Wednesday, December 30, 2009

अज़ान क्या है? ( भाग २)

अज़ान क्या है? के दूसरे भाग के साथ हम आपकी सेवा में उपस्थित हैं, इस भाग में आप देखेंगे कि मानव कल्यान तथा ईश्वरीय मार्गदर्शन हेतु अज़ान क्या संदेश देता है। तो आईए चलते हैं अज़ान के तीसरे शब्द की व्याख्या की ओरः
तीसारा शब्दः मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्ल0 ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं। (दो बार)
जब यह सिद्ध हो गया कि ईश्वर को किसी की आवश्यकता नहीं पड़ती तथा उसका पृथ्वी पर मानव रूप धारण करके आना उसकी महिमा को तुच्छ सिद्ध करता था, इसी लिए उसने मानव द्वारा ही मानव-मार्गदर्शन का नियम बनाया, और हर देश तथा हर युग में मानव ही से पवित्र लोगों का चयन कर के उन्हें अपना दूत बनाया तथा आकाशीय दूतों द्वारा उन पर अपनी प्रकाशना भेजी जिनका अन्तिम क्रम मुहम्मद सल्ल0 पर समाप्त हो गया। आपको "सम्पूर्ण संसार हेतु दयालुता" बना कर भेजा गया। आपके आगमन की भविष्यवाणी प्रत्येक धार्मिक ग्रन्थों ने की थी, आप ही नराशंस तथा कल्कि अवतार हैं, आप ही के बताए हुए नियमों द्वारा ईश्वर की पूजा करने की घोषणा करते हुए अजान देने वाला कहता है कि मैं मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्ल0 ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं। अर्थात मैं ईश्वर की पूजा जैसे चाहूं वैसे नहीं करूँगा बल्कि मेरी पूजा भी अन्तिम ईश्दूत मुहम्मद सल्ल0 के बताए हुए नियमानुसार होगी।
चौथा शब्दः आओ नमाज़ की ओर (दो बार)
इस वाक्य द्वारा ऐसे व्यक्ति को नमाज़ की ओर बोलाया जाता है जो मौखिक तथा हार्दिक प्रतिज्ञा दे चुके होते हैं कि {ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं तथा मुहम्मद हमारे अन्तिम संदेष्टा हैं} इसी प्रतिज्ञा को व्यवहारिक रूप देने के लिए मस्जिद में बोलाया जाता है ताकि जिस शब्द से उसने स्वयं को मुस्लिम सिद्ध किया है उसका व्यवहारिक प्रदर्शन कर सके। नमाज़ मात्र एक ईश्वर के लिए पढ़ी जाती है जिसमें स्तुति, प्रशंसा, कृतज्ञता आदि सब एकत्रित हो जाते हैं और सामूहिक रूप में अदा करने से इस्लामी समता तथा बन्धुत्व का पूर्ण प्रदर्शन होता है जहाँ धनी और निर्धन, स्वामी और सेवक, काले और गोरे, बड़े और छोटे सब एक साथ मिल कर नमाज़ अदा करते हैं।
पाँचवा शब्दः आओ सफलता की ओरः(दो बार) इस शब्द द्वारा एक व्यक्ति के मन एवं मस्तिष्क में यह बात बैठाई जाती है कि सफलता न माल एकत्र करने में है, न ऊंचे ऊंचे भवन बनाने में, बल्कि वास्तविक सफलता केवल एक ईश्वर की पूजा में है, जो महाप्रलय के दिन का भा मालिक है। और यह संसार परीक्षा-स्थल है परिणाम स्थल नहीं, परिणाम के लिए हर व्यक्ति को अपने रब के पास पहुंचना है तथा अपने कर्मो का लेखा जोखा देना है। यदि एक ईश्वर के भक्त बने रहे तो स्वर्ग के अधिकारी होगें जो बड़ा सुखमय तथा हमेशा रहने वाला जीवन होगा, परन्तु यदि एक ईश्वर के आदेशानुसार जीवन न बिताया तो नरक में डाल दिए जाएंगे जो बड़ी दुखमय तथा पीड़ा की जगह होगी। इस प्रकार अजान देने वाला घोषणा करता है कि हे मनुष्यो आओ और नमाज़ अदा करके सफलता प्राप्त करो।
वास्तविकता यही है कि ईश्वर से अनभिज्ञता मानव के लिए सब से बड़ी असफलता है, इसी लिए एक स्थान पर कुरआन में कहा गया कि {प्रत्येक मनुष्य घाटे में हैं, सिवाए उसके ईश्वर के आज्ञाकारी बन गए, सत्य कर्म किया, सत्य की ओर बोलाया, और इस सम्बन्ध में आने वाली कठिनाइयों को सहन किया} काश कि इस बिन्दू पर हम चिंतन मनन कर सकें।
छठवाँ शब्दः ईश्वर सर्वमहान है, ईश्वर सर्वमहान है, ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं। ईश्वर की महानता को बल देते हुए अज़ान देने वाला पुनः कहता है कि हे मनुष्यो ईश्वर सर्व महान है, उसके अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं, इस लिए अपने ईश्वर की पूजा से विमुख हो कर अन्य की पूजा कदापि न कर, मात्र एक ईश्वर की पूजा कर जो तुम्हारा तथा सम्पूर्ण संसार का सृष्टा, स्वामी, संरक्षक और प्रभु है।

Tuesday, December 29, 2009

अज़ान क्या है?

एक सांस्कृतिक सभा में एक बार हमने अपने देशवासियों से यह प्रश्न किया कि अज़ान क्या है ? अधिकांश लोगों का उत्तर था कि अज़ान में ईश्वर को पुकारा जाता है, कुछ लोगों ने कहा कि यह ईश्वर की भक्ति का एक नियम है। जबकि एक सज्जन ने कहा कि अज़ान में अकबर बादशाह को पुकारा जाता है। अज़ान के सम्बन्ध में अपने देशवासियों के यह उत्तर सुन कर बड़ा आश्चर्य हुआ और दुख भी कि हम सब अपने देश में शताब्दियों से एक साथ रहने के बावजूद एक दूसरे की धार्मिक संस्कृति के प्रति संदेह में पड़े हुए हैं अथवा दोषपूर्ण विचार रखते हैं।
वास्तविकता यह है कि अज़ान में न तो ईश्वर को पुकारा जाता है, न अकबर बादशाह को, और न ही यह पूजा करने का कोई तरीक़ा है। बल्कि इसके द्वारा लोगों को नमाज़ के समय की सूचना दी जाती है ताकि लोग मस्जिद में उपस्थित हो कर सामूहिक रूप में ईश्वर की भक्ति करें।
ईश्-भक्ति हेतु हर मुसलमान पुरुष एवं स्त्री पर दिन और रात में पाँच समय की नमाजें अनिवार्य की गई हैं जिनकी अदाएगी महिलाओं को अपने घर में करनी होती है परन्तु पुरुषों को आदेश दिया गया है कि वह उन्हें मस्जिद में जाकर सामुहिक रुप में अदा करें। पाँच समय की यह नमाजें ऐसे समय में भी आती हैं जिसमें एक व्यक्ति सोया होता है या अपने कामों में व्यस्त होता है, अतः ऐसे माध्यम की अति आवश्यकता थी जिसके द्वारा लोगों को नमाज़ों के समय के सूचित किया जा सके। अज़ान इसी उद्देश्य के अंतर्गत दी जाती है। परन्तु इस्लाम का कोई भी आदेश केवल आदेश तक सीमित नहीं होता बल्कि उसमें मानव के लिए पाठ भी होता है। अज़ान के शब्दों पर चिंतन मनन करने से हमें यही बात समझ में आती है। इस विषय में इस्लाम के एक महान विद्वान शाह वलीउल्लाह देहलवी लिखते हैं « ईश्वर की हिकमत का उद्देश्य भी यही था कि अज़ान केवल सूचना अथवा चेतावनी हो कर न रह जाए बल्कि धर्म का परिचय कराने में दाखिल हो जाए, और दुनिया में इसकी प्रतिष्ठा केवल चेतावनी की नहीं धर्म प्रचार की भी हो, और उसकी आज्ञापालन और उपासना का चिह्न भी समझा जाए, इस लिए अनिवार्य यह हुआ कि इसमें अल्लाह की प्रशंसा हो, अल्लाह और उसके अन्तिम संदेष्टा हज़रत मुहम्मद सल्ल0 के वर्णन के साथ नमाज़ की ओर बुलावा हो ताकि इस उद्देश्य की भली-भाति पुर्ति हो सके»
अब आपके मन में यह प्रश्न पैदा हो रहा होगा कि अज़ान के शब्दों का क्या अनुवाद होता है तो आइए सर्वप्रथम हम अज़ान के शब्दों का अर्थ जानते हैं
" ईश्वर सब से महान है (चार बार) मैं वचन देता हूं कि ईश्वर के अतिरिक्त कोई दूसरा उपासना के योग्य नहीं (दो बार) मैं वचन देता हूं कि मुहम्मद सल्ल0 ईश्वर के अन्तिम संदेष्टा हैं (दो बार) आओ नमाज़ की ओर (दो बार) आओ सफलता की ओर (दो बार) ( नमाज़ सोने से उत्तम है [दो बार] यह मात्र सुबह की नमाज़ में कहे जाते हैं) ईश्वर सब से महान है, ईश्वर सब से महान है, ईश्वर के अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं।
यह रहा अर्थ अज़ान का, अब आइए अज़ान के इन शब्दों पर चिंतन मनन कर के देखते हैं कि अज़ान में क्या संदेश दिया जाता है।
पहला शब्दः ईश्वर सर्व महान है (चार बार) अज़ान देने वाला सब से पहले मनुष्यों को सम्बोधित करते हुए कहता है कि ईश्वर जो सम्पूर्ण संसार का सृष्टा, स्वामी और पालनहार है, वह सर्वमहान है, वह अनादी और अनन्त है, निराकार और निर्दोश है, उसके पास माता पिता नहीं, उसको किसी की आवश्कता नहीं पड़तीन वह न किसी का रुप लेकर पृथ्वी पर आता है और न उसका कोई साझीदार है। परन्तु जब मनुष्य इस महान पृथ्वी पर आकाश को देखता है, सूर्य, चंद्रमा, और सितारों पर दृष्टि डालता है, बिजली की चमक, बादल की गरज, और किसी पीर फक़ीर के चमत्कार आदि पर गौर करता है तो इन सब की महानता उसके हृदय में बैठने लगती है तो अज़ान देने वाला यह याद दिलाता है कि यह सब चीज़ें ईश्वर की महानता के सामने बिल्कुल तुच्छ हैं क्यों कि वही इन सब चीज़ों का बनाने वाला है, वही लाभ एवं हानि का मालिक है। यह चीज़े अपनी महानता के बावजूद ईश्वरीय दया की मुहताज हैं, ईश्वर ही सब की आवश्यकतायें पूरी कर रहा है, संकटों में वही मुक्ति देता है, सब की पुकार को सुनता है, परोक्ष एवं प्रत्यक्ष का जानने वाला है, सारे पीर फक़ीर, साधु संत और दूत सब उसी के मुहताज हैं और उनको किसी को लाभ अथवा हानि पहुंचाने का कुछ भी अधिकार नहीं क्योंकि मात्र एक ईश्वर सर्वमहान है।
दूसरा शब्दः ईश्वर के अतिरिक्त कोई सत्य पूज्य नहीं। (दो बार)
पहले शब्द से जब यह सिद्ध हो गया कि ईश्वर सर्वमहान है, सारी चीज़ें उसी की पैदा की हुई हैं तथा उसी के अधीन हैं तो अब यह पुकार लगाई जाती है कि उसी की आज्ञाकारी भी की जानी चाहिए। अतः अज़ान देने वाला कहता है कि मैं वचन देता हूं कि ईश्वर के अतिरिक्त कोई उपासना के योग्य नहीं। वीदित है की जब सब कुछ ऊपर वाला ईश्वर ही करता है तो फिर सृष्टि की कोई प्राणी अथवा वस्तु उपास्य कैसे हो सकती है ? अतः यह पुकार लगाई जाती है कि हे मनुष्यो! सुन लो कि ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा नहीं की जानी चाहिए। अब प्रश्न यह था कि ईश्वर की पूजा कैसे की जाएगी और ईश्वर ने मानव मार्गदर्शन हेतु क्या नियम अपनाया तो इसे अज़ान के अगले शब्दों में बताया गया है जिसका वर्णन अगली पोस्ट में होगा। धन्यवाद (जारी )

Tuesday, December 22, 2009

अल्लाह के चमत्कार...हर तरफ...!!! Miracle's Of Allah Everywhere

अल्लाह तआला के सिवा कोई पुज्य नही है और अल्लाह तआला को जो करिश्मा दिखाना था वो १४०० साल पहले कुरआन के रुप में सबको दिखा चुकें है लेकिन कुछ लोग है जो अब भी यकीन नहीं करते है ऐसे लोगो की आखें खोलने के लिये अल्लाह तआला ने इस दुनिया के लोगो को बहुत से चमत्कार दिखायें। ऐसी ही कुछ तस्वीरें और एक वीडियो मेरे पास काफ़ी दिनो से मौजुद थी तो मैने सोचा आप लोगो को भी दिखा दूं। अल्लाह तआला चाहे हर चीज़ पर और हर चीज़ से अपना नाम लिख सकता है चाहे वो बाद्ल में, समुंद्र में, आसमान में, पेड से,....

रुकु की हालत में पेड

ये पेड सिडनी, आस्ट्रेलिया के जंगल में पाया गया था। ये रुकु की हालत में है और इसका रुख काबे की तरह है जिस तरफ़ रुख करकें हर मुसलमान नमाज़ पडता है।















Lule के फूल पर अल्लाह का नाम

















पुरा लेख पढने के लिये यहां क्लिक करें......

Friday, December 18, 2009

सभी ब्लोगर्स को नया साल मुबारक हो!!!! Happy New Year!!! كل عام وانتم بخير ١٤٣١ --सलीम ख़ान


सभी ब्लोगर्स को नया साल मुबारक हो!!!! Happy New Year!!! كل عام وانتم بخير ١٤٣١


सभी ब्लोगर बन्धुवों को नया साल मुबारक हो! इस नए साल पर सभी ब्लोगर्स को ढेरों शुभकामनायें और बधाइयां !!!
كل عام وانتم بخير ١٤٣١

इस नए हिजरी १४३१ में हम सभी ब्लोगर बन्धु यह अहद ले कि अपने इस देश में सद्भाव के साथ अमन चैन से सभी लोग अपनी ज़िन्दगी बिताएं और सत्य पथ के मार्गी बने.

आप सबका

सलीम ख़ान


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मेरा नया लेख साईंस ब्लोगर्स एसोसियेशन पर दिनांक 21/12/2009 Monday को ज़रूर पढ़ें.

Tuesday, December 15, 2009

दयानन्द जी ने क्या खोजा क्या पाया? Dr.-anwar-jamal-research

मानवता को महाविनाश से बचाने के उद्देश्य से ही यह पुस्तक लिखी गई है। जगह-जगह मिलने वाले दयानन्दी बंधुओं के बर्ताव ने भी इस पुस्तक की ज़रूरत का अहसास दिलाया और स्वयं स्वामी जी का आग्रह भी था-
``इस को देख दिखला के मेरे श्रम को सफल करें। और इसी प्रकार पक्षपात न करके सत्यार्थ का प्रकाश करके मुझे वा सब महाशयों का मुख्य कर्तव्य काम है।´´ (भूमिका, सत्यार्थ प्रकाश, पृष्‍ठ-5)
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मिल्लत उर्दू/हिन्दी एकेडमी
मौहल्ला सोत, रूड़की

भूमिका
इनसान का रास्ता नेकी और भलाई का रास्ता है। यह रास्ता सिर्फ़ उन्हीं को नसीब होता है जो धर्म और दर्शन (Philosophy) में अन्तर जानने की बुद्धि रखते हैं। धर्म ईश्वर द्वारा निर्धारित होता है जो मूलत: न कभी बदलता है और न ही कभी बदला जा सकता है, अलबत्ता उससे हटने वाला अपने विनाश को न्यौता दे बैठता है और जब यह हटना व्यक्तिगत न होकर सामूहिक हो तो फिर विनाश की व्यापकता भी बढ़ जाती है।
दर्शन इनसानी दिमाग़ की उपज होते हैं। समय के साथ ये बनते और बदलते रहते हैं। धर्म सत्य होता है जबकि दर्शन इनसान की कल्पना पर आधारित होते हैं। जैसे सत्य का विकल्प कल्पना नहीं होता है। ऐसे ही धर्म की जगह दर्शन कभी नहीं ले सकता। धर्म की जगह दर्शन को देना धर्म से सामूहिक रूप से हटना है जिसका परिणाम कभी शुभ नहीं हो सकता।
भारत एक धर्म प्रधान देश है। समय के साथ नये दर्शन पनपे और बहुत से विकार भी जन्मे। सुधारकों ने उन्हें सुधारने का प्रयास भी किया। लाखों गुरूओं के हज़ारों साल के प्रयास के बावज़ूद भारत की यह भूमि आज तक जुर्म, पाप और अन्याय से पवित्र न हो सकी। कारण, प्रत्येक सुधारक ने पिछले दर्शन की जगह अपने दर्शन को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया, धर्म को नहीं। स्वामी दयानन्द जी भी ऐसे ही एक सुधारक थे।
जिस भूमि के अन्न-जल से हमारी परवरिश हुई और जिस समाज ने हमपर उपकार किया उसका हित चाहना हमारा पहला कर्तव्य है। मानवता को महाविनाश से बचाने के उद्देश्य से ही यह पुस्तक लिखी गई है। जगह-जगह मिलने वाले दयानन्दी बंधुओं के बर्ताव ने भी इस पुस्तक की ज़रूरत का अहसास दिलाया और स्वयं स्वामी जी का आग्रह भी था-
``इस को देख दिखला के मेरे श्रम को सफल करें। और इसी प्रकार पक्षपात न करके सत्यार्थ का प्रकाश करके मुझे वा सब महाशयों का मुख्य कर्तव्य काम है।´´ (भूमिका, सत्यार्थ प्रकाश, पृष्‍ठ-5)
सो मैंने अपना कर्तव्य पूरा किया। अब ज़िम्मेदारी आप की है। आपका फै़सला बहुत अहम है। अपना शुभ-अशुभ अब स्वयं आपके हाथ है।
विनीत,
डॉ0 अनवर जमाल, बुलन्दशहर
ishvani@yahoo.in
मैं कौन हँ? और मुझे क्या करना चाहिये? 
एक इनसान जब होश संभालता है तो बहुत से प्रश्न उसके मन को बेचैन करते हैं। जब वह इस सृष्टि पर नज़र डालता है और पेड़-पौधों, जीव-जन्तुओं, फ़सलों और मौसमों को, धरती की सुंदरता और अंतरिक्ष की विशालता को, सूर्य से लेकर परमाणु तक को, उनकी संरचना, संतुलन और उपयोगिता को देखता है तो सहज ही कुछ प्रश्न पैदा होते हैं कि यह सब कुछ खुद से है या इसका कोई बनाने वाला और चलाने वाला है? अगर यह सब कुछ खुद से ही है तो इतना संतुलन और नियमबद्धता, इतनी व्यवस्था और उपयोगिता इन बुद्धि और चेतना से खाली निर्जीव पदार्थो में आई कैसे? और अगर कैसे भी इत्तेफ़ाक़ से आ गई तो फिर निरन्तर बनी हुई कैसे है? और अगर ऐसा नहीं है बल्कि किसी `ज्ञानवान हस्ती´ ने इस सृष्टि की रचना की है तो उसने ऐसा किस उद्देश्य से किया है? उसने मनुष्‍य को क्यों पैदा किया? और वह उससे क्या चाहता है? वह कौन सा मार्ग है जिसके द्वारा मनुष्‍य अपनी पैदाईश के उद्देश्य को पाने में सफल हो सकता है? आदि आदि।
इन सवालों का जवाब केवल ज्ञान द्वारा की संभव है। और ज्ञान के लिए ज्ञानी की, एक गुरू की ज़रूरत है। ज्ञान देने वाला एक गुरू वास्तव में ज़मीन और आसमान के सारे खज़ानों से भी बढ़कर है क्योंकि केवल उसी के द्वारा मुनश्य अपने जीवन का वास्तविक `लक्ष्य´ और उसे पाने का `मार्ग´ जान सकता है और अपने लक्ष्य को पाकर अपना जन्म सफल बना सकता है। इस तरह एक सच्चे और ज्ञानी गुरू की तलाश हरेक मनुश्य की बुनियादी और सबसे बड़ी ज़रूरत है। लेकिन जैसा कि इस दुनिया का क़ायदा है कि हर असली चीज़ की नक़ल भी यहाँ मौजूद है इसलिए जब कोई मनुश्य गुरू की खोज में निकलता है तो उसे ऐसे बहुत से नक़ली गुरु मिलते हैं जिन्हें खुली आँखों से नज़र आने वाली चीज़ों की भी सही जानकारी नहीं होती लेकिन ईश्वर और आत्मा जैसी हक़ीक़तों के बारे में अपने अनुमान को ज्ञान बताकर लोगों को भटका देते हैं।
ऐसे ही प्रश्नों के जवाब पाने के लिए बालक मूलशंकर ने अपना घर छोड़ा और एक ऐसे सच्चे योगी गुरू की खोज शुरू की जो उसे `सच्चे शिव´ के दर्शन करा सके। इसी खोज में वह `शुद्धचैतन्य´ और फिर `दयानन्द´ बन गये लेकिन उन्हें ऐसा कोई योगी गुरू नहीं मिल पाया जो उन्हें `सच्चे शिव´ के दर्शन करा देता। तब उन्होंने स्वामी बिरजानन्द जी से थोड़े समय वेदों को जानने-समझने का प्रयास किया। इस दौरान उन्होंने हिन्दू समाज में प्रत्येक स्तर पर व्याप्त पाखण्ड, भ्रष्‍टचार और अनाचार को खुद अपनी आंखों से देखा । तब उन्होंने अपनी सामर्थय भर इसके सुधार का बीड़ा उठाने का निश्चय किया। दयानन्द जी वास्तव में अपने निश्चय के पक्के और बड़े जीवट के स्वामी थे। उन्होंने अपने अध्ययन के मुताबिक अपना एक दृष्टिकोण बनाया और फिर उसी दृष्टिकोण के मुताबिक लोगों को उपदेश दिया और बहुत सा साहित्य रचा। यह साहित्य आज भी हमारे लिए उपलब्ध है ।

क्या दयानन्द जी का आचरण उनके दर्शन के अनुकूल था?
स्वामी जी की मान्यताएं सही हैं या गलत? और वह `संसार को मुक्ति´ दिलाने के अपने उद्देश्य में सफल रहे या असफल? और यह कि क्या वास्तव में उन्हें सत्य का बोध प्राप्त था? आदि बातें जानने के लिए स्वयं उनके आहवान पर उनके साहित्य का अध्ययन करना ज़रूरी है । सच्चाई जानने के लिए उनके जीवन को स्वयं उनकी ही मान्यताओं की कसौटी पर परख लेना काफ़ी है क्योंकि सच्चा ज्ञानी वही होता है जो न केवल दूसरों को उपदेश दे बल्कि स्वयं भी उस पर अमल करे ।
दयानन्द जी मानते थे कि अपराधी को क्षमा करना अपराध को बढ़ावा देना है -`क्या ईश्वर अपने भक्तों के पाप क्षमा करता है? इसके उत्तर में वे कहते हैं -
`नहीं। क्योंकि जो पाप क्षमा करे तो उसका न्याय नष्‍ट हो जाये और सब मनुश्य महापापी हो जायें। क्योंकि क्षमा की बात सुन ही के उनको पाप करने में निर्भयता और उत्साह हो जाये। जैसे राजा अपराधियों के अपराध क्षमा कर दे तो वे उत्साहपूर्वक अधिक-अधिक बड़े-बड़े पाप करें। क्योंकि राजा अपना अपराध क्षमा कर देगा और उनको भी भरोसा हो जाए कि राजा से हम हाथ जोड़ने आदि चेश्टा कर अपने अपराध छुड़ा लेंगे और जो अपराध नहीं करते वे भी अपराध करने से न डर कर पाप करने में प्रवृत्त हो जायेंगे। इसलिए सब कर्मों का फल यथावत देना ही ईश्वर का काम है क्षमा करना नहीं। (सत्यार्थप्रकाश, सप्तम., पृष्‍ठ 127)
`न्याय और दया का नाम मात्र ही भेद है क्योंकि जो न्याय से प्रयोजन सिद्ध होता है वही दया से...... क्योंकि जिसने जैसा जितना बुरा कर्म किया हो उसको उतना वैसा ही दण्ड देना चाहिये, उसी का नाम न्याय है। और जो अपराधी को दण्ड न दिया जाए तो दया का नाश हो जाए क्योंकि एक अपराधी डाकू को छोड़ देने से सहस्त्रों धर्मात्मा पुरूषों को दुख देना है। जब एक के छोड़ने में सहस्त्रों मुनश्यों को दुख प्राप्त होता है, वह दया किस प्रकार को सकती है? (सत्यार्थ प्रकाश, सप्तम0, पृष्‍ठ 118)
अब दयानन्दजी के उपरोक्त दर्शन के आधार पर स्वयं उनके आचरण को परख कर देखिये कि दया और न्याय का जो सिद्धान्त उन्होंने ईश्वर, राजा और धार्मिक जनों के लिए प्रस्तुत किया है स्वयं उस पर कितना चलते थे?
स्वामी जी को पता लग गया कि जगन्नाथ ने यह कार्य किया है। उन्होंने उससे कहा ---- ''जगन्नाथ, तुमने मुझे विष देकर अच्छा नहीं किया। मेरा वेदभाष्‍य कार्य अधूरा रह गया। संसार के हित को तुमने भारी हानि पहुँचाई है। हो सकता है, विधाता के विधान में यही हो । ये रूपए रख लो। तुम्हारे काम आएंगे। यहाँ से नेपाल चले जाओ क्योंकि यहाँ तुम पकड़े जाओगे। मेरे भक्त तुम्हें छोड़ेंगे नहीं''। (युगप्रवर्तक0, पृष्‍ठ 151)
दयानन्द जी द्वारा अपने अपराधी को क्षमा कर देने की यह पहली घटना नहीं है बल्कि अनगिनत मौकों पर उन्होंने अपने सताने वालों और हत्या का प्रयास करने वालों को क्षमा किया है।
`फरूखाबाद में आर्यसमाज के एक सभासद की कुछ दुष्‍टों ने पिटाई कर दी। लोगों ने स्कॉट महोदय से उसे दण्ड दिलाया । पर स्वामीजी को रूचिकर न लगा। उन्होंने स्कॉट महोदय तथा सभासदों से कहा - ''चोट पहुंचाने वाले को इस तरह दण्डित करना आपकी मर्यादा के खिलाफ है। महात्मा किसी को पीड़ा नहीं देते, अपितु दूसरों की पीड़ा हरते हैं।'' (युगप्रवर्तक0, पृष्‍ठ 130)
सम्वत् 1924 में भी स्वामीजी को एक ब्राह्मण ने पान में जहर खिला दिया था। कर्तव्यनिशष्‍ठ तहसीलदार सय्यद मुहम्मद ने अपराधी को गिरफ्तार करके स्वामी जी के आगे ला खड़ा किया तो वे बोले -
''तहसीलदार साहब, मैं आपके कर्तव्यनिश्ठा से अत्यन्त प्रभावित हूँ। लेकिन आप इसे छोड़ दें। कारण, मैं संसार को कैद कराने नहीं, अपितु मुक्त कराने आया हूँ। यदि दुष्‍ट अपनी दुष्‍टता नहीं छोड़ता, तो हम सन्यासी अपनी उदारता कैसे छोड़ सकते हैं।'' (युगप्रवर्तक महर्षि दयानन्द, पृष्‍ठ 49)
(1) इस प्रकार अपराधियों को क्षमा करना और दण्ड से छुड़वाना क्या स्वयं अपनी दार्शनिक मान्यता का खण्डन करना नहीं है?
(2) क्या स्कॉट महोदय व तहसीलदार आदि दुष्‍टों को दण्ड देने वालों से दुष्‍टों को छोड़ने की सिफारिश करना उनको राजधर्म के पालन करने से रोकना नहीं है। जिसकी वजह से दुष्‍टों का उत्साह बढ़ा होगा और वे अधिक पाप करने में प्रवृत्त हुए होंगे?
(3) क्या दयानन्द जी ने न्याय और दया को नष्‍ट नहीं कर दिया?
(4) क्या इस पाप कर्म की वृद्धि का बोझ दयानन्द जी पर नहीं जाएगा?
(5) क्या इस बात की संभावना नहीं है कि इसी प्रकार के आचरण को देखकर जगन्नाथ पाचक ने सोचा होगा कि अव्वल तो मैं पकड़ा नहीं जाऊंगा और यदि पकड़ा भी गया तो कौन सा स्वामी जी दण्ड दिलाते हैं, ''हाथ जोड़ने आदि चेष्‍टा'' करके बच जाऊंगा और स्वामी जी की क्षमा करने की इसी आदत ने उस हत्यारे का उत्साह बढ़ाया हो?
(6) दयानन्द जी ने अपनी दार्शनिक मान्यता के विपरीत जाकर अपने हत्यारे को क्यों क्षमा कर दिया?
(7) क्या अपने आचरण से उन्होंने अपने विचारों को निरर्थक और महत्वहीन सिद्ध नहीं कर दिया?
(8) `संसार के हित को भारी हानि पहुंचाने वाले´ दुष्‍ट हत्यारे को क्षमा करने का अधिकार तो स्वयं संसार को भी नहीं है बल्कि यह अधिकार तो दयानन्द जी ईश्वर के लिए भी स्वीकार नहीं करते। फिर स्वयं किस अधिकार से एक दुष्‍ट हत्यारे को क्षमा करके रूपये देकर उसे भाग जाने का मशविरा दिया?
(9) क्या एक दुष्‍ट हत्यारे को समाज में खुला छोड़कर उन्होंने एक अपराधी के उत्साह को नहीं बढ़ाया और पूरे समाज को खतरे में नहीं डाला?
उनके इस प्रकार के स्वकथन विरूद्ध आचरण से उनकी अन्य दार्शनिक मान्यताएं भी संदिग्‍ध हो जाती हैं। more 

Friday, December 4, 2009

क्रिकेटर ब्रायन लारा मुसलमान हो गए


पिछले कुछ माह से इंटरनेट पर यह मुद्दा जोर पकड़े हुए है। सवालों पर सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या वास्तव में वेस्टइंडीज के महान क्रिकेटर ब्रायन लारा मुसलमान हो गए हैं




खबर यह है कि पाकिस्तानी क्रिकेटर सईद अनवर और पाकिस्तान के पूर्व पॉप स्टार जूनेद जमशेद के हाथों ब्रायन लारा ने इस्लाम कबूल कर लिया है।



और जानने के लिए यहां क्लिक करें

Tuesday, December 1, 2009

काबा के मुताबिक चले दुनिया भर की घडियां


हैरत मत कीजिए,सच्चाई यही है कि दुनिया में वक्त का निर्धारण काबा को केन्द्रित करके किया जाना चाहिए क्योंकि काबा दुनिया के बीचों बीच है। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर यह साबित कर चुका है। सेन्टर का दावा है कि ग्रीनविचमीन टाइम में खामियां हैं।
दुनिया में वक्त का निर्धारण ग्रीनविच रेखा के बजाय काबा को केन्दित रखकर किया जाना चाहिए क्योंकि काबा शरीफ दुनिया के एकदम बीच में है। विभिन्न शोध इस बात को साबित कर चुके हैं। वैज्ञानिक रूप से यह साबित हो चुका है कि ग्रीनविच मीन टाइम में खामी है जबकि काबा के मुताबिक वक्त का निर्धारण एकदम सटीक बैठता है। ग्रीनवीच मानक समय को लेकर दुनिया में एक नई बहस शुरू हो गई है और और कोशिश की जा रही है कि ग्रीनविचमीन टाइम पर फिर से विचार किया जाए।ग्रीनविचमीन टाइम को चुनौति देकर काबा समय-निर्धारण का सही केन्द्र होने का दावा किया है इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर ने। रिसर्च सेन्टर ने वैज्ञानिक तरीके से इसे सिध्द कर दिया है और यह सच्चाई दुनिया के सामने लाने की मुहिम में जुटा है। वे कॉन्फे्रस के जरिए दुनिया को यह हकीकत बताने जा रहे हैं। इजिप्टियन रिसर्च सेन्टर के डॉ। अब्द अल बासेत सैयद इस संबंध में कहते हैं कि जब अंग्रेजों के शासन में सूर्यास्त नहीं हुआ करता था, तब ग्रीनविच टाइम को मानक समय बनाकर पूरी दुनिया पर थोप दिया गया। डॉ। अब्द अल बासेत सैयद के मुताबिक ग्रीनविच टाइम में समस्या यह है कि ग्रीनविच रेखा पर धरती की चुम्बकीय क्षमता ८.५डिग्री है जबकि मक्का में चुम्बकीय क्षमता शून्य है। डॉ.सैयद के अनुसार जीरो डिग्री चुम्बकीय क्षमता वाले स्थान को आधार मानकर टाइम का निर्धारण ही वैज्ञानिक रूप से सही है। जीरो डिग्री चुम्बकीय क्षमता दोनों ध्रुवों के बीच में यानी दुनिया के केन्द्र में होगी।

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दोस्‍तों इस चर्चा को हिन्‍दी में सफलता के साथ करने के बाद यह चर्चा अब उर्दू में दो बडें अखबारों से शुरू करादी है, अल्‍लाह करे हम इधर भी कामयाब रहें