Monday, March 8, 2010

इस्लाम में महिलाओं का सम्मान

यदि आप धर्मों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि हर युग में महिलाओं के साथ सौतेला व्यवहार किया गया, हर धर्म में महिलाओं का महत्व पुरुषों की तुलना में कम रहा। बल्कि उनको समाज में तुच्छ समझा गया, उन्हें प्रत्येक बुराइयों की जड़ बताया गया, उन्हें वासना की मशीन बना कर रखा गया। एक तम्बा युग महिलाओं पर ऐसा ही बिता कि वह सारे अधिकार से वंचित रही। यह इस्लाम की भूमिका है कि उसने हव्वा की बेटी को सम्मान के योग्य समझा और उसको मर्द के समान अधिकार दिए गए। क़ुरआन की सूरः बक़रः (2: 228) में कहा गया "महिलाओं के लिए भी सामान्य नियम के अनुसार वैसे ही अधिकार हैं जैसे मर्दों के अधिकार उन पर हैं।" इस्लाम में महिलाओं का बड़ा ऊंचा स्थान है। इस्लाम ने महिलाओं को अपने जीवन के हर भाग में महत्व प्रदान किया है। माँ के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, पत्नी के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, बेटी के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, बहन के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, विधवा के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, खाला के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, तात्पर्य यह कि विभिन्न परिस्थितियों में उसे सम्मान प्रदान किया है जिन्हें बयान करने का यहाँ अवसर नहीं हम तो बस उपर्युक्त कुछ स्थितियों में इस्लाम में महिलाओं के सम्मान पर संक्षिप्त में प्रकाश डालेंगे।

माँ के रूप में सम्मानः माँ होने पर उनके प्रति क़ुरआन ने यह चेतावनी दी कि "और हमने मनुष्य को उसके अपने माँ-बाप के मामले में ताकीद की है - उसकी माँ ने निढाल होकर उसे पेट में रखा और दो वर्ष उसके दूध छूटने में लगे - कि "मेरे प्रति कृतज्ञ हो और अपने माँ-बाप के प्रति भी। अंततः मेरी ही ओर आना है॥14॥ " कुरआन ने यह भी कहा कि "तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएँ तो उन्हें 'उँह' तक न कहो और न उन्हें झिझको, बल्कि उनसे शिष्‍टापूर्वक बात करो॥23॥ और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ बिछाए रखो और कहो, "मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बालकाल में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।"॥24॥ (सूरः बनीइस्राईल 23-25)
माँ के साथ अच्छा व्यवहार करने का अन्तिम ईश्दुत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने भी आदेश दिया, एक व्यक्ति उनके पास आया और पूछा कि मेरे अच्छे व्यवहार का सब से ज्यादा अधिकारी कौन है? आप ने फरमायाः तुम्हारी माता, उसने पूछाः फिर कौन ? कहाः तुम्हारी माता. पूछाः फिर कौन ? कहाः तुम्हारी माता, पूछाः फिर कौन ? कहाः तुम्हारे बाप। मानो माता को पिता की तुलना में तीनगुना अधिकार प्राप्त है। अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः अल्लाह की आज्ञाकारी माता-पिता की आज्ञाकारी में है और अल्लाह की अवज्ञा माता पिता की अवज्ञा में है" (तिर्मज़ी)

पत्नी के रूप में सम्मानः पवित्र क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फरमाया और उनके साथ भले तरीक़े से रहो-सहो। (निसा4 आयत 19) और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "एक पति अपनी पत्नी को बुरा न समझे यदि उसे उसकी एक आदत अप्रिय होगी तो दूसरी प्रिय होगी।" (मुस्लिम) उसी प्रकार आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह भी फरमायाः "संसार भोग-विलास की चीज़ है और संसार की सब से उत्तम भोग-विलास की सामग्री नेक पत्नी है" (मुस्लिम)

बेटी के रूप में सम्मानः मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "जिसने दो बेटियों का पालन-पोषन किया यहां तक कि वह बालिग़ हो गई वह महाप्रलय के दिन हमारे साथ होगा" (मुस्लिम) आपने यह भी फरमायाः जिसने बेटियों के प्रति किसी प्रकार का कष्ट उठाया और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करता रहा तो यह उसके लिए नरक से पर्दा बन जाएंगी" (मुस्लिम)

बहन के रूप में सम्मानः मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः जिस किसी के पास तीन बेटियाँ हों अथवा तीन बहनें हों उनके साथ अच्छा व्यवहार किया तो वह स्वर्ग में प्रवेश करेगा" (अहमद)

विधवा के रूप में सम्मानः इस्लाम ने विधवा की भावनाओं का बड़ा ख्याल किया बल्कि उनकी देख भाल और उन पर खर्च करने का बड़ा पुण्य बताया है। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "विधवाओं और निर्धनों की देख रेख करने वाला ऐसा है मानो वह हमेशा दिन में रोज़ा रख रहा और रात में इबादत कर रहा है।" (बुखारी)

खाला के रूप में सम्मानः इस्लाम ने खाला के रूप में भी महिलाओं को सम्मनित करते हुए उसे माता का पद दिया। हज़रत बरा बिन आज़िब कहते हैं कि अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमायाः "खाला माता के समान है।" (बुखारी)
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13 comments:

  1. nice post .
    aaj ek ajeeb baat hui hai .
    waqai ye log sach samne na aane dene ke liye sach ka gala bhi ghont sakte hain .
    main blogvani ko nishpaksh aur sankirnta se mukt samajhta tha .
    khair
    ab main dusri disha se aaunga .

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  2. आज आंतरराष्ट्रिय महिला दिवस के 100 वे दिन पर आपकी बे........ह.....द....बहेतरीन पोस्ट

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  3. @ आलम जी महिला दिवस पर महिला(रजिया जी)की शाबाशी मुबारक हो

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  4. kuch batein achhi-achhi chant ke likh too di,per kya aapne TASLEEMA NASREEN ki 'AURET KE HUQ MEIN' padhi hai?is kitaab mein jo saval uthaye gaye hein unka javab dene ki jageh TASLEEMA ko hi marna kyun chahete hein?dharam HINDU ho MUSLIM ,purushvadi soch hi rakhta hai.yadi mahilayen vastav mein aage badhana chaheti hein too in dharam ki badiyo ko unhe todna hi padega.

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  5. महिला दिवस पर सभी ब्लॉगरों को हमारी अन्जुमन की तरफ़ से बहुत बहुत बधाई !!!

    बहुत ही खूबसूरत पोस्ट जिसे आपने अपनी लेखन शैली से इसमें चार चाँद लगा दिए !!!

    वैसे इस्लाम ही है जिसमें सर्वप्रथम महिलाओं को इतने अधिकार दिए जितना पहले कभी नहीं दिया गया... वर्तमान में जहाँ भी इस्लाम के इन नियमों को आत्मसात (आंशिक ही सही) किया वहां शांति और उन्नति हुई है...

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  6. हर धर्म औरत की ईज़्ज़त करता है। और हर में ये से वापस आना शायद मुश्किल हो जाता है। तस्लीमा नसरीन ने अपनी सारी मर्यादा तोड कर रख दी हैं। मैं ये नहिं कहती की वो सच्चाई बयान न करे। करें लेकिन ख़ुद महिला वर्ग को नुकसान पहोंचाकर या अपने स्वार्थ के लिये नहिं। मैं हर धर्म की इज़्ज़्त करती हुं बताईये कोन सा धर्म औरत को इतनी आज़ादी देगा?

    रामायण में भी यही है कि " सीताजी" के लिये "लक्ष्मण" ने एक "लक्ष्मण रेख़ा' बनाइ थी।
    उसे पता था कि ईस रेखा के बाहर सीताजी के लिये खतरा है। अगर वो "लक्ष्मण रेखा" से बाहर न जाती तो "रावण" उन्हें छु भी न सकता।
    हम भी महिला हैं हम ने भी अपने बच्चों को सही तालिम दी है। हम भी नौकरी करते हैं पर हम अपनी हदों को जानते हैं। औरत को औरत बने रहना ही मुनासीब है।
    और धर्म सही सीखाता है। तस्लिमा नसरीन कि "औरत के कक़ में पढने से बहेतर है कि वो कुरान या रामायण पढले।

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  7. रज़िया "राज़"
    (हम भी महिला हैं हम ने भी अपने बच्चों को सही तालिम दी है। हम भी नौकरी करते हैं पर हम अपनी हदों को जानते हैं। औरत को औरत बने रहना ही मुनासीब है।)

    very nice

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  8. sudhaker…साहेब
    क्या आपको पता नही कि पश्चमी देशों में धर्म त्याग का क्या परिणाम हुआ कि आज नारी वासना की मशीन बन कर रह गई है। विश्वास न हो तो रिपोर्ट पढ़ लीजिय। भारत की तहज़ीब पर हमें गर्व होना चाहिए।

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  9. ममतामयी माता भारती को आज सच्चे सपूतों की आवश्यकता है ।

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  10. सफात साहब का अच्छे मौके पर बहुत बेहतर आलेख।
    बदकिस्मती की बात है कि जिस इस्लाम ने औरत को इतना अच्छा मुकाम दिया,उसी इस्लाम को औरत की बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। दूसरी तरफ जिस पश्चिमी सभ्यता ने औरत को नंगा कर उसे बाजारू बना दिया,उसे औरत के लिए बेहतर कहा जा रहा है। यह अजीब नजरिया है?

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  11. सच्चाई सच्चाई ही होती है। उसे साबित करने की जरूरत नहीं होती,वह खुद अपने आपको साबित करती है। आज पश्चिम की महिला का बढ़ता यौन उत्पीडऩ और पश्चिम में पुरुषों की तुलना में महिलाओं का ज्यादा इस्लाम अपनाना इसी बात को साबित करता है।
    अगर आप यह बातें किसी पश्चिमी महिला से ही जानना चाहते हो तो मेरे ब्लॉग पर आएं और पुस्तक हमें खुदा कैसे मिला? जरूर पढ़ें। इस पुस्तक में इस्लाम अपनाने वाली कई पश्चिमी औरतों की जुबानी है।

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  12. @सफात जी मुबारक को मौहतरमा फिरदौस खान जी को आपका यह लेख बहुत पसन्‍द आया, मेरी उनसे बात हुई है आपको उनका भी शुक्रगुजार होना चाहिये कि मेरा अनुमान है कि पिछली पोस्‍ट पर उनके कमेंटस से ही आपको यह पोस्‍ट बनाने की प्रेरणा मिली, आप क्‍या कहते हैं?

    फिरदौस खान जी ने मेरा एक बहुत पुराना लेख बहुत बडे प्‍लेटफार्म पर डाला है, उधर आप सब की हाजिरी हो जाये तो बहुतों को हौसला मिले
    हज़रत मौलाना रहमतुल्लाह कैरानवी
    http://www.starnewsagency.in/2010/03/blog-post_4518.html

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  13. मैंने आप की पोस्ट देर से पढ़ी बहूत आच्छी लगी आपने सही तस्वीर पेस की है ,वायसे इस्लाम
    में औरतूं को सही हाकुक दिया गया है

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