Wednesday, November 4, 2009

‘वन्दे मातरम्’ का अनुवाद, हकीक़त, & नफ़रत की आग बुझाइएः -डा. अनवर जमाल vande-matram-islamic-answer

वन्दे मातरम् एक ऐसा इश्यू है जो सोचे समझे तरीके़ से रह रह कर उठाया जाता है। कान्ति मासिक जुलाई 1999 में प्रकाशित यह लेख आज भी प्रासंगिक है।
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वन्दे मातरम्!
सुजलां सुफलां मलयजशीतलां
शस्यश्यामलां मातरम्!

शुभ-ज्योत्सना-पुलकित-यामिनीम्
फुल्ल-कुसुमित-द्रमुदल शोभिनीम्
सुहासिनी सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां वरदां मातरम्!

सन्तकोटिकंठ-कलकल-निनादकराले
द्विसप्तकोटि भुजैर्धृतखरकरबाले
अबला केनो माँ एतो बले।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदल वारिणीं मातरम्!

तुमि विद्या तुमि धर्म
तुमि हरि तुमि कर्म
त्वम् हि प्राणाः शरीरे।
बाहुते तुमि मा शक्ति
हृदये तुमि मा भक्ति
तोमारइ प्रतिमा गड़ि मंदिरें-मंदिरे।

त्वं हि दूर्गा दशप्रहरणधारिणी
कमला कमल-दल विहारिणी
वाणी विद्यादायिनी नवामि त्वां
नवामि कमलाम् अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलां मातरम्!
वन्दे मातरम्!

श्यामलां सरलां सुस्मितां भूषिताम्
धरणीं भरणीम् मातरम्।
(साभारः आनन्द मठ् पृ0 60, राजकमल प्रकाशन,संस्करण तृतीय, 1997)

अनुवाद
1.
हे माँ मैं तेरी वन्दना करता हूँ
तेरे अच्छे पानी, अच्छे फलों,
सुगन्धित, शुष्क, उत्तरी समीर (हवा)
हरे-भरे खेतों वाली मेरी माँ।
2.
सुन्दर चाँदनी से प्रकाशित रात वाली,
खिले हुए फूलों और घने वृ़क्षों वाली,
सुमधुर भाषा वाली,
सुख देने वाली वरदायिनी मेरी माँ।
3.
तीस करोड़ कण्ठों की जोशीली आवाज़ें,
साठ करोड़ भुजाओं में तलवारों को
धारण किये हुए
क्या इतनी शक्ति के बाद भी,
हे माँ तू निर्बल है,
तू ही हमारी भुजाओं की शक्ति है,
मैं तेरी पद-वन्दना करता हूँ मेरी माँ।
4.
तू ही मेरा ज्ञान, तू ही मेरा धर्म है,
तू ही मेरा अन्तर्मन, तू ही मेरा लक्ष्य,
तू ही मेरे शरीर का प्राण,
तू ही भुजाओं की शक्ति है,
मन के भीतर तेरा ही सत्य है,
तेरी ही मन मोहिनी मूर्ति
एक-एक मन्दिर में,
5.
तू ही दुर्गा दश सशस्त्र भुजाओं वाली,
तू ही कमला है, कमल के फूलों की बहार,
तू ही ज्ञान गंगा है, परिपूर्ण करने वाली,
मैं तेरा दास हूँ, दासों का भी दास,
दासों के दास का भी दास,
अच्छे पानी अच्छे फलों वाली मेरी माँ,
मैं तेरी वन्दना करता हूँ।
6.
लहलहाते खेतों वाली, पवित्र, मोहिनी,
सुशोभित, शक्तिशालिनी, अजर-अमर
मैं तेरी वन्दना करता हूँ।
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‘वन्दे मातरम्’ की हक़ीक़त
‘आनन्दमठ ’ में मुस्लिम समुदाय का चित्रण

‘आनन्दमठ’ बंकिमचन्द्र चट्टोपध्याय का सर्वाधिक आलोचित विवादस्पद उपन्यास है। यह उपन्यास सन् 1882 ई0 में पुस्तकाकार प्रकाशित हुआ था। इससे पहले ‘बंगदर्शन’ नामक पत्रिका में यह धारावाहिक रूप में प्रकाशित होता रहा था। ‘वन्देमातरम् गीत इसी के अन्तर्गत है। इंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका में आनन्दमठ की रचना के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए रमेशचन्द्र ने लिखा है
&ß The General Moral of the ' Ananda Math' then, is that British Rule and British Education are to be accepted as the only alternative to Mussalman oppression.ß
अर्थात् अंग्रेजी शासन और शिक्षा को स्वीकार करना ही मुस्लिम शोषण तथा दमन से बचने का एकमात्र विकल्प है।
यहां, यह बात उल्लेखनीय है कि बंकिमचन्द्र के जीवनकाल में ही ‘आनन्दमठ’ के पांच संस्करण छप गए थे और उपन्यासकार ने इसके प्रत्येक संस्करण में अनेकानेक संशोधन किए थे। इसी आधार पर नामवर सिंह जैसे अनेक विद्वान कहते हैं कि आनन्दमठ की रचना पहले अंग्रेजी सत्ता के विरूद्ध की गयी थी, परन्तु सरकारी नौकर होने के कारण अंग्रेज ‘आक़ाओं’ के दबाव तथा प्रलोभन के कारण इसे संशोधित करके मुस्लिम-विरोधी बना दिया गया।
अंग्रेजों ने भारत पर राज करने के लिए ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाई थी। परन्तु ‘वन्देमातरम्’ और ‘सरस्वती वन्दना’ को स्कूलों आदि में अनिवार्य घोषित करने की मांग करनेवालों ने ‘डराओ और राज करो की नीति अपना ली है। ‘वन्देमातरम् के समर्थक कहते है’-
हिन्दुस्तान में रहना होगा तो वन्देमातरम् कहना है कि वन्देमातम् का विरोध करना भारत का विरोध करना है और भारत का विरोध राष्ट्रद्रोह है। राष्ट्रद्रोह की इजाज़त किसी को भी नहीं दी जा सकती चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान।
इसके विपरीत इसके विरोधियों का कहना है कि वन्देमातरम् या सरस्वती वन्दना कहना गाना और इन्हें अनिवार्य घोषित के करना मुसलमानों के विश्वास के खि़लाफ़ है। मुसलमान कहता है-
‘मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई इलाह (पूज्य प्रभु) नहीं। मैं गवाही देता हूं कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) अल्लाह के रसूल (ईशदूत) हैं। ‘अल-हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन’ यानी सारी प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का, समस्त जड़- चेतन पदार्थो का पालनकर्ता है। इसलिए मुसलमान अल्लाह के अतिरिक्त किसी की भी पूजा-अर्चना नहीं कर सकता, चाहे वह स्वयं ईशदूत ही क्यों न हों। हां, वह प्रत्येक सगे-संबंधी या किसी को भी उसका उचित मान-सम्मान अवश्य देता है।
ईसाई या उन संगठनों के माननेवाले भी वन्देमातरम् और सरस्वती वन्दना को अनिवार्य किए जाने के सख्त ख़िलाफ़ है, जो एक ईश्वर को मानते हैं और उसके सिवा किसी को पूजनीय नहीं समझते।
इस प्रकार वन्देमातरम् या सरस्वती वन्दना को लेकर लोग प्रायः दो धड़ों में बंटे हुए है। एक धड़ा इसका समर्थन करता है, तो दूसरा विरोध। दोनों के अपने-अपने तर्क हैं। परन्तु दोनों में से किसी भी धड़े ने ‘आनन्दमठ’ की कथावस्तु को मूल रूप में जनता के समक्ष रखने का कष्ट नहीं किया है ताकि जनता सच्चाई से अवगत हो जाए। इसकी व्याख्या प्रायः संदर्भ से हटकर की जाती रही है।
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है। आनन्दमठ की रचना अंग्रेजों के शासनकाल में हुई परन्तु इसकी कथावस्तु मुस्लिम शासनकाल की है। सन् 1175 बंगाल में बहुत भंयकर अकाल पड़ा था। उसी अकाल की पृष्ठभूमि में बंगाल केे सन्यासी-विद्रोह की घटना को लेकर इस उपन्यास की रचना की गई। उपन्यास में हैं-
1174 में फ़सल अच्छी नहीं हुई। अतः 1175 में अकाल आ पड़ा- भारतवासियों पर संकट आया.... पहले एक संध्या का उपवास हुआ, फिर एक समय भी आधा पेट भोजन न मिलने लगा। इसके बाद दो-दो संध्या उपवास होने लगा। चैत में जो कुछ फसल हुई, वह किसी के एक ग्रास भर को भी न हुई। लेकिन मालगुज़ारी के अफ़सर मुहम्मद रज़ा खंा ने मन में सोचा कि यही समय है, मेरे तपने का। एकदम उसने दस प्रतिशत मालगुज़ारी बढ़ा दी। बंगाल में घर-घर कोहराम मच गया। (बंकिम समग्र, सम्पादक निहालचन्द्र शर्मा, पृ0 735, तृतीय संस्करण 1989, हिन्दी प्रचारक संस्थान, वाराणसी)
आनन्दमठ एक अत्यन्त सघन तथा भयंकर वन में बहुत विस्तृत भूमि पर ठोस पत्थरों से निर्मित एक बहुत बड़ा मठ है। यह पहले बौद्ध विहार था, परन्तु इस पर अब हिन्दू साधु-संन्यासी, जिन्हें उपन्यास में संतान कहा गया है, का क़ब्ज़ा हो गया है। उपन्यास में संतान ऐसे साधु- संन्यासियों को कहा गया है, जिन्होने इस संकल्प के साथ अपना घरबार त्यागा है कि जब तक भारतभूमि को मुस्लिम-शासन से मुक्त नहीं करवाएंगे, चैन से नहीं बैठेंगे और न ही घर-गृहस्थी बसाएंगे। संतान वैष्णव हैं और हिंसा का समर्थन करते हैं।
महेन्द्र ने विस्मय से पूछा-तुम लोग कौन हो?
भवानन्द ने उत्तर दिया-हम लोग संतान हैं।
महेन्द्र-संतान क्या है? किसकी संतान हैं?
भवानन्द-माता की संतान!
महेन्द्र-ठीक! तो क्या संतान लोग चोरी-डकैती करके मां की पूजा करते हैं। यह कैसी मातृभक्ति? (पृ0 745-46)
संतान दो तरह के हैं- दीक्षित और अदीक्षित। जो अदीक्षित हैं, वे या तो संसारी हैं अथवा भिखारी। वे लोग केवल युद्ध के समय आकर उपस्थित हो जाते हैं, लूट का हिस्सा या पुरस्कार पाकर चले जाते हैं। जो दीक्षित हैं, सर्वस्वत्यागी हैं। यही लोग सम्प्रदाय के कत्र्ता हैं। (पृ0771)
बंगला सन् 1173 में बंगाल प्रदेश अंग्रेजों के शासनाधीन नहीं हुआ था। अंग्रेज़ उस समय बंगाल के दीवान ही थे। वे खज़ाने का रूपया वसूलते थे, लेकिन तब बंगालियों की रक्षा का भार उन्होंने अपने ऊपर लिया न था। उस समय लगान की वसूली का भार अंग्रेजों पर था और कुल सम्पत्ति की रक्षा का भार पापिष्ट, नराधम, विश्वासघातक, मनुष्य-कुलकलंक मीर जाफ़र पर था। (पृ0 741)
हर देश का राजा अपनी प्रजा की दशा का, भरण-पोषण का ख़याल रखता है। हमारे देश का मुसलमान राजा क्या हमारी रक्षा कर रहा है?
धर्म गया, जाति गई, मान गया-अब तो प्राणों पर बाज़ी आ गई है। इन नशेबाज़ दाढ़ीवालों को बिना भगाए क्या हिन्दू-हिन्दू रह जाएंगें?
महेन्द्र-कैसे भगाओगे?
भवानन्द-मारकर! (पृ॰ 746)
भवानन्द मुसलमानों को कायर और अंग्रेजों को बहादुर बताते हुए कहता है-
“एक अंग्रेज़ प्राण जाने पर भी भागता नहीं, लेकिन एक मुसलमान पसीना होते ही भागता है, शरबत की खोज करता है। इससे मान लो, अंग्रेज जो करना चाहते हैं करके छोड़ते हैं, उनमें लगन होती है मुसलमान आरामतलब होते हैं, रूपए के लिए प्राण देते हैं- उस पर तनख्वाह भी तो नहीं पाते। सबसे अंतिम बात यह है कि अंग्रेज़ साहसी होते हैं। एक गोला एक ही जगह जाकर गिरेगा, दस जगह नहीं। अतः एक गोले को देखकर दस आदमियों के भागने की क्या ज़रूरत हैं? एक गोले के छूटते ही मुसलमान फ़ौज की फौ़ज भागती है। लेकिन सैकड़ों गोले देखकर भी एक अंग्रेज़ तो नहीं भागता (पृ0 747) भवानन्द ने गाना शुरू किया-
वन्दे मातरम्! सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम् शस्यश्यामलां मातरम् ।
महेन्द्र गाना सुनकर कुछ आश्चर्य में आए। वे कुछ समझ न सके-
सुजलां, सुफलां, मलयजशीतलां, शस्यश्यामलाम् माता कौन है?
उन्होंने पूछा यह माता कौन है?
कोई उत्तर न देकर भवानन्द गाते रहे- वन्दे मातरम् !
महेन्द्र ने देखा, दस्यु गाते-गाते रोने लगा। महेन्द्र बोला- यह तो देश है, यह तो माँ नहीं है। भवानन्द ने कहा- हम लोग किसी दूसरी माँ को नहीं मानते। (पृ0 744-45)
महेन्द्र को लेकर ब्रह्मचारी स्वामी सत्यानन्द देवालय के अन्दर घुसे। वहां महेन्द्र ने देखा कि एक विराट चतुर्भुज मूर्ति है, शंख-चक्र गदा- पद्मधारी, कौस्तुभमणि हृदय पर धारण किये सामने घूमते सुदर्शनचक्र लिए स्थापित है।मधुकैटभ जैसी दो विशाल छिन्नमस्तक मूर्तियां खून से लथपथ-सी चित्रित सामने पड़ी हैं। बाएं लक्ष्मी आलुलायित-कुंतला शतदल-मालामंडिता,भयग्रस्त की तरह खड़ी है। दाहिने सरस्वती पुस्तक-वीणा और मूर्तिमयी राग-रागिनी आदि से घिरी हुई स्तवन कर रही है। विष्णु की गोद में एक मोहिनी मूर्ति-लक्ष्मी और सरस्वती से अधिक सुन्दरी, उनसे भी अधिक ऐश्वर्यमयी अंकित है। गंदर्भ,किन्नर, यक्ष राक्षसगण उनकी पूजा कर रहे हैं। ब्रह्मचारी ने अतीव गंभीर, अतीव मधुर स्वर में महेन्द्र से पूछा-
सब कुछ देख रहे हो?
महेन्द्र ने उत्तर दिया- देख रहा हूँ।
ब्रह्मचारी-विष्णु की गोद में कौन है, देखते हो ?
महेन्द्र - यह माँ कौन है?
ब्रह्मचारी ने उत्तर दिया- जिसकी हम संतान हैं।
महेन्द्र - कौन है वह?
ब्रह्मचारी- समय पर पहचान जाओगे। बोलो , वन्देमातरम्! अब चलो, आगे चलो। इसके बाद महेन्द्र ने दुर्गा, काली, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेशादि की मूर्तियों को प्रणाम किया और वन्देमातरम् कहा (पृ0 748-49)

उपन्यासकार अंग्रज़ों के शासनकाल को क़ानून का युग मानते हैं और मुस्लिम शासनकाल को न्यायहीनता का युग। “ आज का़नूनों का युग है- उस समय अनियम के दिन थे।” (पृ0 756)
महेन्द्र के साथ सत्यानन्द स्वामी गिरफ़्तार होकर नगर के जेल में बन्द थे उन्हें छुड़ाने के लिए हज़ारों हज़ार संतानों को संबोधित करते हुए स्वामी ज्ञानान्द कहते हैं- “ अनेक दिनों से हम विचार करते आते हैं कि इस नवाब का महल तोड़कर यवनपुरी का नाश कर नदी के जल में डुबा देंगे- इन सुअरों के दाँत तोड़कर, इन्हें आग में जलाकर माता वसुमती का उद्धार करेंगे। जिन्‍हें हम विष्णु का अवतार मानते हैं, वही आज मलेच्छ मुसलमानों के कारागार में बंदी हैं। चलो हम लोग उस यवनपुरी का निर्दलन कर उसे धूरिण में मिला दें। उस शूकर- निवास को अग्नि से शुद्ध कर नदी-जल में धो दें, उसका ज़र्रा-ज़र्रा उड़ा दें। (पृ0 764)

महेन्द्र और सत्यानन्द को मुक्त कर सन्तानों ने जहां-जहां मुसलमानों का घर पाया आग लगा दी।(पृ0 764)

जीवानन्द ने सत्यानन्द से पूछा- महाराज!
ईश्वर हम लोगों पर इतने अप्रसन्न क्‍यों हैं? किस दोष से हम लोग मुसलमानों से पराभूत हुए?
सत्यानन्द ने कहा- हम लोग जो पराजित हुए, उसका कारण था कि हम निःशस्त्र थे- गोली-बन्दूक के आगे लाठी तलवार भला क्या कर सकता है। अतः हम लोग अपने पुरूषार्थ के न होने से हारे हैं। अब हमारा यही कर्तव्य है कि हमें भी अस्त्रों की कमी न हो। (पृ0 769)
शस्त्रास्त्रों का संग्रह करने के लिए स्वामी सत्यानन्द तीर्थ यात्रा पर निकलने लगे तो भवानन्द ने पूछा- तीर्थयात्रा पर इन चीज़ों का संग्रह आप कैसे करेंगे? सत्यानन्द- यह सब चीज़ें ख़रीदकर लाई नहीं जा सकती हैं। मैं कारीगर भेजूंगा, यहीं तैयारी करनी होंगी। (पृ0 769)
महेन्द्र ने सत्यानन्द से पूछा कि ‘संतानगण ने कहा कि ‘ हम लोग राज्य नहीं चाहते-केवल मुसलमान , भगवान के विद्वेषी हैं- इसलिए उनका समूल विनाश करना चाहते हैं। (पृ0 772)
इसके बाद ये लोग गांव-गांव में अपने गुप्तचर भेजने लगे। पर लोग जहां हिन्दु होते थे, कहते थे,
भाई! विष्णु-पूजा करोगे?’ इसी तरह बीस-पच्चीस सन्तान किसी मुसलमान बस्ती में पहुंच जाते और उनके घर आग लगा देते थे। उनका सर्वस्व लूटकर हिन्दू विष्णु-पूजकों में उसे वितरित कर देते थे। मुसलमानों के गांव भस्म कर राख बनाए जाते। स्थानीय मुसलमान यह सुनकर दल के दल सैनिकों को इनके दमन के लिए भेजते थे। लेकिन उस समय तक संतानगण दलबद्ध, शस्त्रयुक्त और महादंभशाली हो गये थे। उनके तेज के आगे मुस्लिम फ़ौज अग्रसर हो न पाती थी। (पृ0 780)
संतानों के दल के दल उस रात यत्र-तत्र ‘वंदेमातरम्’ और ‘जय जगदीश हरे’ के गीत गाते हुए घूमते रहे। कोई शत्रु-सेना का शस्त्र, तो कोई वस्त्र लूटने लगा। कोई मृतदेह के मुँह पर पक्षघात करने लगा,तो कोई दूसरी तरह का उपद्रव करने लगा। कोई गांव की तरफ़ तो कोई नगर की तरफ़ पहुंचकर राहगीरों और गृहस्थों को पकड़कर कहने लगा-‘वन्देमातरम् ’कहो, नहीं तो मार डालूंगा। ’ कोई मैदा-चीनी की दुकान लूट रहा था, तो कोई ग्वालों के घर पहुंचकर हांडी भर दूध ही छीनकर पीता था। कोई कहता- हम लोग ब्रज के गोप आ पहुंचे, गोपियां कहां हैं? उस रात में गांव-गांव में , नगर-नगर में महाकोलाहल मच गया। सभी चिल्ला रहे थे- मुसलमान हार गए, देश हम लोगों का हो गया। भाइयों! हरि-हरि कहो! गांव में मुसलमान दिखायी पड़ते ही लोग खदेड़कर मारते थे। बहुतेरे लोग दलबद्ध होकर मुसलमानों की बस्ती में पहुँचकर घरों में आग लगाने और माल लूटने लगे। अनेक मुसलमान दाढ़ी मुंडवाकर देह में भस्मी रमाकर राम-राम जपने लगे। पूछने पर कहते -हम हिन्दू हैंं(पृ0 800-801)
शरीफ़ मुसलमान कहने लगे- इतने रोज़ बाद क्या सचमुच कुरआन शरीफ़ झूठा (नौज़बिल्लाह) हो गया? हम लोगों ने पांचों वक्त नमाज़ पढ़कर क्या किया, जब हिन्दूओं की फ़तह हुई । सब झूठ है। (पृ0 801)
युद्ध के दौरान अंग्रेज़ कप्तान टॉमस से एक संन्यासिनी कहती है- मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ कि जब हिन्दू-मुसलमानों में लड़ाई हो रही है, तो इस बीच में तुम लोग क्यों बोलते हो?(पृ0 782) भवानन्द ने युद्ध के दौरान कप्तान टॉमस को पकड़ लिया। भवानन्द ने कहा- कप्तान साहब! मैं तुम्हें मारूंगा नहीं, अंग्रेज़ हमारे शत्रु नहीं हैं। क्यों तुम मुसलमानों की सहायता करने आए? तुम्हें प्राणदान देता हूं, लेकिन अभी तुम बन्दी अवश्य रहोगे। अंग्रज़ों की जय हो, तुम हमारे मित्र हो।(पृ0 796)

स्पष्ट है इस उपन्यास ने हिन्दू-मुस्लिम सद्भाव को समाप्त करने में योगदान किया और देश विभाजन का एक प्रमुख कारण बना।
-इलियास ‘कुतुबपुरी’
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फ़रत की आग बुझाइएः -डॉ0 अनवर जमाल
वन्दे मातरम् एक ऐसा इश्यू है जो सोचे समझे तरीके़ से रह रह कर उठाया जाता है। कान्ति मासिक जुलाई 1999 में प्रकाशित यह लेख आज भी प्रासंगिक है।

अली मियां द्वारा‘ वन्देमातरम्’ के विरोध के कारण भारतीय मुसलमानों को देशद्रोही के रूप में चित्रित किया जा रहा था। जबकि देशद्रोही तो ‘आनन्द मठ’ के लेखक को कहा जाना चाहिए जिसमें अंगे्रज़ों के आगमन पर हर्षित होकर कहा गया कि ‘ अब अंग्रेज़ आ गये हैं, हमारी जान व माल की सुरक्षा होगी।’
जिसके कारण डा0 लोहिया ने कहा था कि ‘आनन्द मठ’ उपन्यास हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन पर एक कलंक है।
यह कलंक उस बंकिमचन्द्र चटर्जी द्वारा लगाया गया जिसने ‘हाजी मोहसिन फण्ड’ से आर्थिक सहायता पाकर बी. ए. की डिग्री प्राप्त की और वाकार्थ में निपुणता पाते ही मुस्लिम दुश्मनी के प्लॉट पर एक उपन्यास लिख डाला जिसमें नायक भवानन्द महेन्द्र को समझाते हुए कहता है कि जब तक मुसलमानों को निकाल न दिया जाए तब तक तेरा धर्म सुरक्षित नहीं।
ऐसी प्रेरणा पाकर सैकड़ों नवयुवक सन्यासी बन जाते हैं। जो मुसलमानों को मारते काटते हैं उनके घरों में आग लगाते हैं और उनका माल हिन्दुओं में बांट देते हैं। राष्ट्रीय एकता पर कुठाराघात करने वाले इसी उपन्यास का एक अंश है ‘वन्देमातरम्’। मुसलमानों द्वारा इस गीत के विरोध का एक कारण तो यही है और दूसरा यह है कि गीत के पहले और दूसरे पद्य में भारत भूमि के सुन्दर फूलों, मीठे फलों और हरे-भरे खेतों का मनोहर वर्णन करते-करते उसे पांचवे पद में दुर्गा और कमला बना दिया जाता है। जो स्पष्टतः एकेश्रवाद के विरूद्ध है।
जो लोग ‘वन्देमातरम्’ को जायज़ कह रहे हैं वे केवल गीत के शब्दों को संदर्भ प्रसंग से काटकर देख रहे हैं। वन्देमातरम्’ अर्थात् हे मां! मैं तेरी वन्दना (तारीफ़) करता हूं। काव्य में अलंकारिक रूप से भूमि को माता कहने की गुन्‍जाइश है और उसकी प्रशंसा और गुणगान करने की भी। परन्तु यही कर्म तब वर्जित हो जाता है। जब देश को देव का अर्थात् उपास्य का दर्जा दे दिया जाए। देशप्रेम आवश्यक है मगर अति हर चीज़ की बुरी है।
सृष्टि को सृष्टा के समान उपास्य मान लेना कोई नई बात नहीं। संसार में हर जगह और हर ज़माने में यह हुआ है। यह वह रोग है कि जिस क़ौम को लग जाए उसे वर्गों में बांटकर अंधविश्वास की बेड़ियों में जकड़ देता है। सृष्टा को छोड़कर सृष्टि पूजा में लगे अरबवासियों को इस पतन से निकालने के लिए जब पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल0) ने एकेश्वरवाद का उपदेश दिया तो उन पर विष्ठा फेंकी गयी, रास्ते में कांटे बिछाये गये और उन पर इतने पत्थर बरसाये गये कि जूते रक्त से भरकर उनके पैरों से चिपक गये और एक मौक़े पर उनके दो दांत खंडित हो गये। 23 वर्षो के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप अरबों ने एकेश्वरवाद को हृदयंगम कर लिया। तब से इस्लाम के जानकार इस्लाम की इस मूल चेतना को बचाये हुए हैं। आज भी मुसलमान जब पैग़म्बर साहब (सल्ल0) की क़ब्र पर जाते हैं तो अल्लाह से उनके लिए शांति व बरकत की दुआ करते हैं न उन्हें सजदा करते हैं और न उनसे मन्नत- मुराद मांगते हैं।
यदि कोई प्रेम में अति करने की कोशिश करता भी है तो वहां नियुक्त सिपाही उसे बलपूर्वक रोकते हैं। मुसलमान ईश्वरीय ज्ञान कुरआन का बेइन्तिहा आदर-सम्मान करते हैं, मगर सजदा उसके सामने भी नहीं करते। भारतीय उपमहाद्वीप में हिन्दुओं की देखादेखी मन्दिरों की भांति क़ब्रों को पक्का करके उन पर फूल-चादरें चढ़ाई जाने लगीं, और उनके सामने सजदे होने लगे, उनसे मन्नत-मुरादें मांगी जाने लगीं तो उनके विरूद्ध भी अनेक फ़तवे दिये गये। ‘बादशाहों को सर झुकाना हराम है’ यह फ़तवा देने पर और स्वयं न झुकाने पर शेख़ अहमद सरहिन्दी रह0 को जहांगीर ने क़ैद कर दिया था। बाद में इस प्रथा को औरंगज़ेब रह0 ने समाप्त किया। इसी इस्लामी चेतना के कारण ‘जय हिन्द’ कहने और ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ मानने वाले मुसलमान किसी कवि के अतिश्योक्तिपूर्ण दर्शन के कारण अपने पालनहार के प्रति कृतघ्न नहीं हो सकते।
होना तो हिन्दुओं को भी नहीं चाहिए क्योंकि धर्म का मूल वेद है और वेद ऐसे कर्मों में रत व्यक्तियों और राष्ट्रों के पतन की खुली घोषणा करते हैं- ‘जो असम्भूति अर्थात् प्रकृति रूप जड़ पदार्थ (अग्नि, मिट्टी, वायु आदि) की उपासना करते हैं और जो सम्भूति अर्थात् इन प्रकृति पदार्थो के परिणामस्वरूप सृष्टि (पेड़, पौधे, मूर्ति आदि) में रमण करते हैं। वे उससे भी अधिक अंधकार में पड़ते हैं। (यजुर्वेद 40ः9, अनुवाद पं0 श्री राम शर्मा आचार्य)
आज पतन के कारण को देशप्रेम का पैमाना मुक़र्रर किया जा रहा है। टीपू सुल्तान अंग्रेज़ों से लड़ते हुए शहीद हो गये और रंगून में दयनीय अवस्था में प्राण त्यागने वाले 1857 की क्रान्ति के नायक बहादुर शाह ज़फर को अपनी आँखों से तीन पुत्रों की कटी गरदनें देखनी पड़ीं।
इतना बडा बलिदान देने वाले ‘वन्देमातरम्’ नाम की चीज़ से वाकिफ़ तक न थे। जबिक आज ‘वन्देमातरम्’ के गायन पर ज़ोर देने वाले ब्रिटिश काल में रोज़ शाखा लगाते रहे, मार्शल आट्र्स की प्रैक्टिस करते रहे, लेकिन आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया बल्कि स्वाधीनता आन्दोलन के कृशकाय नायक के प्राणान्त का कारण बने। आज उलेमा के सम्मिलित विरोध के कारण श्री आडवाणी को कहना पड़ा कि ‘वन्देमातरम्’ मुसलमानों पर जबरन नहीं थोपा जायेगा।’ मुख्यमंत्री श्री कल्याण सिंह ने भी कहा,’ वन्देमातरम्’ के गायन को अनिवार्य बनाने का कोई इरादा सरकार का नहीं है। परन्तु इतना कह देने मात्र से मुसलमानों की समस्या सुलझ नहीं जाती, क्योंकि वह मानसिकता अब किसी न किसी दूसरे रूप में प्रकट होगी। इसका एकमात्र समाधान यही है कि भारत में आये पैग़म्बरों की शिक्षा को भुला बैठी जनता को आखि़री पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) के माध्यम से मिले कुरआन की शिक्षाओं से परिचित कराया जाए जो कि सभी पैग़म्बरों की मूल शिक्षा है। बाईबिल के अलावा स्वयं वेदों में कुरआनी मान्यताओं और पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल0) की पुष्टि में अनेकों जगह वर्णन है। अरब में पृथ्वी का केन्द्र ‘मक्का’ में आये हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) पर लगभग एक लाख चैबीस हज़ार पैग़म्बरों की श्रृंखला के समापन के साथ धर्म को पूर्णता प्राप्त हुई। विभिन्न जातियों ,भाषाओं और देशकाल में आये सभी पैग़म्बरों की मूल शिक्षा और धर्म का सार यह था कि ऐ लोगो! तुम्हारा खु़दा एक है तुम उसी की बन्दगी करो और तुम्हारा ख़ून एक है। तुम सब एक परिवार हो।
आग और ख़ून का जो तूफ़ान आज खड़ा किया जा रहा है नफ़रत के जिन विचारों से आज समाज को हिप्नॉटाइज़ किया जा रहा है उसकी निन्दा करना वेदज्ञों पर भी वाजिब है वर्ना हमारा यह प्यारा भारत देश कभी पतन के गर्त से उबर न सकेगा।
-डॉ0 अनवर जमाल

31 comments:

  1. आज दैनिक 'हिन्‍दुस्‍तान' 5 नवम्‍बर पृष्‍ठ 10 पर छपे वेद पताप वैदिक के लेख ''मुसलमान क्‍यों न गाये वंदे मातरम'' पढकर मुझे लगा के इसका हमारा जवाब होना चाहिये, अर्थात यह है क्‍या इसकी हकीकत क्‍या है आदि सबको जान लेना चाहिये,
    वेदिक जी तक हमारा जवाब कोई पहुंचा सके तो आभारी हूंगा वेदिक जी का ईमेल है
    dr.vaidik@gmail.com

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  2. अरे बेटा अवध में तो हमने कभी ना सुना के यह एकेशवरवाद के विरूद्ध है,

    अवधिया चाचा
    जो कभी अवध ना गया

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  3. "मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई इलाह (पूज्य प्रभु) नहीं।"

    "जनगणमन" में भी तो परोक्ष रूप से जार्ज पंचम को पूजा जाता है। "तव शुभ आशिष मांगे" का सीधा अर्थ है तुम्हारा आशीर्वाद मांग रहे हैं। आशीर्वाद मांगना वन्दना कर के ही होता है।

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  4. कैरानवी साहब आपने यह लेख 'वन्‍दे ईश्‍वरम' पत्रीका से लिये हैं परन्‍तु उसका आभार नहीं किया जबके करना चाहिये था,

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  5. इस्लाम का बुनियादी उसूल है "तौहीद" अर्थात एकेश्वरवाद। तौहीद से दुनिया का कोई भी मुसलमान समझौता नहीं कर सकता। इस्लाम एकेश्वाद का समर्थक है और उस की शिक्षा अनुसार कोई भी मुसलमान उस एक ईश्वर (अल्लाह) के सिवाय किसी को भी पूज्य नहीं माना जाता है, न ही देश न ही कोई दूसरा खुदा!!

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  6. अगर आप वन्दे मातरम की वक़ालत करते हैं और साथ ही पूर्व जन्म में भी अकीदा रखते है तो यह पूर्ण रूप से परस्पर विरोधी विचारधारा होगी और यह संभव नहीं कि दोनों एक साथ लागू हो सकेंगे. कैसे ? आईये मैं बताता हूँ कि कैसे राष्ट्रवाद एक बुनियाद-रहित विचारधारा है, यदि आप पूर्वजन्म में विश्वाश रखते है तो यह संभव है कि आपका जन्म दोबारा मनुष्य के रूप में हो सकता है और हो सकता है कि आप भारत के अलावा दुसरे मुल्क में पैदा हो सकते हैं. मिसाल के तौर पे आप अगर आपके पिता जी या दादा जी दोबारा जन्म लेते हैं और अबकी बार वह अफगानिस्तान या पकिस्तान या चाइना आदि में कहीं जन्म लेते हैं तो क्या वह भारत के खिलाफ़ लडेंगे तो नहीं? क्या वह भारत से नफ़रत तो नहीं करेंगे?? ऐसा तो नहीं कि वे इस जन्म में तालिबान से मिलकर अपने प्यारे हिन्दोस्तान के खिलाफ़ आतंकी घटनाओं में तो लिप्त नहीं रहेंगे???

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  7. वन्दे मातरम् पर एक बार फिर बहस शुरू हो गई.............

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  8. अगर पहले और दूसरे पद्य में भारत भूमि के सुन्दर फूलों, मीठे फलों और हरे-भरे खेतों का मनोहर वर्णन करते-करते उसे पांचवे पद में दुर्गा और कमला बना दिया जाता है। जो स्पष्टतः एकेश्रवाद के विरूद्ध है।

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  9. अगर तुम मानते हो इस्लाम इस देश में बड़ी कॉम है तो मुसलमानों से कहो खुद को अल्पसंख्यक कहना बंद करे !!

    मुसलमान पहले तो इस्लाम के नाम पर अलग देश मांग चुके है अब सारे मांग नाजायज़ है ,जिसे सब इस्लाम के मुताबिक चाहिए वो जाए पाकिस्तान जा के बस जाए ,वहा सब सरियत के मुताबिक मिलेगा !!!

    या फिर एक काम करो ...
    शरियत के मुताबिक चार शादी का हक़ चाहिए तुम्हे , और वन्दे मातरम भी तुम्हे गवारा नहीं तो सज़ा वाले मामले में क्यों शरियत की मांग नहीं करते हो क्यों नहीं कहते हो जो मुसलमान चोरी करते पकडा जाए उसके दोनों हाथ कलाई से काट दो ??? ,साउदी वाला कानून मांगो अपने लिए अगर तुम दोगले नहीं हो तो ???

    नसबंदी तुम्हे मंज़ूर नहीं अल्लाह ने कहा है "तागैयल खल्द उलाह " यानी अल्लाह की बनावट से छेड़ छाड़ नहीं करनी चाहिए,
    तो बवासीर और हार्निया का ओपरेशन,बाईपास सर्जरी और सिजेरियन डेलेवेरी क्यों करवाते हो ?
    यानि फ़ायदा जहा होगा तुम्हारा वहा सिर्फ बाप को बाप बोलोगे ,जहा नुकसान होता दिखे तुंरत पडोसी का हाथ थाम कर पापा पापा बोल के झूलने लगोगे !



    ज़ाकिर फर्जी है! इस विडियो में देखो सूअर खाने वालो के डिजाइन के कपडे पहने है और तो और देखो पैंट भी एड्हियो तक लम्बी है मै शुरू से कह रहा हूँ के वो ईमान का मुकम्मल है ही नहीं आज अंग्रेजी कपडे पहने दिख रहा है ज़रूर गोस्त भी अंग्रेजो वाले खाता होगा,छुप कर ज़रूर हरकत भी वही करता होगा

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  10. @ सलीम खान साहब यह घटिया सोच का कमेंटस आपकी पोस्‍ट से कापी किया गया है, आपने वहां कोई जवाब नहीं दिया तो अब इधर कापी होगया, इसके सवालों पर गौर करें यह आपसे हैं, जाकिर नायक से आप मुतासिर हैं, मैं तो उस कैरानवी से मुतासिर हूं जो नायक के गुरू का भी गुरू है अर्थात मौलाना रहमतुल्‍लाह कैरानवी, पोस्‍ट बनाने में सारा समय ना लगा के कुछ समय कमेंटस के लिये भी बचा लिया करें,
    अब इसका जवाब आप दो, सब दें, अन्‍जुमन पर सवाल केवल मेरे से नहीं होता,

    विश्‍वास रखें कोई ना दे सका तो साइबर मौलाना देगा परन्‍तु मौलाना तैयारी करता है उस सवाल को जड से खत्‍म करने की, इस लिये समय लग जाता है,

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  11. अरे पहलवान, तुम्‍हारे पहले कमेंटस पर किसी का ध्‍यान गया के नहीं, हमने भी देखा है वह अखबार उसमें प्रेम ही प्रेम मिला, यहां जानकारी ही जानकारी, शेष विचार करके लिखूंगा

    ''आज दैनिक 'हिन्‍दुस्‍तान' 5 नवम्‍बर पृष्‍ठ 10 पर छपे वेद पताप वैदिक के लेख ''मुसलमान क्‍यों न गाये वंदे मातरम'' पढकर मुझे लगा के इसका हमारा जवाब होना चाहिये, अर्थात यह है क्‍या इसकी हकीकत क्‍या है आदि सबको जान लेना चाहिये,
    वेदिक जी तक हमारा जवाब कोई पहुंचा सके तो आभारी हूंगा वेदिक जी का ईमेल है''
    dr.vaidik@gmail.com

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  12. तसल्ली से अपनी तैयारी पूरी कर जवाब दे !

    हमें सदा इंतज़ार है, अपना खुला खेल फर्रुखाबादी है !
    चलो इतनी मेहनत के बाद ये तो पता चला की आप के पास फिलहाल इसका कोई जवाब नहीं है !

    आप यदि इस हुज्जत से निजाद चाहेंगे हो आप का स्वागत होगा बशर्ते आज से आप बेशक कुरआन की अच्छी अच्छी बातो को बताए हम चाव से पढेंगे पर वेद और उपनिषद से तुलना नहीं करनी होगी ना ही किसी को बड़ा छोटा घोषित करना होगा !!!
    साथी अगर बाज़ न आये तो हमसे भी उम्मीद की गुंजाइश बेमानी होगी !!!

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  13. उम्दा सोच.....

    आपकी सोच बिल्कुल उम्दा है पर यदि इसी सोच द्वारा इस्लाम का अध्ययन करें, कुरआन की शिक्षओं पर मनन करें तो पाएंगे कि इस्लाम किसी अनोखी बात की ओर नहीं बुला रहा है बल्कि उसी तथ्य का परिचय करा रहा है जिसे हम अपने धार्मिक ग्रन्थों में पाते हैं पर उसके आधार पर चलते नहीं हैं। यदि चलने लगें तो वन्दे मातरम् का विषय ही नहीं उठेगा। उदाहरण स्वरूप वेदों ने अनेकेश्वरवाद का खंडन किया है और वन्दे मातरम् में भारत की धरती को पूज्य समझा जा रहा है यदि वैदिक शिक्षाओं के आधार पर चलते होतें तो हम इसका त्याग कर चुके होते।

    और हाँ मुसलमान अपने देश को टूट कर चाहता है बल्कि यह प्राकृतिक रूप में उसकी आस्था का भाग है पर उसकी पूजा नहीं कर सकता।

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  14. और हाँ मैं भाई उमर कैरानवी को इतना अच्छा लेख प्रस्तुत करने पर हार्दिक बधाई देता हूं।

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  15. उमर भाई किसी ने आपकी बात को देखा या नही... लेकिन मैने अपना काम कर दिया ये पुरा लेख वेदिक जी को ई-मेल कर दिया है...

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  16. safat alam भाई आज़ादी के 60 साल बाद अचानक कौन से मुसलमान नए पैदा हो गए जिन्हें वन्दे मातरम् से आपत्ति हो गई यानी साठ साल तक जो थे वो मुसलमान नहीं थे सब ? इस बहाने कोई नए पाकिस्तान की मुहीम तो नहीं ???
    कुर्रान का क्या अर्थ है आप समझो हमसे क्या मतलब हम खा पी कर पहले से मस्त है ! आप जिसे पूजो पर बेमतलब वेद पर बकवास की क्या ज़रूरत है ?

    भाई उमर कैरानवी का ये लेख बे सर पैर का है पता नहीं आप को इसमें क्या अच्छा लगा !!!

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  17. आप सब एक बात तो मान रहे हैं कि कुरआन शरीफ़ में जो लिखा है उसमें से कई बातें वेदों में पहले से ही लिखी हैं। स्पष्ट हो जाता है कि इस ओर पनपने वाले लोग अरबों से हजारों साल पहले सभ्य हो चुके थे। बेहतर है कि आप लोग अरबी साम्राज्यवाद की वकालत करने के स्थान पर वेदों का अध्ययन करो और सनातन धर्म को स्वीकार लो क्योंकि इसमें किसी का वसीला तक जरूरी नहीं है जो कि इस्लाम में जबरन तीन दशक के सामाजिक अध्ययन के बाद मुहम्मद साहब ने खुद को उस समय स्थापित करने के लिये करा था। वेदों की रिचाएं कोई फरिश्ता नहीं लाया लेकिन कुरआन की आयतें लाने के लिये मुहम्मद को अपने विचारों के साथ ही जिबरइल को भी उपजाना पड़ा।

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  18. @ उम्दा सोच bhool men ho,,,,, jab badon ka khel chal raha hota he,,,, bachhon ki taraf dhiyan nahin dete,,,wese bhi yeh saleem khan se jawab he,,,,,,,hamari is post par nahin

    tum to khilona matra ho sakte ho,,,,tum bhi nahin rahe to men kisse kheloonga? senkdon ki pooch dabao to tum jese ek aad hath lagta he...samjhe janab,,,,,nahin samjhe to is khel ko nibatne do.
    insha allah

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  19. @ काशिफ़ आरिफ़ sahb samjhdar ko ishara kafi hota he,,,, allah ne yeh neki aapke naseeb men likhi thi,

    yeh umda soch phadak raha he, ek do hath dikha do aagra wale,

    aapko to blog men aane se pehle padh padh kar bhot kuch seekha he. is liye ummid he aapka ek jhatka kafi hoga...warna phir halal to men kar loonga.
    Insha Allah

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  20. @ दीनबन्धु ji आप मेरे ब्लॉग पर घूम आइए, वहाँ आपको क़ुरआन और वेद से एक बार में ही इतनी shiksha मिलेगी की वही काफ़ी रहेगी, इन्शा अल्लाह (अगर अल्लाह ने चाहा तो)

    islaminhindi.blogspot.com

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  21. उम्दा सोच वाले भाई साहब
    पाकिस्तान बनने के लिए इस्लाम और सिर्र्फ मुसलमान जिम्मेदार नहीं है। इसके लिए मुख्यतौर पर जिम्मेदार है भारत के स्वार्थी राजनेता और इनमेें हिन्दु और मुस्लिम दोनों नेता जिम्मेदार है। जसवंत सिंह की जिन्ना पर लिखी किताब इसका ताजा उदाहरण है ।
    यह बात कई बार उठाई गई है कि मुसलमान यहां अपने लिए शरीअत के उस कानून की मांग क्यों नहीं करते जिसमें चोरी करने पर हाथ काटने की सजा है। दरअसल हर मुस्लिम की मंशा है कि अपने वतन में वह कानून लागू हो क्योंकि हमें पूरा भरोसा है कि इस कानून से अपराध कम होते हैं। लेकिन भारत में यह कानून लागू नहीं हो सकता। सिविल कोड तो अलग अलग व्यावाहारिक रूप से लागू हो सकता है लेकिन यह कानून नहीं । सवाल उठता है आखिर क्यों नहीं?
    मान लीजिए चोरी करने वाला कोई मुस्लिम है तो उसके हाथ काट दिए जाएंगे लेकिन किसी मुस्लिम के घर में चोरी करने वाला कोई गैर मुस्लिम हुआ तो वह मुस्लिम तो यही चाहेगा कि उसके घर में चोरी करने वाले के हाथ काटे जाएं। आप बताएं ऐसे में कौनसा कानून लागू होगा? क्या उस गैर मुस्लिम भाई पर यह कानून थोपना उचित होगा।
    रही बात चार शादी तो जरा गौर करो इस्लाम ने लगभग चौदह सौ साल पहले शादी की तादाद को घटाकर चार कर दिया था जब राजा महाराजाओं के रजवाड़ों में सैंकड़ों रानियां और पटरानियां होती थी। इमानदारी से सोचो तुम कितने मुस्लिमों को जानते हो जिनके एक से ज्यादा बीवियां है?
    दुख की बात है कि आज के वक्त में कोई किसी कारणवश दूसरी शादी कर भी लेता है तो उसे हेय नजरों से देखा जाता है और जो लोग बीवी को धोखा देकर गैर औरतों के साथ नाजायज संबंध बनाते हैं मानो उनका तो कोई गुनाह ही नहीं।

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  22. @उम्दा सोच
    नाम उम्दा
    सोच घटिया
    तुम साबित क्या करना चाहते हो? यही कि जिसने वन्दे मातरम गा लिया वह देशभक्त हो गया और जिसने गाने से मना कर दिया वह देशद्राही?

    गौर कर घटिया सोच मेरी बात पर
    तुम्हारे लिए सिर्फ वन्देमातरम गाना ही देशभक्ति है तो हम मुस्लिमों के लिए मरने के बाद अपने ही वतन की मिट्टी में मिलना वतन की माटी से सच्चे प्रेम की निशानी है। हम मुस्लिम उसी वतन की जमीन की मिट्टी में मिलते है जिस वतन की मिट्टी में पैदा होते हैं। ना हम दफन होने मक्का जाते और ना मदीना।

    और तुम लोग?
    शव को जलाने के बाद उसकी राख तक ले जाते हो और बहा देते हो उस गंगा में जो देश की सीमाओं को पारकर दूर किसी देश में उस राख को ले जाती है। क्या यही है तुम्हारा अपनी जननी के प्रति प्रेम? वतन की माटी में मिलने में तुम्हें शर्म महसूस होती है?
    तुम्हारी नजर में वन्दे मातरम सिर्फ बोल देना ही देशभक्ति है तो मेरी नजर में अपने देश की माटी में मिलना सच्ची देशभक्ति है।
    सोचो कौनसी देशभक्ति ज्यादा अहमियत रखती है?

    @घटिया सोच
    जिस तरह तुम हमसे कहते हो कि हम वन्दे मातरम बोलकर देशभक्त बनें, मैं तुम्हें कहता हूं कि सिर्फ एक गीत गाने से ही देशभक्त होते तो दुनियाभर की खूबियों के मालिक ये गायकार होते जो सैंकडों गाने अच्छे-अच्छे अर्थ वाले गा चुके हैं।
    सही मायनों में देशभक्त बनो और अपने वतन की माटी से सच्ची मोहब्बत की मिसाल पेश करो जैसी हम लोग करते हैं। अपना तन उसी देश की माटी को समर्पित करो जहां का खा पीकर बड़े हुए हो। अपनी माटी से दगा ना करो।

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  23. @ asif bhai, shabash, कमाल हो गया, घटिया सोच के लिए सौ सुनार की एक asif की,

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  24. वन्दे मातरम् !! क्या इसको राष्ट्रीय गीत बनाते वक़्त मुसलामानों से सहमती ली गयी थी, अगर हां तो ब्यौरा दें और नहीं तो यह तो बहुसंख्यकों द्वारा ज्यातदी का एक उदहारण ही है

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  25. @इस्लामिक वेबदुनिया वाले भाई साहब...

    इस्लाम का दुर्भाग्य कहे की इस्लाम के नाम पर देश की मांग करने वाला जिन्ना कभी न नमाज़ अदा करता था न रोजे रखता था और सूअर खाता था सो अलग पर सारे मुसलमान उसके पीछे हो लिए,ये क्या सन्देश देता है मुसलमानों क लिए ?
    रही बात जसवंत सिंह की वो जो कहते है वो उनकी अपनी सोच है आप क्या उनको मुहम्मद साहब और उनकी किताब को कुरआन का दर्जा देते हो जो नजीर दे रहे हो ??? अगर हां कहोगे तो मै भी मान लूंगा आप की बात !!!
    रही बात क्रिमिनल कोड की तो प्यारे अपराधी पर हमेशा मुकदमा बनाम सरकार होता है( सरकार बनाम जाहिल ) पहले अपनी थोडी जानकारी इस विषय में बढाइये या किसी कानून तज्ञ की मदद लीजिये जिसकी चिंता आप को है वो सिविल कोड में होता है ( फक्रुन्निसा बनाम जाहिल )!
    सवाल चार शादी का तो यदि मानते हो की एक शादी से ज़्यादा वाले को अच्छी नज़र से नहीं देखते तो यहाँ साबित होता है की रसूल पर आस्था में द्वंद है! अब अगर शर्म आती है चार शादी करने पर तो फतवा जारी कर इसे एक तक क्यों नहीं करवाते है आप ? देखिये ना मेरे एक मुसलमान प्रिय दोस्त ने अपनी पत्नी से दूसरी शादी की इच्छा जाहिर की और काएदे का भी हवाला दिया की उसे चार शादी तक की इजाज़त है, तो उसकी बीबी ने सोते में उसपर गरम तेल की कढाई उलट दी अब बताइये ये दोनों ही मुसलमान है एक सही एक गलत ज़रूर है पर आप बोलेंगे दोनों सही है! यानी दोस्त सब फाएदे पर की मानते है !!!
    जो लोग बीवी को धोखा देकर गैर औरतों के साथ नाजायज संबंध बनाते हैं ये आप में ज़िना कहलाता है और ऐसा क्या मुसलमान नहीं करते ? दोस्त इंसान मज़हब से पहले जानवर ही है सिर्फ फायेदे की सोचता है मज़हब खेल की चीज़ मानता है जैसा आप भी यहाँ कर रहे हो !



    @ asif भाई ..
    भाई माटी मिले ...सरकार ने पंडितो को कश्मीर से बाहर कर दिया फिर भी देखिये कश्मीर में आतंकवाद की जड़े मज़बूत हुई क्युकी मुसलमानों ने ही उन्हें पनाह दी ,फिर भोग रहे है उसका परिणाम आज तक ६० हज़ार जो अबतक मरे है वो मुसलमान ही थे... मारने वाले भी इस्लाम के नाम पर मुसलमान ही .... क्या विडम्बना है ???
    दोस्त हम जबतक ज़िंदा है तब ही तक देश के लिए कुछ कर सकते है सो मरने पर जहा जाए क्या फरक ,पर आप में जबतक ज़िंदा है मीरकासिम बने रहेंगे और मर कर भी नहीं छोडेंगे उसही धरती पर बोझ बने रहेंगे जबतक बुलडोज़र ना उखाडे !!!
    मै जिला गाजीपुर की धरती को अपनी बात से वंचित करता हूँ क्योंकी वहा वीर अब्दुल हमीद पैदा हुए जिनका मेरे दिल में बहुत सम्मान है पर आज तक किसी मुसलमान को नहीं देखा जो उनकी मिसाल दे ,!! यहाँ के सब जिन्ना की ही बात उठाते है
    जिसकी हरकत तो छोडो नाम भी लगता है जैसे ज़िना है !

    @ Mohammed Umar Kairanvi
    खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे ! मुझपर आप का पहला कमेन्ट ऐसा है "भैया भैया तुम देखो ..... पापा पापा जल्दी आओ " दम था मिया तो टूक जवाब देते ??? जवाब टोपी करते हो तो तुम यहाँ कम्पट खाने आते हो ???
    जाओ बेटा पहले अपना होमवर्क बुक ले के आओ नहीं स्कूल में मास्टर साहब मारेंगे !
    बेटा खिलौनों से खेलोगे खेलो तुम्हारी उम्र है पर ये क्या तुम तो आग से खेलने लगे ...तभी जल रहे हो !तुम इत्मीनान रक्खो जो खेल तुमने शुरू किया है उसे हम ही निपटायेंगे !!!
    बेटा जबतक मै कह रहा था "मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना " नहीं माने मेरी बात अब जब तुम्हारे ज़बान में बोलने लगा हूँ तो तुम्हारी पेशानी का पसीना एड्ही तक पूरी ब्लॉग दुनिया को दिखाई दे रहा है !!!

    नापाक मंसूबो का दुश्मन ...
    देशभक्तों का दोस्त !!!....तुम्हारा उम्दा सोच !!!

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  26. वन्दे मातरम कहना क्या देश प्रेम का सर्टिफिकेट है
    तो क्या जय महाराष्ट्र कहने देशद्रोही हैं ।

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  27. वन्‍दे मातरम पर डा. अनवर जमाल(अगली पोस्‍ट) को डा.वैदिक जी का जवाबः.... पि्रय भाई डॉ. जमालजी,
    मुझे बहुत खुशी होती, अगर आप मेरे किसी तर्क को मजबूती से काट पाते| मैं कोई पोंगा-पंडित या कठमुल्ला नहीं हूं कि क़ायदे की बात को मानने से ही इंकार कर दूं|
    जहां तक बंकिम के उपन्यास का प्रश्न है, किस्से, कहानी और उपन्यास तो काल्पनिक ही होते हैं| उन्हें आप धर्मग्रंथ का दर्जा क्यों दे रहे हैं| किसी उपन्यास को नीति-शास्त्र् मानना कहां तक उचित है ?
    मैंने सिर्फ उस वंदे मातरम के बारे में लिखा है, जिसे आधिकारिक तौर पर गाया जाता है| उसमें मुझे कोई आपत्ति दिखाई नहीं पड़ती| मैं दुनिया में ऐसे किसी आदमी को नहीं जानता, जो मुझसे ज्यादा एकेश्वरवाद में विश्वास करता हो| हमारे मुसलमान तो हिंदुओं से भी ज्यादा बुतपरस्ती में मशगूल रहते हैं| कब्रों की पूजा, मज़ारों पर धूप-बत्ती, नमाज़ के वक्त ज़मीन पर पेशानी रखना, छपे हुए चित्रें पर माला चढ़ाना आदि न ज़ाने क्या-क्या काम करते रहते हैं| मैं तो चाहता हूं कि हमारे हिंदू और मुसलमान सभी बुतपरस्ती से बाज़ आएं और अपना जीवन तर्क और विवेक के आधार पर चलाएं| वे मुल्लों, पोंगा-पंडितों और पादरियों को सम्मान तो दें लेकिन अपनी अक्ल को किसी के हाथ गिरवी न रखें| यदि धर्मशास्त्रें की व्याख्याएं भी तर्क-सम्मत न हों और इंसानियत के खिलाफ हों तो उन्हें भी वे बिल्कुल रद्द कर दें|
    यदि उन्हें वंदे मातरम नहीं गाना हो तो न गाएं| मैंने बुद्घिद्रोही शब्द का प्रयोग किसी का अपमान करने के लिए कतई नहीं किया है| उसे देशद्रोही के मुकाबले इस्तेमाल किया है| आशा है, आप मेरी भावनाओं को समझेंगे| यदि आपको इस शब्द से ज़रा भी ठेस लगी हो तो मैं इसे वापस ले लूंगा| इसमें मुझे ज़रा भी झिझक नहीं होगी|
    मैं आज रात को विदेश जा रहा हूं| आपके किसी भी संदेश का जवाब अब 20 नवंबर के बाद ही दे सकूंगा| सस्नेह|
    आपका
    वैदिक

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  28. अन्‍जुमन के दोस्‍तों मेरा ब्लाग Rank-3 हो गया, अपनी खुशी आपके साथ बांटना चाहता था कि islaminhindi.blogspot.com Rank-3 दिखा रहा है, मुझे विश्‍वास नहीं हो रहा, ज़रा देख के बताये किया मैं ठीक कह रहा हूं,

    आपकी शुभकामनाओं का अभिलाषी

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  29. मतलब आजादी से पहले नारों के समय मुस्लिम नेता वंदेमातरम नहीं कहते थे? अगर कहते थे तो अब क्यों नहीं? और अगर नहीं, तो अब्दुल कलाम आजाद जैसे सरीखे नेताओं का कोई बयान ही बता दें जिसमें उन्होंने वंदेमातरम का विरोध किया हो?

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  30. @तपन शर्मा जी मुसलमानों को को इस नारे की कभी ज़रूरत नहीं पड़ी, मुसलमानों के पास ऐसे मौक़ों के लिए नारा होता है, लीडर कहता हे 'नाराए तकबीर' सब कहते 'अल्लाहू अकबर(अल्लाह बड़ा है)' मौलाना आज़ाद हमारे मज़हबी रहनुमा कम राजनीतिक हस्ती अधिक थे, उनका चुप रहना या बोलना राजनीति से प्रेरित होना बड़ी बात नहीं

    हमें एक कारण गिनाओ की हम इसे इस वजह से अपनाएँ हम बीसियों गिना देंगे बलके गिनवा चुके की कियों नहीं अपना सकते.

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