Thursday, April 1, 2010

परदा : क्या कुप्रथा है?

इधर कई ब्लाग्स पर परदे के विरोध में जोर शोर से प्रचार हो रहा है। बिना किसी मजबूत तर्क के इसे कुप्रथा साबित करने का प्रयास हो रहा है। और यह कहा जा रहा है कि आज के जमाने में इस तरंह की प्रथाओं का कोई औचित्य नहीं। तो क्या वाकई परदे की रस्म को मिटा देना चाहिए? 

पर्दे के विरोध में जो तर्क सबसे ज्यादा दिया जाता है वह यह कि परदा औरतों की गुलामी की प्रतीक है। तो जनाब मैंने पूरा इतिहास खँगाल डाला, कहीं नहीं मिला कि गुलामों को परदे में रखने का रिवाज रहा हो। हाँ यह जरूर मिला कि पुराने जमाने में गुलाम औरतें बाजार में बिकने के लिए सजा सँवार कर खड़ी की जाती थीं। लोग आँखें फाड़ फाड़कर उनकी खूबसूरती के दाम लगाते थे और दुकानदार उन औरतों को खरीददार को बेचकर अपने पैसे सीधे करता था। क्या आज के फैशन शो , मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड जैसे शो यही काम नहीं कर रहे हैं। तो फिर औरतों की गुलामी के प्रतीक इस तरह के शो हुए न कि परदा?

कुछ लोगों का ये भी कहना है कि बुर्के में दिखाई देना कम हो जाता है और औरतें एक्सीडेंट का शिकार हो जाती है। अगर ऐसा है तो पहले हेलमेट पर रोक लगनी चाहिए, क्योंकि हेलमेट के साथ भी यही कहानी है।

अगर इलाही कानून ने परदे का सिस्टम बनाया है तो निस्संदेह वह इंसान के फायदे के लिए ही होगा। रूहानी फायदे तो अपनी जगंह लेकिन आईए एक नज़र करते हैं इसके दुनियावी फायदों पर। 

किसी भी औरत के लिए जाहिरी तौर पर सबसे कीमती चीज़ उसका हुस्न होती है। और वह अपने हुस्न को बरकरार रखने के लिए तरह तरह की तरकीबें करती है। तरह तरह के केमिकल और हर्बल इस्तेमाल करती है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में कास्मेटिक्स का कारोबार सात बिलियन डालर सालाना है। लेकिन ये केमिकल वक्ती फायदा देकर उसके चेहरा का कुदरती भोलापन और नर्मी छीन लेते हैं। बालीवुड की हीरोईनों को अगर कोई सुबह उठकर देख ले तो उसे डराउनी ड्रामों  से उसे बिल्कुल डर नहीं लगेगा।

इन कास्मेटिक्स के दाम इतने ऊंचे होते हैं कि गरीब घर की लड़कियां उनका इस्तेमाल सोच भी नहीं सकतीं। लेकिन परदा औरतों की खूबसूरती का ऐसा प्रोटेक्टर है जो आसानी से हर जगह उपलब्ध है, सस्ता है और इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं। सूरज से आने वाली अल्ट्रावायलेट रेज़ स्किन की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं। ये स्किन की नमी सोख लेती हैं और उसे खुरदुरा बना देती हैं। स्किन में झुर्रियां पड़नी शुरू हो जाती हैं और इंसान वक्त से पहले बूढ़ा दिखाई देने लगता है। नर्म स्किन की ये रेज़ खास तौर से दुश्मन होती हैं। अगर चमड़ी गोरी है तो ये रेज़ उसके मेलानिन से रिएक्शन कर चमड़ी का रंग गहरा कर देती हैं। ये रेज़ स्किन कैंसर की भी वजह होती हैं। गोरी और नर्म चमड़ी में स्किन कैंसर होने की संभावना ज्यादा होती है.

लेकिन अगर इंसान का जिस्म अच्छी तरंह ढंका हुआ है तो वह इन खतरनाक रेज़ से काफी हद तक बचा रहता है। अरब जैसे इलाकों में जहाँ सूरज अपनी पूरी तपिश बिखेरता है वहां लोग इसीलिए अपने जिस्म को पूरी तरंह ढंककर चलते हैं। मर्दों की सख्त स्किन तो कुछ हद तक इन किरणों को बर्दाश्त कर लेती है लेकिन औरतों की नर्म खाल तो इन्हें बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाती।

गर्मियों में हल्के रंग का परदा और जाड़ों में गहरे रंग का परदा जिस्म का सर्दी और गर्मी से बचाव भी करता है। साथ ही अगर नाक ढंकी हुई है तो हवा में मौजूद धूल, मिट्‌टी, धुवां और नुकसानदायक बैक्टीरिया इंसानी जिस्म से दूर रहते हैं और इंसान सेहतमन्द रहता है। साथ ही स्किन की नरमी भी बरकरार रहती है।

औरतों में सजने संवरने की ख्वाहिश मर्दों से ज्यादा होती है। और वे अपनी अपनी हैसियत के अनुसार श्रृंगार करती हैं। लेकिन सोसाइटी में अमीर लड़कियों का सजना गरीब लड़कियों के लिए दिलआज़ारी का सबब बन जाता है। परदे की प्रथा सबको एक रंग में रंग देती है और कोई दूसरे से ज्यादा अमीर नहीं दिखाई देता। परदा कमसूरत औरत की बदसूरती को भी छुपाता है और उसे हीन भावना का शिकार नहीं होने देता। 

आज के दौर में परदे के उठते चलन ने तलाक के केसेज बढ़ा दिये हैं क्योंकि पहले परदे की वजह से मर्द परायी औरतो को देखने से महरूम रहता था और उसे अपनी बीवी ही खूबसूरत मालूम होती थी। लेकिन अब शादी से पहले ही मर्दों के सामने से बहुत सी खूबसूरत लड़कियां गुजर चुकी होती हैं नतीजे में उसे अपनी बीवी पसंद नहीं आती।  

शायद शहर में रहने वाली लड़कियों ने इन सच्चाईयों को पहचान लिया है इसलिए वे बाइक या स्कूटी चलाती हुई अपने हाथों में पूरे दस्ताने पहने हुए और चेहरे को पूरी तरह ढंके हुए नज़र आती हैं। ये परदा नहीं तो और क्या है? अल्लाह ने औरत को फूल (Not Fool) की तरंह बनाया है। और इस फूल की हिफाजत के लिए उसने परदे का इंतिजाम किया है।

लेकिन आखिर में मेरा ये भी विचार है कि औरतों के परदे का मामला औरतों पर ही छोड़ देना चाहिए। और इस बारे में उनपर किसी तरह की जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। क्योंकि बहरहाल यह उन्हीं की भलाई के लिए है।



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37 comments:

  1. मेरा भी विचार है कि औरतों के परदे का मामला समझा कर औरतों पर ही छोड़ देना चाहिए। और इस बारे में उनपर किसी तरंह की जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। क्योंकि बहरहाल यह उन्हीं की भलाई के लिए है।

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  2. पुस्‍तक ''इस्लाम में परदा और नारी की हैसियत''
    सामूहिक जीवन में औरत और मर्द का संबंध किस तरह होना चाहिए, यह इंसानी सभ्यता की सब से अधिक पेचीदा और सब से अहम समस्या रही है, जिसके समाधान में बहुत पुराने ज़माने से आज तक दुनिया के सोचने-समझने वाले और विद्वान लोग परेशान हैं, जबकि इसके सही और कामयाब हल पर इंसान की भलाई और तरक्क़ी टिकी हुई है।
    इतिहास का पन्ना पलटने से पता चलता है कि प्राचीन काल की सभ्याताओं से लेकर आज के आधुनिक पिश्चमी सभ्यता तक किसी ने भी नारी के साथ सम्मान और और न्याय का बर्ताव नहीं किया है! वह सदैव दो अतियों के पाटन के बीच पिसती रही है। इस घोर अंधेरे में उसको रौशनी एक मात्र इस्लाम ने प्रदान किया है, जो सर्व संसार के रचयिता का एक प्राकृतिक धर्म है, जिस ने आकर नारी का सिर ऊँचा किया, उसे जीवन के सभी अधिकार प्रदान किये, समाज में उसका एक स्थान निर्धारित किया और उसके सतीत्व की सुरक्षा की..
    इस पुस्तक में इतिहास से मिसालें दे कर यह स्पष्ट किया गिया है कि दुनिया वालों ने नारी के साथ क्या व्यवहार किया और उसके कितने भयंकर प्रमाण सामने आये, इसके विपरीत इस्लाम धर्म ने नारी को क्या सम्मान दिया, उसकी नेचर के अनुकूल उसके लिये जीवन में क्या कार्य-क्षेत्र निर्धारित किये, उसके के रहन-सहन के क्या आचार नियमित किये तथा सामाजिक जीवन में मर्द और औरत के बीच संबंध का किस प्रकार एक संतुलित व्यवस्था प्रस्तुत किया जिसके समान कोई व्यवस्था नहीं। विशेष कर नारी के परदा (हिजाब) के मुद्दे को विस्तार रूप से उठाया गया है और इसके पीछे इस्लाम का उद्देश्य क्या है? उसका खुलासा किया गया है, तथा जो लोग नारी के परदा का कड़ा विरोध और उसका उपहास करते हैं, इसके पीछा उनका उद्देश्य क्या है और यह किस प्रकार उनके रास्ते का काँटा है, इस से भी अवगत कराया गया है। कुल मिलाकर वर्तमान समय के हर मुसलमान बल्कि हर बुद्धिमान को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए
    डायरेक्‍ट लिंक पुस्तक: ''इस्लाम में परदा और नारी की हैसियत''

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  3. bhot achhe mere bhai परदे की प्रथा सबको एक रंग में रंग देती है और कोई दूसरे से ज्यादा अमीर नहीं दिखाई देता। परदा कमसूरत औरत की बदसूरती को भी छुपाता है और उसे हीन भावना का शिकार नहीं होने देता।

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  4. परदा कुप्रथा है

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  5. मेरा ये भी विचार है कि औरतों के परदे का मामला औरतों पर ही छोड़ देना चाहिए। और इस बारे में उनपर किसी तरह की जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। क्योंकि बहरहाल यह उन्हीं की भलाई के लिए है

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  6. बहुत ख़ूब परदा तो आज यूरोप की औरतो को भी भा रहा है तभी वे तेज़ी से इसलाम क़ुबूल कर रही है

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  7. औरतों पर ही छोड़ देने पर मामला सही हो सकता है. वस्तुतः जो महिला-नागीकरण की हिमायती हैं वे महज नगण्य सी हैं. और जो नारी के वास्तविक अस्तित्व को जानती है वे सौ में ९९.९९% है

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  8. Agar koi Mahila apni marzi se Prabhu ke prem aur uski pasand ki vajah se Parda karti hai to yah uska Adhikar hai. Parantu Purusho dwara swayam to kisi dharmik niyamon ka naa maanna aur Mahilaon se zabardasti Parda karana avashy hi ek ku-pratha he.

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  9. किसी भी औरत के लिए जाहिरी तौर पर सबसे कीमती चीज़ उसका हुस्न होती है।

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  10. जिन लोगों को लगता है की पर्दा गलत है, वह इस सच्चाई को जान लें की अल्लाह भी परदे में है, और मौत के बाद की सच्चाई (जन्नत वगैरह) भी परदे में है.
    बहरहाल अगर किसी को लगता है की पर्दा एक कुप्रथा है और सही इस्लाम से इसका कोई लेना देना नहीं तो इसे कुरआन ही से उसे साबित करना होगा वरना कोई मुसलमान उनकी बात क्यों मानेगा?
    और अगर कुरआन से नहीं साबित कर सकते तो तर्क से साबित करिए की पर्दा एक कुप्रथा है.

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  11. परदे का मसअला स्त्री पे ही छोड़ देना चाहिए कि वह क्या पहने या क्या न पहने. इसका मतलब ये कतई नहीं लगाना चाहिए कि वह कपडे ही पहनना छोड़ दे!

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  12. यह महिला ही तय करे की उसे पर्दा करना है या नहीं. कोई और नहीं.

    एडिट करके एक लाइन और जोड़ दो की महिला अगर न चाहे जबरजस्ती पर्दा करवाना गलत है.

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  13. मेरी इस पोस्ट के जवाब में यहाँ
    एक पोस्ट आई जिसमें "खूबसूरत महिलाओं का सौन्दर्य बरक़रार रहेगा और बदसूरत औरतों की बदसूरती छुप जाएगी..." इसमें ब्लॉग लिखने वाले को विरोधाभास है दिखाई दिया.
    वैसे उन्होंने इसकी जो वजह दी है वह पूरी तरह सही है, "हमने भी 'दिमाग़' का इस्तेमाल बिलकुल नहीं किया है.". अब किसी भी दिमागवाले से अगर मैं कहूं की "थर्मस में गर्म चीज़ गर्म और ठंडी चीज़ ठंडी रहती है" तो क्या उसे इसमें विरोधाभास दिखाई देगा?
    अब रही बात पुरुषों की बदसूरती और खूबसूरती पर तो जनाब मैंने मोहतरमाओं की खूबसूरती पर दीवान पर दीवान भरे हुए देख डाले लेकिन मर्दों की खूबसूरती पर किताबें छान मारीं कहीं भूले से कोई लफ्ज़ ही नहीं दिखाई दिया.
    मज़े की बात ये है की परदे को कुप्रथा कहने का फैशन जोर शोर से जारी है, लेकिन यह कुप्रथा क्यों है इसपर कहीं कोई ढंग का तर्क दिखाई नहीं देता.

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  14. .
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    "अगर इलाही कानून ने परदे का सिस्टम बनाया है तो निस्संदेह वह इंसान के फायदे के लिए ही होगा।"
    तभी तो पर्दे की पैरोकारी में यह पोस्ट लिखी है जनाब ने!

    "लेकिन परदा औरतों की खूबसूरती का ऐसा प्रोटेक्टर है जो आसानी से हर जगह उपलब्ध है, सस्ता है और इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं।"
    वाह क्या कमाल का तर्क है जनाब, कब से औरतों की खूबसूरती को प्रोटेक्ट करने की इतनी चिंता होने लगी ?

    "अरब जैसे इलाकों में जहाँ सूरज अपनी पूरी तपिश बिखेरता है वहां लोग इसीलिए अपने जिस्म को पूरी तरंह ढंककर चलते हैं।"
    अब आप सही लाइन पकड़े हैं अरब देशों की शुष्क जलवायु में जहाँ रेतीली हवाये चलती हैं वहाँ बदन को ढककर चलते हैं औरतें और आदमी भी, इस्लाम का जन्म क्योंकि अरब में हुआ इसलिये यह पर्दे की बात उसमें आई।

    "गर्मियों में हल्के रंग का परदा और जाड़ों में गहरे रंग का परदा जिस्म का सर्दी और गर्मी से बचाव भी करता है। साथ ही अगर नाक ढंकी हुई है तो हवा में मौजूद धूल, मिट्‌टी, धुवां और नुकसानदायक बैक्टीरिया इंसानी जिस्म से दूर रहते हैं और इंसान सेहतमन्द रहता है।"
    गर्मी और सर्दी तो आपको भी लगती होगी जनाब और हवा में मौजूद धूल, मिट्‌टी, धुवां और नुकसानदायक बैक्टीरिया अगर आपके जिस्म से भी दूर रहें तो सेहतमन्द रहोगे आप भी... तो क्या माना जाये कि आप भी नाक ढंका पर्दा करते हैं।

    "परदे की प्रथा सबको एक रंग में रंग देती है और कोई दूसरे से ज्यादा अमीर नहीं दिखाई देता। परदा कमसूरत औरत की बदसूरती को भी छुपाता है और उसे हीन भावना का शिकार नहीं होने देता।"
    यह तो ठीक उसी तरह का तर्क है... जैसे कोई यह कहे कि किसी को अपने लम्बे कद का गुमान न हो और न किसी को अपने छोटे कद की हीनभावना... इस लिये सभी रेंग कर चलो, खड़ा होना मना है !!!

    "आज के दौर में परदे के उठते चलन ने तलाक के केसेज बढ़ा दिये हैं क्योंकि पहले परदे की वजह से मर्द परायी औरतो को देखने से महरूम रहता था और उसे अपनी बीवी ही खूबसूरत मालूम होती थी।"
    सचमुच ! मर्द इतना कमअक्ल और बददिमाग है ही क्यों, जो महज दूसरी खूबसूरत औरत देखकर अपनी वफादार बीबी को तलाक दे रहा है । फतवा ले निकाल बाहर करिये ऐसों को!

    "अल्लाह ने औरत को फूल (Not Fool) की तरंह बनाया है। और इस फूल की हिफाजत के लिए उसने परदे का इंतिजाम किया है।"
    मेरे ख्याल में वही अब इस फूल को पूरी दुनिया में खिलता भी देखना चाहता है।

    "लेकिन आखिर में मेरा ये भी विचार है कि औरतों के परदे का मामला औरतों पर ही छोड़ देना चाहिए। और इस बारे में उनपर किसी तरह की जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। क्योंकि बहरहाल यह उन्हीं की भलाई के लिए है।"
    औरतों के परदे का मामला औरतों पर ही छोड़ दो, फिर देखो नामोनिशान न बचेगा परदे का... वैसे भी कुछेक रूढ़िवादी pockets के अलावा बाकी के सभ्य समाज में नहीं दिखता यह!
    आभार!

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  15. जीशान चाचा जिधर आपने सवाल दिखाये वह तो खुद पर्दे में है (कमेंटस सेंसर पर्दा ही तो है) भाई खास सवालों के जवाब इधर तलाशे जा रहे हैं तो इधर भी दे दूं कभी ऐसे सवाल किसी इम्तिहान में मिल जायें जैसे नीचे देखेंगें तो आप क्‍या जवाब दोगे? मैं जवाब में क्‍या लिखूंगा, पढ लो, फिर किसी पेपर में छूट हो कि आप भी सवाल कर लो तो आखिर में अपना सवाल रख दूंगा, ऐसे मैं पास होउंगा या फेल पता नहीं, अपना मशवरा दिजियेगा

    हमारा सवाल : पुरुष अपनी बदसूरती कैसे छुपाएं...??? (क्या बुर्क़ा पहनकर...???)
    दूसरा सवाल : पुरुष अपने सौन्दर्य को कैसे महफूज़ रखें...? (क्या बुर्क़ा पहनकर...???)

    पहले सवाल का जवाबः
    महिलाओं को ताज चाहिये न तख्‍त उसे चाहिये सख्‍त, इस लिये पुरूष को अपनी बदसूरती छुपाने की आवश्‍यकता ही नहीं, उसकी सारी खूबसूरती सख्‍ती में है, वह कितना ही बदसूरत हो लेकिन सख्‍त रखता हो तो वह खूबसूरत है, और अगर सख्‍ती नहीं रखता तो कितना ही खूबसूरत हो सब बेकार

    दूसरे सवाल का जवाबः
    पुरूष का सारा सौन्‍दर्य भी सख्‍ती में ही है और उसे सभी धर्मी अधर्मी बुर्के में रखते हैं, सबका उसे बुर्के में रखना ही साबित करता है वह ऐसे ही छुपा के रखने में ही महफूज है, खुला रखें तो पता नहीं किसकी बूरी नजर पड जाये और कब किसी ने पकडा और लगा लिया सुईच बोर्ड में और कर ली जन्‍नत की सैर

    मेरा सवालः जवाब कोई भी दे किसी खास से नहीं
    जब धन्‍नो मिरजा गेंद-बल्‍ले का खेल खेलती है तो आप क्‍या देखते हैं गेंद या बल्‍ला?

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  16. @ प्रवीण शाह
    वाह क्या कमाल का तर्क है जनाब, कब से औरतों की खूबसूरती को प्रोटेक्ट करने की इतनी चिंता होने लगी ?
    मुझे नहीं बल्कि चिंता उसे है जिसने उस खूबसूरती को बनाया. पर्दा ईश्वर का कानून है.
    अब आप सही लाइन पकड़े हैं अरब देशों की शुष्क जलवायु में जहाँ रेतीली हवाये चलती हैं वहाँ बदन को ढककर चलते हैं औरतें और आदमी भी, इस्लाम का जन्म क्योंकि अरब में हुआ इसलिये यह पर्दे की बात उसमें आई।
    कम से कम (कुछ) औरतों की ये शिकायत तो दूर हुई की पर्दा सिर्फ महिलाओं के लिए क्यों?
    गर्मी और सर्दी तो आपको भी लगती होगी जनाब और हवा में मौजूद धूल, मिट्‌टी, धुवां और नुकसानदायक बैक्टीरिया अगर आपके जिस्म से भी दूर रहें तो सेहतमन्द रहोगे आप भी... तो क्या माना जाये कि आप भी नाक ढंका पर्दा करते हैं।
    लगता है आप पोस्ट को ध्यान से नहीं पढ़ते. क्या इससे पहले मैंने ये नहीं लिखा की औरत और मर्द की स्किन में फर्क होता है?
    यह तो ठीक उसी तरह का तर्क है... जैसे कोई यह कहे कि किसी को अपने लम्बे कद का गुमान न हो और न किसी को अपने छोटे कद की हीनभावना... इस लिये सभी रेंग कर चलो, खड़ा होना मना है !!!
    आप गलत उदाहरण लाये जनाब. रेंग कर चलने में भी नाटा कद और लम्बा क़द छुप नहीं सकता.
    सचमुच ! मर्द इतना कमअक्ल और बददिमाग है ही क्यों, जो महज दूसरी खूबसूरत औरत देखकर अपनी वफादार बीबी को तलाक दे रहा है । फतवा ले निकाल बाहर करिये ऐसों को!
    प्रवीण जी इसे आप भी गलत कह रहे हैं और हम भी. लेकिन आप के और मेरे गलत कहने से न तो मर्द की मानसिकता में फर्क पड़ने वाला है, न औरत की. सदियाँ बीतने के बाद भी आज भी मर्द शादी के लिए खूबसूरत लड़की ही ढूंढता है, और औरत मिस वर्ल्ड बनने के बाद भी अंत में गृहस्थी संभाल कर ही खुश होती है. ऐसे में आप राय दीजिये किस तरह डील करेंगे समाज को?
    मेरे ख्याल में वही अब इस फूल को पूरी दुनिया में खिलता भी देखना चाहता है।
    निस्संदेह! लेकिन शालीन तरीके से.
    औरतों के परदे का मामला औरतों पर ही छोड़ दो, फिर देखो नामोनिशान न बचेगा परदे का... वैसे भी कुछेक रूढ़िवादी pockets के अलावा बाकी के सभ्य समाज में नहीं दिखता यह!
    पर्दा अब सभ्य समाज मैं पहले से ज्यादा दिखाई देता है. हाँ काले रंग के बुर्के कम दिखाई दें वो अलग बात है. आज के प्रदूषित समाज में लडकियां परदे में अपने को ज्यादा सेक्योर महसूस कर रही हैं. यकीन नहीं आता तो अपने आसपास और रोड पर चलते हुए इधर उधर नज़र दौड़ाकर देख लीजियेगा.
    धन्यवाद!

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  17. और हाँ, जिन लोगों को भी पर्दा एक कुप्रथा के रूप में दिखाई देता है, उनसे मेरा अनुरोध है कृपया उचित तर्क द्वारा बताएं की यह कुप्रथा क्यों है?

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  18. बहुत अच्छे सलीके से तर्क करते हो ज़ीशान भाई.

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  19. किसी ने सवाल किया है आखिर मर्द परदे में क्यों नहीं रहता..... इस्लाम में मर्द के चेहरे का भी पर्दा है और मर्द का पर्दा उसकी "दाढ़ी" है....

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  20. वाह जीशान जैदी साहब...वाह...खूब तर्क देते हैं आप। लेकिन जिन तर्कों का जिक्र आपने प्रवीण शाह के तर्कों का दिया है वो बहुत ही बेबुनियाद हैं।
    पहली बात, पर्दा ईश्वर का कानून नहीं है और ना ही हो सकता। ये कुछ छोटी सोच के लोगों ने बनाया है।

    दूसरी बात, औरत और मर्द की स्किन में फर्क होता है ऐसा आप कहते हैं हम क्या दुनिया मानती है पर....सांस लेने की प्रक्रिया और सांसों के द्वारा धूल कण जाना उसका ताल्लुक स्किन से नहीं हो सकता है गर आप फिर भी मानते हैं तो फिर...।

    तीसरी बात, क्या जब दुनिया ही रेंग कर चलेगी तो क्या आप बता पाएंगे कि कौन लंबा है और कौन छोटा? यदि आप बता पाएंगे तो आपकी आंखों को गिद्ध की आंखें कहा जाएगा।

    औरतों को कैसे रहना है ये आप तय करेंगे शालीन तरीके की बात आप लोगों के मुंह से अच्छी कतई नहीं लगती।

    आप की नजर गर साफ है तो सब साफ है और क्या पर्दा करने से बलात्कार नहीं होता या वो आप लोगों की निगाह से बच पाएंगी.... नहीं। कतई नहीं।

    इस ताल्लुक में हम मर्दों को सब्र करना सीखना होगा, हमें अपनी आंखों में शर्म लानी होगी। दूसरे को ढक देने से हर बात का हल नहीं हो जाता। किसी को कोई छेड़ता दिखे तो पहल हमारी तरफ से हो कि मार मार कर अधमरा कर दो ये नहीं कि औरतों को पर्दा करवा दो। आदमी सुधरेगा तब औरतों को पर्दा करने की जरूरत ही नहीं होगी। गर दूसरी औरत को देखकर आदमी की नियत बदल जाए तो बेहतर ये होगा की आदमी की आंखों में पट्टी बांध दो।

    और.....पर्दा प्रथा एक कुप्रथा है, एक बेइज्जती है।

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  21. @MLA MOHD. LIYAKAT ALI
    इस्लाम में मर्द के चेहरे का भी पर्दा है और मर्द का पर्दा उसकी "दाढ़ी" है....

    क्या खूब कुतर्क गढा है। मियाँ तो फिर आप क्यों मूछ दाडी मुंडाए बैठे हैं।
    ये तो वही बात हुई के "खुद मियाँ फजीहत औरों को नसीहत"

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  22. @नितीश राज
    "पहली बात, पर्दा ईश्वर का कानून नहीं है और ना ही हो सकता। ये कुछ छोटी सोच के लोगों ने बनाया है।
    अब ये तो आस्था की बात है.
    दूसरी बात, औरत और मर्द की स्किन में फर्क होता है ऐसा आप कहते हैं हम क्या दुनिया मानती है पर....सांस लेने की प्रक्रिया और सांसों के द्वारा धूल कण जाना उसका ताल्लुक स्किन से नहीं हो सकता है
    ठीक है, लेकिन धूल कणों का असर स्किन पर तो हो सकता है औरतों और मर्दों में फर्क के साथ?
    तीसरी बात, क्या जब दुनिया ही रेंग कर चलेगी तो क्या आप बता पाएंगे कि कौन लंबा है और कौन छोटा? यदि आप बता पाएंगे तो आपकी आंखों को गिद्ध की आंखें कहा जाएगा।
    रेंग कर चलने वाला एक जीव होता है सांप, और उसे देख कर कोई भी ग्रामीण बता देता है की अभी जो रेंग कर गया है वह कितने फिट का था.
    औरतों को कैसे रहना है ये आप तय करेंगे शालीन तरीके की बात आप लोगों के मुंह से अच्छी कतई नहीं लगती।
    मैंने ऐसा कब कहा? बल्कि मैंने तो अपनी पोस्ट में यही लिखा है की औरतों को कैसे रहना है यह औरतों पर ही छोड़ दिया जाए.
    आप की नजर गर साफ है तो सब साफ है और क्या पर्दा करने से बलात्कार नहीं होता या वो आप लोगों की निगाह से बच पाएंगी.... नहीं। कतई नहीं।
    क्या आप इसकी गारंटी लेते हैं की दुनिया के तमाम मर्द अच्छी नज़र के हो जाएँ? वैसे मैंने परदे के इस फायेदे को अपनी पोस्ट में लिखा ही नहीं.
    इस ताल्लुक में हम मर्दों को सब्र करना सीखना होगा, हमें अपनी आंखों में शर्म लानी होगी।
    इस बारे में भी इस्लाम पहले ही निर्देश दे चुका है की मर्द जब किसी औरत को देखें तो अपनी नज़र झुका लें. ऐसा नहीं की पर्दा सिर्फ औरतों के लिए है, मर्दों के लिए भी है बस तरीका अलग अलग है.
    और.....पर्दा प्रथा एक कुप्रथा है, एक बेइज्जती है।
    पर्दा बेइज्जती क्यों है? क्या इसलिए की वह औरतों का लिबास है? तो फिर साड़ी और स्कर्ट पहनना भी बेइज्जती है.

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  23. और अंत में
    यहाँ पूछा जा रहा है जब सारी सुविधाएं एक दुपट्टे से पूरी हो सकती हैं तो... फिर क्या कट्टरपंथियों के अहम् को शांत करने के लिए बुर्क़ा ज़रूरी है...
    नहीं कोई ज़रूरी नहीं है. कुरआन में कहीं नहीं लिखा है की परदे के लिए काला चोगा ही पहना जाए. अगर परदे का मकसद किसी और तरीके से पूरा हो रहा है, तो उसे अपनाया जा सकता है. लेकिन जिस तरह आप कनाडा और बेल्जियम का उदाहरण लेते हुए वहाँ की बुर्कापोश औरतों का मज़ाक उड़ा रही हैं, क्या यह मुनासिब है? क्या कनाडा और बेल्जियम के मुसलमान कट्टरपंथी हैं? अगर कोई औरत अपनी मर्जी से बुर्का पहन रही है तो उसका बुर्का उतरवाने का किसी को हक नहीं और न ही उसकी बेइज्ज़ती करने का. आज ये देश बुर्का उतरवा रहे हैं, कल दुपट्टा भी उतरवाकर स्कर्ट में घूमने का कानून लागू कर देंगे फिर तो आपको दुपट्टे भी कुप्रथा मालूम होने लगेंगे. कल का क्या भरोसा!

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  24. मुहमद साहब के पास १ नोकर था जैद नाम का
    मुहमद साहब उसे अपने बेटे की तरह प्यार करते थे और उसकी (जैद ) की दूसरी शादी "जैनब" से हुई थी "जैनब" कुरैशी खानदान की थी व् मुहमद भी कुरैशी खानदान के थे इस तरह जैनब मुहमद की फुफेरी जाति "बहन" थी
    १ दिन मुहमद जैद के न होने पर उसके घर जा पंहुचा चिक ( परदे ) की आड में जैनब बैठी थी उसने रसूल (जो उसका ससुर भी था) की आवाज सुनी तो जल्दी से उसे भीतर लाने का प्रबंध करने लगी
    मुहमद की निगाह उसके सुन्दर बदन पर पड़ी बस फिर क्या था ??
    दिल पर १ बिजली सी गिर पड़ी व् मुहँ से निकला आह सुभान अल्ला तू कैसे - कैसी खूबसूरती की कारीगरी करने वाला है ?
    जैनब ने ये शब्द सुने और दिल ही दिल में पैगेम्बर के दिल पर कब्जा प् जाने की खुशी जताई जैद से शायद उसकी न बनती थी बस फिर हो गया फुफेरी जाति "बहन" से मिलन ????
    जब जैद घर आया तो जैनब ने उसे सारा किस्सा बताया फिर क्या था वह मुहमद के पास गया व् जैनब को तलाक देने व् उसे अपनाने की बात कहने लगा
    चाहे कुछ भी हो था तो ये गुनाह ही व् ऐसा नही था की मुहम्मद अपने गुनाह न जानता था बल्कि वह जनता था कि अगर उसकी बेहुद गियाना नज़र जैनब पर न पड़ती तो ये दिन - दहाड़े ये अंधेर न होता अतं जो हुआ अब जो हो गया सो हो गया अब आगे देखो आगे मुहमद के मोमिनों पर खासकर उनकी बीबियो पर कन्ट्रोल के लिए पवित्र कुरान में ये आयत लिखी



    ऐ मोमिनों रसूल के मकान में न जाओ जब तुम्हे कुछ पूछना हो तो परदे की आड में पूछो यह तुम्हारे व् उनके दिलो के लिए बेहतर होगा यह मुनासिब नहीं की तुम रसूल के दिल को दुखाओ और न यह कि उनके बाद उनकी बीबियो से शादी करो रसूल की बीबिया मोमिनों की माएं (माँ ) है " सुरह अखराब रकूब ५ "

    औरते अकसर १०- १० शादिया कर लेती थी जिन्होंने २ -२ खाविन्द किये
    उनकी तादात बहुत कम थी जो अपने पति को बुढा होते देखती या दूसरे से उसकी आखं लड़ जाती तो वह मक्के सरीफ की सेवा में हाज़िर होती और मामला फैसला करा अपने पहले पति को छोड देती और किसी दूसरे से जो जवान व् खूबसूरत हो तो उसके साथ निकाह कर लेती
    तो इन पर कंट्रोल करने के लिए हमारे प्यारे मुहम्मद साहब ने पर्दा चालू करवाया

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  25. बैरागी साहेब
    जानते है आप किसके उपर यह आरोप लगा रहे हैं ? उस इंसान पर जिसने बुराई के दंगल में रह कर २५ वर्ष की आयु पवित्र एवं शुद्ध बन कर गुजारी.
    २४ वर्ष की आयु में ४० वर्ष की विधवा से शादी की और दूसरी शादी उस समय तक न की जब तक वह मर न गईं यही कारण है की उनके बड़े से बड़े शत्रु ने भी उनकी इज्ज़त पैर ऊँगली नहीं उठाया, लेकिन खेद की बात यह है की कुछ धर्मों में धार्मिक गुरुओं पर इस प्रकार का आरोप लगाया गया था इसलिय सोचा कि सब धन २२ पसेरी,

    पहले यह बात नोट कर लें फिर आइये जवाब जानते हैं यदि जानने के इच्छुक हैं तो ...

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  26. (1) इस्लाम में किसी को गोद लेने से हुक्म नहीं बदलता अर्थात वह उसकी संतान का हुक्म नहीं ले सकता, इस प्रकार आप समझ लें कि ज़ैद उनके बेटे नहीं थे. और न ही जैनब उनकी बहु, बल्कि वह फूफी की बेटी थी.

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  27. (2) आपने जिस घटने का वर्णन किया है यदि वह ऐतिहासिक बात होती तो सर आँखों पर लेकिन उसका कोई सर पैर नहीं इस्लाम से शत्रुता के कारण कुछ लोगों ने इस प्रकार की बातें कही हैं और सब से बड़ी बात तो यह है कि जैनब आपकी फूफी की बेटी थीं उस समय पर्दा का आदेश आया भी नहीं था, आप उसे बचपन से ही देखते आ रहे थे, इसलिय अचानक देखने का मामला ही पैदा नहीं होता,

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  28. (3) फिर इस घटना को बयान करने वाले यातो मुहम्मद स० होते या ज़ैद या जैनब, हमें बताया जाय कि तीनों में से किसी ने इसे नहीं बताया तो ऐसे लोगों को पता कैसे चल गया ?

    और बचपन से उन्हें आप ने देखा था इसके बावजूद उनकी शादी ज़ैद से कराइ, स्वयं कर सकते थे ना ?

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  29. अस्सलाम अल्य्कुम,

    मैंने परदे के ऊपर आपके लेख पर कमेंट्स लिखा था, और वही कमेंट्स फिरदौस खान जी के लेख पर भी लिखा था, परन्तु आप में से किसी ने भी वह कमेंट्स कुबूल नहीं किया? आखिर क्यों?

    मैंने कोई लेखक तो नहीं हूँ, पर मैंने फिर्दौसे जी के लेख को पढ़कर कुछ लिखा है, और मैं उसे लोगो तक पहुँचाना चाहती हूँ. क्या आप में से कोई मेरी मदद कर सकता है?

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  30. Aap blogvani.com ya chitthajagat.in par jakar apni id vahan register karen aur page par bilkul niche ki side par diye instruction ko follow karen.

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  31. vaise Anjum ji, aapne kaafi achha likha hai.

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  32. page par niche ki side likha hai "ब्लागवाणी की सदस्यता लें" us par click kar ke sadasy baniye iske baad "ब्लागवाणी का लोगो अपने ब्लाग पर लगायें" aur "ब्लागवाणी पसंद का बटन अपने ब्लाग पर लगायें" par click karke instruction ko follow kariye.

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  33. Mera writesup Chitthajagat.in par to published ho gaya hai, lekin blogvani par publish nahi ho raha hai.

    Kya karu????

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