Wednesday, October 14, 2009

इस्लाम ने मुझे नैतिक सम्बल दिया

अगर मैं इस्लाम ना अपनाता तो एक खिलाड़ी के रूप में इतना कामयाब ना होता। इस्लाम ने मुझे नैतिक सम्बल दिया।

करीम अब्दुल जब्बार अमेरिका के मशहूर बास्केटबॉल खिलाड़ी

करीम अब्दुल जब्बार अमेरिकी नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन के छह बार बेशकीमती खिलाड़ी के रूप में चुने गए। उन्हें बास्केटबॉल का हर समय महान खिलाड़ी माना गया। वे अपन हरलेम के बाशिन्दे थे और फरडीनेन्ड लेविस एलसिण्डर के रूप में पैदा हुए। बास्केटबॉल में एक नया शॉट स्काई हुक ईजाद करने वाले करीम अब्दुल जब्बार ने इस शॉट के जरिए बास्केटबॉल खेल में अपनी खास पहचान बनाई।
सबसे पहले करीम अब्दुल जब्बार ने इस्लाम हम्मास अब्दुल खालिस नामक एक मुस्लिम व्यक्ति से सीखा। खालिस ने उन्हें बताया कि हर एक को चाहे वह नन हो,संन्यासी,अध्यापक,खिलाड़ी अथवा टीचर,सभी को संजीदगी से ईश्वरीय आदेश पर गौर करना चाहिए। इस बात पर ध्यान देने के बाद वे खालिस क ी इस्लामिक बातों पर चिंतन करने लगे,साथ ही उन्होने कुरआन का अध्ययन करना शुरू कर दिया। कुरआन अच्छी तरह समझने के लिए उन्होने बेसिक अरबी सीखी। उन्होने इस्लाम को अच्छी तरह सीखने के मकसद से १९७३ में सऊदी अरब और लीबिया का सफर किया। वे सर्वशक्तिमान ईश्वर में अटूट भरोसा करते हैं और साथ ही उनका पुख्ता यकीन है कि कुरआन अल्लाह का आखरी आदेश है और मुहम्मद सल्ललाहो अलैहेवसल्लम अल्लाह के आखरी पैगम्बर हंै। करीम अब्दुल जब्बार स्वीकार करते हैं कि जितना उनसे मुमकिन होगा वे इस्लाम के मुताबिक जिंदगी गुजारने की कोशिश करेंगे।
ये अंश अब्दुल करीम की किताब करीम से लिए गए हैं जो १९९० में प्रकाशित हुई थी। इस किताब में उन्होने अपने इस्लाम कबूल करने के कारणों पर प्रकाश डाला है।।
़अमेरिका में बड़ा होकर आखिरकार मैंने पाया कि जज्बाती और रूहानी तौर पर मैं जातिवादी विचारधारा की संकीर्णता में नहीं बंध सकता। जैसे जैसे मैं बड़ा हुआ तो मुझे यही समझ आया कि काले लोग या तो बहुत अच्छे हैं या फिर बहुत खराब। मेरे इर्द गिर्द ऐसा ही कुछ था। वह काला आदमी जिसका मेरे जीवन पर गहरा असर पड़ा मैलकम एक्स था। मैं रोज काले मुस्लिमों का अखबार मुहम्मद स्पीक्स पढ़ता था। लेकिन साठ के शुरूआत में काले मुस्लिमों की जातिवाद की संकीर्ण सोच मुझे मंजूर नहीं थी। इस सोच में गौरे लोगों के प्रति उनकी उसी तरह की दुश्मनी दिखाई पड़ती थी,जैसी कि गौरों की कालों के प्रति थी। यही वजह है कि मैं इस विचाधारा के खिलाफ था। मेरा मानना था कि क्रोध और नफरत से आप किसी चीज को थोड़ा ही बदल सकते हैं।--- लेकिन मैलकम एक्स एक अलग ही व्यक्तित्व था। इस्लाम कबूल करने के बाद वह मक्का हज करने गया और उसने वहां जाना कि इस्लाम तो सभी रंगों के लोगों को सीने से लगाता है। बदकिस्मती से १९६५ में उसक ी हत्या कर दी गई। हालांकि तब मैं उसके बारे मे ज्यादा नहीं जानता था लेकिन मुझे बाद में मालूम हुआ कि वह कालों की उन्नति और खुद की मदद खुद करने की बात करता था। मैं उसक ी सबके साथ समान व्यवहार करने की सोच को पसंद करता था।
़१९६६ में मैलकम एक्स की जीवनी पर किताब छपकर आई जिसे मैंने पूरी पढ़ डाली। उस वक्त मै उन्नीस साल का हुआ ही था। इस किताब ने मेरे जीवन पर ऐसी छाप छोड़ी जो अब तक कोई किताब नहीं छोड़ पाई थी। इस किताब ने मेरी जिंदगी की दिशा ही बदल दी। मैं सब चीजों को अलग ही नजरिए से देखने लगा। मैलकम ने गौरों और काले लोगों के बीच आपसी सहयोग का माहौल बनाया। वह सच्ची बात करता था। इस्लाम की बात करता था। मैं भी उसकी राह चल पड़ा और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
टाल्क एशिया से साक्षात्कार
यह साक्षात्कार २जुलाई २००५ को टाल्क एशिया के स्टेन ग्रान्ट ने लिया था।

आप लेविस एलसिण्डर से करीम अब्दुल जब्बार हो गए। आप लेविस एलसिण्डर से करीम अब्दुल जब्बार होने के सफर के बारे में बताएं? क्या अब भी आपके अन्दर कुछ लेविस एलसिण्डर बाकी है?
मैंने लेविस एलसिण्डर से बाहर निकलकर ही अपना जीवन शुरू किया है। मैं अब भी अपने माता-पिता का बच्चा हूं। मेरे लिए मेरे चचेरे भाई वैसे ही हैं लेकिन मैंने एक नया रास्ता चुना। मैं सोचता हूं कि यह रास्ता मेरी बेहतरी के लिए है। मैं करीम अब्दुल जब्बार के रूप में बेहतर इंसान बना हूं। मुझे इसका अफसोस नहीं है कि मैं क्या था और क्या हो गया।
इस्लाम के मुताबिक जिंदगी गुजारने पर आपको कैसा महसूस हुआ?
अगर मैं इस्लाम ना अपनाता तो एक खिलाड़ी के रूप में इतना कामयाब ना होता। इस्लाम ने मुझे नैतिक सम्बल दिया। इस्लाम ने मुझे पूरी तरह भौतिकवादी बनने से बचाया और साथ ही मुझे दुनिया क ो देखने का एक खास नजरिया दिया। मेरे लिए यह आसान इसलिए भी हुआ कि मेरे नजदीकी लोगों ने मेरा साथ दिया। मेरे माता-पिता,मेरे कोच जॉन वूडन मेरे साथ थे। इस्लाम स्वीकार करने पर क्या लोगों ने आपसे दूरी बना ली या आपके साथ उनके व्यवहार में किसी तरह का बदलाव आया?
मैं लोगों से नरमी के साथ पेश आया। मैंने अपने कंधे पर पहचान का कोई पट्टी नहीं बांध रखी थी। मैं तो लोगों को सिर्फ यह समझाता था कि मैं मुस्लिम हूं और जैसा कि मैंने महसूस किया मेरे हक में यह रास्ता सबसे बेहतर था।मेरी सोच यह नहीं रही कि दूसरे मुझे स्वीकार करे तो ही मैं उनको स्वीकार करूं। और ना ही ऐसा था कि अगर आप मेरे दोस्त हैं तो आपको भी मुस्लिम बनना पड़ेगा। मैंने लोगों की भावनाओं का सम्मान किया,जैसा कि मैं भी उम्मीद करता था कि लोग मेरी भावनाओं का भी सम्मान करें।
उस व्यक्ति को कैसा महसूस होता होगा जब उसको पुराने नाम के बजाय एक नए नाम से पुकारा जाए? आप में कितना बदलाव आया?
इस्लाम ने मुझे बहुत सहनशील बना दिया। मैंने कई बातों में अन्तर पाया। जैसा कि आप जानते हंै मैं अलग हूं लेकिन अक्सर लोग नहीं जानते कि मैं कहां से जुड़ा रहा हूं। यही वजह है कि अमेरिका में ११सितम्बर के हमले के बाद मुझे अपने बारे में लोगों क ो काफी समझाने की जरूरत पड़ी।
क्या इस्लाम कबूल करने वाले आप जैसे लोगों के लिए कोई बंदिश या इसमें रोड़ा बनने वाला कोई नियम या प्रावधान है? क्या आप ऐसा महसूस करते हंै? नहीं, मैं ऐसा महसूस नहीं करता,लेकिन हां,मुझे दुख हुआ कि बहुत से लोगों ने मेरी वफादारी पर सवाल उठाए। लेकिन मैं तो शुरू से ही एक देशभक्त अमेरिकन रहा हूं।
बहुत से काले अमेरिकी इस्लाम कबूल कर रहे हैं जो कि एक तरह से सियासत से जुड़ा मामला नजर आता है। क्या आपका मामला भी ऐसा ही कुछ रहा?इस्लाम का चुनाव मेरा राजनैतिक फैसला नहीं था। यह आत्मा से लिया फैसला था। बाइबिल और कुरआन पढऩे के बाद मैं यह समझने काबिल हुआ कि कुरआन बाइबिल के बाद आया हुआ ईश्वरीय संदेश है। मैंने कुरआन की शिक्षा पर चिंतन किया और इसका अनुसरण किया। मैं नहीं मानता कि जिसको जो तालीम अच्छी लगती हो उस पर अमल करने से कोई उसे रोकता हो। कुरआन हमें बताता है कि सभी इंसानों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाना चाहिए और यहूदी,ईसाई और मुस्लिम एक से पैगम्बरों को मानते हैं
आपके लेखन में भी इस तरह का प्रभाव देखने को मिलता है।
हां,इसमें है। जातीय बराबरी न होने का कड़वा अनुभव मुझे तब हुआ जब मैं अमेरिका में बच्चा ही था। मुझ पर सिविल राइट्स मूवमेंट का गहरा असर पड़ा। मैंने देखा लोग अपना जीवन खतरे में डाल रहे थे। वे पिटते थे। उन पर कुत्तों से हमला किया जा रहा था। उन पर गोलियां बरसाईं जा रही थी फिर भी वे अंहिसात्मक तरीके से मुकाबला कर रहे थे। इसने मेरे जीवन पर गहरा असर डाला।

11 comments:

  1. अरे कोई अवध का भी मुसलमान हुआ है तो, हमें बताओ, अरे दीवाली हफते में हमें छोड देते, हम पहले ही नकली मिठाइयां खरीदकर अपना पैसा बरबाद कर रहे हैं, फिर जो बचा उससे पटाखे खरीदेंगे, इतना प्रदूषण कर देंगे कि सब बोलेंगे कि वाह दीवाली हो तो ऐसी, तुम चुप होने का क्‍या लोगे, दो एक दिन चुप रह लो,

    आपका अवधिया चाचा
    जो कभी अवध गया ही नहीं

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  2. aapke blog par pahlee baar aaya hoon. blog ne mutassir kiya hai.

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  3. @ S. Akhtar sahb -आपके लिये मूड में हूं 'वह आये हमारे घर खुदा की कुदरत है। कभी हम उनको, कभी अपने घर को देखते हैं॥'
    देख लो साहिब, आप ही हक की बात करने वाले अकेले नहीं, हमारे अजनबी भाई जिन्‍होंने एकदूसरे को देखा भी नहीं लगे है,सफात आलम साहब बाहर रह के बस अल्‍लाह अल्‍लाह कर रहे हैं बाकी भारत के अलग अलग कोने में सबका मकसद एक है 'एक' के लिये,

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  4. @ अन्‍जुमन में जो दीवाली की छुट्टी पर जो ना गये हों तो उनमें से कोई बताये कि खान का मौन कब खतम हो रहा है, मुझे उससे पूछना था कि महिलाओं को 41 चटके कैसे मिले थे, क्‍या महिला राज आरम्‍भ होचुका है, वह फसादी भी 13-14 में झूलता है, पाबला जी तो 4 तक पहुंच जाते हैं उसूल पसंद आदमी है, ग्रेट

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  5. बहुत अच्छा , बधाई स्वीकार करें

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  6. सभी को मेरा सलाम !
    हमारी अन्जुमन का ये सफ़र यूँ ही चलता रहे, अल्लाह से यही दुआ है.

    बढ़िया लेख!

    सलीम अख्तर सिद्दिकी साहब को धन्यवाद, उम्मीद करता हूँ कि सलीम भाई से हमें मार्ग-दर्शन मिलता रहेगा.

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  7. सलीम साहब, दूसरे सलीम तो तडप रहे हैं तुमसे बात करने को इनके मेल पर अपना न. ईमेल करदो, दुनिया गोल है ऐसा ज्ञानी कहते हैं, यह भी कैराना में पैदा हुये ऐसा बताते हैं, देख लो कैसे कैसे कैरानवी होते हैं,तुम कुछ समझे, कुछ ना समझे खुदा करे कोई, कुछ समझो तो दूसरे सलीम के बारे में निर्णय मत लेना, बल्‍के लेना ही नहीं, हम हैं ना मुख्‍य सलाहकार,वह हमें भी सलाह देंगे तुम्‍हें भी सलाह देंगे, सलाहकार को सलाह देंगे,

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  8. @ खान साहब भाई खुर्शीद को कहदें कि वो गोदियाल जी को दीवाली मुबारक कह आये, अन्‍यथा वह कहेंगे देख लो किसी ने हमें पूछा ही नहीं, वेसे महफूज साहब भी अन्‍जुमन की तरफ से खूब दीवाली मुबारक दे रहे हैं, फिर भी किसी को गिला शिकवा ना रह जाये खयाल रखें, अपना तो एक दोस्‍त है, एक भाई है, एक अजनबी हितैषी है जो लेना नहीं देना जानता है किसी को मिला हो ऐसा दोस्‍त (पढें निम्‍न कमेंटस) तो बताये
    ................................

    praveen jakhar
    praveenjakhar @ gmail com> Fri, Oct 16, 2009 at 11:37 AM

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

    यह दीपावली आपके पूरे परिवार के लिए ढेर सारी खुशियां और समृद्धि लाए। तरक्की के नए रास्ते खोले और सपनों को सच करने की एक नई शुरुआत बने।
    दीपावली मुबारक

    प्रवीण जाखड़
    उप संपादक
    राजस्थान पत्रिका, जयपुर
    www.praveenjakhar.tk

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  9. सो तो ठीक है मगर ब्लोग्वानी पर पसंद के 9 चटके लगने के उपरांत भी यह पसंद सूचि में क्यूँ नहीं मौजूद है. क्या ब्लोगवाणी की यह तकनिकी समस्या है या कुछ और. ब्लॉग की यह वाणी हमारी तो है न !!!??? कैरानवी भाई आपकी और दीगर मोतबर ब्लोगरों की तवज्जोह चाहता हूँ.

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  10. @ खान साहब सब ठीक है, 24 घंटे कब बीत जायें पता ही नहीं चलता, वेसे आप स्‍वयं 6 चटकों के साथ मजे उडा रहे हो, उचित समय पर उचित पोस्‍ट, भाई अपना ध्‍यान तो चटखारों पर रहता है, इक बात तो बताओ अवध यूपी में है कि चिपलूनकर प्रदेश में जहां की सरकारी भाषा मराठी है,

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  11. भाई असली अवधी तो हम है!

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