Saturday, March 6, 2010

दुनिया चाहे तसलीमा दीदी को वेश्या कहे लेकिन मैं उन्हें अपने घर में रखूंगा क्योंकि ... weeping crocodiles



दुनिया तसलीमा दीदी को लेडी रूश्दी कहती है उनका नाम उनके बराबर रखती है। उन्हें मक़बूल फ़िदा के समान समझती है । उन्हें अपनी यौनेच्छा का सम्मान करने के कारण वेश्या तक समझ लिया जाता है जबकि हक़ीक़त यह है कि उनका न तो इन दोनों मर्दों से कोई मुक़ाबला है और न ही उन्हें वेश्या कहा जा सकता है।

भाई उमर कैरानवी आपके दिए लिंक को देखा । http://janatantra.com/2010/02/28/taslima-on-husain-and-salman-rushdi/

तसलीमा नसरीन उन औरतों में से हैं जो ‘शोहरत पाने के लिए कपड़े तक उतार सकती हैं भले ही ये कपड़े किसी के भी हों ।

उनके द्वारा किसी के भी नंगे चित्र बनाने की बात कहा जाना खुद उनका इक़बालिया बयान है । ऐसे में उनके विचारों से कौन सहमत हो सकता है और कौन उनके विचारों का प्रसार कर सकता है ?

सिवाय उस आदमी के जो अपनी मां बहनों और आराध्यों को भी नंगा करके उनके सामने खड़ा करने के लिए तैयार हो ताकि तसलीमा जी अपने जी के अरमान पूरे कर सकें । ज़ाहिर है बंग्लादेश के लोग इस बेग़ैरती के लिए तैयार नहीं हुए और उन्हें निकाल बाहर किया । फिर उन्होंने अपनी बेग़ैरती के विषबीजों को बोने के लिए भारत को उपयुक्त समझा लेकिन उन्हें यहां से भी जाना पड़ा क्योंकि मेरे महान भारत के भी अक्सर लोगों की ग़ैरत और ज़मीर ज़िन्दा है । कुछ मुर्दा ज़मीरों ने उन्हें रोकने की भी कोशिश की लेकिन उनकी चल न सकी । वे लोग अब भी यदा कदा आवाज़ उठाते रहते हैं । इनमें बात को विचारे बिना गीदड़ों की तरह रोने वाले भी कुछ लोग ‘शामिल हो जाते हैं ।

ये वे लोग हैं जो मुसलमानों की फ़ज़ीहत का कोई भी मौक़ा गंवाना नहीं चाहते भले ही उनकी खुद की भी इज़्ज़त ( ? ) की अर्थी उठ जाए , जोकि मुर्दा तो पहले से ही है ।

तसलीमा जी सलमान रूश्दी के कमीनेपन की क़लई खोलकर उन सभी लोगों को नंगा करने में कामयाब हो गई हैं जो अतीत में अपनी कुंठाओं के चलते रूश्दी की हिमायत करते थे या अब भी करते हैं । यह अब साबित हो गया है कि स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति की छतरी का लाभ उठाने वाले रूश्दी को सबको इस अधिकार के न मिल पाने का कोई मलाल नहीं है । बल्कि उसने तो अपने स्टाफ़कर्मी की किताब को प्रकाशिज होने से रूकवाकर दूसरों से यह छीनने का ही काम किया है । प्रकाशक ने भी उनका सहयोग करके यह साबित कर दिया है कि उन्होंने भी अपना भगवान ‘ लक्ष्मी ‘ को ही बना रखा है । इसके बावजूद रूश्दी तसलीमा जी से फिर भी बेहतर है क्योंकि उनके अन्दर ग़लती करने के बाद क्षमा मांगने का भी गुण है । जबकि तसलीमा ग़लती करके उसपर अड़ने में उनसे कहीं आगे हैं ।

तसलीमा जी की आपत्ति ठीक है उनका नाम रूश्दी के साथ जोड़ना हरगिज़ इन्साफ़ नहीं है । तसलीमा जी को इस बात पर भी आपत्ति है कि सलमान रूश्दी को अपनी अमीरी के बल पर लड़कियां भोग कर छोड़ देने पर समर्थ पुरूष समझा जाता है । जबकि वे भी मर्दों की तरह कुछ कर दिखाना चाहती हैं तो उन्हें वेश्या कहा जाता है । इसमें तो समाज की मजबूरी साफ़ है । जिस काम को जिस ‘शब्द से जाना जाता है समाज वही शब्द तो इस्तेमाल करेगा । वह तसलीमा जी के लिए तो अपना ‘शब्दकोष बदलेगा नहीं।

लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें वेश्या कहना ठीक नहीं । वेश्याओं को इस पर आपत्ति हो सकती है। वेश्या इस दलदल में मजबूरीवश हैं । वे तो अनैतिक संबन्धों से कोई सच्चा सहारा मिलते ही तौबा कर लेती हैं । इसके लिए न तो वे कोई फ़लसफ़ा घड़ती हैं और न ही उनके दिल में किसी आम या ख़ास आदमी के नंगे चित्र बनाने की ख्वाहिश या हिम्मत है । अपने अपने धर्मजनों की इज़्ज़त भी वे सामान्य रीति से ही करती हैं । तसलीमा जी के विचार जानकर वे भी अपने पास बैठाना पसन्द न करेंगी ।तसलीमा जी का यह कहना भी ग़लत है कि रूश्दी के ऐब पर उसे कोई बुरा नहीं समझता । अगर उनकी उठ बैठ ज़िन्दा ज़मीरों में होती तो उन्हें पता चलता कि 153 करोड़ मुसलिमों के साथ हर वह आदमी उनके ऐब पर उन्हें बुरा ही कहता है जो किसी नैतिकता और धर्म नियम का पाबन्द है । मक़बूल फ़िदा को खदेड़ भगाने वाले भी तसलीमा की दुर्दशा पर घड़ियाली आंसू बहाते देखे जा सकते हैं। यह उनकी सियार मनोवृत्ति का ही परिचायक है ।

अपने आराध्य ठहरा लिये गये देवी देवताओं के नग्न यौनांगों की मूर्तियां हर नगर के चैराहों पर स्थापित करने वाले कौन हैं? मक़बूल फ़िदा या फिर वे खुद ? आप अपने देवी देवताओं को जिस रीति से सम्मान देंगे दूसरा भी उसी का तो अनुकरण करेगा । पोस्टर कैलेंडर और सामान की पैकिंग पर उनके फ़ोटो छापने वाला कौन है ? सामान प्रयोग करके इन चित्रों को खुद इनके पुजारी इन्हें कहां फेंकते हैं । यह सभी जानते हैं। जबकि आप मुसलमानों को न तो अपने बुज़ुर्गों के नंगे चित्र बनाते पाएंगे और न ही उनके धार्मिक चिन्हों को कूड़े के ढेर पर पड़ा हुआ देख सकते ।

यही वजह है कि मक़बूल फ़िदा मुसलिम बुजुर्गों का सम्मान ठीक उसी तरह करते हैं जैसे कि मुसलिम करते हैं और वे हिन्दू देवी देवताओं के प्रति अपना अनुराग ठीक वैसे ही प्रदर्शित करते हैं जैसेकि उन्होंने खुद हिन्दुओं को करते देखा । यह एक स्वाभाविक आचरण है । जबकि लेखिका नसरीन उनकी तरह इस मर्यादा का पालन करने से भी इनकार कर रही हैं तो उनका नाम उनके साथ रखना उचित भी नहीं है । इस सबके बावजूद मक़बूल फ़िदा को हिन्दू देवी देवताओं के नग्न चित्र नहीं बनाने चाहिये थे क्योंकि इसलाम अनावश्यक चित्र बनाने व फितना फैलाने से रोकता है । उनके कृत्य की हम भतर्सना करते हैं । मज़हब के नाम पर उन्माद फैलाने वालों और क़ानून अपने हाथ में लेने वालों की भी हम निन्दा करते हैं । ये लोग धर्म के मर्म से कोरे लोग हैं । इसलाम का अर्थ है ‘ ‘शान्ति ‘। समाज की ‘शान्ति भंग करने वालों का ‘शुमार नादानों और ज़ालिमों में तो हो सकता है लेकिन उन्हें खुदा का प्यारा बन्दा नहीं माना जा सकता और न ही उनके कामों के लिए इसलाम को दोष दिया जा सकता है । इसलाम हर ‘शख्स को उसकी अच्छी या बुरी मान्यताओं के साथ जीने की गारंटी देता है । इसलाम के न मानने की वजह से उनका यह हक़ उनसे कोई नहीं छीन सकता । वो जैसी भी हों और चाहे हम उनसे सहमत न भी हों । तब भी हम चाहते हैं कि उन्हें जीने की आज़ादी और हिफ़ाज़त मिले । अगर सरकार इजाज़त दे तो मैं खुद उन्हें अपने घर में रखना चाहूंगा लेकिन एक बहन की तरह । ताकि वे कुछ दिन कुछ ज़िन्दा ज़मीर लोगों के साथ रहकर इसलाम को उसके कल्याणकारी रूप में पा सकें । इसलाम ही वह ‘शान्ति का स्रोत है जो उनकी प्यासी आत्मा को तृप्त और व्याकुल मन को ‘शांत कर सकता है । आमीन
हम सच्चे मालिक प्रभु परमेश्वर अल्लाह से उनके अपने और सभी पाठकों के लिए पूर्ण सन्मार्ग प्रेरणा और लोक परलोक में सफलता की दुआ करते हैं । वह मालिक हमें अपनी ‘शक्ति से एक और नेक बनाये। इसी के साथ हम तसलीमा जी से विनती करेंगे कि दूसरे लोग भी उनकी ही तरह इनसान हैं । उनकी ही तरह वे भी दिल और भावनाएं रखते हैं । अगर आप चाहती हैं कि कोई आपका दिल न दुखाए तो आप भी दूसरों के जज़्बात का ख़याल रखें । सामान्य शिष्टाचार के पालन मात्र से ही आपकी सारी समस्या का ख़ात्मा हो जाएगा । अगर धार्मिक कट्टरता बुरी है तो नास्तिक कट्टरता भी निन्दनीय है । बेशक आप समाज में परिवर्तन लाएं लेकिन परिवर्तन के नाम पर पतन तो न लाएं ।

’आप किसी का भी नंगा चित्र बना सकती हैं ‘ आपका ये दावा भी झूठा दावा है जिसे आप हरगिज़ पूरा नहीं कर सकतीं । चहे खुद आपको यक़ीन न आये लेकिन सच यही है ।वर्ना अगर आप अपने दावे में सच्ची हैं तो अपनी मां का नंगा चित्र बनाकर दिखायें । खूब बिकेगा । आपका दावा भी सच्चा हो जाएगा और आपकी आर्थिक तंगी भी दूर हो जाएगी । आपको इस हिम्मत के बदले में अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाज़ा जाएगा ।क्या अपने दावे को सच करने हिम्मत है आपमें ?बढ़िए आगे बढ़िए । अब आपके क़दम क्यों लड़खड़ा रहे हैं ?दूसरों के आदरणीय लोगों के साथ तो आप बेशक कुछ भी कर सकती हैं लेकिन अपनी मां के साथ ...?सोचकर ही आपके बदन के रोंगटे खड़े हो गए ?स्त्री ‘शरीर पिपासु आपको पहले से ही घेरे बैठे हैं ।

हम मुसलमानों से भी कहना चाहेंगे कि आज उनके अमल पूरी तरह उनकी धार्मिक किताब के मुताबिक़ नहीं हैं जिससे लोगों को इसलाम के समझने और मानने में भारी दिक्क़त हो रही है और इससे स्वार्थी तत्व लोगों को भारी मात्रा में आसान शिकार मिल रहे हैं । अपना इल्म बढ़ाएं और अपना आचरण सुधारें । लोगों के लिए ‘शान्ति और रहमत का ज़रिया बनें । खुद को साक्षात इसलाम बना लें । भ्रम की धुंध स्वतः समाप्त हो जाएगी । अन्यथा मुसलमान मानवता के मुजरिम ठहरेंगे और उस परम प्रधान का दण्ड उनपर लागू हो जाएगा । तबाही से खुद भी बचें और दूसरों को भी बचायें । संवाद बढ़ाएं और प्यास मिटाएं।


अब बताइये कि कौन हम से सहमत है और कौन दीदी तसलीमा

से ?

काश ! कोई हमारी सदाकांक्षा उन तक पहुंचा दे ।


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17 comments:

  1. @गुरू जी तीन बार पढ लिया फिर भी प्रतिक्रिया मैं कुछ नहीं कह पा रहा, हर बार पढने में अलग बात मिल रही है, ऐसा लेख कभी न पढा कभी न देखा, दो-चार बार और पढता हूँ, धन्‍यवाद

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  2. बहुत खूब, आप तो वाकई वेश्याओं के भाई ही दिखते हैं :)

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  3. झड़ गयी सारी धर्मनिरपेक्षता.

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  4. उन्हें वेश्या कहना ठीक नहीं । वेश्याओं को इस पर आपत्ति हो सकती है। वेश्या इस दलदल में मजबूरीवश हैं । वे तो अनैतिक संबन्धों से कोई सच्चा सहारा मिलते ही तौबा कर लेती हैं ।

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  5. इसलाम हर ‘शख्स को उसकी अच्छी या बुरी मान्यताओं के साथ जीने की गारंटी देता है । इसलाम के न मानने की वजह से उनका यह हक़ उनसे कोई नहीं छीन सकता । वो जैसी भी हों और चाहे हम उनसे सहमत न भी हों।

    @डा.अनवर जमाल जी, अमूमन मैं किसी धर्म/सम्प्रदाय विशेष चिट्ठे अथवा पोस्ट पर कभी भी टिप्पणी नहीं करता। किन्तु आज आपके विचारों नें मुझे यहाँ इस पोस्ट पर टिप्पणी करने हेतु विवश कर ही दिया। मैने आरंभ से अन्त तक आपका ये लेख पढा..लेख की विषयवस्तु या सहमति/असहमति पर मैं कुछ नहीं कहना चाहता। मेरा कहना सिर्फ इतना है कि इन्सान की कथनी और करनी में समानता होनी चाहिए...जो ज्ञान हम बाँट रहे हैं, समाज के सामने धर्म की जिन शिक्षाओं के लम्बे चौडे उपदेश झाड रहे हैं...वो हमारे स्वयं के आचरण में परिलक्षित हो तो ही उस ज्ञान की प्रासंगिकता समझ में आती है। आपकी इस पोस्ट में से मैने ऊपर चन्द पंक्तियाँ उद्धरित की हैं जिसमें आप कह रहे हैं कि इस्लाम हर शख्स को उसकी अच्छी या बुरी मान्यताओं के साथ जीने की गारंटी देता है। इस्लाम के मानने या न मानने की वजह से उनका यह हक़ उनसे कोई नहीं छीन सकता । वो जैसी भी हों और चाहे हम उनसे सहमत न भी हों। जब कि उधर दूसरी ओर आप स्वयं ही अपने निजी चिट्ठे पर वैदिक धर्म से संबंधित ग्रन्थों वेद/पुराण इत्यादि में से किसी श्लोक/सूक्ति/ऋचा को उठाकर उसकी अपने मनमाफिक व्याख्या करने में लगे हुए है। वैदिक मान्यताओं, महापुरूषों के कहे वाक्यों को येन केन प्रकारेण गलत सिद्ध करने के पुनीत कार्य में जुटे हुए हैं।
    अब आप ही बताईये कि ये कथनी और करनी में इतना विरोधाभास क्यों? क्या ये सारा ज्ञान, ये उपदेश सिर्फ दूसरों को देने तक ही सीमित है? आप अपने इन कृ्त्यों द्वारा समाज में किस प्रकार की शान्ती, प्रेम और आपसी भाईचारा फैलाना चाह रहे हैं?
    अनवर साहब,ज्यादा बडी बडी बातें बनाना या शब्दाड्म्बर रचना तो मुझे नहीं आता...लेकिन सिर्फ इतना जान पाया हूँ कि जिसे जीवन में उतार लिया गया हो---वही एकमात्र सच्चा धर्म है, वर्ना तो निस्सार भावुकता है, थोथा बुद्धि विलास है।
    कुछ गलत लिख गया हूँ तो क्षमा चाहूँगा.......

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  6. @vats ji
    कहीं सत्य पूर्ण है और कहीं न्यून । कहीं तो यह सत्य संतुलित दशा में है और कहीं तत्वतः सत्यता होने के बावजूद असंतुलन पाया जाता है । असंतुलित से संतुलित और न्यून से पूर्ण सत्य तक पहुंचने के लिए सामाजिक ‘शांति और सद्भाव बनाये रखना आदमी की बुनियादी ज़रुरत है । भौतिक और बौद्धिक विकास के लिए भी ‘शांति बहुत ज़रूरी है । इसलाम का तो अर्थ ही ‘शांति है ।हरेक मत में सामाजिक ‘शांति के नियम प्रायः समान हैं । मनुष्यों का कर्तव्य है कि जो हितकारी शिक्षाएं सभी मतों में समान है उनका पालन करते हुए परस्पर प्रीतिपूर्वक सार्थक संवाद करें । मुस्लिम भी यही बताते हैं । क्या इस पर आपत्ति केवल नासमझी की बात नहीं है ?

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  7. अब देखो लोकप्रियता कैसे बढती है

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  8. ऐसा करो सर कलम करने पर एक क्रन्तिकारी आलेख बनाओ

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  9. विवाद संस्कृति के नाम पर करने से मत चुको
    lovely. enjoyed very much .

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  10. see this thought provoking post
    तुलसीदास के वंशजों के जकड़न में बेहाल हैं महिलाएँ पुरुष और नारी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। लिहाजा जरुरत है दोनों पहलूओं के साथ एक समान व्यवहार करने की, किंतु हकीकत है ठीक इसके विपरीत।

    अनादिकाल से ही महिलाओं को दोयम दर्जे की श्रेणी में रखा गया है। कन्या के साथ भेदभाव माँ के गर्भ से ही शुरु हो जाता है। सबसे पहले गर्भ में पल रहे कन्या शिशु को मारने की कवायद की जाती है। अगर किसी कारण से वह बच जाती है तो उसकी स्थिति निम्नवत् पंक्तियों के समान होती है:-

    अविश्‍वास को

    सहेज कर प्रतिस्पर्धा करती है

    लड़कों से एक लड़की

    फिर भी

    अपनी इस यात्रा में

    सहेजती है वह

    निराशा के खिलाफ आशा

    अंधेरा के खिलाफ सहेजती है उजाला

    और सागर में सहेजती है

    उपेक्षाओं एवं उलाहनों के खिलाफ

    प्रेम की छोटी सी डगमगाती नाव

    सब कुछ सहेजती है वह

    मगर

    सब कुछ सहेजते हुए

    वह सिर्फ

    अपने को ही सहेज नहीं पाती।
    http://www.pravakta.com/?p=7588

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  11. @अनवर जमाल जी,
    माफ कीजिएगा मैने अपनी टिप्पणी में आपके सामने जो सवाल उठाए थे...वो अभी तक भी अनुतरित है। हाँ आप जवाब देने से बचने के लिए शब्दाडंबर जरूर रचने लगे....अब आपका ये कहना कि"कहीं सत्य पूर्ण है और कहीं न्यून"..इस बात से तो कोई मूर्ख ही आसहमत हो सकता है। किन्तु मै ये नहीं समझ पा रहा हूँ इस बात का मेरी पहले वाली टिप्पणी में कही बातों से क्या ताल्लुक। ये तो कुछ ऎसा ही हुआ कि मानों आप मुझसे मौसम का हाल पूछ रहे हों और मैं आपको बदले में गीता सार सुनाने लगूँ।
    मेरा कहना सिर्फ ये है कि, ऎसा नहीं है कि आपने कह दिया तो मैं अब जाकर स्वीकरने लगा हूँ बल्कि मैं तो स्वयं पहले से ही इस बात को मानता हूँ कि इस्लाम शान्ती, प्रेम भाईचारे का धर्म है। और ये भी मानता हूँ कि जो समाज में नफरत के बीज बोता है,एक दूसरे में विद्वेष उत्पन करता है...वो किसी भी लिहाज से सच्चा मुसलमान कहलाने का हकदार नहीं है, बल्कि वो तो मुसलमान कहलाने के भी काबिल नहीं है.......लेकिन मेरा कहना सिर्फ इतना सा था
    कि आप एक ओर तो शान्ती, प्रेम और सर्वधर्म सम्मान की बात कर रहे है। आप ये कह रहे हैं कि "इसलाम हर ‘शख्स को उसकी अच्छी या बुरी मान्यताओं के साथ जीने की गारंटी देता है।".. वहीं दूसरी ओर "वेदकुरान" नामक अपने निजि चिट्ठे पर किसी दूसरे धर्म के मानने वालों की मान्यताओं को खंडित करने में लगे हुए हैं। उनके धर्मग्रन्थों में से किसी ऋचा/श्लोक/सूक्ति को उठाकर मनोनुकूल व्याख्याएं कर रहे हैं। क्या ये आपके द्वारा किसी दूसरे के धर्म, उनकी मान्यताओं में किया जा रहा अनैतिक हस्तक्षेप नहीं है।
    अब यदि आप इस हस्तक्षेप को जायज ठहराते हैं तो क्या मैं ये मान लूं कि आपके द्वारा इस्लाम के बारे में किया गया ये कथन गलत है कि "इसलाम हर ‘शख्स को उसकी अच्छी या बुरी मान्यताओं के साथ जीने की गारंटी देता है।" ओर यदि आप इस कथन की सत्यता को स्वीकरते हैं तो फिर मैं यही समझूँगा कि आप इस्लाम के अनुयायी होने के बावजूद भी एक "सच्चे मुसलमान" नहीं है। आपके द्वारा दिए गये ये सारे उपदेश, ये बडी बडी बातें सिर्फ लोगों के बीच अपनी विद्वता का भ्रम पैदा करने के लिए फैलाया जा रहा आडम्बर मात्र है।
    भाई साहब, सारा जीवन गुजर जाता है लेकिन फिर भी हम जिस मत/सम्प्रदाय/धर्म को मानते हैं, उसके मूल को नहीं समझ पाते, उसके सार को ग्रहण करने लायक बुद्धि भी विकसित नहीं हो पाती...तो हम दूसरे के मत/मान्यता/आस्था को कैसे समझ सकते हैं। जितना समय हम दूसरों की गलतियाँ खोजने में नष्ट करते हैं..उतना समय यदि हम अपनी कमियों को सुधारने में लगायें तो कहीं बेहतर इन्सान बन सकते हैं।
    आशा करता हूँ कि आप मेरी बातों को अन्यथा न लेंगें.....

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  12. जब हमारे साधु-संत ही सेक्स रैकेट चलाने में शामिल हैं, तब हम किस पर विश्‍वास करेंगे?

    हमारे समाज में हर स्थिति में पुरुष के लिए सबसे सॉफ्ट टारगेट महिलाएँ ही होती हैं। चाहे उन्हें बदला लेना हो या साम्राज्‍य हासिल करना, दोनों स्थिति में नारी को वस्तु समझा जाता है।

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  13. @ vats ji
    aap nishchay hi ek sajjan aadmi hain.
    ye sharankhla shri aatrey ji ki aapattiyon ka uttar hai .
    ye aap unse puchen ki unhone aapattiyan kyun ki?
    kya hame chup rehna chahiyye?
    waise bhi agar sanvad nahin karenge to poorn satya ko kaise uplabdh honge ?

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  14. देर से आने के लिए माज़रत कुछ ज़रूरी काम में मशरूफ़ था, डॉ साहब मैं आपसे फ़ोन पर बात करना चाहता हूँ मेरा सेल नम्बर है 9838659380

    पोस्ट बहुत ही उम्दा... हमारी अंजुमन को आपकी सख्त ज़रूरत है....

    आपका छोटा भाई
    सलीम ख़ान

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  15. खान साहब आप जमाल साहब के कमाल से घायल होगये हो, हम तो उन्‍हें पहले ही अपना गुरू मान चुके, उनका मोबाइल न. आपको भेज दिया गया है, नमाज के वक्‍तों का खयाल करके उनको फोन किजिये, वैसे डाक्‍टर साहब अधिकतर रात में 8 से 11 आनलाइन होते हैं,

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