विश्व जल दिवस (22 मार्च) पर विशेष
पानी की अहमियत बच्चे बच्चे को मालूम है। तपती दोपहर में पसीने से तरबतर जब कोई शख्स घर पहुंचता है तो उसकी सबसे पहली ख्वाहिश होती है कि थोड़ा सा ठंडा पानी मिल जाये जो उसकी प्यास को फौरन बुझा दे। पानी अल्लाह की बेमिसाल रहमत है। पानी के बिना ज़िंदगी का तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता। अभी तक साइंस कोई ऐसी जिंदगी दरियाफ्त नहीं कर पायी है जो पानी के बगैर हो।
प्यास बुझाने के अलावा पानी में कुछ और भी ऐसी साइंसी खुसूसियात पायी जाती हैं जिससे साबित होता है कि अल्लाह ने इसे ज़मीन पर जिंदगी पैदा करने के लिए ही खल्क किया है। और इसकी तरफ कुरआन हकीम की 21 वीं सूरे अंबिया की 30 वीं आयत में इरशाद हुआ है, ‘‘क्या वह लोग जो मुनकिर हैं गौर नहीं करते कि ये सब आसमान व जमीन आपस में मिले हुए थे। फिर हम ने उन्हें जुदा किया और पानी के जरिये हर जिन्दा चीज़ पैदा की। क्या वह अब भी यकीन नहीं करते?’’
पानी की एक अहम क्वालिटी इसका लिक्विड फार्म में होना है। लिक्विड होने की वजह से यह जानदारों के पूरे जिस्म में आसानी से फैल जाता है और जिस्म के लिए जरूरी चीज़ों को अंदर फैला देता है। जानदारों के लिए जरूरी ज्यादातर चीज़ें पानी में आसानी से घुल जाती हैं। जैसे कि नमक, ग्लूकोज और चीनी। पानी महीन से महीन चीज़ों के भीतर पहुंच सकता है। इसीलिए वह हाथी से लेकर निहायत बारीक बैक्टीरिया तक तमाम जानदारों के जिस्म में जरूरियात पहुंचाने का जरिया है।
पानी में एक ऐसी क्वालिटी होती है जो और किसी लिक्विड में नहीं होती। कोई भी लिक्विड ठंड बढ़ने पर सिकुड़ता है। लेकिन पानी चार डिग्री सेण्डीग्रेड टेम्प्रेचर होने तक सिकुड़ता है, उससे कम टेम्प्रेचर पर फिर फैलने लगता है। इसलिए जाड़ों में ठन्डे मुल्कों में तालाब का पानी जब बर्फ में बदलता है तो वह हलका होकर पूरे तालाब को ढंक लेता है और नीचे फ्रेश वाटर में मछलियां आराम से तैरती रहती हैं। बर्फ में गर्मी रोकने की भी खासियत होती है। जो पानी को हद से ज्यादा ठण्डा होने से रोक देती हैं। और इसमें रहने वाले जानदार एक आरामदेय माहौल में अपना गुज़र बसर करते रहते हैं।
पानी हाईड्रोजन और आक्सीजन के बीच जोड़ से बनता है। केमिस्ट्री के नजरिये से यह जोड़ सबसे मजबूत बांड होता है। बांड मजबूत होने की वजह से उसका ब्वायलिंग प्वाइंट बढ़ जाता है। उसका माल्क्यूल ज्य़ादातर केमिकल रिएक्शन में ब्रेक नहीं होता और वह पानी की ही हालत में चीज़ों का हिस्सा बन जाता है। इंसानी जिस्म का लगभग साठ-सत्तर फीसद हिस्सा पानी होता है। ज़मीन का इकहत्तर फीसद हिस्सा पानी है। कुछ पौधों में नब्बे फीसद तक पानी होता है।
पानी अगर लाखों साल तक भी किसी बरतन में रख दिया जाये तो भी उसकी बनावट पर कोई असर नहीं होता। जो कुछ भी उसकी जाहिरी हालत में तब्दीली आती है वह दरअसल उसमें दूसरे मैटीरियल के मिक्स होने से आती है। और अगर उस मैटीरियल को अलग कर दिया जाये तो पानी वापस अपनी असली हालत में आ जाता है।
पानी को वापस अपनी असली हालत में लाने के लिए अल्लाह ने इंतिजाम भी कर रखा है। इंसान और दूसरे जानदार जब पानी का इस्तेमाल करते हैं तो वह गंदी चीज़ों के मिक्स हो जाने से पीने लायक नहीं रहता। यह पानी नदियों के जरिये समुन्द्र में जाता है। सूरज की गर्मी समुन्द्र के इस गंदगी मिले पानी को भाप में बदल कर बादलों की शक्ल दे देती है। इस दौरान पानी की गंदगी समुन्द्र में ही छूट जाती है और बारिश के जरिये साफ पानी वापस ज़मीन पर आ जाता है।
पानी अल्लाह की बेमिसाल रहमत है। ‘रहमान’ अल्लाह के उन नामों में से है जिसको खुद अल्लाह ने पसंद फरमाया है। हालांकि अल्लाह की रहमतों को गिनने वाले गिन नहीं सकते। अगर सिर्फ पानी की क्वालिटीज़ को ही देखा जाये तो उसमें खालिके कायनात की रहमतों के बेशुमार पहलू निकलकर सामने आ जाते हैं।
कुरआन ने पानी की अहमियत बार बार बतायी है।
‘‘तो क्या तुमने पानी पर भी नज़र डाली जिसे तुम पीते हो?’’ (56-68)
‘‘और अल्लाह ही ने जमीन पर चलने वाले तमाम जानवरों को पानी से पैदा किया।-----’’ (24-45)
‘‘और उसी की निशानियों में से एक ये भी है कि वह तुमको डराने व उम्मीद लाने के वास्ते बिजली दिखाता है और आसमान से पानी बरसाता है और उसके जरिये से मुर्दा ज़मीन को आबाद करता है।---’’ (30-24)
कुरआन में जब भी जन्नत का जिक्र आया है तो पानी और नहरों का जिक्र जरूर आया है।
‘‘उन दोनों बागों में दो चश्मे (तालाब या झीलें) जोश मारते होंगे।’’ (55-66)
लेकिन अफसोस आज के दौर में हम अल्लाह की इस बेमिसाल रहमत को बरबाद कर रहे हैं। नदियों को गंदा कर रहे हैं। एक तरफ पाश कालोनियों में रोजाना पानी से सड़के धुली जाती हैं तो दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी हिस्से हैं जहां लोग बूंद बूंद को तरसते हैं। जबकि रसूल (स-अ-) ने फरमाया है कि अगर तुम्हारे पास सिर्फ वुजू करने के लिए पानी है और तुम सामने एक कुत्ते को प्यासा देखते हो तो वह पानी उसे पिला दो।
अगर नहाने के लिए हमारा एक बाल्टी पानी से काम चल सकता है तो वहां चार बाल्टी खर्च कर देते हैं। जबकि रसूल (स-अ-) की एक और हदीस है कि अगर तुम नदी के किनारे बैठे हो और तुम्हें प्यास लगी है तो नदी से सिर्फ इतना पानी लो कि तुम्हारी प्यास बुझ जाये।
किसी व्यक्ति को पानी जरूरत से ज्यादा इकट्ठा करने और दूसरों को उससे वंचित करने से सख्ती से मना किया गया है। एक हदीस कहती है, ‘‘अल्लाह कयामत के दिन उन लोगों से सख्ती से पेश आयेगा जो पानी को सड़कों पर बहा देते हैं और मुसाफिरों (जरूरतमन्दों) को तरसाते हैं।’’ (बुखारी 3-838)
पानी पीने से जानवरों को भी रोकना इस्लाम में सख्ती से मना है, हदीस के अनुसार ‘‘अगर कोई व्यक्ति रेगिस्तान में कुआँ खोदता है तो उसे इसका अधिकार हरगिज नहीं कि वह उस कुएं से किसी जानवर को पानी पीने से रोक दे।’’ (बुखारी -5550)
रसूल (स-अ-) ने नदियों या साफ पानी के ज़खीरों में गंदगी बहाने से सख्ती से मना किया है। (मुस्लिम-553)
रसूल (स-अ-) ने पानी को बेचने के लिए भी सख्ती से मना किया है। (मुस्लिम - 3798)
गर्ज ये कि इस तरंह की बेशुमार कुरानी आयतें व रसूल की हदीसें इस्लाम में मौजूद हैं जो न सिर्फ हमें पानी की अहमियत बताती हैं बल्कि उसका सही इस्तेमाल कैसे किया जाये इसके तरीके भी बताती हैं। अगर इन पर सही तरंह से अमल किया जाये तो पानी के लिए न तो किसी को तरसना पड़ेगा और न ही जल संरक्षण दिवस मनाने की ज़रूरत होगी।
वरना फिर यही पानी अज़ाब बनकर दुनिया को खत्म भी कर सकता है। जैसा कि तूफाने नूह में हुआ था.
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जल संरक्षण दिवस के अवसर पर आपने बड़ा ही उपयोगी लेख प्रस्तुत किया है जिससे जहां मानव जीवन में जल का महत्व ज़ाहिर होता है वहीं यह भी पता चलता है कि इस्लाम प्राकृत धर्म है जिसने मानव जीवन के विभिन्न भागों पर प्रकाश डाला है। यदि मानव इस्लामी नियमानुसार जल की सुरक्षा करने लगे तो हर प्रकार की कठिनाई से इनसान सुरक्षित रहेगा। बहुत बहुत धन्यवाद
ReplyDeleteअगर तुम्हारे पास सिर्फ वुजू करने के लिए पानी है और तुम सामने एक कुत्ते को प्यासा देखते हो तो वह पानी उसे पिला दो।
ReplyDeleteसुब्हानल्लाह
ख्वाह समुन्दर के किनारे क्यों न बैठे हो, ख्वाह वजू ही क्यों न कर रहे हो, कम से कम पानी खर्च करो.
ReplyDelete.हुजुर की एक हदीस यह भी है:
बहुत ही अच्छी पोस्ट.शुक्रिया.
नदियों या साफ पानी के ज़खीरों में गंदगी बहाने से सख्ती से मना किया है...
ReplyDeleteganga to ALLAH ke rasool (saw) ki iss hidayat maatr se hi pradushit hone se bach sakti hai...
नदियों या साफ पानी के ज़खीरों में गंदगी बहाने से सख्ती से मना किया है...
ReplyDeleteganga to rasool (saw) ki is hidayat se pradushit hone se bach sakti thi... agar sab bharatwasi use maan lete...
अगर तुम्हारे पास सिर्फ वुजू करने के लिए पानी है और तुम सामने एक कुत्ते को प्यासा देखते हो तो वह पानी उसे पिला दो
ReplyDeleteक्या वह लोग जो मुनकिर हैं गौर नहीं करते कि ये सब आसमान व जमीन आपस में मिले हुए थे। फिर हम ने उन्हें जुदा किया और पानी के जरिये हर जिन्दा चीज़ पैदा की। क्या वह अब भी यकीन नहीं करते
ReplyDeleteअगर कोई व्यक्ति रेगिस्तान में कुआँ खोदता है तो उसे इसका अधिकार हरगिज नहीं कि वह उस कुएं से किसी जानवर को पानी पीने से रोक दे।’’ (बुखारी -5550
ReplyDeleteअगर इन पर सही तरंह से अमल किया जाये तो पानी के लिए न तो किसी को तरसना पड़ेगा और न ही जल संरक्षण दिवस मनाने की ज़रूरत होगी।
ReplyDeleteवरना फिर यही पानी अज़ाब बनकर दुनिया को खत्म भी कर सकता है। जैसा कि तूफाने नूह में हुआ था.
safat ji se sehmat: जल संरक्षण दिवस के अवसर पर आपने बड़ा ही उपयोगी लेख प्रस्तुत किया है....
ReplyDeleteज़ैदी साहब बहुत ही अच्च्छा मुद्दा उठाया है आपने . जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है ज़रूरत इसी बात की है की इस्लाम से जुड़े ज़्यादा से ज़्यादा एसे ही विषय छुये जाए ताकि यह बात आम लोगों तक पहुँचे की इस्लाम जिंदगी से जुड़े हर हर पहलू पर आम इंसानों का मार्गदर्शन करता है
ReplyDeleteबहुत बेहतर
ReplyDelete‘‘अल्लाह कयामत के दिन उन लोगों से सख्ती से पेश आयेगा जो पानी को सड़कों पर बहा देते हैं और मुसाफिरों (जरूरतमन्दों) को तरसाते हैं।’’ (बुखारी 3-838)
काश हम सब इस पर गौर करें
ReplyDeleteरसूल (स-अ-) ने नदियों या साफ पानी के ज़खीरों में गंदगी बहाने से सख्ती से मना किया है। (मुस्लिम-553)
kaash ANJUMAN wale VOTE dena seekh lete to adhik pathkon tak achhi baten phooncha sakte.... afsos sad afsos intna achha paigham dab kar reh gaya,,
ReplyDeleteyeh tum logon ki nalayqi he ya imaandari?
जल के संरक्षण हुतु कुछ नियमः
ReplyDelete(1) बाग़ीचों की सींचाई सुबह अथवा संध्या में पतले पाईप से की जाए तो बहुत हद तक पानी की बचत की जा सकती है।
(2) गाड़ियों को पाईप से धोने की बजाए बाल्टी अथवा डोल से धोया जाए।
(3) ब्रष करते समय, चेहरा बनाते समय, बर्तन धुलते समय नल को खुला रखने से बचें। उसी प्रकार काम होने के बाद नल को अच्छी तरह बंद कर दें। यदि प्रयोग किए गए जल को किसी अन्य काम में लाना सम्भव हो तो ला लें।
(4) गिरने वाले थोड़े बुंद से जल का अधिक मात्रा नष्ट हो जाता है। यदि पूरे दिन पानी के बूंद गिरते रहें तो एक दिन में अनुमानतः 27 लीटर पानी नष्ट होता है।
इस्लाम फुज़ूल खर्जी से रोकता और संरक्षण की ताकीद करता है। क़ुरआन में कहा गयाः "खाओ पिओ और फुज़ूलखर्ची न करो, अल्लाह फुज़ूलखर्ची करने वालों को पसन्द नहीं करता।"
ReplyDeleteमुहम्मद सल्ल0 जिनका जीवन प्रत्येक मानव के लिए आदर्श था,जल के संरक्षण में आपका आदर्श हमें मिलता है कि आप ज़्यादातर एक मुद्द (650 ग्राम) जल से वुज़ू कर लेते तथा एक साअ से पाँच मुद्द (3 किलो ग्राम या उससे अधिक) में स्नान कर लेते थे।( मस्लिम)
एक व्यक्ति हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि0 के पास आया और कहाः वुज़ू के लिए कितना पानी हमें काफी होना चाहिए ? कहाः मुद्द , पुछाः स्नान के लिए कितना पानी काफी होना चाहिए? कहाः साअ। उसने कहाः इतना तो मुझे काफी नहीं। आपने फरमायाः उस इनसान को काफी हुआ जो तुझ से उत्तम थे, अर्थात् अल्लाह के रसूल मुहम्मद सल्ल0।( अहमद )
एक बार मुहम्मद सल्ल0 हज़रत साद बिन अबी वक्क़ास रज़ि0 के पास से गुज़रे जबकि वह वुज़ू कर रहे थे और पानी का प्रयोग ज़रुरत से ज़्यादा कर रहे थे। आपने फरमायाः हे साद! यह क्या फुज़ूल खर्ची है ? उन्होंने पूछाः क्या वुज़ू में भी फुज़ूलखर्ची है? आपने फरमायाः हाँ क्यों नहीं! यधपि तुम बहती नदी के निकट ही क्यों न हो (वहाँ भी आवश्यकता से अधिक पानी का प्रयोग करना फुज़ूलखर्ची है।)
यह सारे तथ्य अपनी जगह, पर कितने लोगों ने विश्व जल दिवस के अवसर पर सोचा है यह एक महान ईश्वरीय उपकार भी है।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी भरा लेख, बस ज़रूरत है अमल करने की.
ReplyDeleteशुक्रिया
afsos isi bat hai ki Arab main Pani ki sabse jyada killat hai. allha ne aisa kyon kiya .
ReplyDeleteसभी हौसला आफ्जाइयों का बहुत बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteतारकेश्वर जी अफ़सोस इसपर न करिए की अरब में पानी की किल्लत है. बल्कि अफ़सोस इसपर करिए की अरब में पानी की किल्लत के बावजूद वहाँ पानी के लिए कोई लड़ाई नहीं होती, और जहां कदम कदम पर नदियाँ बहती हैं वहाँ पानी के लिए लोग झगड़ रहे हैं.
ReplyDeletesach kahat hai zeashan ji, vahan jakar to dekho har taraf allah ka diya sab kuchh hai, pani hi nahi petrol bhi hai
ReplyDeleteज़ीशान ज़ैदी भाई। आपकी बढिया पोस्ट।
ReplyDeleteसंतोष जी आपकी बात वाक़ई सच है। वहाँ सिर्फ़ एक आदमी के लिये भी सरकारी गाडीयाँ उमराह के लिये तैयार रहती हैं क्यों कि "पेट्रोल"काफ़ि सस्ता है।
और हज़ के दौरान तो "अराफ़ात" और "मीना" के मैदानों में शावर लगाये जाते हैं जो लगातार हाजीयों पर पानी का छीडकाव करते रहते हैं।
याने वहां रण में भी " हरियाली" है। नेअमत है ख़ुदाकी।
ज़ीशान ज़ैदी भाई। आपकी बढिया पोस्ट।
ReplyDeleteसंतोष जी आपकी बात वाक़ई सच है। वहाँ सिर्फ़ एक आदमी के लिये भी सरकारी गाडीयाँ उमराह के लिये तैयार रहती हैं क्यों कि "पेट्रोल"काफ़ि सस्ता है।
और हज़ के दौरान तो "अराफ़ात" और "मीना" के मैदानों में शावर लगाये जाते हैं जो लगातार हाजीयों पर पानी का छीडकाव करते रहते हैं।
याने वहां रण में भी " हरियाली" है। नेअमत है ख़ुदाकी।
@ रजिया जी मैं सोचता था आप वही उत्तर देंगी जो एक बार किसी को दिया था, वह बहुत शानदार जवाब था, (आबे जम-जम की व्यवस्था बारे में विडियो)
ReplyDeleteआपने माशाअल्लाह हज भी किया है और अरब और वहां की सहूलतें नेमतें आदि बारे में बहतर जानती हैं, आपको अपने वहां के सफर बारे में लिखना चाहिये मैंने कई बार कहना चाहा, यह दरखास्त भी है और जरूरत भी
अफ़सोस इसपर न करिए की अरब में पानी की किल्लत है. बल्कि अफ़सोस इसपर करिए की अरब में पानी की किल्लत के बावजूद वहाँ पानी के लिए कोई लड़ाई नहीं होती, और जहां कदम कदम पर नदियाँ बहती हैं वहाँ पानी के लिए लोग झगड़ रहे हैं...
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