Saturday, October 31, 2009

इस्लाम से निष्कासित ‹खारिज› करने वाली बातें by ISLAMHOUSE.com


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इस्लाम से निष्कासित ‹खारिज› करने वाली बातें

(प्रस्तुति- स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़)


पुस्तकें सामान्य कार्ड

    शीर्षक: इस्लाम से निष्कासित ‹खारिज› करने वाली बातें

    भाषा: हिन्दी

    वृद्धि की तिथि: Aug 22,2007
    सामग्री के संलग्न : 1
    संछिप्त विवरण: दस ऐसी बातें हैं जिन में से प्रत्येक मनुष्य को इस्लाम से निष्कासित ‹खारिज› कर देती हैं, जिन्हें इस्लाम के नवाक़िज़ कहते हैं, इस पुस्तिका में उन्हीं नवाक़िज़ का उल्लेख किया गया है।



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by islamhouse.com

Monday, October 26, 2009

महाराष्ट्र में खून-खराबे की आहट

सलीम अख्तर सिद्दीक़ी
महाराष्ट्र में भले ही कांग्रेस जीत गयी हो, लेकिन कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र चुनौती बनने जा रहा है। यह सच है कि कांगेस को तीसरी बार सत्ता में लाने का श्रेय राजठाकरे को भी है। 13 सीट जीतकर राजठाकरे की महत्वाकांक्षा को पंख लग जाएंगे। अपने चाचा बाल ठाकरे से मराठा मानुष की अस्मिता का मुद्दा छीनकर राजठाकरे ने जो 13 सीटें हथियाई हैं, उन्हें वे 130 करने में वही हथकंडा अपनाएंगे, जिस हथकंडे से 13 सीटें हासिल की हैं। आज राज ठाकरे शिवसेना को सत्ता से दूर रखने में कामयाब हुए हैं, कल वह हर हाल में सत्ता का स्वाद चखना जरुर चाहेंगे। राजठाकरे जैसे लोगों के पास जनता में अपनी पैंठ बढ़ाने के लिए कोई आर्थिक या सामाजिक एजेंडा तो है नहीं, जिसे आगे बढ़ाकर वे जनता में अपनी स्वीकार्यता बढ़ा सकें। मंहगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे उनकी प्राथमिकता नहीं है। कभी याद नहीं पड़ता कि शिवसेना ने इन मुद्दों पर कोई आन्दोलन किया हो। अब इन मुद्दों से वोट भी कहां मिलते हैं। वोट तो क्षेत्रीयता और धर्मिक भावनाओं को भुनाकर मिलते हैं। मराठी अस्मिता ही इनके लिए सब कुछ है। जैस नरेन्द्र मोदी के लिए गुजरात की अस्मिता ही सब कुछ हो गयी है। भले ही देश की अस्मिता दांव पर लग जाए लेकिन मराठी और गुजराती अस्मिता को आंच नहीं आनी चाहिए। नफरत और खून-खराबा ही राजठाकरों और नरेन्द्र मोदियों का एकमात्र एजेंडा है। बाल ठाकरे ने भी यही किया था। राजठाकरे ने भी यही किया, कर रहे हैं और आगे भी करेंगे।
शिवसेना बाल ठाकरे उस घायल बूढ़े शेर की तरह हो गए हैं, जो कमजोर हो गया है, जिसके दांत भी नहीं है। लेकिन वह दहाड़ रहा है। जंगल में आग लगाने की बात तो करता है, लेकिन कर कुछ नहीं सकता। ऐसा लगता है घायल होने के साथ ही उनका दिमागी संतुलन भी बिगड़ गया है। तभी तो वे 'सामना' में घृणास्पद और छिछोरी और उल-जलूल भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं। जैसी भाषा बालठाकरे इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे देखते हुए तो उन्हें जेल की सलाखों के पीछे होना चाहिए था, लेकिन वे बालठाकरे हैं। उनका कोई कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इस देश में कानून तो आम आदमी रुपी मेमने के लिए है, जिसकी जब चाहे गर्दन मरोड़ दी जाए। बालठाकरे ने हमेशा ही एक निर्मम तानाशाह जैसा बर्ताव किया है। बालठाकरे वैसे भी हिटलर जैसे तानाशाह को अपना रोल मॉडल मानते रहे हैं। लेकिन क्या उन्हें यह नहीं पता कि हिटलर ने भी खुदकशी करके कायरता का परिचय दिया था ? क्या वे सद्दाम हुसैन का हश्र भी भूल गए हैं ? सच यह है कि एक तानाशाह के डर की वजह से सब हां में हां मिलाते हैं, तो वह यह समझता है कि उसकी प्रजा उसकी बहुत इज्जत करती है। जबकि सच्चाई यह होती है कि बेबस जनता तानाशाह के कमजोर होने का इंतजार करती है। बालठाकरे के साथ भ्ी ऐसा ही हुआ। जनता ने दिखा दिया कि वही सबसे बड़ी ताकत है। सभी तानाशाह अन्दर से कमजोर और डरपोक हुआ करते हैं। बालठाकरे मराठियों के बारे में कह रहे हैं कि मराठियों ने उन्हें धोखा दिया है। पीठ में खंजर घोंपा है। बाल ठाकरे से सवाल किया जाना चाहिए कि क्या एक लोकान्त्रिक देश की जनता को एक ही परिवार को शासन करने के लिए वोट देते रहना चाहिए ? यदि वे वोट नहीं दें तो गद्दार कहलाएं। क्या महाराष्ट्र या मुंबई ठाकरे परिवार की बपौती है ?
कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं। मराठी वोटों के वर्चस्व के लिए चाचा-भतीजा में तलवारें खिंच गयी है। दोनों अपनी-फौजों को तैयार कर रहे हैं। बकौल चाचा बालठाकरे, 'उन्होंने हार के फूलों को संजो कर रखा है। यही फूल अंगोर बनेंगे।' चाचा के इन शब्दों का मतलब कोई अक्ल का अंधा भी निकाल सकता है। इधर, भतीजा राजठाकरे उत्साहित है। इस उत्साह में उनकी ब्रिगेड कब उत्तर भारतीयों को निशाना बनायी, यह देखना दिलचस्प होगा। इतना तय है कि मुंबई की सड़कों पर उत्तर भारतीयों पर एक बार फिर कहर टूटने वाला है। अमिताभ बच्चन जैसे बड़े लोग तो राजठाकरे या बालठाकरे की डयोढी पर जाकर सिर नवा आएंगे और बचे रहेंगे्र। लेकिन उन इलाहबादियों और बिहारियों का क्या होगा, जो दो जून की रोटी का जुगाड़ करने मुंबई जाते हैं। उन्हें चाचा-भतीजे के ताप से कौन बचाएगा ? महाराष्ट्र सरकार ने अतीत में ही राजठाकरे का क्या बिगाड़ लिया था, जो अब बिगाड़ेगी। तो क्या महाराष्ट्र का 'भिंडरावाला' ऐसे ही उत्पात मचाता रहेगा ? क्या आपको महाराष्ट्र में खून-खराबे की आहट सुनाई नहीं दे रही ? मुझे तो दे रही है।

कश्‍ती-ए-नूह(मनु) को पुरातत्ववेत्ताओं ने आखिर ख़ोज ही निकाला

लगभग 2300 ईसा पूर्व अल्लाह ने इन्सानों को गुमराह होने से बचाने के लिए अपने
पैगम्बरों (खुदा का पैग़ाम इन्सानों तक पहूंचाने वाले) को दुनिया के हर हिस्से में भेजा, जिनका ज़िक्र आज भी उस इलाके के लोग करते आ रहे हैं, इसी कडी में अल्लाह ने पैग़म्बर नूह(मनु) को लोगों को समझाने ओर सही राह दिखाने के लिए भेजा था,पैग़म्बर नूह अ. ने जिस कौम को समझाया वो शैतान के बहकावे या अपने लालच के कारण बहुत सारे बुतों की इबादत किया करते थे, और एक खुदा के मानने वालों को तरह तरह से परेशान करते थे, इस कौम के मुख्य देवता वद्द, सुआ, यगूत, ययूगा और नस्र थे। इन देवताओं के लिए ये लोग कुछ भी कर गुजरते थे, और इनकी इबादत करना ही अपने निजात का साधन मानते थे। इन देवताओं का ज़िक्र कुरआन में आया है।
आदिवासी,
हिन्दु, यहूदी ,ईसाई और मुसलमान ये सभी नूह की समान रूप से इज़्ज़त करते हैं । और इन सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकों में इस महान पैग़म्बर का जिक्र है।
नूह की कश्‍ती (नौका) को खोजने और उसे देखने के लिए सदियों से लोग बैचेन रहे हैं। मगर इस किस्से के बारे में 1950 से पहले कोई सबूत ऐसा नही था जो ये तय कर सके कि वाकई नूह की जलप्रलय जैसी घटना पुथ्वी पर हुयी थी ।

सन 1950 ईसवी
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सन 1950 के आसपास एक अमेरिकी खोजी विमान जब तुर्की के आरारात पहाड के उपर से जासूसी के लिए फोटो लेते हुए गुजरा तो उसके कैमरे में इस सदी का एक बेहद महत्वपूर्ण चित्र कैद हो गया ।
सेना के वैज्ञानिकों ने जब आरारात पहाड पर एक बडी नाव जैसी संरचना देखी तो उस फोटो के अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक का कहना था कि ये सौ फीसदी नाव है। जो 300 क्यूबिट लम्बी थी । इस कस्ती के बारे में पता लगते ही वैज्ञानिकों में उत्साह दौड गया जो पुरातत्व की खोजों में लगे रहते हैं। और उन्हे लगा कि हो ना हो ये नूह की कस्ती के ही अवशेष हैं।

सन 1960 ईसवी
पूरी दुनिया में मशहूर और मोतबर मानी जानी वाली ‘लाईफ’ पत्रिका ने इस फोटो को सार्वजनिक रूप से अपने मुखपृष्ट पर छापा, और दावा किया कि ये आरारात पहाड पर नूह की कस्ती ही है। इसी साल अमेरिकी सेना के एक कैप्टन दुरूपिनार ने अरारात के उपर से लिए गए इस चित्र की सच्चाई जानने के लिए इस जगह का निरिक्षण करने का फैसला किया और उन्होने अपने दल के साथ इसे ढुंढ निकाला, मगर कैप्टन के दल ने यहां पर लगभग 36 घंटे बिताए और हल्की फुल्की सी खुदाई भी की,मगर इन्हे इस जगह पर चटटानों के अलावा कुछ ना मिला । निराश होकर कैप्टन वापस लौट आए और अपनी रिर्पोट पेश की । जिसके चलते एकबार फिर नूह की कश्‍ती को देखने की चाह रखने वाले लोगों में काफी निराशा हुयी ।

सन 1977 ईसवी
कैप्टन की रिपोर्ट में बहुत सारी खामियां थी, इस वजह से कई वैज्ञानिकों ने इसे नही माना और इस घटना के 13 साल बाद एक अमेरिकी वैज्ञानिक रोन वाट ने नूह की कस्ती को खोजने के लिए एकबार फिर प्रयास करने की ठानी । रोन वाट ने पूर्वी तुर्की के इस इलाके में गहन शोध के लिए तुर्की सरकार से अनुमति मांगी, तुर्की सरकार ने उसे शोध करने की इजाजत दे दी ।
पहली यात्रा में ही वाट को अपना दावा सिद्ध करने के काफी सबूत मिले, इसके बाद तो वाट ने इस जगह की अहमियत को समझते हुए अत्याधुनिक वैज्ञानिक साजो सामान को इस्तेमाल करके अकाट्य सबूत जुटाने में कामयाबी हासिल की। इन्होनें जमीन के उपर रखकर जमीन के अन्दर के चित्र उतारने वाले रडारों और मेटल डिटैकटरों का इस्तेमाल किया और नूह की कस्ती के अन्दर की जानकारी के सबूत जुटाए।
इस परीक्षण के चैकानें वाले नतीजे निकले राडार और मेटल डिटेक्शन सर्वे में धातु और लकडी की बनी चीजों का एक खुबसूरत नक्शा सामने आया । और जमीन के उपर से बिना इस जगह को नुकसान पहूंचाए नाव होने के सबूत मिल गए।
और फिर रोन ने नक्शे को प्रमाणित करने के लिए ड्रिल तकनीक से नाव के अन्दर मौजूद धातु व लकडी के नमूनें प्राप्त करने में कामयाबी हासिल की ।इन नमूनों को रोन वाट ने अमेरिका की प्रयोगशालाओं को भेजा जिनकी रिपोर्ट में ये बात सच पायी गयी कि वाकई तुर्की के इस अरारात नामक पहाड पर एक प्राचीन नाव दफन थी।
रोन वाट के लगभग 10 साल के सघन शोध के बाद दुनिया भर में इस पर चर्चा हुई और अन्ततः नूह की कस्ती की खोज को मान लिया गया।

दिसम्बर, सन 1986 ईसवी
तुर्की सरकार ने इस खोज के जांच के लिए एक आयोग का गठन किया जिसमें अतातुर्क विश्वविद्यालय के भू वैज्ञानिक व पुरातत्व वैत्ता और तुर्की रक्षा विभाग के वैज्ञानिक व सरकार के कुछ उच्चाधिकारी शामिल थे ।
इस आयोग ने दिसम्बर 1986 ईसवी को रोन वाट की खोज की जांच की और अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश की, जिसमें इन्होनें इस खोज को सही माना, और अपनी सिफारिशें दी जिसमें इसके संरक्षण के लिए उचित कदम उठाने की सलाह सरकार को दी गयी थी
तुर्की सरकार ने इस इलाके को संरक्षित करने के लिए कदम उठाए और इस इलाके को कस्ती-ए-नूह राष्ट्रीय पार्क बना दिया गया। और इस जगह को आम दर्शकों के लिए खोल दिया गया ।

नाव में धातु की रिबेट लगी हैं
रोन वाट ने जब मेटल डिटैक्शन तकनीक से परीक्षण किया तो उसे पता चला कि नाव को मजबूत बनाने के लिए इसके निर्माता ने मिस्रित धातुओं से बनी चीजों का बडे पैमाने पर इस्तेमाल किया था। ताकि नाव मजबूत बन सके और तूफान के थपेडों को झेल सकने में सक्षम हो जाए।
भूमि के उपर से लिए गए चित्रों की प्रमाणिकता के लिए वाट ने जमीन से ड्रिल तकनीक का इस्तेमाल करके धातु की रिबटों को निकाला , जो लकडी के पटटों में लगी थी ।
प्रयोगशाला में जब इनका परीक्षण किया गया तो पता चला कि इस धातु को बनाने व इससे नाव के बनाने में इस्तेमाल होने वाली चीजें बनाने के लिए उच्च धातुकर्म तकनीकों का इस्तेमाल किया गया होगा ये नमूने अभी सुरक्षित हैं और पर्यटकों को इन्हे देखने की इजाज़त है

कश्ती की लकडी दुनिया में अनूठी
इस जगह की खुदाई के पश्चात रोन वाट ने नाव की डेक से कुछ लकडी के नमूनें लिए, जिन्हे प्रयोगशाला में जब परीक्षण के लिए भेजा गया तो चैंकाने वाले नतीजे निकले, इस नाव को बनाने में गोफर लकडी का इस्तेमाल किया गया है । और इसे दोनो और से लेमिनेटिड किया गया है ताकि ये नाव पानी के प्रभाव से मुक्त रह सके।

कमाल की बात ये है कि मूसा अ. पर उतरी अल्लाह की किताब तौरात के उत्पत्ति नामक पाठ में नूह की कश्ती बनाने के तरीके में ये ही लिखा है। जो वैज्ञानिकों ने पाया है । ये लकडी का नमूना अपने आप में पूरी दुनिया में अनूठे हैं क्योंकि इस तकनीक का इस्तेमाल पूरी दुनिया मंे कभी नही किया गया। और आज तक कोई दूसरा इस तरह का नमूना प्राप्त नही हुआ है। जो अपने आप में इस बात को साबित करता है कि नूह अ. को नाव बनाने की तकनीक सीधे अल्लाह से मिली जिसका जिक्र बाईबल और कुरआन दोनों में है।

कश्ती-ए-नूह के लंगर (एंकर स्टोन)
नूह की कश्ती मिल जाने के बाद वैज्ञानिकों ने इस इलाके के आसपास की जगहों की खोजबीन की और उस गांव को खोज निकाला जिस गांव में नूह और उनके साथी इस कहर के बाद बसे थे यह गांव आज भी ‘आठ लोगों का गांव’ के नाम से मशहूर है। वैज्ञानिकों को इस गांव में जगह जगह पर काफी बडे-बडे विशेष आकार में तराशे गए कुछ पत्थर मिले जिनके उपर एक सूराख किया गया था और उनके उपर एक खास तरह का क्रोस का निशान बना था। वैज्ञानिकों की पहले तो कुछ समझ में नही आया मगर जब उन्होनें माथापच्ची की तो पता चला कि इन पत्थरों का इस्तेमाल तूफान के वक्त नाव को स्थिर रखने के लिए लंगर (एंकर) के रूप में इस्तेमाल किया गया था। इन पत्थरों को लंगर (एंकर) की तरह इस्तेमाल करने के लिए ही इनके उपर बडी सफाई से सूराख बनाए गए है। जो धातु के औजारों का इस्तेमाल किए बगैर नही बन सकते थे।
वैज्ञानिकों ने कम्पयूटर पर एक नाव का एक माडल बनाया जिसके नीचे इन्होनें इन पत्थरों को जिन्हें आजकल ‘एंकर स्टोन’ यानि लंगर पत्थर के नाम से पुकारा जाता है, को लगाया और ये पाया कि वाकई ये पत्थर कश्ती-ए-नूह को स्थिर रखने के लिए लंगर के रूप में इस्तेमाल किये गये थे।
कश्ती-ए-नूह की खोज ने अब दुनिया के सामने ये सबूत पेश कर दिए हैं कि वाकई नूह की कौम पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल हुआ था। और इस कौम के बस कुछ ही लोग जिन्दा बचे थे ।
इस खोज के बाद अब उन बे सिर पैर की बातों का भी अन्त होना निश्चित है जो नूह अ. के बारे में लोगों ने अपने आप घड रखी हैं जिनका कोई ताल्लुक सच्चाई से नही है। और जो पूरी तरह विज्ञान और तर्क के विरूद्ध हैं ।
इस खोज से ये ही साबित होता है कि अल्लाह ने अपने बन्दे नूह अ. को गुमराह लोगों को समझाने के लिए भेजा था, और जब उन्होने दीन को नही अपनाया और ज़ुल्म करते रहे तो खुदा ने उन्हे बाढ के अज़ाब से हलाक कर दिया और इस किस्से से आने वाली नस्लें सबक लें, इसलिए इसके निशान बाकि रखे ।
अल्लाह कुरआन में फरमाता है ।
तो कितनी ही बस्तियां हैं जिन्हे हमने विनष्ट कर दिया, इस हाल में कि वो ज़ालिम थी ।

तुफान-ए-नूह(मनु) के बारे में कुरआन क्या कहती है....
सूरः हूद ह्11» आयत 25 से 49
और हमने नूह को उसकी जाति वालों की ओर भेजा था, उसने अपनी जाति के लोगों से कहा '' मैं तुम्हें साफ सचेत करने वाला हूं।
यह कि तुम अल्लाह के सिवा किसी और की ‘इबादत’ न करो। मैं तुम्हारे बारे में एक दुखमय दिन की यातना से डरता हूं।
इस पर उसकी जाति के सरदार जिन्हों ने ‘कुफ्र’ किया था, कहने लगे, हमारी नज़र में तो तुम केवल हम जैसे इन्सान हो, और हम देखते हैं कि बस हमारे यहां के कुछ कमीने लोग सतही राय से तुम्हारे अनुयायी हुये हैं और हम तो अपने मुकाबले में तुम में कोई बडाई नही देखते ,बल्कि हम तो तुम्हें झूठा समझते हैं ।
उसने कहाः हे मेरी जाति वालों ! सोचो तो सही, यदि मैं अपने रब के स्पष्ट प्रमाण पर हूं , और उसने मुझे अपने पास से दयालुता प्रदान की है, फिर उसे तुम्हारी आंखों से छिपा रखा, तो तुम न मानना चाहो जब भी क्या हम ज़बरदस्ती तुम्हारे सिर उसे चिपका दें ।
और हे मेरी जाति वालों ! मैं इस काम पर तुमसे कोई बदला नही मांगता । मेरा बदला तो बस अल्लाह के जिम्मे है, और मैं। उन लोगों को जो ‘ईमान’ ला चुके हैं, धुतकारने वाला भी नहीं हूं, वे तो अपने मालिक से मिलने वाले हैं , परन्तु मैं देखता हूं कि तुम लोग जिहालत कर रहे हो। और हे मेरी जाति वालों! यदि मैं उन्हे दुत्कार दूं तो अल्लाह के मुकाबले में कौन मेरी मदद करेगा ? तो क्या तुम सोचते नही ?
और मैं तुमसे ये नही कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़जाने हैं और न मैं। गैब की ख़बर रखता हूं, और न मैं ये कहता हूं कि मैं तो फरिश्ता हूं! और न उन लोगों के प्रति ये कह सकता हूं जो तुम्हारी नज़र में तुच्छ हैं कि अल्लाह उन्हे कोई भलाई नही देगा। जो कुछ उनके मन में है, उसे अल्लाह अच्छी तरह जानता है यदि मैं ऐसा कहूं तब तो मैं ज़ालिमों में हूंगा।
उन्हों ने कहा-हे नूह ! तुम हम से झगड चुके और बहुत झगड चुके, अब तो जिस चीज की तुम हमें धमकी देते हो वही हम पर ले आओ, यदि तुम सच्चे हो।
उस ने कहा- वह तो अल्लाह ही तुम पर लायेगा यदि चाहेगा, और तुम बच निकलने वाले नही हो ।
और यदि मैं तुम्हारा हित भी चाहूं तो मेरा हित चाहना तुम्हें कुछ भी फायदा नही पहूंचा सकता, यदि अल्लाह ही तुम्हें भटका देना चाहता हो । वही तुम्हारा रब है और उसी की ओर तुम्हे पलट कर जाना है। क्या ये लोग कहते हैं -इसने स्वयं इस कुरआन को गढ़ा है, तो मेरे अपराध की जिम्मेदारी मुझ पर है, और जो अपराध तुम कर रहे हो उसकी जिम्मेदारी से मैं बरी हूं। और नूह की ओर ‘वहय्’ भेजी गई कि जो लोग ईमान ला चुके उन के सिवा तुम्हारी जाति में अब कोई ईमान नही लायेगा, तो जो कुछ ये कर रहे हैं उस के लिए तुम दुखी न हो। और हमारी निगाहों के सामने और हमारी ‘वहय्’ के अनुसार एक नाव बनाओ, और उन लोगों के बारे में जिन्हों ने ज़ुल्म किया मुझ से कुछ न कहना। निश्चह ही वे डूबने वाले है। और वह नाव बनाने लगा, और जब कभी उस की जाति के सरदार उस के पास से गुजरते, वे उस की हंसी उड़ाते। उस ने कहा-यदि तुम मुझ पर हंसते हो, तो हम भी तुम पर हंस रहे है, जिस तरह तुम हंस रहे हो। जल्द ही तुम जान लोगे कि कौन है जिस पर वह यातना आती है जो उसे रूसवा कर देगी, और उस पर स्थायी यातना टूट पडती है। यहां तक कि जब हमारा आदेश आ गया और वह तनूर उबल पडा, तो हमने कहा-हर प्रकार के एक एक जोडा उस में चढा लो,(इसका मतलब ये है कि अपने पालतू पशुओं में से हर एक का एक एक जोडा ले लो ताकि दुबारा जिन्दगी की शुरूआत करने में आसानी हो) और अपने घर वालों को भी, सिवाय उसके जिस के बारे में बात तय हो चुकी थी ,और जो कोई ईमान लाया हो उसे भी ले लो। और बस थोडे ही लोग थे जो उसके साथ ईमान लाए थे। और नूह ने कहा ''सवार हो जाओ इस में ! अल्लाह के नाम से इसका चलना भी है और इस का ठहरना भी । निस्सन्देह मेरा रब बडा क्षमाशील और दया करने वाला है।''
और वह नाव उन्हे लिए पहाड़ जैसी ईंचीं लहरों के बीच चलने लगी, और नूह ने अपने बेटे को पुकारा-वह अलग था- हे मेरे बेटे ! हमारे साथ सवार हो जा, और ‘काफिरों’ के साथ न रह। उस ने कहा-मैं किसी पहाड़ की शरण ले लेता हूं, वह मुझे पानी से बचा लेगा। कहा -आज अल्लाह के आदेश से कोई बचाने वाला नही परन्तु उस को जिस पर वह दया करे। इतने में लहर दोनों के बीच आ गई, और वह भी डूबने वालों में हो गया। और कहा गया- ऐ ज़मीन! अपना पानी निगल जा और आसमान ! थम जा। तो पानी धरती में बैठ गया । और फैसला चुका दिया गया। और वह नाव अल-जूदी पर टिक गई और कह दिया गयाः दूर हों ज़ालिम लोग। और नूह ने अपने रब को पुकारा और कहा-हे रब! मेरा बेटा मेरे घर वालों में से है! और निश्चय ही तेरा वादा सच्चा है और तू ही सब से बडा हाकिम है। कहा-हे नूह ! वह तेरे घर वालों में से नहीः वह तो अशिष्ट कर्म है, तो तू ऐसी चीज का मुझ से सवाल न कर जिस का तुझे कोई ज्ञान नही है। मैं तुझे नसीहत करता हूं कि तू अज्ञानी लोगों में से न हो जा।
कहा-हे रब ! मै तेरी पनाह मांगता हूं इस से कि मैं तुझ से ऐसी चीज़ का सवाल करूं जिस का मुझे कोई इल्म नही । और यदि तूने मुझे माफ न किया और मुझ पर दया न की तो मैं घाटा उठाने वालों में से हो जाईंगा।
कहा गया - हे नूह ! इस पर्वत से उतर जा इस हाल में कि हमारी ओर से सलामती और बरकतें हैं तुझ पर और उन गिरोहों पर जो उन लोगों में से होंगें जो तेरे साथ हैं और आगे पैदा होने वालों में कितने गिरोह ऐसे हैं जिन्हे हम जीवन सुख प्रदान करेंगे फिर उन्हे हमारी ओर से दुख देने वाली यातना आ पहूंचेगी।

with thanks: Umar saif
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नूह ही हिन्‍दू धर्म में मनु हैं बारे में जानने के लिये पढें

सनातन धर्म के अध्‍ययन हेतु वेद-- कुरआन पर अ‍ाधारित famous-book-ab-bhi-na-jage-to

जिस पुस्‍तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्‍दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजूर कर दिया था उसका यह हिन्‍दी रूपान्‍तर है, महान सन्‍त एवं विद्वान मौलाना आचार्य शम्‍स नवेद उस्‍मानी के ध‍ार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन पर आधारति पुस्‍तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्‍मक अध्‍ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्‍त के प्रिय शिष्‍य एस. अब्‍दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक योग्‍य शिष्‍य जावेद अन्‍जुम (प्रवक्‍ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्‍तक के असल भाव का प्रतिबिम्‍ब उतर आए इस्लाम की ज्‍योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकाने का सार्थक प्रयास हिन्‍दी प्रेमियों के लिए प्रस्‍तुत है,

नूह ही हिन्‍दू धर्म में मनु हैं बारे में जानने के लिये पढें

Sunday, October 25, 2009

महान चमत्कार के होते हुए एक मानव-मात्र

मानव पथभ्रष्टता का मूल कारण महापुरुषों तथा संदेष्टाओं की चमत्कारियाँ हैं। ईश्वर ने मानव मार्गदर्शन हेतु हर युग एवं हर देश में जब संदेष्टाओं को भेजा, तो उनकी सत्यता को सिद्ध करने के लिए उनको कुछ चमत्कारियां भी दी। परन्तु लोगों ने इन चमत्कारियों की वास्तविकता को न समझने के कारण उन्हीं को अवतार, ईश्वर, ईश्वर का बटा आदि मान लिया। यह सब से बड़ा अत्याचार था जो संदेष्टाओं पर हुआ। इसी कारण आज लोग अपने सृ,ष्टिकर्ता, अन्नदाता औऱ पालनकर्ता को भूल कर सब कुछ महापुरुषों को समझ चुके हैं। इन प्रत्येक महापुरुषों में केवल मुहम्मद सल्ल0 एक ऐसे महापुरुष हैं जिनको आज तक एक मानव-मात्र माना जाता है। जबकि हम देखते हैं कि मुहम्मद सल्ल0 की चमत्कारियाँ बड़ी बड़ी थीं। उदाहरण-स्वरूप
(1) मक्का वालों ने आपके संदेष्टा होने का प्रमाण माँगा तो आपके एक संकेत पर चाँद के दो टुकड़े हो गए जिसका समर्थन आधुनिक विज्ञान ने भी किया है। इस चमत्कार का समर्थन चाँद पर जाने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक निल आर्म्-स् ट्रंग ने भी किया बल्कि इसी कारण उन्होंने इस्लाम भी स्वाकार किया जिसे बहुत कम लोग जानते हैं।
(2) हुदैबिया की सन्धि के अवसर पर अंगुलियों से पानी निकला और 1400 व्यक्तियों ने प्यास बुझाई।
(3) मुहम्मद साहिब का सब से बड़ा चमत्कार दिव्य क़ुरआन है, वह कैसे ? क्यों कि वह न लिखना जानते थे न पढ़ना और न ही उनको किसी गुरू की संगती प्राप्त हुई थी, ऐसा इन्सान क़ुरआन पेश कर रहा है जो स्वयं चुनौती दे रहा है कि ( यदि तुझे क़ुरआन के ईश्वाणी होने में संदेह है तो इसके समान एक सूरः «अध्याय» ही पेश कर दो, यदि तुम सच्चे हो) [सूरः अल-बक़रः23] परन्तु इतिहास साक्षी है कि वह अरब विद्वान जिनको अपने भाषा सौन्दर्य पर गर्व था, अपनी भाषा के सामने दूसरों का गुंगा समझते थे, उसके समान एक टुकड़ा भी पेश न कर सके। हालांकि उन्हीं के समाज में पलने बढ़ने वाला एक अपढ़ व्यक्ति ऐसी वाणी पेश कर रहा था। जिस से ज्ञात यह होता है कि क़ुरआन मुहम्मद साहिब की वाणी नहीं बल्कि ईश्वर की वाणी है। औऱ आज तक क़ुरआन सारे संसार वालों के लिए चैलेंज बना हुआ है। जी हाँ! क़ुरआन की शैली ही ऐसी है कि उसके समान न कोई बना सका है न बना सकता है।
प्रिय भाई ! इन स्पष्ट चमत्कारियों के होते हुए क्या मुहम्मद सल्ल0 का हक़ नहीं था कि उनकी पूजा की जाए ? या वह अपने पूज्य होने का दावा करें ? यदि वह ऐसा दावा करते तो वह संसार जिस ने राम को ईश्वर बना डाला, जिसने कृष्ण जी को गभवान कहने से संकोच न किया, जिसने ईसा अलै0 (जिसस) को ईश्वर का बटा मान लिया। वह ऐसे महान व्यक्ति को ईश्वर मानने से कभी संकोच न करता। लेकिन वह ऐसा कैसे कह सकते थे जबकि वह सत्य संदेश ले कर आए थे। वह तो स्वंय को केवल एक मानव के रूप में प्रकट करते हैं और कहते हैं «मैं एक मानव-मात्र हूं तुम्ही जैसा» आज यदि कोई मुस्लिम मुहम्मद साहिब की पूजा करने लगे तो वह इस्लाम की सीमा से निकल जाएगा।

Saturday, October 24, 2009

चाँद तारा का निशान हिन्दुस्तान में कैसे आया?

पहले सप्ताह के चाँद का निशान और तारे का निशान प्राचीन काल से पूरी दुनिया में अलग अलग जगहों पर अलग अलग धर्मों को मानने वाले मूर्तिपूजकों का निशान रहें है। जब वैज्ञानिकों ने दुनिया के खोये हुए शाहरों की खुदाई की तो पूरी दुनिया में शायद ही कोई ऐसा प्राचीन नगर रहा हो जिसमें चाँद देवता के रूप में ना पूजा जाता हो। प्रचीन सभ्यताओं में चाँद और तारे की पूजा आम थी और इन दोनों को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती थी। चाँद के उपर तारे का ताल्लुक शुक्र ग्रह से है क्योंकि रात के आसमान में सबसे ज्यादा चमकदार ये ही होता है और इसकी खास बात एक और ये है कि ये चाँद की तरह घटता बढता रहता है। इसिलिए इसे चाँद की बेटी या बीवी या बहन माना जाता रहा है। कहीं इसे पुरूष रूप में मानते है तो कहीं ये स्त्री रूप में पूजा जाता है।



3000 ईसा पूर्व के समय में सुमेरी सभ्यता में तारे का निशान देवी इनन्ना का माना जाता था और बेबीलोनी सभ्यता में इसका नाम देवी इस्टर मिलता है । शुक्र यानि वीनस ग्रह प्राचीन सितारों की पूजा करने वाले लोगों की पहली पसंद रहा है। और इसका आसमान में निकलना और छिपना और इसका हर रोज नए नए रूप में आना इनके लिए भविष्य जानने के संकेतों का काम करता था और ये भाग्य बताने वाले लोगों का मुख्य देवी या देवता रहा है।


प्राचीन काल में तुर्की लोग प्रकृतिक शाक्तियों की पूजा करते थे और ये मध्य एशिया से साइबेरिया तक फैले थे । ये लोग खुदा के लिए ‘तेंगरी’ शब्‍द का इस्तेमाल करते थे और इनके बहुत सारे खुदा थे जैसे ये लोग सूरज को ‘कुन तेंगरी’ चाँद को ‘ऐ तेंगरी’ और आसमान के मालिक को ‘कोक तेंगरी’ कहते थे। ये लोग राजा को कोक तेंगरी का प्रतिनिधि मानते थे और पृथ्वी पर राजा खुदा की तरफ से मुर्करर एक नुमाइनन्दा होता था और एक तरह से धरती का खुदा होता था और राजा अपने नाम भी आसमानी खुदाओं के नाम पर रखते थे जैसे तुमेन तान्गरीकत-240 -210 ईसा पूर्व, बातुर तान्गरीकत(210-174 ईसा पूर्व= कोक खान)174-161 ईसा पूर्व= कुन खान)161-126 ईसा पूर्व=


मध्य एशिया में चाँद और तारे के निशान को विभिन्न रंगों के परचमों पर दशार्या जाता था और चाँद के साथ तारे के कोण भी अलग अलग होते थे जिसके पीछे इन लोगों एक बडा खुबसूरत तर्क था।
ये लोग दिशाओं के बारे में एकमत नही थे कुछ कबीले 4 दिशा मानते थे तो कुछ 5, 8 या 10 मानते थे इसके साथ साथ इन लोगों ने अलग अलग दिशा के लिए एक खास रंग को अहमियत दे रखी थी जैसे पूर्व के लिए ये नीला रंग पश्चिम के लिए सफेद रंग)अक= दक्षिण के लिए लाल) कीजिल= और उत्तर के लिए ये काला रंग )कारा= को खास अहमियत देते थे और इसिलिए मध्य एशिआई इन कबीलें के झण्डों का रंग अलग अलग होता था और इन पर बने चाँद के साथ तारे के कोनों की संख्या अलग अलग होती थी ।

जिसका प्रभाव आज भी देखने को मिलता है।और इसी परम्परा को तब भी जारी रखा गया जब मध्य एशिया में तुर्की में संगठित साम्राज्यों का उदय हुआ।
ये लोग चाँद सितारों के पुजारी थे और इस निशान को ये लोग अपनी इबादतगाहों और कब्रों और विशेष धार्मिक स्थानों पर लगाते थे ।
तुर्की में हरन नामक प्राचीन चाँद तारे की इबादत करने वालों का आलमी केन्द्र रहा है यहां पर 3000 ईसा पूर्व में भी चाँद सितारों की पूजा के सबूत मिले हैं । हरन वासियों ने इस धर्म को और ज्योतिष को सुमेरीयों से अपनाया था । और इस्लाम के उदय के बाद ही इन्होनें इस धर्म को त्यागा था मगर इन्होने कभी भी अपने निशान चाँद तारे और लूटमार की प्रथा को नही छोडा । हालाकि ये लोग इस्लाम में दाखिल हो चुके थे ।




तुर्की साम्राज्य के झण्डें
यूं तो तुर्की के हर कबीले का अपना चाँद तारे वाला झण्डा रहा है मगर जब जिस कबीले ने संगठित राज्य किया तो उसने अपनी परम्परा के अनुसान राष्ट्रीय झण्डा आपनया जो निम्नलिखित है।

नेबोनिदस साम्राज्य 550 ईसा पूर्व=
मध्य एशिया में सम्राट नेबोनिदस ने भारी राज्य किया और इसने अपनी राजधानी तुर्की के हरन को बनाया । जो यहां पर चाँद तारे के मानने वालों का हजारों साल से काबा रहा था। इसका निशान पहले सप्ताह का चाँद था और इस निशान को इबादतगाहों, झण्डों आदि पर लगाया जाता था

हुन साम्राज्य 420-552 ईसवी
इनके झण्डें का रंग सफेद था और उस पर पांच कोनों वाला सुनहरा तारा बना होता था।


खाज़र साम्राज्य 602-1016 ईसवी
इनके झण्डें का रंग नीला था और उस पर पांच कोनों वाला सफेद तारा बना होता था।

गज़नी साम्राज्य 962- 1283 ईसवी
इनके झण्डें का रंग हरा था और उस पर चाँद और मोर का निशान बना होता था।

सेलजुक साम्राज्य 1040-1157 ईसवी
और रम के सेलजुकों 1077-1308 ईसवी इनके झण्डों पर चाँद के साथ तारा बना होता था ।इस काल के सिक्कों पर 5,6 और 8 कोनों वाला सितारा और चाँद बना होता था।

होर्ड साम्राज्य 1224-1502 ईसवी
इनके झण्डें का रंग सफेद था और उस पर लाल रंग का चाँद बना होता था उसके उपर एक काले रंग का गोल सूरज बना होता था।


उसमानी तुर्क साम्राज्य 1299-1922 ईसवी
इनके झण्डें का रंग लाल था और उस पर 8 कोनों वाला तारा बना होता था।
और आखिर में तुर्की के गणतंत्रात्रिक देश बन जाने के बाद इसके झण्डें पर बहस के बाद लाल रंग के कपडे पर सफेद रंग का चाँद तारे का निशान जिसमें पांच कोने बने हैं को अपना लिया गया । जो आज तक प्रचलन में है।

हिन्दुस्तान में चाँदतारा
हिन्दुस्तान के मुसलमानों ने चाँद तारे की परम्परा को मक्का या मदीना से आए धर्म प्रचारकों से नही ली बल्कि इसका स्रोत तुर्की कबीले रहे हैं।
पूरी दुनिया में जब इस्लामी हुकुमतों का दौर चल रहा था, तो उस वक्त हुकुमत करने वाले और इस्लम का प्रचार के लिए जिहाद करने वाले लोगों में फर्क करना बडा ही मुश्किल काम है।
पूरी दुनिया में तुर्क अपने वहशीपन के लिए मशहूर रहे हैं । अगर गौर करें तो भारत में आने वाले तुर्क सरदारों का असल मकसद इस्लाम का प्रचार नही था बल्कि उनका असल मकसद हुकुमत हासिल करना था ।
इनकी फौज पूरी तरह इस्लामी नही थी बल्कि इन्होने अपने स्थानीय कबीलों के साथ समझौता करके या उनके सरदारों को हराकर उनकी फौजें हासिल की थी । और हिन्दुस्तान फतह करने के लिए चढायी करते रहते थे । ये आपस में भी लडते रहते थे जिसके सबूत इतिहास की किताबों में भरे पडे है।

तुर्को ने की दिल्ली सल्तनत की शुरूआत
998 ईसवी में महमूद गज़नी साम्राज्य का शाससक बना। इसने भारत के एक बडे हिस्से पर जीत हासिल की और भारत में तुर्की हुकुमत की नींव रखी ।
इसके बाद मौहम्मद गौरी ने हिन्दुस्तान में आकर जंग लडी और फतह हासिल की । सन 1206 में मुहम्मद गौरी के एक गुलाम कुतुबुददीन ऐबक उसका उत्तराधिकारी बना और उसने दिल्ली सल्तनत की बागडोर सम्भाली , ऐबक के बाद सन 1210-1236 ईसवी तक उसके खलीफा इल्तुतमिश ने हुकुमत की इसके बाद अन्य अनेक तुर्को ने राज किया। भारत में एक संगठित राज्य की स्थापना में तुर्को ने बडा योगदान दिया।
मै आपको ये बता रहा हूं कि तुर्क मुसलमान ही थे जिन्होनें सबसे पहले यहां पर हुकुमत की, तुर्को की सेना में सभी धर्मो के लोग काम करते थे । और वे लोग तुर्की संस्कृति को भारत में लाए थे ।
क्योंकि तुर्क भले ही मुसलमान बन गए हों उन्होने अपनी संस्कृति कभी नही छोडी और अपने खून और सभ्यता को दुनिया में सबसे बेहतर समझते थे ।
चांद तारे का ये निशान जिसके खिलाफ इब्राहीम अलै0 ने 4100 साल पहले जददोजहद की थी और अल्लाह के पैगम्बर हज़रत मुहम्मद स0 ने आज से 1400 साल पहले न जाने कितनी जंगें लडी थी और काबे को इन से पाक किया था। और उनके बाद न जाने कितने सहाबी जो तुर्की, सीरिया, रोम, फारस, ईराक, जोर्डन, सउदी अरब आदि में इस्लाम का पैगाम देने के लिए गए और उन्होनें वहां पर चाँद सूरज और सितारों के पूजने वालों के खिलाफ जंगे लडी और उन्हें एक अल्लाह की पूजा करना सिखाया , और न जाने चांद तारों के पुजारियों के खिलाफ छिडे इस अभियान में कितने सहाबियों और उनके ‘शैदाइयों ने अपनी जान कुर्बान की थी।
तुर्क सरदारों ने उसी निशान को बडी चतुराई से फिर से मुसलमानों की मस्जिदों और झण्डों पर पहूंचा दिया ।
इस पर ज्यादा शोध की जरूरत है और उलेमाओं को चाहिए की इस निशान को कतन हराम करार दें मस्जिदों और घरों से इसे बाहर निकालने का हुक्म जारी करें । और ऐसा नही किया जाता तो आने वाले दिनों में गैरूल्लाह के दूसरे निशानात भी धीरे धीरे हमारी इबादतगाहें कब्जा लेंगें। और हमारी कौम फिर से शिर्क में डूब जाऐगी।

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उलमाओं का फतवा चाँद तारा मुसलमानों का निशान नहीं है
thanks umar saif ''चाँद तारा का निशान हिन्दुस्तान में तुर्क हमलावर लाए थे'' बुलंद भारत,

Wednesday, October 21, 2009

अमन और सुकून का केन्द्र केवल इस्लाम


मैं अध्ययन के बाद मुसलमान हुआ हूं। मेरे दिल में इस्लाम की बहुत कद्र है। मुसलमानों को इस्लाम विरासत में मिला है। इसलिए वे उसकी कद्र नहीं पहचानते। सच्चाई यह है कि मेरी जि़न्दगी में जितनी मुसीबतें आयीं, उनमें , अमन व सुकून की जगह केवल इस्लाम में ही मिली। ।
-मुहम्मद मार्माडियूक पिकथॉल,इंग्लैण्ड
मार्माडियूक पिकथॉल 17 अप्रैल 1875 ई० को इंग्लैण्ड के एक गांव में पैदा हुए। उनके पिता चाल्र्स पिकथॉल स्थानीय गिरजाघर में पादरी थे। चाल्र्स के पहली पत्नी से दस बच्चे थे। पत्नी की मृत्यु के बाद चाल्र्स ने दूसरी शादी की, जिससे मार्माडियूक पिकथॉल पैदा हुए। मार्माडियूक ने हिब्रो के प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। उनके सहपाठियों में, जिन लोगों ने आगे चलकर ब्रिटेन के राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया, उनमें सर विंस्टन चर्चिल भी शामिल थे।

Tuesday, October 20, 2009

चीन में मुसलमानों की अपनी एक अलग पहचान है

मुस्लमानों को बहुत गर्व महसूस होता है जब वे पैगम्बर-ए-इस्लाम की इस बात को दोहराते है कि ‘‘इल्म हासिल करने के लिए चीन भी जाना पडे तो जाओ’’ इससे इल्म हासिल करने की अहमियत का पता चलता है भले ही कितनी भी मुश्किलें क्यों न उठानी पडे। मुहम्मद साहब सल्ल. के जमाने में चीनी सभ्यता पूर्ण विकसित हालत में थी। चीन में इस्लाम की शुरूआत तीसरे खलीफा हज़रत उस्मान (रजि.) के दौर में हुई। बिजेन्टाइन, रोम और पर्शिया को जीतने के बाद हज़रत उस्मान ने मुहम्मद साहब सल्ल. की वफ़ात के 18 साल बाद यानि 21 हिज़री सन (650ई) में उनके मामू साढ इब्न अबी वका़स की कयादत में एक वफद चीन के बादशाह को इस्लाम की इबादत की दावत देने के लिए भेजा।
लेकिन अरब के सौदागर इससे पहले यानि हज़रत मुहम्मद सल्ल. की जिंदगी में ही इस्लाम का परिचय चीनियों से करा चुके थे। हालांकि ये संगठित प्रयास नही था। लेकिन ये उनके सफर का एक हिस्सा था जो रेशम मार्ग से वे किया करते थे।
हालांकि अरबों की तारीख में इसका उल्लेख कम ही मिलता है लेकिन चीन में इस घटना का उल्लेख है। वह ये है कि तांग वंश के राजा ने सबसे पहले इस्लाम के प्रति अपना प्रेम दर्शाने के लिए एक मस्जिद के निर्माण का आदेश दिया। कैंटन सिटी में स्थित शानदार मस्जिद आज भी यादगार मस्जिद के नाम से मौजूद है चौदह सदियों बाद भी मुसलमानों की सबसे पहली बस्ती भी इसी तटीय शहर में बस्ती थी उम्मैद और अब्बासी खलीफाओं को भेजे छः वफद चीन में गर्मजोशी से स्वीकार किये गये। मुसलमान शुरू में चीन में बस गये थे उन्होंने जल्दी ही इस देश की अर्थव्यवस्था पर अपना असर डालना शुरू कर दिया। उन्होंने सुंग वंश (960-1279 ई0) तक चीन के कारोबार पर अपना नियंत्रण कर लिया। यहां तक की जहाज रानी विभाग का महानिदेशक भी इस दौर में एक मुसलमान ही था। मिंग वंश (1368-1644) का शासन काल इस्लाम के लिए एक स्वर्ग युग की तरह है- जब मुसलमान धीरे-धीरे हान समाज में घुल मिल गये।
इस दौर का विश्‍लेषन करने पर एक दिलचस्प तथ्य सामने आता है कि कैसे चीनी मुसलमानों ने अपने नाम तब्दील किए। बहुत मुसलमानों ने जिनकी शादियां हान महिलाओं से हुई थी अपनी पत्नी का नाम ग्रहण कर लिया। जबकि दूसरों ने मो, माइ,मू जैसे नाम अख्तियार कर लिए जो मुहम्मद, मुस्तफा और मसूद से मिलते जुलते है। बाकी दूसरों ने जिनको चीनी नाम नही मिले उन्होने चीनी भाषा के हर्फ अख्तियार कर लिए जैसे हसन के लिए हा, हुसैन के लिए हू या सईद के लिए साई।

नामों के साथ मुसलमानों के रीति रिवाज, खान-पान और वेष भूषा भी चीनी संस्कृति में रच बस गई। मगर वेष-भूषा में इस्लामी रवयत(परम्पराओं) और पाबंदियों का भरपूर ख्याल रखा गया। वक्त गुजरने के साथ मुसलमानों

ने हान लहजा अख्तियार कर लिया और चीनी भाषा पढने लगे।
मिगं युग मुसलमानों को, दूसरे चीनियों से अलग करना और पहचानना मुश्किल था सिवाय उनके रीति-रिवाजों के आर्थिक क्षेत्र में सफल होने के बावजूद मुसलमानों को नेक, कानून के मानने वाले और अनुशासित लोगों में शुमार किया जाता था। इसी वजह से चीन के मुसलमानों और गै़र-मुसलमानों में तकरार रहती थी।

साल गुजरते गये और मुसलमानों ने मस्जिदें, स्कूल और मदरसे स्थापित कर लिए। इन स्कूलो और मदरसों मे रूस और भारत जैसे देशों से भी लोग पढने जाते थे। ऐसा कहा जाता है कि 1790ई0 मे चीन में तकरीबन 30,000 इस्लामिक छात्र थे और इमाम बुखारी का जन्म स्थान ‘बुखारा’ जो उस समय चीन का हिस्सा था इस्लाम का मुख्य सतून(स्तम्भ) था।

चिंग वंश (1644-1911) के उत्थान ने ये सब बदल दिया। चिंग लोग मंचु ना कि हान थे जो चीन में अल्पसंख्यक थे। उन्होंने बाये और राज करो की नीति ने तहत मुसलमानों, हान, तिब्बतियों एवं मंगोलो को एक दूसरे के खिलाफ लडा दिया। उन्होने मुसलमानों के खिलाफ समूचे चीन में नफरत फैलाने का काम किया। और हान योद्धाओं को मुसलमानों को दबाने के लिए इस्तेमाल किया 1911 में जब मांचु वंश का पतन हो गया और सुन मात सेन ने चीनी गणराज्य की स्थापना की उसने तुरंत ऐलान कर दिया कि चीन हान, हुई (मुसलमान) मान, ह्मांचु» मेंग ह्मंगोल» और सांग ह्तिब्बती» सबका है। उसकी नीतियों से इन समुदायों के रिश्‍ते बेहतर होने लगे।

1949 में पीपुल्स रिपब्लिक आफ चाइना की स्थापना के बाद सांस्कृतिक क्रान्ति को दबाने के लिए बहुत जोर लगाया गया। चीनी जनसमुदाय के साथ-साथ मुसलमान भी इसके षिकार हुए। 11वीं केन्द्रीय समिति की तीसरी कांग्रेस के बाद सरकार ने मुसलमानों और इस्लाम को छूट प्रदान की 1978 में जैसे ही धार्मिक स्वतंत्रता की घोशणा की गई मुसलमानों ने इसे फोरन हाथों-हाथ लिया।

वर्तमान सरकार के नेतृत्व में इस्लाम फलने-फूलने का बेहतरीन मौका मिल रहा है। धार्मिक नेता कहते है कि आज इबादत करने वालों की संख्या सांस्कृतिक क्रान्ति से पहले की संख्या से कहीं अधिक है और युवाओं में धर्म के प्रति आस्था और रूचि बढ रही है।

चीन में मस्जिदों से सम्बंधित एक प्रकाशन (1998) के अनुसार आज यहां 32,749 मस्जिदें है। जिनमे 23000 तो अकेले जि जियांग प्रान्त में ही है। मुसलमानों के इस्लाम के प्रदर्शन के प्रति काफी जोश देखा जा सकता है और राष्‍ट्रीय स्तर पर कई समितियां एवं संगठनों का गठन किया गया है जो मुसलमानों के बीच अंतर्जातीय एकता स्थापित करने के सफल प्रयास करती रहती है। इस्लामी साहित्य कहीं भी देखा जा सकता है। चीनी भाषा में कुरआन के तर्जुमे मिलते है।
ऐसे इलाकों में जहां मुसलमान बहुसंख्यक है चीनी गै़र मुसलमानों द्वारा सुअर-पालन निषेध (तिबंधित) है। मुसलमानों के अपने कब्रिस्तान है। मुसलमान दंपति यदि किसी इमाम की मदद से विवाह करना चाहे तो उनको इजाजत है। इसके अलावा मुस्लिम कर्मचारियों को त्योहारों के समय छुट्टी प्रदान करने में कोई परेशानी नही है। मुसलमानों को हज में जाने के लिए असीमित भत्ता दिया जाता है। चीन के मुसलमान देश की आंतरिक राजनीति से भी जुडे हुए है। चीनी मुसलमानों के लिए चीन में इस्लाम पूरी तरह जिंदा है। उन्होने सातवी सदी से ही अपने विश्‍वास को जीवित रखने में हर तरह की परेशानियों का सामना किया है।
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चीन की ज़ियान मस्जिद- ये चीन की मशहूर ज़ियान मस्जिद है जो 742 ईसवी में चीनी पगोडा की शक्ल की बनाई गई। दुनिया में ये अकेली ऐसी मस्जिद है जिसमें चीनी भाषा में अजा़न दी जाती है। ये अरबी व्यापारियों के यहां की चीनी लडकियों से शादी करने के बाद वजूद में आयी थी। चीन में इस वक्त लगभग 128 मिलियन मुसलमान रहते हैं जिनका धर्म इस्लाम है मगर संस्कृति चीनी है।
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साभारः आसिफ खान,'बुलन्द भारत' मासिक, 15 अगस्त से 14 सितम्बर 2005, पृष्‍ठ 8
thanks: umar saif

Sunday, October 18, 2009

दुनिया का हर चौथा इन्सान- मुसलमान Every Fourth Person of This World is following ISLAM !


मुसलमानों की आबादी 1.57 अरब, मगरिबी मुल्कों (पश्चिमी देशों) में मुसलमानों की तादाद में भारी इज़ाफा, जर्मनी में मुसलमानों की आबादी लेबनान से अधिक, चीन में मुसलमान शाम (Syria) से अधिक

दुनिया में मुसलमानों की आबादी बढकर 1 अरब 57 करोड हो गई इसका मतलब यह है के दुनिया का हर चौथा इन्सान मुसलमान है।

पूरी दुनिया में अमरिका, इसाईयों और यहूदियों ने इस्लाम को बदनाम करने की जो मुहिम आरम्भ की थी उसका उल्टा असर हुआ और पूरी दुनिया में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। यह सर्वे रिपोर्ट किसी मुस्लिम संस्था की नहीं है बल्कि "प्यू फोरम ऑन रिलिजन एण्ड पब्लिक लाइफ" (PEW FORUM ON RELIGION AND PUBLIC LIFE) नामक संस्था की है. रिपोर्ट में कहा गया है के मुसलमानों की आबादी में उम्मीद से भी अधिक वृद्धि हुई है. यह तादाद एक अरब 80 करोड तक पहुंच सकती है।

रिपोर्ट
के मुताबिक़ हैरत की बात यह है के लेबनान से अधिक मुसलमानों की आबादी जर्मनी में हो गई है। शाम से अधिक मुसलमानों की आबादी चीन में हो गई है। अर्दुन और लिबिया में मोजूद मुसलमानों की आबादी से अधिक मुसलमान रूस में रहते हैं। ऐथोपिया में मुसलमानों की आबादी लगभग अफगानिस्तान के मुसलमानों की आबादी के बराबर हो गई है।

परिंस्टन युनिवर्सिटि के जमाल का कहना है के अब यह तथ्य गलत साबित हो रहा है के अरब का मतलब मुसलमान और मुसलमान का मतलब अरब है परिंस्टन युनिवर्सिटि के अफसरान का कहना है के इसाईयत के बाद इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बडा धर्म है। दुनिया में ईसाइयों की मजमूई तादाद 2 अरब 10 करोड से 2 अरब 20 करोड है। दुनिया के 232 मुल्कों में मुसलमान आबाद हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है के दुनिया में मुसलमानों की जो आबादी है उनमें से शिया मुसलमानों की आबादी 10 से 13 प्रतिशत है उनमें भी 80 प्रतिशत शीया दुनिया के केवल 4 मुल्कों इरान, पाकिस्तान, हिन्दुस्तान और इराक में रहते हैं।


मुसलमानों की आबादी के मामले में एशिया ने अरब दुनिया को पीछे छोड दिया है। सर्वे के मुताबिक दुनिया के 60 प्रतिशत मुसलमान एशिया में रहते हैं। जबके मशरीकी वस्ता और शिमाली अफरीका में केवल 20 प्रतिशत मुसलमान रहते हैं। सहारत अफरीका में 15 फीसद, युरोप में 2.4 प्रतिशत, अमरिका में .3 प्रतिशत मुसलमान रहते हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक़ मुसलमानों की बडी तादात अकल्लियत बनकर रहती है, 317 मिलियन मुसलमानों उन मुल्कों में रहते हैं जहां इस्लामी हकूमत नहीं है। ऐसे मुसलमानों की 3 चोथाई आबादी हिन्दुस्तान ; 16 करोड 10 लाख ऐथोपिया ; 2 करोड 80 लाख चीन, 2 करोड 20 लाख रूस ; एक करोड 60 लाख तन्जानिया आदि है। हिन्दुस्तान दुनिया में मुस्लमानों की आबादी के ऐतबार से तीसरा मुल्क है जहां सबसे अधिक मुस्लमान हैं, जबके हिन्दुस्तान में मुसलमानों की आबादी 13 प्रतिशत है।


रिपोर्ट पर एक नजरः

दो-तिहाई मुसलमान दुनिया के 10 मुल्कों में रहते हैं इनमें से 6 एशिया ;इण्डोनेशिया, पाकिस्तान , हिन्दुस्तान, बांग्लादेश , इरान और तुर्की शामिल हैं. 3 शिमाली अफरीका ; मिस्र, अल्जिरिया और मराक़श और एक सब-सहारा अफरीका ;नाइजिरिया है। चीन में मुसलमानों को सबसे अधिक मुश्किल हालात का सामना है जहां तशद्दुद की वारदात हो रही हैं. इण्डोनेशिया में मुस्लमानों की सबसे ज्यादा आबादी हैं, जहां 20 करोड 30 लाख मुसलमान आबाद है। यह आबादी दुनिया में मुसलमानों में मजमुई आबादी की 13 फीसद है। युरोप में 38 मिलियन अर्थात 3 करोड 80 लाख मुसलमानों की आबादी है। यहां मुसलमान की केवल 5 प्रतिशत तादाद ही बसती है। जर्मनी और फ्रांस में भी मुसलमानों की आबादी में भारी इजाफा हुआ है। बर्रे आज़म अमरिका में मुसलमान 46 लाख है।। कनाडा में मुसलमान की आबादी 7 लाख है।
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साभारः उर्दू दैनिक 'अखबारे मशरिक़' दिल्‍ली 9 अक्‍तूबर 2009