहसास होने लगा। इसका अर्थ मैंने यह लगाया कि यह मेरे लिए रोमन कैथोलिक पादरी बनने का मैसेज है। मैंने यह बात अपनी मां को बताई तो वह बहुत खुश हुई और वह मुझे हमारे इलाके के पादरी के पास ले गई।

इसे दुर्भाग्य मानें या सोभाग्य कि यह ईसाई पादरी अपने पेशे से खुश नहीं था और इसने मुझे पादरी बनने के विचार से ही दूर रहने की सलाह दी। इससे मैं विचलित हुआ। इस बीच परमेश्वर के शुरूआती मैसेज के अहसास को भूला देने,अपनी मूर्खता और किशोर अवस्था के चलते मैंने एक अलग ही रास्ता चुन लिया। बदकिस्मती से जब मैं सात साल का था तो मेरा परिवार बिखर गया। मेरे माता-पिता के बीच तलाक हो गया और मैं अपने पिता से दूर हो गया।

पन्द्रहवें साल में पहुंचने पर मैं पार्टियों और नाइट क्लबों में जाने में ज्यादा दिलचस्पी लेने लगा। पहले मैंने वकील बनने का ख्वाब संजोया और फिर राजनेता बनने के सपने देखने लगा ताकि अच्छी लाइफ स्टाइल जी सकूं । हाई स्कूल पास करने के बाद मैं कॉलेज पहुंचा लेकिन मैं वहां पढ़ नहीं पाया और वहां से ऐरीजोना(जहां मैं अब तक लगातार रहा) आया और यहां डिग्री पूरी होने तक रहा। एरीजोना में एक दिन मेरी तबियत ज्यादा खराब हो गई। दरअसल मैं वहां घर से भी ज्यादा बुरे लोगों की संगत में फंस गया था। शिक्षा कम होने की वजह से मुझे छोटे-मोटे काम करने पड़े। मैं नशे,बदचलनी और नाइट क्लब में जाने की आदत का शिकार हो गया। इसी दौरान मैं पहली बार एक मुस्लिम शख्स से मिला। वह एक नेक इंसान था और विदेशी छात्र के रूप में शिक्षा हासिल कर रहा था। वह मेरे दोस्तों के साथ पार्टी वगैरह में आता था। मैंने उससे इस्लाम पर तो चर्चा नहीं की लेकिन उससे उसके कल्चर को लेकर सवाल किए जिसका जवाब उसने खुलकर दिया। मेरी जिंदगी का यह बुरा दौर कुछ सालों तक चला। मैं इस जिंदगी के बारे में ज्यादा नहीं बताना चाहता। मुझो बहुत से आघात लगे। मेरे जानकार लोग मारे गए। मुझे चाकुओं से गोदा गया और भी कई जख्म मुझे मिले। यह कोई ड्रग्स के खतरों की कहानी नहीं है। मैं अपनी इस बुरी जिंदगी का आपके सामने जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि मैं आपको यह बात जोर देकर बताना चाहता हूं कि अगर ईश्वर चाहे तो बुरे हालात में भी आपको राह दिखाकर नारकीय जिंदगी से बाहर निकाल सकता है। आपको सही राह पर ला सकता है।

मैंने सुपर पावर के साथ फिर से जुड़ाव महसूस किया और इसी दौरान नशीली चीजों का सेवन करना छोड़ दिया। ईश्वरीय कृपा के चलते ही मैं इन बुराइयों से बच पाया। दरअसल मैं परमेश्वर से जुड़ाव खो चुका था जो कभी पहले मेरा उससे रहा था। मैं फिर से सच्चे ईश्वर की तलाश में जुट गया। बदकिस्मती से मैं पहली बार में सच्चाई को नहीं पा सका और मैंने हिन्दू धर्म अपना लिया। हिन्दू धर्म में मुझे इस बात ने प्रभावित किया था कि आखिर हमें कष्ट क्यों झोलने पड़ते हैं। मैंने पूरी तरह हिन्दू धर्म अपना लिया,यहां तक मैंने अपना नाम भी बदलकर हिन्दू नाम रख लिया।
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7 comments:

  1. janaab salaam arz he aapne bhut kuch islaam ke baare men duniya ko dikhaane ki koshis ki he or kaamyaaab bhi hue hen aapse guzaarish he ke muslim orton ke shaadi,tlaaq,miyan dvaara binaa bivi ko tlaaq or braabri kaa drjaa diye dusri shaadi krnaa khrchaa or mehr nhin dene ke maamle bhi plz kuch likhna shuru kro taaki islaam ke naam pr moqa prston dvaara lgaaye gye klnkon se chutkaara mile. akhtar khan akela kota rajasthan

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  2. beshak Allah jise chahta hai hidayat deta hai.

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  3. bahut zabardast news hai Saleem bhai. Mubarak ho

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  4. अल्लाह का शुक्र है कि मुझे अल्लाह ने 2006 में इस्लाम रूपी बेशकीमती ईनाम से नवाजा। जब भी कोई मुझसे यह पूछता है कि मैं कैसे इस सच्चे धर्म की तरफ आया तो मैं झिझक जाता हूं। क्योंकि यह मेरी काबलियत नहीं बल्कि यह अल्लाह ही की हिदायत और रहमत है कि उसने मुझे सच्ची राह दिखाई। बिना अल्लाह की मर्जी और रहमत के कोई इस सच्चे मार्ग की तरफ नहीं आ सकता।

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  5. लोग इस्लाम की सच्चाई को स्वीकार रहे हैं और इस्लाम कबूल कर रहे हैं. यह कम बात नही है की दूसरे मज़हब के आलिम इस्लाम कबूल कर रहे हैं .इससे यह पूरी तरह साबित हो जाता है की इस्लाम की सच्चाई को लेकर शक की कोई गुंजाइश नही है .

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  6. सही है जिसे अल्लाह चाहता है हिदायत देता है।

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