Friday, October 2, 2009

क्या इस्लाम मानवरचित धर्म है ?

इस्लाम का कोई मानव संस्थापक नहीं जैसा कि अन्य धर्मों का है उदाहरणस्वरूप बुद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध हैं , सिख धर्म के संस्थापक गुरूनानक हैं, जैन धर्म के संस्थापक महावीर स्वामी हैं, हिन्दू धर्म भी अपने गुरूओं का धर्म कहलाता है जबकि इस्लाम का संस्थापक कोई मानव नहीं। इसका अर्थ ही होता है एक ईश्वर के समक्ष पूर्ण समर्पण। अधिकांश लोग इसी तथ्य को न समझ सके जिसके कारण यह कहने लगे कि इस्लाम मुहम्मद सल्ल0 का लाया हुआ धर्म है अथवा एक नया धर्म है।

हालांकि हर मुसलमान यह जानता मानता तथा इस बात पर आस्था रखता है कि मुहम्मद सल्ल0 इस्लाम के संस्थापक नहीं बल्कि उसको अन्तिम स्वरूप देने वाले हैं। ऐसा ही जैसा किसी एक देश में भारत का राजदूत भेजा जाता है तो राजदूत को अपने आदेश का पालन कराने का अधिकार उस समय तक रहता है जब तक अपने पद पर आसीन रहे। जब दो साल की अवधि गुज़रने के बाद दूसरा राजदूत आ जाए तो पहला राजदूत अपना आदेश नहीं चला सकता क्योंकि उसकी कार्य-अवधि समाप्त हो चुकी, ऐसा ही ईश्वर ने मानव को पैदा किया तो जिस प्रकार कोई कम्पनी जब कोई सामान तैयार करती हैं तो उसके प्रयोग का नियम भी बताती है उसी प्रकार ईश्वर ने मानव को संसार में बसाया तो अपने बसाने के उद्देश्य से अवगत करने के लिए हर युग में मानव ही में से कुछ पवित्र लोगों का चयन किया ताकि वह मानव मार्गदर्शन कर सकें वह हर देश और हर युग में भेजे गए उनकी संख्या एक लाख चौबीस हज़ार तक पहुंचती हैं, वह अपने समाज के श्रेष्ट लोगों में से होते थे, तथा हर प्रकार के दोषों से मुक्त होते थे। उन सब का संदेश एक ही था कि केवल एक ईश्वर की पूजा की जाए, मुर्ती पूजा से बचा जाए तथा सारे मानव समान हैं उनमें जाति अथवा वंश के आधार पर कोई भेदभाव नहीं क्यों कि उनकी रचना एक ही ईश्वर ने की है, सारे मानव का मूलवंश एक ही पुरूष तक पहुंचता है ( अर्थात आदि पुरुष जिनसको कुछ लोग मनु और सत्रोपा कहते हैं तो कुछ लोग आदम और हव्वा, उनका जो धर्म था उसी को हम इस्लाम अथवा सनातन धर्म कहते हैं ) पर उनका संदेश उन्हीं की जाति तक सीमित होता था क्योंकि मानव ने इतनी प्रगति न की थी तथा एक देश का दूसरे देशों से सम्बन्ध नहीं था। उनके समर्थन के लिए उनको कुछ चमत्कारियां भी दी जाती थीं, जैसे मुर्दे को जीवित कर देना, अंधे की आँखों का सही कर देना, चाँद को दो टूकड़े कर देना .

परन्तु यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि पहले तो लोगों ने उन्हें ईश्दूत मानने से इनकार किया कि वह तो हमारे ही जैसा शरीर रखने वाले हैं फिर जब उनमें असाधारण गुण देख कर उन पर श्रृद्धा भरी नज़र डाला तो किसी समूह ने उन्हें ईश्वर का अवतार मान लिया तो किसी ने उन्हें ईश्वर की संतान मान कर उन्हीं की पूजा आरम्भ कर दी। उदाहरण स्वरूप गौतम बुद्ध को देखिए बौद्ध मत के गहरे अध्ययन से केवल इतना पता चलता हैं कि उन्होंने ब्रह्मणवाद की बहुत सी ग़लतियों की सुधार किया था तथा विभिन्न पूज्यों का खंडन किया था परन्तु उनकी मृत्यु के एक शताब्दी भी न गुज़री थी कि वैशाली की सभा में उनके अनुयाइयों ने उनकी सारी शिक्षाओं को बदल डाला और बुद्ध के नाम से ऐसे विश्वास नियत किए जिसमें ईश्वर का कहीं भी कोई वजूद नहीं था। फिर तीन चार शताब्दियों के भीतर बौद्ध धर्म के पंडितों ने कश्मीर में आयोजित एक सभा में उन्हें ईश्वर का अवतार मान लिया

बुद्धि की दुर्बलता कहिए कि जिन संदेष्टाओं नें मानव को एक ईश्वर की ओर बोलाया था उन्हीं को ईश्वर का रूप दे दिया गयाइसे यूं समझिए कि कोई पत्रवाहक यदि पत्र ले कर किसी के पास जाए तो उसका कर्तव्य बनता है कि पत्र को पढ़े ताकि अपने पिता का संदेश पा सके पर यदि वह पत्रवाहक को ही पिता समझने लगे और उसी का आदर सम्मान शुरू कर दे तो इसे क्या नाम दिया जाएगा,आप स्वयं समझ सकते हैं

जब सातवी शताब्दी में मानव बुद्धि प्रगति कर गई और एक देश का दूसरे देशों से सम्बन्ध बढ़ने लगा को ईश्वर ने अलग अलग हर देश में संदेश भेजने के नियम को समाप्त करते हुए विश्वनायक का चयन किया। जिन्हें हम मुहम्मद सल्ल0 कहते हैं, उनके पश्चात कोई संदेष्टा आने वाला नहीं है, ईश्वर ने अन्तिम संदेष्टा मुहम्मद सल्ल0 को सम्पूर्ण मानव जाति का मार्गदर्शक बना कर भेजा और आप पर अन्तिम ग्रन्थ क़ुरआन अवतरित किया जिसका संदेश सम्पूर्ण मानव जाति के लिए है । उनके समान धरती ने न किसी को देखा न देख सकती है। वही कल्कि अवतार हैं जिनकी हिन्दु समाज में आज प्रतीक्षा हो रही है।

13 comments:

  1. इस्लाम का बहुत सही विश्लेषण किया आपने सफ़त भाई. यह दीन अल्लाह के नज़दीक प्रिय है और यह सारी मानवता के लिए.

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  2. इस्लाम क्या है को आपने बेहतर तरीके से व्याख्यांवित किया है, आशा है आप इसी तरह मार्ग-दर्शन करते रहेंगे.

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  3. आलेख काफी सुंदर और दिशापरक है। इस्लाम को समझाने के लिए प्रयोग किए गए उदाहरण काफी अच्छे हैं। फिर भी कोइ न समझे तो कोइ क्या कर सकता है। प्रयास अच्छा है। आगे भी जारी रखें।

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  4. bhoot khub, aapki mehnat ki jitni ta'reef ki jaye kam he.

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  5. बहुत अच्छी जानकारी है...शानदार लेख....

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  6. भाई, मेरी समझ में तो सारे धर्म मानव निर्मित ही हैं, और ईश्वर भी। वरना बहुत सारे धर्म और बहु भांति के ईश्वर नहीं होते।

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  7. सफात साहब ने इसलाम को बेहतर तरीके से समझाने की कोशिश की है
    भाई दिनेश राय जी
    ये सच है की धर्म और ईश्वर के मामले में इंसानों ने कई तरह के प्रयोग किये है धर्म के अजीबो गरीब रूप बना दिए ईश्वर के टांग पूंछ जोड़कर उसके साथ भी भद्दा मजाक किया गया लेकिन इसके मायने यह भी नहीं है की ईश्वर ने इंसानों की गाइड लाइन के लिए कोई नियमावली न भेजी हो या अपनी हस्ती का अहसास न कराया हो
    हर इन्सान को परमेश्वर ने दिल और दिमाग दिया है अगर वोह सही तरीके से इनका इस्तेमाल करे तो सच्चे परमेश्वर की पहचान से उसे कोई रोक नहीं सकता

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  8. ज्यादातर लोगों का मानना यह है कि इस्लाम मानवरचित धर्म है, बल्कि वे तो सभी धर्मों को मानवरचित बताते हैं. जबकि सत्य यह है कि इस्लाम तब से है जब से ईश्वर ने इंसानियत बनाई. यही सत्य सनातन धर्म है जो आदि पुरुष जिनको कुछ लोग मनु और सत्रोपा कहते हैं तो कुछ लोग आदम और हव्वा, उनका जो धर्म था. उसी को हम इस्लाम अथवा सनातन धर्म कहते हैं.

    मैं बहुत गर्व महसूस करता हूँ कि "हमारी अन्जुमन" के माध्यम से मुझे इतनी अच्छी जानकारी मिल रही है और हम सब अपने ज्ञान में इज़ाफा कर रहें हैं.

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  9. भाईसाहब कदाचित आप गलती कर रहे हैं जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर नहीं हैं और न ही भगवान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक नहीं हैं। वे प्रवर्तमान काल के चौबीसवें तीर्थंकर हैं।ठीक उसी तरह जैसे कि हज़रत मुहम्मद आखिरी नबी हैं। आप जैन धर्म के संबंध में कम ही जानते हैं फिर कहता हूं कि पहले विश्व के सारे धर्मों का बिना किसी पूर्वाग्रह के अध्ययन करिये तब निर्धारित करिए कि सर्वश्रेष्ठ क्या है? यदि सिर्फ़ इस्लाम को जान कर आप ये कहें कि अब और कुछ नहीं जानना शेष है सब जान लिया तो क्या ये अन्य धर्मों की सोच के साथ जबरई न होगी। प्रतीक्षा है कि जब आपने सारे धर्मों का अध्ययन कर लिया है।
    आदि पुरुष जिनसको कुछ लोग मनु और सत्रोपा कहते हैं तो कुछ लोग आदम और हव्वा, उनका जो धर्म था उसी को हम इस्लाम अथवा सनातन धर्म कहते हैं
    कथाओं के अनुसार नूह अलैस्सलाम का किश्ती वाला किस्सा महाराज मनु की नौका वाली कथा से मिलता जुलता है। आप जानते हैं कि ईश्वरीय प्रेरणा से महाराज मनु ने भी एक किताब(किताब ही कहना उचित होगा)लिखी थी,मनु स्म्रति..... उसे लिखवाने के बाद ईश्वर इतने लंबे समय तक क्या अनुभव लेता रहा या कुछ प्रयोग करके सीख रहा था?
    क्या कारण है कि जिस धर्म को आदम अलैस्सलाम व दादी हव्वा(आपके अनुसार मनु एवं शतरूपा)मानते थे उसमें सुधार करने की क्रमशः ईश्वर को जरूरत पड़ती रही कि एकलाख चौबीस हजार नबी भेजने पड़े। शायद परमात्मा भी पहली बार में सही धर्म न भेज पाया होगा तभी तो सुलेमान अलैस्सलाम से लेकर लूत अलैस्सलाम आदि सब पर जो कुछ भी भेजा वह अधूरा भेजा। क्या जो आप मानते हैं वह बात आपके ईसा अलैस्सलाम व मूसा अलैस्सलाम को मानने वाले भी मानते हैं? अगर नहीं तो कैसे मनवाएंगे? अगर न माने तो क्या करेंगे इस पर अवश्य लिखिये।
    मुहम्मद सल्ललल्लाहु अलैहि वसल्लम यदि कल्कि अवतार हैं जिनकी हिन्दु समाज में आज प्रतीक्षा हो रही है आपके अनुसार तो क्या जिस समाज को प्रतीक्षा है उसे आप कैसे समझाएंगे?
    सादर
    पिछली टिप्पणी में चूक हो जाने के कारण हटा देना पड़ा क्षमा करें

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  10. islam dharm nhi majhab hai. sikh dharm nhi samprday hai. jaim dharm ke sansthapak mahaveer swami nhi the ve 24 ve tirthankar the.hindu koi dharm nhi sindhu ke is par ke nivasiyon ko us par ke logon ka diya smbodhn hai. jise hindu dharm aap kh rhe hain asal mein voh vedik dhram hai jise snatam dharm bhi khte hain ved manav rachit nhi hain.dharm ka arth hai jo dharn krne yogy hai. daryti iti dharma. islam pegmber mohd se duniya mien faila. criist bhi pegamber the.sari kaynat ka srjk koi ek pra shakti hai jise allh, god, ishwer kh lo ya koi aur nam dedo. naam se koi fark nhi padta. haan islam mein ibadat rahan sahan ke kayde pe amal pe jor hai snatan dharm ke anuyayiyon ko swtanrata hai. dharm aur majhab mein mere lihaj se yhi buniyadi fark hai.samjh samajh ka fer hai

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  11. डा.रूपेश श्रीवास्तव जी !
    सब से पहले (शतरूपा)की त्रुटी सही करने पर आपकी सेवा में धन्यवाद प्रकट करता हूं। फिर महावीर स्वामी के सम्बन्ध में भी ज्ञान देने का बहुत बहुत शुक्रिया! पर हमें जो बात बतानी थी वह यह कि आज मात्र इस्लाम के मानने वाले एक ईश्वर की पूजा करते हैं जबकि दूसरे धर्म के मानने वाले अपने ही गुरुओं को ईश्वर का स्थान दे रखा है। क्या आप लोग महावीर को पूज्य नहीं मानते ? यदि नहीं तो किसकी पूजा करते हैं ? कृपया पूज्य का परिचय करा दें। और जैन धर्म की सिद्धांतों से भी अवगत करादें ताकि ज्ञान का आदान-प्रदान हो जाए।

    दूसरी बात यह कि मै बारह वर्ष से धर्मों का अध्ययन करता आ रहा हूं, जबकि अभी तीस वर्ष का हुआ इस अवधि में पाया कि आज लोग अपने वास्तविक ईश्वर को भूले हुए हैं, वही ईश्वर जो संसार का सृष्टीकर्ता,पालनकर्ता,स्वामी और अन्यदाता है। वह एक है, उसके पास कोई पाता पीता नहीं, न वह किसी की संतान है, न उसको किसी की आवश्यकता पड़ती है, और न उसका कोई भागीदार है। परन्तु खेद की बात यह है कि लोग अपने स्वामी को भूल कर गुरुओं को सारा पद दे चुके हैं, इस्लाम जो विश्व धर्म है यही हमें बताता है कि तुम सब एक ईश्वर को मान लो, एक हो जाओगे। और आज केवल मुसलमान ही एक ईश्वर की पूजा करते हैं। बल्कि इस्लाम में स्वयं मुहम्मद सल्ल0 की पूजा महापाप है।
    आपका यह कहना कि क्यों ईश्वर ने एक लाख चौबीस हज़ार संदेष्टा भेजा, इसके समबन्ध में (हमारी अंजुमन)पर अगला पोस्ट पढ़ लें। आज ही डालने वाला हूं।
    और अन्तिम अवतार की जहाँ तक बात है तो उसके सम्बन्ध में भी यदि विस्तृ ज्ञान प्राप्त करना चाहत् हों तो आप उमर कैरानवा साहिब के इस ब्लौग का दर्शन करें। http://antimawtar.blogspot.com/2009_07_01_archive.html
    धन्यवाद डाक्टर साहिब।

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  12. दुनिया में अवतारों के नाम पर खूब धांधलेबाजी हुई है...और आगे भी होते रहने की पूरी संभावना है...मानव का वर्तमान स्वरूप क्रमश विकास का ही प्रतिफल है...इसको व्यवस्थित करने के लिए बीच बीच में अधिक उर्जावाले लोगों ने कुछ नियम कानून के तहत मानव के कारवां को हांकने की कोशिश की..अलग अलग भूभागों में अलग तरीके से लोगों को हांका गया, क्योंकि सभी जगह परिस्थितियां अलग थी...अवतारवाद की धारणा परिस्थितियो की उपज है...अब पहला अवतार कौन था और अंतिम अवतार कौन था और आगे कौन अवतार होगा...अब इन बातों को कोई तूक नहीं है...पांच हथौड़े आप जोर से दिमाग पर मारो दिमाग के सारे पुराने पूर्जे पाट बिखर जाएंगे...फिर न अवतार नजर आएगा और न अवतारवाद...दुनिया नये विचारों से लैस होकर आगे बढ़ने के लिए कसमसा रही है....फालतूवाद के लिए अब कोई जगह नहीं है...ईश्वर किसी कोने में बैठकर सूटा लगा रहा होगा, यदि होगा तो और सोंच रहा होगा कि वर्षो से इंसान मेरे नाम अपने दिमाग में कचरा ढोता आ रहा है, और अभी तक पस्त नहीं हुआ है...

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  13. Alok Nandan साहिब !
    आपसे बस अनुरोध है कि आप सत्य की खोज के लिए निकलें। जिस ईश्वर ने आपकी रचना किया है उसके उतारे हुए नियम की खोज करें। यदि विशाल हृदय से आपने ऐसा किया तो आप पर ईश्वर की कृपा अवश्य होगी। आपके समान कितने लोग हैं जो आप से भी ज्यादा इस्लाम के नाम से भागते थे लेकिन जब निष्पक्ष हो कर इस्लाम का अध्ययन किया तो उसे गले लगा लिया। हमें आप पर दया आती है। मेरे दिली भावना का सम्मान करते हुए कृपया क़ुरआन का अध्ययन करें अवतार की वास्तविकता समझ में आ जाएगी।
    अवतार ही संदेष्टा होते थे जिनमें सब से अन्तिम अवतार मुहम्मद सल्ल0 हैं जिनको माने बिना मुक्ति नहीं मिल सकती।

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