
दुःख दर्द का इतिहास
मनुष्य जाति का इतिहास दुख-दर्द और जुल्म की दास्ताना है। उसका वर्तमान भी दुख दर्द और ज़ुल्म से भरा हुआ गुज़र रहा है और भविष्य में आने वाला विनाश भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
ऐसा नहीं है कि इनसान इस हालत से नावाक़िफ़ है या उसने दुख का कारण जानने और दुख से मुक्ति पाने की कोशिश ही नहीं की। इनसान का इतिहास दुखों से मुक्ति पाने की कोशिशों का बयान भी है। वर्तमान जगत की सारी तरक्की और तबाही के पीछे यही कोशिशें कारफ़रमा हैं।
सोचने वालों ने सोचा कि दुख का मूल कारण अज्ञान है। अज्ञान से मुक्ति के लिए इनसानों ने ज्ञान की तरफ़ कदम बढ़ाए। कुछ ने नज़र आने वाली चीज़ों पर एक्सपेरिमेन्ट्स शुरू किए तो कुछ लोगों ने अपने मन और सूक्ष्म शरीर को अपने अध्ययन का विषय बना लिया। वैज्ञानिकों ने आग, पानी, हवा, मिट्टी और अतंरिक्ष को जाना समझा, मनुष्य के शरीर को जाना समझा और अपनी ताक़त के मुताबि़क उन पर कंट्रोल करके उनसे काम भी लिया। हठयोगियों ने शरीर को अपने ढंग से वश में किया और राजयोगियों ने मन जैसी चीज़ का पता लगाया और उसे साधने जैसे दुष्कर कार्य को संभव कर दिखाया।
दुख का कारण
कुछ लोगों ने तृष्णा और वासना को दुखों का मूल कारण समझा और उन्हें त्याग दिया और कुछ लोगों ने सोचा कि शायद उनकी तृप्ति से ही शांति मिले। यह सोचकर वे उनकी पूर्ति में ही जुट गए। इनसानों ने योगी भोगी और नैतिक-अनैतिक सब कुछ बनकर देखा और सारे तरीके़ आज़माए बल्कि आज भी इन्हीं सब तरीकों को आज़मा रहे हैं लेकिन फिर भी मानव जाति को दुखों से मुक्ति और सुख-शांति नसीब नहीं हुई बल्कि उसके दुखों की लिस्ट में एड्स, दहेज, कन्या, भ्रूण हत्या, ग्लोबल वॉर्मिग और सुपरनोवा जैसे नये दुखों के नाम और बढ़ गए। आखि़र क्या वजह रही कि सारे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक लोग मिलकर मानवजाति को किसी एक दुख से भी मुक्ति न दिला सके?
कहीं कोई कमी तो ज़रूर है कि साधनों और प्रयासों के बावजूद सफलता नहीं मिल रही है। विचार करते हैं तो पाते हैं कि ये सारी कोशिशें सिर्फ़ इसलिए बेनतीजा रहीं क्योंकि ये सारी कोशिशें इनसानों ने अपने मन के अनुमान और बुद्धि की अटकल के बल पर कीं और ईश्वर को और उसके ज्ञान को उसका वाजिब हक़ नहीं दिया।
सच्चा राजा एक है
सारी सृष्टि का सच्चा स्वामी केवल एक प्रभु परमेश्वर है। उसी ने हरेक चीज़ को उत्पन्न किया। उनका मक़सद और काम निश्चित किया। उनमें परस्पर निर्भरता और संतुलन क़ायम किया। उनकी मर्यादा और सीमाएं ठहराईं। परमेश्वर ही स्वाभाविक रूप से मार्गदर्शक है। उसने प्रखर चेतना और उच्च मानवीय मूल्यों से युक्त मनुष्यों के अन्तःकरण में अपनी वाणी का अवतरण किया। उन्हें परमज्ञान और दिव्य अनुभूतियों से युक्त करके व्यक्ति और राष्ट्र के लिए आदर्श बना दिया। उन्होंने हर चीज़ खोलकर बता दी और करने लायक सारे काम करके दिखा दिए। इन्हीं लोगों को ऋषि और पैग़म्बर कहा जाता है।
पैग़म्बर (स.) मानवता का आदर्श
इतिहास के जिस कालखण्ड में इन लोगों की शिक्षाओं का पालन किया गया बुरी परम्पराओं और बुरी आदतों का खात्मा हो गया। इनसान की जिन्दगी संतुलित और सहज स्वाभाविक होकर दुखों से मुक्त हो गयी। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.) के द्वारा अरब की बिखरी हुई युद्धप्रिय और अनपढ़ आबादी में आ चुका बदलाव एक ऐतिहासिक साक्ष्य है। यह युगांतरकारी परिवर्तन केवल तभी सम्भव हो पाया जबकि लोगों ने ईश्वर को उसका स्वाभाविक और वाजिब हक़ देना स्वीकार कर लिया। उसे अपना मार्गदर्शक मान लिया। ईश्वर ही वास्तविक राजा और सच्चा बादशाह है यह हमें मानना होगा। उसके नियम-क़ानून ही पालनीय हैं। ऐसा हमें आचरण से दिखाना होगा। यही वह मार्ग है जिसकी प्रार्थना गायत्री मंत्र और सूरा-ए-फ़ातिहा पढ़कर हिन्दू-मुस्लिम करते हैं। सबका रचयिता एक है तो सबके लिए उसकी नीति और व्यवस्था भी एक होना स्वाभाविक है।
कुरआन का इनकार कौन करता है?
पवित्र कुरआन इसी स्वाभाविक सच्चाई का बयान है। इस सत्य को केवल वे लोग नहीं मानते जो पवित्र कुरआन के तथ्यों पर ग़ौर नहीं करते या ग़ुज़रे हुए दौर की राजनीतिक उथल-पुथल की कुंठाएं पाले हुए हैं। ये लोग रहन-सहन,खान-पान और भौतिक ज्ञान में, हर चीज़ में विदेशी भाषा-संस्कृति के नक्क़ाल बने हुए हैं लेकिन जब बात ईश्वरीय ज्ञान पवित्र कुरआन की आती है तो उसे यह कहकर मानने से इनकार कर देते हैं कि यह तो विदेशियों का धर्मग्रंथ है। जबकि देखना यह चाहिए कि यह ग्रंथ ईश्वरीय है या नहीं?
बदलता हुआ समाज
पवित्र क़ुरआन से पहले भी ईश्वर की ओर से महर्षि मनु और हज़रत इब्राहिम आदि ऋषियों-पैग़म्बरों पर हज़ारों बार वाणी का अवतरण हुआ, लेकिन आज उनमें से कोई भी अपने मूलरूप में सुरक्षित नहीं है और जिस रूप में आज वे हमें मिलती हैं तो न तो उनके अन्दर इस तरह का कोई दावा है कि वे ईश्वर की वाणी हैं औन न ही एक आधुनिक समतावादी समाज की राजनीतिक,सामाजिक, आध्यात्मिक व अन्य ज़रूरतों की पूर्ति उनसे हो पाती है। यही वजह है कि उन ग्रन्थों के जानकारों ने उनके द्वारा प्रतिपादित सामाजिक नियम,दण्ड-व्यवस्था और पूजा विधियाँ तक या तो निरस्त कर दी हैं या फिर उनका रूप बदल दिया है। बदलना तो पड़ेगा। लेकिन यह बदलाव भी ईश्वर के मार्गदर्शन में ही होना चाहिए अन्यथा अपनी मर्जी से बदलेंगे तो ऐसा भी हो सकता है कि हाथ में केवल भाषा-संस्कृति ही शेष बचें और धर्म का मर्म जाता रहे, क्योंकि धर्म की गति बड़ी सूक्षम होती है।
पवित्र कुरआन : कसौटी भी, चुनौती भी
पवित्र कुरआन बदलते हुए युग में आवश्यक बदलाव की ज़रूरतों को पूरा करता है। यह स्वयं दावा करता है कि यह ईश्वर की ओर से है। यह स्वयं अपने ईश्वरीय होने का सुबूत देता है और अपने प्रति सन्देह रखने वालों को अपनी सच्चाई की कसौटी और चुनौती एक साथ पेश करता है कि अगर तुम मुझे मनुष्यकृत मानते हो तो मुझ जैसा ग्रंथ बनाकर दिखाओ या कम से कम एक सूरः जैसी ही बनाकर दिखाओ और अगर न बना सको तो मान लो कि मैं तुम्हारे पालनहार की ओर से हूँ जिसका तुम दिन रात गुणगान करते हो। मैं तुम्हारे लिए वही मार्गदर्शन हूँ जिसकी तुम अपने प्रभु से कामना करते हो। मैं दुखों से मुक्ति का वह एकमात्र साधन हूँ जो तुम ढूँढ रहे हो।
पवित्र कुरआन अपनी बातों में ही नहीं बल्कि उन्हें कहने की शैली तक में इतना अनूठा है कि तत्कालीन समाज में अपनी धार्मिक-आर्थिक चैधराहट की ख़ातिर हज़रत मुहम्मद (स.) का विरोध करने वाले भी अरबी के श्रेष्ठ कवियों की मदद लेकर भी पवित्र कुरआन जैसा नहीं बना पाये। जबकि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.) के जीवन की योजना ही ईश्वर ने ऐसी बनायी थी कि वे किसी आदमी से कुछ पढ़ाई-लिखाई नहीं सीख सके थे।
पवित्र कुरआन का चमत्कार
हज़रत मुहम्मद (स.) आज हमारी आँखों के सामने नहीं हैं लेकिन जिस ईश्वरीय ज्ञान पवित्र कुरआन के ज़रिये उन्होंने लोगों को दुख निराशा और पाप से मुक्ति दिलाई वह आज भी हमें विस्मित कर रहा हैै।
एक साल में 12 माह और 365 दिन होते हैं। पूरे कुरआन शरीफ में हज़ारों आयतें हैं लेकिन पूरे कुरआन शरीफ में शब्द शह् र (महीना) 12 बार आया है और शब्द ‘यौम’ (दिन) 365 बार आया है। जबकि अलग-अलग जगहों पर महीने और दिन की बातें अलग-अलग संदर्भ में आयी हैं। क्या एक इनसान के लिए यह संभव है कि वह विषयानुसार वार्तालाप भी करे और गणितीय योजना का भी ध्यान रखे? ‘मुहम्मद’ नाम पूरे कुरआन शरीफ़ में 4 बार आया है तो ‘शरीअत’ भी 4 ही बार आया है। दोनों का ज़िक्र अलग-अलग सूरतों में आया है।‘मलाइका’ (फरिश्ते) 88 बार और ठीक इसी संख्या में ‘शयातीन’ (शैतानों) का बयान है। ‘दुनिया’ का ज़िक्र भी ठीक उतनी ही बार किया गया है जितना कि ‘आखि़रत’ (परलोक) का यानि प्रत्येक का 115 बार। इसी तरह पवित्र कुरआन में ईश्वर ने न केवल स्त्री-पुरूष के मानवधिकारों को बराबर घोषित किया है बल्कि शब्द ‘रजुल’ (मर्द) व शब्द ‘इमरात’ (औरत) को भी बराबर अर्थात् 24-24 बार ही प्रयुक्त किया है।
ज़कात (2.5 प्रतिशत अनिवार्य दान) में बरकत है यह बात मालिक ने जहाँ खोलकर बता दी है। वही उसका गणितीय संकेत उसने ऐसे दिया है कि पवित्र कुरआन में ‘ज़कात’ और ‘बरकात’ दोनों शब्द 32-32 मर्तबा आये हैं। जबकि दोनांे अलग-अलग संदर्भ प्रसंग और स्थानों में प्रयुक्त हुए हैं।
पवित्र कुरआन में जल-थल का अनुपात
एक इनसान और भी ज़्यादा अचम्भित हो जाता है जब वह देखता है कि ‘बर’ (सूखी भूमि) और ‘बह्र’ (समुद्र) दोनांे शब्द क्रमशः 12 और 33 मर्तबा आये हैं और इन शब्दों का आपस में वही अनुपात है जो कि सूखी भूमि और समुद्र का आपसी अनुपात वास्तव में पाया जाता है।
सूखी भूमि का प्रतिशत- 12/45 x 100 = 26.67 %
समुद्र का प्रतिशत- 33/45 x 100 = 73.33 %
सूखी जमीन और समुद्र का आपसी अनुपात क्या है? यह बात आधुनिक खोजों के बाद मनुष्य आज जान पाया है लेकिन आज से 1400 साल पहले कोई भी आदमी यह नहीं जानता था तब यह अनुपात पवित्र कुरआन में कैसे मिलता है? और वह भी एक जटिल गणितीय संरचना के रूप में।
क्या वाकई कोई मनुष्य ऐसा ग्रंथ कभी रच सकता है?
क्या अब भी पवित्र कुरआन को ईश्वरकृत मानने में कोई दुविधा है? (...जारी)
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साभार ''वन्दे ईश्वरम'' मासिक पत्रीका, प़ष्ठ 5 से 9, डा. अनवर जमाल eshvani@gmail.com
पवित्र कुरआन में ईश्वर ने न केवल स्त्री-पुरूष के मानवधिकारों को बराबर घोषित किया है बल्कि शब्द ‘रजुल’ (मर्द) व शब्द ‘इमरात’ (औरत) को भी बराबर अर्थात् 24-24 बार ही प्रयुक्त किया है।
ReplyDeleteपवित्र कुरआन को ईश्वरकृत मानने में कोई दुविधा न पहले थी न अब है, अच्छी जानकारी धन्यवाद
ReplyDeleteumar sahab!! kamaal hain aap!!
ReplyDeletequr'aan kee baaten subhan aallah! deen ki baaten subhanallah! duniya ki baaten mashaallah!!
karam allah ka alhamdolillah!!
shahroz sahab kahan gaye.
@ talib साहब हमारी जानकारी के मुताबिक सलीम खान साहब अज्ञातवास में हैं, आप हमारे साथ हैं शहरोज हमारे साथ कभी था ही नहीं, आगे जो आयेगा पहले कमेंटस में दरखास्त करेगा फिर उस बारे में निर्णय लिया जायगा
ReplyDeleteइनसान के लिए संभव नहीं है कि वह विषयानुसार वार्तालाप भी करे और गणितीय योजना का भी ध्यान रखे?
ReplyDeleteलाजवाब, धन्यवाद
bekaar ki baten dharm men kuch nahin rakha
ReplyDeletechalo koi to sudhar raha hai ishlam ko
ReplyDeleteTarkeshwar Giri ji se sehmat
ReplyDeletefantabulous
ReplyDelete@Aadarniya bhrata shree
ReplyDeleteSudhara to ja raha hai lekin ISLAM ko nahin balki use samajhne wali mansikta ko.
Achha rahega agar hum kadwi kaseli baton ke bajay positively baten karen.
achha mahol banega.
mera ati vinamra nivedan hai,Sir.
Aasha hai apka sahyog zaroor milega.
आपकी बात कुरआन से शुरू होकर वहीं खत्म हो जाती है, जबकि सनातन संस्कृति में अनगिनत दिव्य ग्रंथ हैं. हां, कुरआन को भी उन्हीं का एक हिस्सा मान सकता हूं, उनसे ज्यादा और कुछ नहीं.
ReplyDeleteउमर भाई,
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख........काफ़ी अच्छी जानकारी शुक्रिया...
@ Satyajeetprakash जी,
ReplyDeleteआप शायद उन्ही दिव्य ग्रन्थों की बात कर रहे हैं जिनको अब तक हज़ारों बार इन्सानों द्वारा "टीका" जा चुका है.......अब इतनी बार इनसानों द्वारा टीका करने के बाद कोई ग्रन्थ दिव्य कब बचा???
जबकि "कुरआन" दुनिया अकेला ऐसा धर्मग्रन्थ है कि जैसा वो नाज़िल हुआ था आज भी उसी रुप में मौजुद है.....कोई बदलाव नही हुआ है...
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"हमारा हिन्दुस्तान"
"इस्लाम और कुरआन"
The Holy Qur-an
Unique Collection Of Technology
Coding | A Programmers Area
ये तो "अर्श" की पाक क़िताब है। उन "फ़र्श" पर बैठों को क्या समज़ाएं जो इस की इज़्जत करना नहिं जानते।
ReplyDeleteबढिया जानकारी।
सत्य जीत प्रकाश जी, आप की बातो से सहमत हूँ, लेकिन अनवर जमाल साहेब ने जो उदहारण पेश किया है वो काबिले तारीफ है। कुरान एक धार्मिक ग्रन्थ उस पर टीका टिप्पड़ी करना गलत है। लेकिन मैं जानना चाहता हूँ काशिफ आरिफ साहेब से की वो ये बतायें की क्या कुरान के अलावा बाकि धर्मो के ग्रन्थ क्या बेकार हैं।
ReplyDeleteआप ये कैसे दावे के साथ कह सकते हैं की हमारे धर्म ग्रंथो के साथ छेड़ खानी या बदलाव किये गए हैं।
जिस विज्ञानं को आप कुरान मैं खोज रहे है वो हमारे वेदों मैं हजारो सालो से विधमान है, अगर आप वेदों के बारे मैं जानकारी हासिल करे तो वो सब कुछ आपको मिलेगा जो एक विज्ञानं मैं होना चाहिए। और ये बात बताने की नहीं ये तो पूरी दुनिया जानती है की भारतीय धर्म ग्रंथो की क्या अहमियत है। वेदों से ही आयुर्वेद की उत्तपति हुई है, वेदों से राजनीती की उत्तपति हुई है और बहुत सारी बाते .......................
और रजिया जी आपकी बाते बिलकुल ही सही है , उन फर्श पर बैठे लोगो को क्या पता की धर्म ग्रन्थ क्या चीज होती है।
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ReplyDelete.
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भाई कैरानवी,
अच्छा आलेख, धर्म प्रचार के लिये अत्यंत उपयोगी, मुझे कोई आपत्ति भी नहीं इस बात पर, केवल दो बातों की ओर ध्यान दिलाना चाहूंगा...
1- इस्लामिक हिजरी कैलेंडर में अमूमन साल में 12 महीने और 354 दिन होते हैं 365 दिन नहीं, यानी ग्रेगोरियन सोलर कैलेंडर से 11 दिन कम, और This calendar is based on the Qur'an (Sura IX, 36-37) and its proper observance is a sacred duty for Muslims.
2- यहाँ पर... और यहाँ पर भी... कोई भी देख सकता है कि...
सूखी भूमि का प्रतिशत- 12/45 x 100 = 26.67 %
समुद्र का प्रतिशत- 33/45 x 100 = 73.33 %
न होकर यह है...
भूमि = 29.2%
समुद्र = 70.8%
आभार!
तारकेश्वरजी। आभार! आपने मेरी कमेंट को सराहा कि फ़र्श पर बैठे लोगों को क्या पता कि धर्म ग्रंथ क्या चीज़ होती है?
ReplyDeleteऔर हमें ऐसा कोई हक़ नहिं की हम किसी के धार्मिक ग्रंथॉ के साथ टिका टिप्पणी करें।
कोई भी ग्रंथ ने ये नहिं कहा कि किसी की भावनाओं को ठेस पहोंचाओ।
आभार।
@ प्रवीण शाह जी आपकी बात पर विचार किया जा रहा है, मैं इस पंक्ति को हटाना चा रहा था कि अनवर जमाल साहब की तरफ से कहा गया कि वह जल्द जवाब देंगे, शायद आज रात तक, उनका कहना है गणितिय चमत्कार में बातें बढायी जायेंगी घटेंगी नहीं, इन्शाअल्लाह(अगर अल्लाह ने चाहा तो)
ReplyDelete@ प्रवीण शाह जी आपकी आपत्ति पर विचार किया जा रहा है, मैं इस पंक्ति को हटाना चा रहा था कि अनवर जमाल साहब की तरफ से कहा गया कि वह जल्द जवाब देंगे, शायद आज रात तक, उनका कहना है गणितिय चमत्कार में बातें बढायी जायेंगी घटेंगी नहीं, इन्शाअल्लाह(अगर अल्लाह ने चाहा तो)
ReplyDelete@Satyajeetprakash जी, आप सनातन धर्म का मतलब जानें इस विषय पर तीन भाषाओं में पुस्तक उपलब्ध है उसे पढें फिर कुछ कहें तो जानें, या फिर इस पोस्ट की शुरू की पंक्ति पर विचार करें,
ReplyDeleteBook: "agar ab bhi na jage to"
जिस पुस्तक ने उर्दू जगत में तहलका मचा दिया और लाखों भारतीय मुसलमानों को अपने हिन्दू भाईयों एवं सनातन धर्म के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलने पर मजूर कर दिया था उसका यह हिन्दी रूपान्तर है, महान सन्त एवं विद्वान मौलाना आचार्य शम्स नवेद उस्मानी के धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन पर आधारति पुस्तक के लेखक हैं, धार्मिक तुलनात्मक अध्ययन के जाने माने लेखक और स्वर्गीय सन्त के प्रिय शिष्य एस. अब्दुल्लाह तारिक, स्वर्गीय मौलाना ही के एक योग्य शिष्य जावेद अन्जुम (प्रवक्ता अर्थ शास्त्र) के हाथों पुस्तक के अनुवाद द्वारा यह संभव हो सका है कि अनुवाद में मूल पुस्तक के असल भाव का प्रतिबिम्ब उतर आए इस्लाम की ज्योति में मूल सनातन धर्म के भीतर झांकाने का सार्थक प्रयास हिन्दी प्रेमियों के लिए प्रस्तुत है,
Direct link
http://islaminhindi.blogspot.com/2009/08/famous-book-ab-bhi-na-jage-to.html
gr8 article!!!
ReplyDelete@Janab umar sahib,
ReplyDeleteJab Bhrata Pravn ji ne apatti ki hi nahin to aap use apatti kyun kehte hain,unhone kuchh facts ki taraf DHYAN dilaya hai. DHYAN kuchh WAQT chahta hai so DHYAN dekar zaroor jawab diya jayega,Insha Allah.
@Aadarniya Satyajit ji
aap Pavitra Quran ko Sanatan sahitya ka hissa manne se zyada kuchh nahi mante.Bhai sahab isse zyada kisi ne apse manne ke liye kaha kab hai?Lekin kuchh bhi manna tabhi sarthak hota hai jab KARM bhi us manyta ke anuroop ho. PAVITRA Quran ki shiksha ke anuroop chalna ab aap par farz ho chuka hai.
MAIN khud Pavitra Quran ko SANATAN DHARM ki PUNARSTHAPNA karne wala GRANTH manta hun . Woh to MAHARISHI MANU aur UNKE DHARM ke palan ki hi shiksha deta hai.
@Aaarniya Tarkshwar ji
ReplyDeleteAAPNE POOCHHA
आप ये कैसे दावे के साथ कह सकते हैं की हमारे धर्म ग्रंथो के साथ छेड़ खानी या बदलाव किये गए हैं।
ye janne ke liye itna kafi hai ki aap kisi bhi hindu Dhamgranth ko do alag alag prakashanon se lekar apas men tele kar ke dekh len. Sampadit Ramayan ke vivad ko guzre hue bhi zyada waqt nahin guzra.
जिस विज्ञानं को आप कुरान मैं खोज रहे है वो हमारे वेदों मैं हजारो सालो से विधमान है, अगर आप वेदों के बारे मैं जानकारी हासिल करे तो वो सब कुछ आपको मिलेगा जो एक विज्ञानं मैं होना चाहिए।
Agar aisa hai to ved purano ka goodh gyan rakhne wale panditon ke dwara kiye ja rahe inventions ki list bhi de dijiye.
और ये बात बताने की नहीं ये तो पूरी दुनिया जानती है की भारतीय धर्म ग्रंथो की क्या अहमियत है। वेदों से ही आयुर्वेद की उत्तपति हुई है, वेदों से राजनीती की उत्तपति हुई है और बहुत सारी बाते .......................
Aur duniya ko SAAM DAAM DAND BHED KI SHIKSHA BHI KYA YAHIN SE DEE GAYEE ?, JIS KI WAJAH SE AAJ SARI MANAVTA TABAHI KA SHIKAR HAI?
VEDIC SAHITYA MEN AUR RISHIYO MEN
MERI AASTHA HAI LEKIN MEN MANTA HUN KI UNKI SHIKSHA KO BAAD KE LOGO NE BIGAD DIYA.
DEVDASI PRATHA SATI PRATHA CHHOTCHHAT SHAMBOOK HATYA RASLILAYEN MURTI POOJA WAGHERA HINDU SAHITYA MEN BAAD KE DAUR KI MALIWAT MANTA HUN AUR SABSE INHE ASATYA SAMAJHNE KA AAGRAH BHI KARTA HUN.
अज्ञान से मुक्ति के लिए इनसानों ने ज्ञान की तरफ़ कदम बढ़ाए। कुछ ने नज़र आने वाली चीज़ों पर एक्सपेरिमेन्ट्स शुरू किए तो कुछ लोगों ने अपने मन और सूक्ष्म शरीर को अपने अध्ययन का विषय बना लिया। वैज्ञानिकों ने आग, पानी, हवा, मिट्टी और अतंरिक्ष को जाना समझा, मनुष्य के शरीर को जाना समझा और अपनी ताक़त के मुताबि़क उन पर कंट्रोल करके उनसे काम भी लिया। हठयोगियों ने शरीर को अपने ढंग से वश में किया और राजयोगियों ने मन जैसी चीज़ का पता लगाया और उसे साधने जैसे दुष्कर कार्य को संभव कर दिखाया।
ReplyDelete@ Shah ji
ReplyDeleteचांद के महीने में 354 दिन ही होते हैं।
और हमारा हर महीना मौसम के हिसाब से नहीं चांद के हिसाब से होता है, लेकिन यहां बात है प्रथ्वी के सूरज के चक्कर लगाने की।
और हमें सातवा आठवां दिन कभी एअक साथ मनाने की ज़रूरत नहीं पड़ती जैसा की अक्सर नवरात्री में होता है।
और न ही हमें कोई त्योहार ईसवीं के केलेंडर से मनाने की ज़रूरत पड़ती है जैसे की 14 jan.= सकरात
@ gazi sahb, नीचे दिये लिंक पर सैंकडों कुरआन के गनितिय चमत्कार दिये हैं, उनमें देख कर बतायें हिन्दी पाठकों के लिये कौन से उपयुक्त रहेंगे, कुछ को हिन्दी में कमेंटस कर सकें तो और भी अच्छा
ReplyDeleteDirect link
http://www.rashadkhalifa.org/mathematical-miracle.html
उमर साहब एक छोटी सी चीज़ पर आपका ध्यान दिलाना चाहता हूं।
ReplyDelete"बर’ (सूखी भूमि) और ‘बह्र’ (समुद्र) दोनांे शब्द क्रमशः 13 और 33 मर्तबा आये हैं और इन शब्दों का आपस में वही अनुपात है जो कि सूखी भूमि और समुद्र का आपसी अनुपात वास्तव में पाया जाता है।
सूखी भूमि का प्रतिशत- 13/46 x 100 = 28.26087 %
समुद्र का प्रतिशत- 33/46 x 100 = 71.73913 %"
28.26087
71.73913
----------------
= 100%
उम्मीद है शाह जी को जवाब मिल गया होगा।
उमर साहब आपके द्वारा महत्वपॄर्ण जानकारी मिली है
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया।
जनाब,
ReplyDeleteमैं 'हमारी अंजुमन' का मेंबर बनना चाहता हूँ. मेहरबानी फरमाकर मुझे अंजुमन में शामिल किया जाए.
शुक्रिया.
जीशान जैदी
@ zeashan zaidi ji, insha allah raat tak doston ki raye comments men mil jayegi,, aapki mehnat ko dekhte huye hamen intezar to nahin karana chahiye tha,..par niyam ki baat he tab tak aap koi anjuman ke liye post tayyar kar lijiye..aapka behad shukriya
ReplyDeleteये निष्कर्ष कहाँ से आये किसने गिनती की? किसी वैज्ञानिक संस्था ने इसकी क्रोस चैकिंग की या नहीं? या अपने मन से कह रहे हो? क्योंकि किसी के पास फुर्सत नहीं की कुआं की आयत में शब्द गिनता बैठे. कोई मान्यता प्राप्त सरकारी यूनिवर्सिटी से ही इसे वेरीफाई करा लो. सब बकवास है, हिजरी में तीन सौ पैसठ दिन? हद है? अगर ध्यान रहता तो तीन सौ चौवन दिनों का अनुपात निकाल देते, कोई गिनता थोड़े बैठेगा
ReplyDeleteकम से कम कोई इस गिनती वाले निष्कर्ष को वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित ही करा लेता? या इन अनुपातों पर किसी यूनिवर्सिटी या शोध संस्था की मुहर लगवा देता?
मि. असुविधा
ReplyDeleteयहाँ जाओ और सचित्र वैज्ञानिकों के दर्शन करो
और उनके विचार पढ़ो।
विज्ञान, क़ुरआन के आईने में
और एक बात समझो कि अल्लाह को जानने के लिए हमें विज्ञान की ज़रूरत नहीं है, विज्ञान अल्लाह से है न कि अल्लाह विज्ञान से।
और अल्लाह के गणित की बड़ी मिसालें तो अभी बतानी बाकी हैं इंतज़ार करो अभी बहुत बड़े बड़े समीकरण सामने आने वाले हैं हल करते रहना।
ReplyDeleteशोध किस यूनिवर्सिटी या वैज्ञानिक संसथान से प्रमाणित है?
ReplyDeleteउमर भाई, जीशान भाई के लिए बतौर मेम्बर मेरी स्वीकृति हैं.
ReplyDelete@Aadarniya Praveen Shah ji ,
ReplyDeleteShukrawar ki vyastta ke karan apko thoda intezar karna pada.iske liye chhama.
Humne apke DHYANAKARSHAN ko apne buzurg scholar Janab S.ABDULLAH TARIQ SAHIB
ko fwd kar diya tha. Janab Tariq sahib is subject par authority hain aur SANATAN DHARM aur
ISLAM ko moolat: ek mante hain.
janab ki english book e-book ki shakl men bina kisi software ke is link par padhi ja sakti hai.
http://www.scribd.com/doc/24937991/now-or-neve
Apke dwara pesh kiye gaye facts par DHYAN dene ke baad janab ne jo jawab diya hai ,
use pesh e khidmat kiya ja raha hai-
The answer of Praveen Shah
ReplyDeleteA.1
According to 9:36-37 of Qur'an Religious rites and our supplications should be performed according to lunar calendar and not the solar calendar. However the solar cycle and earth's revolution round the earth in approximately 365 days has also been appointed and fixed by Allah and its observance in other matters is neither against sacred duties of Muslims nor prohibited. For example summer, winter and other seasonal crops will grow in their respective seasons according to solar calendar and this is also ordained by Allah. Hindus, Jews, Christians and others used to follow the Lunar Calendar. Even today, except for Christmas, many important dates of Christian festivals are observed according to Lunar Calendar. They observed lunar calendar but to observe certain rites in certain seasons they used to add an extra month in the 12 lunar months so that their festivals fall according to seasons. This was prohibited in Qur'an 9:37. If you sow your wheat in a particular solar month and observe solar calendar in that matter it is not prohibited. The Qur'an itself declares that the calculations are permitted according to the sun and moon both. The following Qur'an Ayahs prove it.
और हमने रात और दिन को (अपनी क़ुदरत की) दो निशानियाँ क़रार दिया फिर हमने रात की निशानी (चाँद) को धुँधला बनाया और दिन की निशानी (सूरज) को रौशन बनाया ताकि तुम लोग अपने परवरदिगार का फज़ल ढूँढते फिरो और ताकि तुम सालों की गिनती और हिसाब मालूम करसको और हमने हर चीज़ की ख़ूब अच्छी तरह तफ़सील कर दी है (17ः12)
सूरज और चाँद एक हिसाब के साथ हैं(55ः5)और हमने रात और दिन को (अपनी क़ुदरत की) दो निशानियाँ क़रार दिया फिर हमने रात की निशानी (चाँद) को धुँधला बनाया और दिन की निशानी (सूरज) को रौशन बनाया ताकि तुम लोग अपने परवरदिगार का फज़ल ढूँढते फिरो और ताकि तुम सालों की गिनती और हिसाब मालूम करसको और हमने हर चीज़ की ख़ूब अच्छी तरह तफ़सील कर दी है (17ः12)
सूरज और चाँद एक हिसाब के साथ हैं(55ः5)
A.2
The datas given at WIkipedia are not always accurate even then many sites follow and copy data from it. For example the site http://www.physicalgeography.net/fundamentals/8o.html which you have mentioned has probably copied it from Wikipedia. In that site add the given %ages of water area of Pacific, Atlantic. Indian. Southern and Arctic Oceans. You will get 30.5+20.8+14.4+4.0+2.8 = 72.5% of water in all the oceans. Now see that in the same site, the combined water area of all the oceans is given as 70.8%, an error of 1.7%. Please do not try to undermine the miracle of Qur'an by quoting from faulty and wrong data.
You may refer to the UNESCO project site http://catdir.loc.gov/catdir/samples/cam034/2002031201.pdf for the correct data.
The surface area of water in all the oceans is 361.3 million Sq.Km.
Please know that this does not include the water contained by lakes and rivers on the land.
The total surface area of all the lakes is 2.0587 million Sq. Km.
The total average surface area of all the rivers is 10.687 million Sq. Km.
Adding all these we get the total water area on the surface of the planet earth.
361.3+2.0587+10.687= 374.0457
Now the total area of the earth is 510.065 million Sq. Km.
The %age of water on the surface of earth is 374.0457 X 100/510.065 = 73.333%
And naturally the %age of land is 100-73.333 = 26.666%
Actually 29.2% of land area is inclusive of lakes and rivers. The actual land area is 26.67%
The Answer to Mr. Gazi
The word 'Barr' (land) occurs in Quran in the following Ayahs: 5:96, 6:59, 6:63, 6:97, 10:22, 17:67, 17:68, 17:70, 27:63, 29:65, 30:41 & 31:32. These are 12 occurrences in all. Please let me know the reference of the 13th. Ayah as you have claimed. In fact there is no 13th. Ayah containing this word.
Syed Abdullah Tariq
उमर भाई, ज़ीशान भाई को आप अन्जुंमन का मेम्बर बना सकते है.....मेरी स्वीक्रती है
ReplyDelete@ अनवर जमाल साहब, जवाब से अन्जुमन के दोस्त मुतमईन हैं, बहुत जल्द इसे हिन्दी में भी कर दिया जायेगा, उम्मीद है आप इस विषय पर और बातें पेश करेंगें
ReplyDelete@ zeashan zaidi भाई काशिफ साहब, सलीम साहब और फोन पर तालिब साहब की स्वीकृति पर आपकों invitation भेज दिया गया है
बहुत ही बेहतर आलेख। जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है। इस आर्टिकल के लिए और इस पर आई अहम टिप्पणियों के लिए मैं सभी का तहेदिल से शुक्रिया अदा करता हूं। खास तौर पर अनवर जमाल साहब का जिन्होंने बेहतर और सार्थक टिप्पणियां पेश की
ReplyDeleteसाथ ही जीशान जैदी साहब का हमारी तरफ से तहेदिल से इस्तकबाल और उम्मीद है कि अपनी कलम के जोर से वे हमारी अंजुमन को और महकाएंगे। अल्लाह से दुआ है कि वह आप जैसे कलमकारों की कलम को ताकत बख्शे ताकि वह सच्चाई को बेहतर अंदाज में सब लोगों के सामने पेश कर सके। आमीन
अल्लाह हम सबको और ज़्यादा नेकी की तौफीक़ दे। मेरे पास इसका अगला भाग तक़रीबन तैयार है। लेकिन उससे पहले जनाब तारिक़ साहब के जवाब को हिन्दी मे पेश करना भी मुफ़ीद होगा ।
ReplyDelete@ इस्लामी भाई यह बेहतर आलेख भी अनवर जमाल साहब की कलम से है, जो उन्होंने मेरी फरमाइश पर तैयार किया है, वह मेरे धर्मगुरू हैं टिप्पणियों में उनके गुरूजी अर्थात तारिक साहब की भी सहायता हमें मिली, मेरी बेहद कोशिश थी आप ब्लागिंग में आयें आपने तारीफ से नवाजा इनसे उन्हें बेहद हौसला मिलेगा,
ReplyDeleteअनवर जमाल साहब की खाहिश थी कि यह तारिक साहब का कमेंट हिन्दी में होजाये, तालिब साहब बुक फेयर में व्यस्त हैं, काशिफ साहब ने भी करने को कहा है, मुझे लगता है इसकी हिन्दी आप भी आसानी से कर सकते हैं
धन्यवाद
ज़ीशान भाई आपका हमारी अन्जुमन में तहे दिल से इस्तेकबाल है.
ReplyDeleteइस मौक़े पर एक शेर अर्ज़ है:
...."मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया!"
अल्हम्दुलिल्लाह !!!
सभी भाइयों का बहुत बहुत शुक्रिया की आपने मुझे अंजुमन में शामिल किया. इंशा अल्लाह मेरी पूरी कोशिश रहेगी की इस्लाम के बारे में जो गलतफहमियां गैर मुस्लिमों में (और कई मुसलमानों में भी) फैली हैं उन्हें लोजिक के ज़रिये दूर करके सही तस्वीर पेश कर सकूं.
ReplyDeleteinsha Allah !!!
ReplyDeleteमाशाल्लाह, बहुत अच्छी पोस्ट रही, ऐसे ही लगे रहिए, आप सब को मुबारकबाद
ReplyDeleteज़िशान ज़ैदी साहब का हम हमारी अंजुमन में इस्तक्बाल करते हैं। और ये उम्मीद है कि ज़ैदी साहब की हर कोशिश कामयाब रहेगी ईंशाअल्लाह।
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