Tuesday, March 2, 2010

अल्लाह गणित नहीं जानता है: अरुण शौरी Allah doesn't know math!



अरुण शौरी ने अपनी एक किताब (!) में लिखा है कि अल्लाह गणित नहीं जानता है. यह सन 2001 की बात है. अरुण शौरी के मुताबिक़ "कुरआन में कुछ गणितीय त्रुटियां हैं. कुरआन के अध्याय 4 (सुरह निसा) के श्लोक (आयत) संख्या 11 व 12 के मुताबिक जब आप वसीयत करते है तो उत्तराधिकारी का हिस्सा जोड़ने पर एक से ज़्यादा मिलता है और यह संभव नहीं है अर्थात जब आप उत्तराधिकार के विभिन्न भागों/वारिसों को दी गई जोड़ का गठन करते हैं तो वह एक से अधिक है. इस प्रकार से कुरआन के लेखक को गणित का बिलकुल भी ज्ञान नहीं है."



अरुण शौरी और उनके जैसे ही हमारे समाज में रहने वाले और लोगों को जो तर्क (कुतर्क) के सहारे अध्ययन करे बिना इस्लाम के बारे में गलतफहमी पाल रखें है, को बता दूं कि अल्लाह ने अपने अंतिम ग्रन्थ अल-कुरआन में कई जगह वसीयत और उत्तराधिकार के बारे में बताया है.

जैसे:
सुरह अल-बक़रह- अध्याय 2 आयत संख्या 180
सुरह अल-बक़रह- अध्याय 2 आयत संख्या 240
सुरह अल-निसा- अध्याय 4 आयात संख्या 7 व 9
सुरह अल-निसा- अध्याय 4 आयात संख्या 19 व 33
सुरह अल-मायेदः- अध्याय 5 आयत संख्या 105 व 108

कुरआन में सुरह निसा- अध्याय 4 आयत संख्या 11, 12 व 176 में उत्तराधिकारियों के अंश के बारे में बिलकुल साफ़-साफ़ लिखा है.

अब अरुण शौरी के द्वारा इंगित आयतों सुरह निसा- अध्याय 4 आयत संख्या 11 व 12 का परीक्षण करते है.

सुरह निसा- अध्याय 4 आयत संख्या 11 व 12 के अनुसार--

"अल्लाह तुम्हारी संतान के विषय में तुम्हें आदेश देता है कि दो बेटियों के हिस्से के बराबर एक बेटे का हिस्सा होगा; और यदि दो से अधिक बेटियाँ ही हों तो उनका हिस्सा छोड़ी हुई संपत्ति का दो तिहाई है. और यदि वह अकेली हो तो उसके लिए आधा है. और यदि मरनेवाले की संतान हो तो उसके माँ-बाप में से प्रत्येक का उसके छोडे हुए माल का छठा हिस्सा है. और यदि वह निःसंतान हो और उसके माँ-बाप ही उसके वारिस हों, तो उसकी माँ का हिस्सा तिहाई होगा. और यदि उसके भाई भी हों, तो उसकी माँ का छठा हिस्सा होगा. ये हिस्से, वसीयत जो वह कर जाये पूरी करने या ऋण चुका देने के पश्चात् हैं. तुम्हारे बाप भी है और तुम्हारे बेटे भी. तुम नहीं जानते कि उनमें से लाभ पहुँचने की दृष्टि से कौन तुमसे अधिक निकट है. या हिस्सा अल्लाह का निश्चित किया हुआ है. अल्लाह सब कुछ जानता समझता है."
- अल-कुरआन, सुरह 4, अन-निसा आयत संख्या 11

"और तुम्हारी पत्नियों जो कुछ छोड़ा हो, उसमें तुम्हारा आधा है, यदि उनके संतान न हो. लेकिन यदि उनकी संतान हों तो वे जो छोडें, उसमें तुम्हारा चौथाई होगा. इसके पश्चात् जो कि जो वसीयत वें कर जाएँ वह पूरी कर दी जाये, या जो ऋण (उनपर) हो वह चुका दिया जाये. और जो कुछ तुम छोड़ जाओ, उसमें उनका (पत्नियों का) चौथाई हिस्सा होगा, यदि तुम्हारी कोई संतान न हो. लेकिन यदि तुम्हारी संतान है, तो जो कुछ तुम छोड़ोगे, उसमें से उनका (पत्नियों का) आठवां हिस्सा होगा. इसके पश्चात् कि जो वसीयत तुमने की हो वह पूरी कर दी जाये, या जो ऋण हो चुका हो उसे चुका दिया जाये. और यदि कोई पुरुष या स्त्री के न तो कोई संतान हों और न उनके माँ-बाप ही जीवित हों और उसके एक भाई या बहन हों तो उन दोनों में से प्रत्येक का छठा हिस्सा होगा. लेकिन यदि वे इससे अधिक हों तो फिर एक तिहाई में वे सब शरीक होंगे, इसके पश्चात् कि जो वसीयत उसने की वह पूरी कर दी जाये या जो ऋण उस पर हो वह चुका दिया जाये, शर्त यह है कि वह हानिकर ना हो. यह अल्लाह के और से ताकीदी आदेश हैं और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, अत्यंत सहनशील है."
-अल-कुरआन, अन-निसा- आयत संख्या 12

इस्लाम में उत्तराधिकार के नियम को बहुत वृहद् तरीके से वर्णित किया गया है. खुले तौर पर और प्राथमिक रूप से उत्तराधिकार के नियम को कुरआन में दिया गया है और डिटेल में अ-हदीस (मुहम्मद<अल्लाह की उन पर शांति हो> की परंपरा और आदेश) में विस्तृत रूप से दिया है. इस्लाम में दिए गए उत्तराधिकार के नियम के गणितीय रूप और कोम्बिनेशन को जानने के लिए एक व्यक्ति अपनी पूरा जीवन भी व्यतीत कर दे तो भी कम है. कुरआन की दो आयातों के बिनाह पर अरुण शौरी इस्लाम के उत्तराधिकार के नियम के गणितीय रूप को समझ जाने की और उस पर गलत टिपण्णी कर रहें है जबकि उन्होंने इन आयातों को भी ठीक से समझा नहीं! उन्हें ये भी नहीं पता कि इस्लाम में उत्तराधिकार के नियम के गणितीय रूप का क्राइटेरिया क्या है.

(मैं आगे अरुण शौरी की टिप्पणियों का विस्तार से जवाब दूंगा, इससे पहले मैं यह पूछना चाहता आम ब्लोगर्स से कि दुनिया में कौन सा ऐसा धर्म जिसने संपत्ति वितरण और वसीयत के बारे में सभी को अधिकार दिए हैं, खास कर औरत को... इस्लाम ही दुनिया में एक वाहिद (केवल) मज़हब है जिमें औरतों को केवल अधिकार ही नहीं दिए बल्कि उनको संपत्ति में भी हिस्सा देने का प्रावधान किया है.)

ख़ैर, तो मैं बात कर रहा था कि अरुण बाबू की कुरआन के खिलाफ़ टिपण्णी की... तो यह तो कुछ ऐसे ही हुआ कि कोई इंसान गणित के समीकरण को बिना गणित के प्राथमिक नियम जाने बिना हल करना चाहता है. और ऐसा संभव नहीं है कि आप गणित के सामान्य नियम न जाने और समीकरण हल करना शुरू कर दें. मिसाल के तौर पर गणित के समीकरण हल करने में जो सामान्य नियम लागु होता है वह है - BODMAS [Bracket-Off, Division, Multiplication, Adition, Substraction] यानि गणित के समीकरण को हल करने में गणित के प्रमुख चिन्हों को किस प्रकार से एक के बाद एक हल किया जाता है. समीकरण को हल करने के लिए BODMAS को इस्तेमाल करेंगे तो सबसे पहले ब्रेकेट हटाएँगे (हल करेंगे), फिर दुसरे नंबर पर डिविज़न (भाग) को हटाएँगे (हल करेंगे), फिर तीसरे नंबर पर मल्टीप्लिकेशन (गुणा) को हटाएँगे (हल करेंगे), चौथे नंबर पर एडिशन (धन) को हटाएँगे (हल करेंगे) और फिर पांचवें नंबर पर सब्स्ट्रेक्शन (ऋण) को हटाएँगे (हल करेंगे).

अगर अरुण शौरी को गणित नहीं आती हो और वो पहले मल्टीप्लिकेशन (गुणा) को फिर सब्स्ट्रेक्शन (ऋण) को फिर ब्रेकेट ऑफ फिर भाग को फिर आखिरी में प्लस को हटा रहे है तो ज़ाहिर है उत्तर ग़लत ही आएगा.

ठीक उसी तरह से, क़ुरान के अध्याय 4 के श्लोक 11 व 12 में उत्तराधिकार और वसीयत के बारे में बच्चों के बारे में सबसे पहले आदेश है फिर माँ-बाप और पति अथवा पत्नी के बारे में फरमाता है. इसलाम के वसीयत क़ानून के मुताबिक़ पहले जो बिना देनदारी या ऋण हो उसे चुकता किया जे फिर वसीयत लागू होगी, तदोपरांत पति अथवा पत्नी और माँ-बाप (निर्भर करता है कि वे अपने पीछे संतान छोडें है या नहीं) और फिर जो भी बची संपत्ति है उसे लड़को और लड़कियों में दिए गए अंश के मुताबिक़ बाँट दी जाती है.

अब जब ऊपर लिखे तरीके से वसीयत का उत्तराधिकारियों के मध्य वितरण हो जा रहा है तो यह सवाल कैसे उत्पन्न हो सकता है कि किसी का हिस्सा एक से ज्यादा हो जायेगा. यह बात किसी को भी बहुत आसानी से समझ आ जायेगी. दरअसल अरुण शौरी और उनकी तरह के और लोग जो क़ुरान की आयतों का हवाला देते है और भ्रमित करते है दरअसल वो कुरान की आयतों को आधा या वो भाग जिसका अर्थ अलग हो को उठाते है और बीच की या उसके बाद की आयतों को नहीं उठाते जिसमें उस बात का समाधान भी होता है या उसका अर्थ पूर्ण हो जाता है और हुआ यही, अरुण शौरी ने अपने ढंग से कुतर्क के ज़रिये यह सिद्ध करने की कोशिश करी कि अल्लाह गणित नहीं जानता है.

अरे जनाब! यह अल्लाह नहीं जो गणित नहीं जानता (नउज़ुबिल्लाह), यह अरुण शौरी है जो गणित नहीं जानता है.

12 comments:

  1. अल्‍लाह सबकुछ जानता है जबकि मानव कुछ भी नहीं जानता,उसे जानने का मात्र भ्रम है

    लाखों भाइयों को इस्‍लाम की ओर खींचने वाली पुस्‍तक
    http://madarsa.blogspot.com/2010/03/blog-post.html

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  2. बहुत उम्दा, लाजबाब है
    ऐसा ही चलता रहा तो सभी कुरआन पढेंगे और अपनी गलतफेहमियों को दूर करेंगे।

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  3. अच्‍छी पोस्‍ट है, Old but hot हम अन्‍जुमन वाले मसरूफ होने की वजह से आपको ब्‍लागर सम्‍मान मिलने पर बधाई नहीं दे सके थे, सब की तरफ से अब कबूल फरमायें, धन्यवाद

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  4. masha allah!!! bhai saleem ALLAH ek waqt zaroor aayega jab saari insaaniyat ko hidaayat dega.inshaallah.

    aap ne bahut hi behtar post ki hai,

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  5. मोहम्मद उमर भाई सलाम और धन्यवाद बधाई देने के लिए...

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  6. Sanjay bhaskar jee dhanywaad tippani w badhaaee ke liye

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  7. सिर्फ वसीयत की जानकारी से गणित जानने या न जानने का मतलब सिद्ध नहीं होता। कुरान एक धार्मिक पुस्तक है , गणित की नहीं।
    और मोहम्मद उमर साहेब इनको बधाई जरुर दीजिये क्योंकि अगर आप बधाई नहीं देंगे तो ये जनाब नाराज हो जायेंगे।

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  8. अरे जनाब! यह अल्लाह नहीं जो गणित नहीं जानता (नउज़ुबिल्लाह), यह अरुण शौरी है जो गणित नहीं जानता है


    बहुत अच्छा लेख

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  9. arun shori ek aqlmand admi hain lekin dil jab nafrat se bhara ho to admi ki aql band ho hi jati hai.
    Quran ke bare men itna kuch likhne wale ko ved men kuchh bhi kyun nazar nahin aaya?
    गुदा से सांप ले जाना


    ‘ हे मनुश्यो , तुम मांगने से पुश्टि करने वाले को स्थूल गुदा इंद्रियों के साथ वर्तमान अंधे संापों को गुदा इंद्रियों के साथ वर्तमान विषेश कुटिल सर्पांे को आंतों से , जलों को नाभि के भाग से , अण्डकोश को आंड़ों से , घोड़ों को लिंग और वीर्य से , संतान को पित्त से , भोजनों को पेट के अंगों को गुदा इंद्रिय से और “ाक्तियों से षिखावटों को निरन्तर लेओ । ’{ यजुर्वेद 25 ः 7 , दयानन्द भाश्य पृश्ठ 876 }
    इस मन्त्र का क्या अर्थ समझ में आता है?
    ये कौन सा विज्ञान है जिसपर मनुश्य की उन्नति टिकी हुई है ।
    saleem bhai ka shukriya
    aur Tarkeshwar bhai ka bhi
    इसके बावजूद हम वेदों का आदर करते रहेंगे ।

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  10. please come to see my new post
    http://vedquran.blogspot.com/2010/03/blog-post_02.html

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  11. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
    ढेर सारी शुभकामनायें

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  12. KHUDA ki ganit ka andaza to ek sadharan si baat se bhi lagaya ja sakta hay ki arun sahab 9 manths apne maa ke kokh me rahne ke baad dunia me aaye ..kaya is ganit ko wo badal sakte hayn.
    suraj chand jo unke bhagwan hayn KHUDA unhe bana kar number ke niyamon me dala nahi to aapka jyotis sastra ka janm bhi nahi hota ..khair bahas ye nahi ki arun sahab kaya sonchte hayn.bahas ye hay ki arun sahab itna sonchte kayon hay.jara puch kar hame bhi batlaiyega

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