Sunday, March 7, 2010

क्या कुरआन में औरत को पीटने का हुक्म है?


महिला दिवस ८ मार्च पर विशेष 
कुरआन 4:34: "मर्दो का औरतों पर क़ाबू है क्योंकि अल्लाह ने बाज़ आदमियों को बाज़ अदमियों पर फ़ज़ीलत दी है और चूंकि मर्दो ने अपना माल ख़र्च किया है पस नेक बख्त बीवियॉ तो शौहरों की ताबेदारी करती हैं उनके पीठ पीछे जिस तरह अल्लाह ने हिफ़ाज़त की वह भी हिफ़ाज़त करती है और वह औरतें जिनके नाफरमान सरकश होने का तुम्हें अन्देशा हो तो पहले उन्हें समझाओ और (उसपर न माने तो) तुम उनके साथ सोना छोड़ दो और (इससे भी न माने तो) मारो. पस अगर वह तुम्हारी मुतीइ हो जाऐं तो तुम भी उनके नुक़सान की राह न ढूढो अल्लाह तो ज़रूर सबसे बरतर बुजुर्ग है."


सुरः निसा की ये आयत पढ़कर अक्सर औरतें घबरा जाती हैं क्योंकि इसमें तो मर्दों को खुले तौर पर मारने की छूट दे दी है. गैर इस्लामी इस आयत को पढ़कर इस्लाम के औरत विरोधी होने का फतवा दे देते हैं. देखा जाए तो पूरी दुनिया में इस आयत को हथियार बनाकर इस्लाम में औरत के दोयम दर्जे की बात कही जा रही है. लेकिन क्या वास्तव में ये आयत यही मतलब बयान कर रही है? कहीं ऐसा तो नहीं की हमसे इस आयत का मतलब समझने में कोई भूल हो रही है?

एक मिसाल से अपनी बात की शुरुआत करते हैं. 


मान लिया एक मजदूर दिन भर अपनी मजदूरी की तलाश में जाने के बाद शाम को खाली हाथ घर लौटता है. उसकी औरत इस इन्तिज़ार में बैठी है की उसका शौहर कुछ कमाकर लाएगा तो दोनों के पेट में कुछ जाएगा. लेकिन उसे खाली हाथ देखकर उसका सब्र जवाब दे देता है. और वह शौहर को बुरा भला कहने लगती है. शौहर भी थका हुआ आया है और भूखा भी है. बीवी के ताने सुनकर उसे गुस्सा आता है और वह उसे मारने के लिए हाथ उठा देता है.

लेकिन उसी वक़्त उसे कुरआन की ये आयत याद आ जाती है और उसका उठा हुआ हाथ नीचे गिर जाता है. वह उसे समझाने लगता है और उनका गुस्सा काफी हद तक ठंडा हो जाता है. थोड़ी कसर रह जाती है, जिसकी वजह से दोनों रात को अलग अलग सोते हैं और सुकून से अपने और साथी के बारे में सोचते हैं. लिहाज़ा अगले दिन जब सोकर उठते हैं तो दोनों का गुस्सा ठंडा हो चुका होता है. बीवी ख़ुशी ख़ुशी अपने शौहर को विदा करती है और वह नए जोश के साथ काम की तलाश में निकल जाता है. दो जनाब देखा आपने, जो आयत आपको औरत विरोधी दिख रही थी उसने एक जाहिल औरत को जाहिल मर्द से पीटने से बचा लिया.

ये आयत हरगिज़ औरत विरोधी नहीं है बल्कि मनोविज्ञान (Psychology) की निहायत अच्छी मिसाल है. बहुत खूबसूरती के साथ इसमें मर्द और औरत दोनों को समझाया गया है. पहले मर्द से कहा गया की तुम चूंकि औरत से जिस्मानी तौर पर ताक़तवर होते हो इसलिए अपने पर काबू रखो. हो सकता है वह तुमसे ज्यादा फजीलत रखती हो (बाज़ को बाज़ पर फजीलत है से यही मतलब निकलता है.) इसके बाद औरत को समझाया गया चूंकि मर्द तुम्हारे लिए दिनभर मेहनत करता है कुछ कमाकर लाता है तो तुम्हारा भी फ़र्ज़ बनता है की अपनी इज्ज़त व शौहर के माल की हिफाज़त करो. इसके बाद फिर मर्द को सलाह दी गई है की अगर अपनी बीवी की किसी बात पर तुम्हें गुस्सा आ जाए तो उसे कजोर और अपने को ताक़तवर समझकर उसे पीटना न शुरू कर दो बल्कि जो कुरआन कह रहा है उसपर अमल करो, तुम्हारा गुस्सा अपने आप ठंडा हो जाएगा.


ये आयत उस वक़्त नाजिल हुई थी जब एक नव-मुसलमान ने अपनी बीवी को तमांचा मार दिया था. और उससे पहले अरब में बीवियों को पीटना आम था. आगे कोई शख्स ऐसा क़दम न उठाये इसीलिये अल्लाह ने ऐसा हुक्म फरमाया. 

अब ये सवाल उठ सकता है की अल्लाह ने सीधे सीधे बीवी की पिटाई से क्यों नहीं मना किया? तो इसका जवाब ये है की अल्लाह बेइंसाफ नहीं है की एक को तो पूरी तरह पाबन्द कर दे और दूसरे को खुली छूट दे दे. बीवी को भी तो डर रहना चाहिए की वह हद से ज्यादा सरकश न हो जाए.

12 comments:

  1. beeach chaurahe par khada kar ke kode barsate hain talibani.

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  2. जो जैसा चाहे मतलब निकाल ले।

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  3. @ दिनेशराए दिवेदी जी,
    आपने सही कहा की आयत का जो जैसा चाहे मतलब निकाल ले. और ऐसा हुआ भी है. लेकिन यहाँ बात आयत पर अमल करने की है. अगर कोई इस आयत को उसी तरह फालो करता है जैसा की इसमें कहा गया हो तो निश्चित है की पति अपनी पत्नी को किसी भी दशा में नहीं पीटेगा, और न ही घर का टेंशन इतना बढेगा की चौराहे तक चला जाए.

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  4. @ फिरदौस खान जी
    कुरआन की ऐसी कोई आयत नहीं है जिसमें मर्द के काम को औरत से बेहतर कहा गया है. अपने कर्मों के आधार पर कोई भी दूसरे से बेहतर हो सकता है.
    "अगर मर्द बिना वजह औरत पर ज़ुल्म करे तो उसने पीटने की बात भी कुरआन में ज़रूर कही गई होगी"
    ज़ालिम अगर किसी मजलूम पर ज़ुल्म करता है उसकी कुरआन में कई जगह मुज़म्मत (भर्त्सना) की गई है. रही बात मर्द को पीटने की तो अगर मान लिया कुरआन में कोई ऐसी आयत होती तो क्या औरत उसे हथियार बनाकर अपने ज़ालिम मर्द को पीट सकती थी? शारीरिक रूप से शक्तिशाली मर्द चूंकि कमज़ोर औरत को पीट सकता है इसलिए उसका हाथ रोकने के लिए कुरआन ने यह आयत पेश कर दी. लेकिन औरत के साथ ऐसी कोई कंडीशन नहीं इसलिए उसके लिए कोई आयत भी नहीं.

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  5. महिला दिवस पर विशेष लेख पढ़ कर अच्छा लगा...

    अल्लाह बेइंसाफ नहीं है कि एक को तो पूरी तरह पाबन्द कर दे और दूसरे को खुली छूट दे दे. बीवी को भी तो डर कर रहना चाहिए की वह हद से ज्यादा सरकश न हो जाए...

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  6. बहन फ़िरदौस, न ही हम न ही हमारी विचारधारा महिला विरोधी है. यह तो "वे" (पश्चिम, पश्चिम विचारधारा) है जो लगातार कहते आ रहे हैं और कहते ही आ रहे है वो भी बिना दलील के; और हम है कि चुपचाप उसे स्वीकार करते जा रहे हैं...हक़ीक़त क्या है ??? यह कुर-आन में स्पष्ट तौर पर लिखा है...

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  7. बहन फ़िरदौस, क्या आप कुर-आन में विश्वास नहीं रखती है.. ????????

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  8. बेशक़ कुरआन और इस्लाम एक साथ हैं। हम क़ुरान की बातों से मुंह नहिं मोड सकते। क़ुरान-ए-मजीद की आयतों का सही तश्करा करना चाहिये।

    हाँ ये ज़रूर है कि इस्लाम ने मर्द और औरत को बराबर का दर्ज्जा दिया। पर उसका ये भी मतलब नहिं करना चाहिये कि औरत आपे के बाहर होती चली जाये। शायद इसी लिये पहले मर्द " सचाई और इंसाफ" की जंगों में मारे जाते थे और उनकी तादाद औरतों से कम हुआ करती तो ये मुनासीब था कि औरतों को शादी करने के लिये शादी शुदा मर्द से भी शादी करदेते ताक़ी वो अपनी इज़्ज़त आबरु को संभाल सकें। और मर्दों को भी ये कहा गया है कि हर औरतें जो तुम ब्याह कर लाये हो सभी से सही इंसाफ करो।
    इसका मतलब यही है कि मरद और औरतों के लिये मुनासीब है कि वो अपने हुक़ुक का गैर इस्तमाल न करें।औरतों के लिये ये भी है कि वो इतनी आज़ाद होकर बहक न जायें।
    क़ुरआन ने कहा है कि " फ़रिश्ते भी उस औरत पर सारी रात लानत भेजते हैं जो अपने शौहर जो हक़ की बात करता है उसकि नाफ़रमानी करती है।
    क़्ररान-शरीफ़ आलमी किताब है। उससे मुंह मोडना या उसकी आयतों के ग़लत मायेने करना ये कहाँ का इंसाफ है।

    हमारी अंजुमन की यही लिंक काफ़ी है ना समज़ने वाले गोर करें।
    http://hamarianjuman.blogspot.com/2010/03/women-in-islam.html

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  9. @ रजिया जी आपका जवाब बहुत अच्‍छे मौके पर आया, इसकी बहुत ज़रूरत थी, हम कितना ही जवाब देते लेकिन जो बात आप यानी एक औरत दे, उसका जवाब नहीं,

    मैं खामोश इस लिये था कि मैं केवल सवाल का जवाब ही नहीं देना चाहता, सवाल को ही खत्‍म करना चाहता हूं जैसे माशा अल्लाह ब्‍लागिंग में 'जिहाद' पर हमने सवाल ही खत्‍म कर दिया

    हमारी अन्‍जुमन को आप पर फखर है

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  10. कैरानवी साहब। मेरी कमेन्ट पर मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिये शुक्रिया। आज मानोगे मेरे पास वक़्त नहिं था। पर आज मुज़े यहाँ (ब्लोग पर )आना भी बहोत ज़रूरी हो गया था।
    मैं एक अच्छी बेटी, बहन , बीवी और एक "माँ" हुं। हालांकि नौकरी पेशा हुं पर एक औरत के हुदुद को जानती हुं। और अल्लाह से डरती हुं। आख़ेरत में जवाब देना है जो मुज़े। यहाँ तक की मेरे ब्लोग की हर पोस्ट, मेरा ईमेल आई डी,मेरे ख़यालात ये सब मेरे शौहर के साथ शे'र करती हुं। और ये सब करने में मुज़े हंमेशां ख़ुशी महसुस होती है।

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  11. कैरानवी साहब। मेरी कमेन्ट पर मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिये शुक्रिया। आज मानोगे मेरे पास वक़्त नहिं था। पर आज मुज़े यहाँ (ब्लोग पर )आना भी बहोत ज़रूरी हो गया था।
    मैं एक अच्छी बेटी, बहन , बीवी और एक "माँ" हुं। हालांकि नौकरी पेशा हुं पर एक औरत के हुदुद को जानती हुं। और अल्लाह से डरती हुं। आख़ेरत में जवाब देना है जो मुज़े। यहाँ तक की मेरे ब्लोग की हर पोस्ट, मेरा ईमेल आई डी,मेरे ख़यालात ये सब मेरे शौहर के साथ शे'र करती हुं। और ये सब करने में मुज़े हंमेशां ख़ुशी महसुस होती है।

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