श्रीमती डाक्टर कमला सुरैया(केरल, भारत) (पारिवारिक नाम डाक्टर
कमलादास) उपन्यासकार , कवयित्री हैं और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध् लेखिका और शोधकर्ता हैं। उन्होंने 12 दिसम्बर 1999 ई. को इस्लाम स्वीकार किया तो भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर के धार्मिक और शैक्षिक क्षेत्रों में तहलका मच गया। नीचे उनके इस्लाम क़बूल करने की घटना ब्यान की जा रही है। यह लेख कई अलग-अलग लेखों की सहायता से तैयार किया गया है।........डाक्टर कमला सुरैया 1934 ई. में दक्षिणी भारत के केरल राज्य के एक इलाक़े पन्ना पूरकलम (जनपद थ्रेसर) में पैदा हुईं। उनका सम्बन्ध नायर जाति के एक अमीर हिन्दू घराने से है। उनकी माँ निलापत बिलामनी मलयालम भाषा की कवयित्री थीं, जबकि पिता बी. एम. नायर प्रसिद्ध पत्रकार थे और एक ही समय में दो पत्रिकाओं के सम्पादक थे। उनके पति स्वर्गीय मध्वादास इण्टरनेशनल मानीटरी फण्ड (IMF) के सीनियर कंसलटेंट थे।


खुद डाक्टर कमला सुरैया एक समय तक अंग्रज़ी की अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका इलस्ट्रेटेड वीकली आफ़ इण्डिया की सम्पादक कमेटी में शामिल रहीं। वे केरल की चिल्डेªªन फिल्म सोसाइटी की अध्यक्ष थीं। केरल के फारेस्ट्री बोर्ड की चेयर पर्सन थीं और मासिक पत्रिका ‘पोयट‘ की ओरिऐंट एडीटर थीं।डाक्टर सुरैया एक ही समय मलयालम और अंग्रेज़ी भाषाओं में लिखती हैं। वे उपन्यासकार भी हैं, कहानीकार भी और कवयित्री भी। इस प्रकार विभिन्न हवालों से मलयालम में उनकी बीस से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और बहुत पसन्द की गई हैं। इनके नावल 'Entekatha' का पन्द्रह विदेशी भाषाओं में अनूवाद हो चुका है। इसी प्रकार अंग्रज़ी में उनकी पाँच किताबें हैं और बडी लोकप्रिय हुई हैं। 1964 ई. में इन्हें ‘एशियन पोएटरी प्राइज़‘ दिया गया। 1965 ई. में इन्हें केंट अवार्ड, एशियन वल्र्ड प्राइज़ और एकेडमी अवार्ड दिए गए। 1967 ई. में इन्हें 'Vayalar' अवार्ड मिला। जबकि 1969 ई. में उनके कथा-लेखन पर उन्हें केरल साहित्य एकेडमी अवार्ड का सम्मान मिला। कई देशी और विदेशी यूनीवर्सिटियों ने इन्हें डाक्ट्रेट की मानद डिग्रियाँ प्रदान की हैं।इन आसाधरण शैक्षिक, साहित्यिक तथा लेखन और शोध सम्बन्धी योग्यताओं के साथ
इस प्रसिद्ध महिला ने 12 दिसम्बर 1999 ई. को केरल के शहर कोचीन में एक शैक्षिक एवं साहित्यिक समारोह को सम्बोधित करते हुए उपमहाद्वीप के राजनीतिक, धार्मिक और शैक्षिक क्षेत्रों में इस रहस्योद्घाटन से सनसनी फैला दीः ‘‘दुनिया सुन ले कि मैंने इस्लाम क़बूल कर लिया है, इस्लाम जो मुहब्बत, अमन और शान्ति का दीन हैं, इस्लाम जो सम्पूर्ण जीवन व्यवस्था है, और मैंने यह फैसला भावुकता या सामयिक आधारों पर नहीं किया है, इसके लिए मैंने एक अवधि तक बडी गम्भीरता और ध्यानपूर्वक गहन अध्ययन किया है और मैं अंत में इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि अन्य असंख्य खूबियों के अतिरिक्त इस्लाम औरत को सुरक्षा का एहसास प्रदान करता है और में इसकी बडी ही जरूरत महसूस करती थी...... इसका एक अत्यन्त उज्जवल पक्ष यह भी है कि अब मुझ अनगिनत खुदाओं के बजाये एक और केवल एक खुदा की उपासना करनी होगी। यह रमज़ान का महीना है। मुसलमानों का अत्यन्त पवित्र महीना और मैं खुश हूँ कि इस अत्यन्त पवित्र महीने में अपनी आस्थाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन कर रही हूँ तथा समझ-बूझ और
होश के साथ एलान करती हूँ कि अल्लाह के अलावा कोई पूज्य नहीं और मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के रसूल (दूत) हैं। अतीत में मेरा कोई अक़ीदा नहीं था। मूर्ति पूजा से बददिल होकर मैंने नास्तिकता अपना ली थी, लेकिन अब मैं एलान करती हूँ कि मैं एक अल्लाह की उपासक बनकर रहूँगी और धर्म और समुदाय के भेदभव के बगैर उसके सभी बन्दों से मुहब्बत करती रहूँगी ।बाद में एक टेलीवीज़न इंटरव्यू में इन्होंने स्पष्ट किया, ‘‘मैंने किसी दबाव में आकर इस्लाम कत्रबूल नहीं किया है, यह मेरा स्वतंत्र फैसला है और मैं इस पर किसी आलोचना की कोई परवाह नहीं करती। मैंने फौरी तौर पर घर से बुतों और मूर्तियों को हटा दिया है और ऐसा महसूस करती हूं जैसे मुझे नया जन्म मिला है।
‘‘टाइम्ज़ आफ इण्डिया’’ को इंटरव्यू देते हुए 15 दिसम्बर 1999 ई. को डाक्टर सुरैया कमला ने कहा, ‘‘इस्लामी शिक्षाओं में बुरक़े ने मुझे बहुत प्रभावित किया अर्थात वह लिबास जो मुसलमान औरतें आमतौर पर पहनती हैं। हकीकत यह है कि बुरका बडा ही जबरदस्त लिबास और असाधारण चीज़ है। यह औरत को मर्द की चुभती हुई नज़रों से सुरक्षित रखता है और एक खास किस्म की सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।’’ उन्होंने और व्याख्या की, ‘‘आपको मेरी यह बात बडी अजीब लगेगी कि मैं नाम-निहाद आज़ादी से तंग आ गई हूँ। मुझे औरतों के नंगे मुह, आज़ाद चलत-फिरत तनिक भी पसन्द नहीं। मैं चाहती हूँ कि कोई मर्द मेरी ओर घूर कर न देखे। इसी लिए यह सुनकर आपको आश्चय्र होगा कि मैं पिछले चैबीस वर्षों से समय-समय पर बुरका औढ रही हूँ, शापिंग के लिए जाते हुए, सांस्कृतिक समारोहों में भाग लेते हुए, यहाँ तक कि विदेशों की यात्राओं में मैं अक्सर बुरका पहन लिया करती थी और एक खास किस्म की सुरक्षा की भावना से आनन्दित होती थी। मैंने देखा कि पर्देदार औरतों का आदर-सम्मान किया जाता है और कोई उन्हें अकारण परेशान नहीं करता।’’डाक्टर सुरैया ने आगे कहा, ‘‘इस्लाम ने औरतों को विभिन्न पहलुओं से बहुत-सी आज़ादियाँ दे रखी हैं, बल्कि जहाँ तक बराबरी की बात है इतिहास के किसी युग में दुनिया के किसी समाज ने मर्द और औरत की बराबरी का वह एहतिमाम नहीं किया जो इस्लाम ने किया है। इसको मर्दों के बराबर अधिकारों से नवाज़ा गया है। माँ, बहन, बीवी और बेटी अर्थात इसका हर रिश्ता गरिमापूर्झा औ सम्माननीय है। इसको बाप, पति और बेटों की जायदाद में भागीदार बनाया गया है और घर में वह पति की प्रतिनिधि और कार्यवाहिका है। जहाँ तक पति के आज्ञापालन का बात है यह घर की व्यवस्था को ठीक रखते के लिए आवश्यक है और मैं इसको न गुलामी समझती हुँ और स्वतंत्रताओं की अपेक्षाओं का उल्लंघन समझती हुँ। इस प्रकार के आज्ञापालन और अनुपालन के बगैर तो किसी भी विभग की व्यवस्था शेष नही रह सकती और इस्लाम तो है ही सम्पूर्ण अनुपालन और सिर झुकाने का नाम, अल्लाह के सामने विशुद्ध बन्दगी का नाम। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की सच्ची पैरवी का नाम, यही गुलामी तो सच्ची आजादी की गारंटी देती है, वरना इन्सान तो जानवर बन जाए और जहाँ चाहे, जिस खेती में चाहै मुँह मारता फिरे।
अतः इस्लाम और केवल इस्लाम औरत की गरिमा, स्थान और श्रेणी का लिहाज़ करता है। हिन्दू धर्म में ऐसी कोई सुविधा दूर-दूर तक नज़र नहीं आती।डाक्टर सुरैया कमला को इस्लाम कबूल करने के लिए 27 वर्ष तक इन्तिज़ार करना पडा। वह सत्तर के दशक में इस्लाम से प्रभावित हुईं और इस सम्बन्ध में अपने पति से वार्ता करती रहीं जिन्होंने जवाब में एतिराज़ या मुखालफत का अन्दाज़ नहीं अपनाया, बल्कि सुझाव दिया कि किसी नतीजे पर पहुँचने से पहले उन्हें इस्लाम के बारे में विस्तृत और गहन अध्ययन करना चाहिए। उनके तीनों बेटों का रवैया भी सकारात्मक रहा। इसी लिए जब उनकी माँ ने इस्लाम क़बूल करने का एलान किया तो तीनों बेटे कोचीन पहुँच गए, ताकि सम्भावित विरोध का मिलकर मुकाबला किया जा सके। तीनों बेटों की प्रतिक्रिया थी, ‘‘हमें अपनी माँ के फैसल से र्कोइ तमभेद नहीं। वह हमारी माँ है, चाहे वे हिन्दू हो, ईसाई हों, या मुसलमान, हम हर हाल में उनका साथ देंगे और उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आने देंगे।
‘‘ बेटों के आज्ञापालन का उल्लेख करते हुए डाक्टर सुरैया ने बताया, ‘‘मेरे बेटों ने कह दिया है कि अगर आप खुश हैं तो हम भी इस्लाम कबूल करने पर तैयार हैं।‘‘इस्लाम क़बूल करने के बाद कटटर-पंथी हिन्दुओं की ओर से धमकियों का सिलसिला शुरू हो गया। पत्रों में और टेलिफोन पर गालियाँ दी जातीं। श्रीमती के बेटे एम. डी फलाइड ने बताया, ‘‘हमने इस बारें में कई फोन सुने हैं, एक व्यक्ति ने धमकी दी, ‘‘चैबीस घंटे के अन्दर इसको कत्ल कर दूँगा।‘‘ लेकिन डाक्टर सुरैया जवाब में खामोश थी। ‘‘मैंने सभी मामले अल्लाह पर छोड दिए हैं, वही हमारी सुरक्षा करने वाला है।’’उन्हें दुनिया भर के मुसलमानों की ओर से बधाई सन्देश प्राप्त होते रहे और वे बड़ी सच्चाई, मुहब्बत और गरमजोशी से उन्हें अपने समर्थन का यकीन दिलाते रहे। इससे मेरे इस विश्वास को ताक़त मिली है कि इस्लाम मुहब्बत औ इख़्लास का मज़हब है। मेरी इच्छा है कि बहुत जल्द इस्लाम के केन्द्र पवित्र शहर मक्का और मदीना की यात्रा करूँ और वहाँ की पवित्र मिटटी को चूमूँ। अपने बारे में उनकी कविताओं, कहानियों और विभिन्न इंटरव्यूज से पता चलता है कि उन्होंने इस्लाम क़बूल करने का निर्णय अचानक नहीं किया, जैसा कि ऊपर इशरा किया जा चुका है। करीब 28 वर्ष पूर्व इस्लाम धर्म के प्रति उनकी रूचि का आरम्भ उस समय हुआ जब उन्होंने दो यतीम मुस्लिम बच्चों.... इम्तियाज और इरशाद को लेपालक बना लिया । उन्होंने इन बच्चों को हिन्दू की हैसियत से पालन-पोषण करने के बजाये मुसलमान के रूप में प्रशिक्षित करने का फैसला किया। उनके लिए इस्लामी शिक्षा की व्यवस्था की और खुद भी इस्लाम और इस्लाम के इतिहास के बारे में अध्ययन आरम्भ कर दिया और फिर गम्भीरतापूर्वक और गहराई के साथ अपनी जानकारी में वृद्धि करती चली गईं। इस मकसद के लिए उन्होंने मुस्लिम परिवारों से सम्बन्ध बढा लिए। जिससे इस्लाम के बारें में उनकी एकाग्रता बढती गई। इसका उल्लेख उन्होंने विद्वान पति मधुवादास से किया, वे धर्म से विरक्त और निर्पेक्ष थे। उन्होंने सुझाव दिया कि इस्लाम के बारे में अधिक से अधिक अध्ययन करें और मन में पैदा होने वाली छोटी-से-छोटी आशंकाओं का जवाब हासिल करें। इसलिए जब उन्हें पूर्णतः संतुष्टि हो गई, मन सन्तुष्ट हो गया तो उन्होंने इस्लाम क़बूल करने का एलान कर दिया।
एक इंटरव्यू में ‘‘खलीज टाइम्ज‘‘ ने उनसे पूछा कि इस्लाम कबूल करने पर उनके जानने वालों और वर्तमान लेखकों की क्या प्रतिक्रिया थी, तो उन्होंने बताया, बहुत ही कम लोगों ने विरोध किया। बस कुछेक लोगों ने बुरा माना और मुझे उनकी कोई परवाह नहीं। धमकियाँ देनेवालों के बारे में कहा, ‘‘मैं तनिक भी उनसे भयभीत न हुई स्थानीय पुलिस के अधिकारियों ने मुझे गार्ड की पेशकश की। लेकिन मैंने उन्हें बता दिया है कि मुझे ऐसे किसी इन्तिज़ाम की ज़रूरत हीं। मुझे कूवल अल्लाह की हस्ती पर भरोसा है, वहीं मेरी सुरक्षा करेगा।‘‘ इसलिए यह बात ईमान को बढानेवाली है कि वे अपने ही घर में निवास करती रहीं और उन्होंने मामूली से सुरक्षा प्रबन्ध भी नहीं किए।‘‘खलीज टाइम्ज़’’ ही से बातें करते हुऐ उन्होंने कहा,
‘‘मैंने अब बाक़ायदा पर्दा अपना लिया है और ऐसा लगता है कि जैसे बुरका बुलेटप्रूफ जैकेट है जिसमें और मर्दों की हवसनाक नज़रों से भी सुरक्षित रहती है और उनकी शरारतों से भी। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस्लाम ने नहीं, बल्कि सामाजिक अन्यायों ने औरतों के अधिकार छीन लिए हैं। इस्लाम तो औरतों के अधिकारों का सबसे बडा रक्षक है।‘‘ उन्होंने बडे विश्वास के साथ कहा, ‘‘इस्लाम मेरे लिए दुनिया की सबसे कीमती पूँजी है। यह मुझे जानसे बढकर प्रिय है और इसके लिए बडी से बडी कुरबानी दी जा सकती है।’’जहाँ तक इस्लामी शिक्षाओं पर अमल की बात है। डाक्टर सुरैया कमला ने कहा, ‘‘मुझे हर अच्छे मुसलमान की तरह इस्लाम की एक-एक शिक्षा से गहरी मुहब्बत है। मैंने इसे दैनिक जीवन में व्यवहारिक रूप से अपना लिया है और धर्म के मुकाबले में दौलत मेरे नज़दीक बेमानी चीज़ है।’’ अपनी शायरी के हवाले से उन्होंने बताया, ‘‘मैं आगे केवल खुदा की तारीफ पर आधारित कविताएँ लिखूँगी। अल्लाह ने चाहा तो ईश्वर की प्रशंसा पर आधरित कविताओं की एक किताब बहुत जल्द सामने आ जाएगी।’’इस्लाम क़बूल करने के बाद डाक्टर सुरैया कमला ने बहुत से समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और इलेक्ट्रानिक मीडिया को इंटरव्यूज़ दिए। हर इंटरव्यू में उन्होंने इस इरादे का इज़हार किया कि वे दुनिया पर इस्लामी शिक्षाओं की सच्चाई को उजागर करेंगी। ‘खलीज टाइम्ज‘ से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा,
‘‘में इस्लाम का परिच नई सदी के एक जिन्दा और सच्चे धर्म की हैसियत से कराना चाहती हूँ। जिसकी बुनियादें बुद्धि, साइंस और सच्चाइयों पर आधारित हैं। मेरा इरादा है कि अब मैं शायरी को अल्लाह के गुणगान के लिए अर्पित कर दूँ और कुरआन के बारें में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करलूँ और उन इस्लामी शिक्षाओं से अवगत हो जाऊँ जो दैनिक जीवन में रहनुमाई का सबब बनती हैं। मेरे नज़दीक इस्लाम की रूह यह है कि एक सच्चे मुसलमान को दूसरों की अधिक से अधिक सेवा करनी चाहिए। अल्लाह का शक्र है कि में पहले से भी इस पर कार्यरत हूँ और आगे भी यही तरीक़ा अपनाउँगी। अतः इस सम्बन्ध में मैं खुदा के बन्दों तक इस्लाम की बरकतें पहुँचाने का इरादा रखती हूँ। मैं जानती हूँ कि इस्लाम की नेमत मिल जाने के बाद मैं खुशी और इत्मीनान के जिस एहसास से परिचित हुई हूँ उसे सारी दुनिया तक पहुँचा दूँ। सच्चाई यह है कि इस्लाम क़बूल करने के बाद मुझे जो इत्मीनान और सुकून हासिल हुआ है और खुशी की जिस कैफियत से मैं अवगत हुई हूँ, उसे बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इसके साथ ही मुझे सुरक्षा का एहसास भी प्राप्त हुआ है। मैं बडी उम्र की एक औरत हूँ और सच्ची बात यह है कि इस्लाम कुबूल करने से पहले जीवन भर बेखौफी का ऐसा खास अन्दाज़ मेरे तजुर्बे में नहीं आया। सुकून, इत्मीनान, खुशी और बेखौफी की यह नेमत धन-दौलत से हरगिज नहीं मिल सकती। इसी लिए दौलत मेरी नज़रों में तुच्छ हो गई है।‘‘खुशी और इत्मीनान के इस एहसास को उन लाखों बधाई सन्देशों ने और अधिक बढा दिया जो उन्हें दुनिया भर से मिलते रहे, खलीज टाइम्ज़ के रिपोर्टर के मुताबिक उनके टेलिफोन की घंटी दिन भर बजती रतही है। इस्लाम के मानने वाले उनकी खुशियों में जी भरके शरीक होते रहे।
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साभारः
‘‘हमें खुदा कैसे मिला’’ मधुर संदेश संगम, (online पुस्तक)
‘‘हमें खुदा कैसे मिला’’ मधुर संदेश संगम, दिल्ली-25, पृष्ठ 94 से 100 तक (80 नव-मुल्लिम महिलाओं की दास्तान की यह पुस्तक पीडीफ में उपलब्ध)
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कमला सुरैया के जन्म की तारीख भी 31(मार्च)थी और उनका निधन भी 31(मई)2009 तारीख को हुआ.
मुहम्मद सल्ल. के साथ हुआ कि जन्म और निधन की तारीख भी एक थी (महीना भी) एक हों, अल्लाह जन्नत नसीब करे इस बेबाक लेखिका को, आमीन--- मुहम्मद उमर कैरानवी
मुहम्मद सल्ल. के साथ हुआ कि जन्म और निधन की तारीख भी एक थी (महीना भी) एक हों, अल्लाह जन्नत नसीब करे इस बेबाक लेखिका को, आमीन--- मुहम्मद उमर कैरानवी
सलीम साहब की नई बहिन रचना जी कैरानवी अस्सलामु अलैकुम, आगे आगे देखिये होता है किया,
ReplyDelete‘‘इस्लाम ने औरतों को विभिन्न पहलुओं से बहुत-सी आज़ादियाँ दे रखी हैं, बल्कि जहाँ तक बराबरी की बात है इतिहास के किसी युग में दुनिया के किसी समाज ने मर्द और औरत की बराबरी का वह एहतिमाम नहीं किया जो इस्लाम ने किया है। इसको मर्दों के बराबर अधिकारों से नवाज़ा गया है। माँ, बहन, बीवी और बेटी अर्थात इसका हर रिश्ता गरिमापूर्झा औ सम्माननीय है। इसको बाप, पति और बेटों की जायदाद में भागीदार बनाया गया है और घर में वह पति की प्रतिनिधि और कार्यवाहिका है। जहाँ तक पति के आज्ञापालन का बात है यह घर की व्यवस्था को ठीक रखते के लिए आवश्यक है और मैं इसको न गुलामी समझती हुँ और स्वतंत्रताओं की अपेक्षाओं का उल्लंघन समझती हुँ। इस प्रकार के आज्ञापालन और अनुपालन के बगैर तो किसी भी विभग की व्यवस्था शेष नही रह सकती और इस्लाम तो है ही सम्पूर्ण अनुपालन और सिर झुकाने का नाम, अल्लाह के सामने विशुद्ध बन्दगी का नाम। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की सच्ची पैरवी का नाम, यही गुलामी तो सच्ची आजादी की गारंटी देती है, वरना इन्सान तो जानवर बन जाए और जहाँ चाहे, जिस खेती में चाहै मुँह मारता फिरे।
बहुत अच्छी कहानी है। बहुत बहुत धन्यवाद,श्रीमती डाक्टर कमला सुरैया की यह बात हमें बड़ी अच्छी लगी‘‘में इस्लाम का परिचय नई सदी के एक जिन्दा और सच्चे धर्म की हैसियत से कराना चाहती हूँ। जिसकी बुनियादें बुद्धि,साइंस और सच्चाइयों पर आधारित हैं।
ReplyDeleteज़रूरत है कि बुद्धि ज्ञान रखने वाले लोग इस विषय पर चिंतन मनन करें।
यह बड़ी अच्छी मिसाल आपने लोगों के सामने रखी. कैरानवी भाई आप महान हो, आप जैसे ही आलिमों के दम पर इस्लाम आज भी कायम है. सारे मुसलमानों को आप जैसे इस्लाम और कुरआन की सच्ची तस्वीर पेश करने वालों पर गर्व है. शैतान के ये बन्दे ईमानवालों को बदनाम करने की पुरजोर कोशिश करते हैं, पर जब तक आप जैसे लोग जिंदा हैं इस्लाम दिलों में इज्ज़त पायेगा.
ReplyDeleteअल्लाह आपको सलामती बख्शे. आमीन.
@आने से पहले हीः खान साहब वह महिलाओं का अखाडा है वहां मैं चुप रह कर इनको समझ रहा था, आपतो शादीशुदा नहीं हो नारी चरित्र नहीं समझोगे, आपने ना मनु को पढा ना चाणक्य को, माशाअल्लाह हम तो स्वयं नेट बुक पब्लिशर हैं, औरत को समझे हैं,समझ समझ के ही तो दूसरों का नासमझ बनावे हैं,
ReplyDeleteखान साहब ध्यान दिजिये आपने जिसकी बिना शकल देखे बहिन बना लिया हम यह उपरोक्त्ा उसी के लिये तो लाये हैं, उसने मेरा शीबा आलम के नाम कमेंटस पब्लिश नहीं किया, हालांकि यह तो शुरूआत थी,
वह नेस्ले की पोस्ट लाने वाला पहलवान 3-3 साल से डटा है और क्या किया, एक भी दंगा फसाद ना करा सका, क्यांकि स्वच्छता वाले कामयाब ही नहीं होने देते,
खेर आपकी रचता बहिन को मिले कमेंटस में एक लाइन बडी जोरदार मिली
चश्मे बददूर की है,10 दिन लगे थे इसे आज तक संभल नही पाया, देखो उलटा पुलिस कोतवाल को डांटे
''दुःख की बात तो यह है कि ये अपनी साजिश में कामयाब होते जा रहे हैं। हम सभी को बरगला कर रख दिया है इन्होंने। हम सभी के भीतर कुंठा और आक्रोश भरते जा रहा है। ये हमारे हिन्दी ब्लॉग जगत में गृह युद्ध मचाने में शनैः शनैः सफल होते जा रहे हैं।''
anjuman se mafi ke sath yeh comment bila maqsad nahin he,,he to khan sahb aap batao men delete kar doonga.
heidi donna - रचना ने मेरा कमेटस शीबा आलम के नाम पब्लिश नहीं किया हांलांकि वह मामूली सा था, मैंने डर्टी लिखा हो ऐसी तो शायद आपको भी शंका नहीं होगी,
ReplyDeleteउससे पूछकर बताओ,उसके यहां कमेंटस करने की किया किया शर्तें हैं, सब शर्तों का सम्मान किया जायेगा,
आपके बारे में अभी तो मेरा गलत अनुमान यह है कि जब मर्दों ने सांकलें लगा लि तो नारियों का आगे कर दिया, सही अनुमान होते होते हो जायेगा,
कमला दास आम लोकजीवन से अपनी करतूतों और हवस के चलते बहिष्कृत हो चुकी थी -उन्हें दोजख ही मिलता और इसलिए उहोने इस्लाम कबूल कर अपने को अनुकूलित कियां!
ReplyDeleteआपके अनुमान के मुताल्लिक मैं कहूंगी की आप अंदाजे न लगा कर अपने नेक काम को अंजाम तक पहुँचने की तरफ ध्यान दें.
ReplyDeleteआप किसी के कमेन्ट मिटाने की परवाह न करें, खुदा और हम सब की ताकत आपके साथ है. अपना हौंसला बनाए रखें.
अरविन्द मिश्रा से सहमत…। कैरानवी जी आप अपनी दुनिया में रमे रहिये… खुशफ़हमी पालने से कौन किसी को रोक सकता है…। एकाध रचनात्मक, सुधारात्मक या राजनीति-समाज लेख भी लिखिये कभी। मेरी छोड़िये, मुझे तो हिन्दी ब्लाग जगत में भी "साम्प्रदायिक" कहा जाता है, लेकिन कभी सोचा है कैरानवी जी आपने, कि सेकुलर(?) कहे जाने वाले हिन्दी ब्लागर भी आपको और सलीम को बुरी तरह नापसन्द क्यों करते हैं? सोचकर देखियेगा… आज नारी ब्लाग पर आई पसन्द और टिप्पणियों को देखकर आपको अन्दाज़ा हो गया होगा कि लोग आप दोनों को किस तरह नापसन्द करते हैं, यहाँ तक कि कई ब्लागर जो कभी भी विवाद में नहीं पड़ते, उन्होंने भी आज उस ब्लाग पर टिप्पणी की… ऐसा क्यों हुआ? कभी ठण्डे दिमाग से सोचिये…
ReplyDeleteकैरानवी जी आप की अकल का क्या कहें शायद आप को जन्न्त की हकीकत कयामत के दिन से पहले नही समझ आयेगी!
ReplyDeleteक्या सोच के सब कर रहे हो दोस्त ?
अकबर अल्लाह खुश होगा?
शाबाशी देगा !!! ?
क्युँ ???
सुन्दर लेख
ReplyDeleteaaj paheli baar apka blog dekha hai umda blog hai aur aapka sujhav bhi bahut accha hai mujhe bahut pasand aaya agar aap is bare me mera kuch aur margdarshan kare to aapka bahut ahesan mand rahooga waise jahan tak writing ka sawal hai mai khud bhi likhta hoo kai storys hai jin par koi film bhi ban sakti hai paisa hota to mai khud hi bana leta filmo me meri gheri ruchi hai
ReplyDeleteवह सत्तर के दशक में इस्लाम से प्रभावित हुईं और इस सम्बन्ध में अपने पति से वार्ता करती रहीं जिन्होंने जवाब में एतिराज़ या मुखालफत का अन्दाज़ नहीं अपनाया, बल्कि सुझाव दिया कि किसी नतीजे पर पहुँचने से पहले उन्हें इस्लाम के बारे में विस्तृत और गहन अध्ययन करना चाहिए। उनके तीनों बेटों का रवैया भी सकारात्मक रहा। इसी लिए जब उनकी माँ ने इस्लाम क़बूल करने का एलान किया तो तीनों बेटे कोचीन पहुँच गए, ताकि सम्भावित विरोध का मिलकर मुकाबला किया जा सके। तीनों बेटों की प्रतिक्रिया थी, ‘‘हमें अपनी माँ के फैसल से र्कोइ तमभेद नहीं। वह हमारी माँ है, चाहे वे हिन्दू हो, ईसाई हों, या मुसलमान, हम हर हाल में उनका साथ देंगे और उनके सम्मान में कोई कमी नहीं आने देंगे।
ReplyDelete‘‘ बेटों के आज्ञापालन का उल्लेख करते हुए डाक्टर सुरैया ने बताया, ‘‘मेरे बेटों ने कह दिया है कि अगर आप खुश हैं तो हम भी इस्लाम कबूल करने पर तैयार हैं।‘‘इस्लाम क़बूल करने के बाद कटटर-पंथी हिन्दुओं की ओर से धमकियों का सिलसिला शुरू हो गया। पत्रों में और टेलिफोन पर गालियाँ दी जातीं। श्रीमती के बेटे एम. डी फलाइड ने बताया, ‘‘हमने इस बारें में कई फोन सुने हैं, एक व्यक्ति ने धमकी दी, ‘‘चैबीस घंटे के अन्दर इसको कत्ल कर दूँगा।‘‘ लेकिन डाक्टर सुरैया जवाब में खामोश थी। ‘‘मैंने सभी मामले अल्लाह पर छोड दिए हैं, वही हमारी सुरक्षा करने वाला है।’’उन्हें दुनिया भर के मुसलमानों की ओर से बधाई सन्देश प्राप्त होते रहे और वे बड़ी सच्चाई, मुहब्बत और गरमजोशी से उन्हें अपने समर्थन का यकीन दिलाते रहे। इससे मेरे इस विश्वास को ताक़त मिली है कि इस्लाम मुहब्बत औ इख़्लास का मज़हब है। मेरी इच्छा है कि बहुत जल्द इस्लाम के केन्द्र पवित्र शहर मक्का और मदीना की यात्रा करूँ और वहाँ की पवित्र मिटटी को चूमूँ
लेखिका कमलादास नहीं रहीं
ReplyDeleteअंग्रेजी और मलयालम की जानी-मानी लेखिका कमला सुरैया का शनिवार, 30 मई 2009 तड़के पुणे के एक अस्पताल में निधन हो गया। 65 वर्षीय सुरैया कुछ समय से बीमार चल रही थीं।
उनके करीबी मित्रों ने बताया कि पुणे के जहाँगीर अस्पताल में उन्होंने अपनी अंतिम साँसें लीं। केरल में जन्मीं सुरैया करीब दस साल पहले इस्लाम धर्म ग्रहण करने से पहले कमलादास के नाम से जानी जाती थीं।
कविताओं और कहानियों पर समान अधिकार रखने वाली सुरैया की 'माई स्टोरी' का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी किया जा चुका है। सुरैया ने मलयालम में माधवीकुट्टी के नाम से कई लघु कथाएँ भी लिखीं हैं।
प्रबंधन विशेषज्ञ वीएम नायर और जानी-मानी कवयित्री बालामणियम्मा की पुत्री सुरैया का जन्म त्रिसूर जिले के पुन्नायारकुलम के नलप्पड़ परिवार में हुआ था। उनके दिवंगत पति माधवदास रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया में अधिकारी थे। उनके परिवार में प्रसिद्ध पत्रकार एमडी नलप्पड़ समेत दो पुत्र हैं
मोहम्मद उमर कैरंवी जी आप बहिष्कृत लोगों को इस्लाम कबूलने पे खुस हो रहे थे .... खूब खुस होईये ... इस्लाम मैं आके भी गन्दगी ही फैलाया होगा ... वैसे भी आपको शायद गन्दगी ही ज्यादा पसंद है ......
ReplyDeleteबुरका बुलेटप्रूफ जैकेट है - इसलिए पाकिस्तानी और तालेबानियों को कह दीजिये ... बुरका बुलेटप्रूफ जैकेट है .... वर्दी हटा कर सारे मर्द बुरखा पहन लें ....
ReplyDeleteडाक्टर कमला को फ्रायड के प्रयोगशाला में लेकर चीरफाड़ करना होगा...वह भय से ग्रस्त थी..बुरका में उसे सुकून मिला..भय से मुक्ति मिली...बुरका को वह कई बार आजमा चुकी थी और उनके लिए यह काफी कंफरटेबल था....वह किस बात से भयभीत थी...पुरुषों की चुभती हुई नजरों से जो उनको टटोलता था या शायद वह यह महसूस करती थी कि उनको टटोलता था...बुरका उन्हें इस्लाम तक ले गया...इस्लाम में उन्हें बुरका अंदर सुरक्षा का अहसास हुआ...फिर वह इस्लाम पढ़ती चली गई...फिर वह रसूल में यकीन करती चली गई...महिलाओं का सौंदर्य उन्हें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता है...वह चीखते हुये नजर आती हैं ....चिंतन मनन की प्रक्रिया से भी वह गुजरी, और लंबे समय तक गुजरी...
ReplyDeleteऔर इस्लाम तो है ही सम्पूर्ण अनुपालन और सिर झुकाने का नाम, अल्लाह के सामने विशुद्ध बन्दगी का नाम। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की सच्ची पैरवी का नाम, यही गुलामी तो सच्ची आजादी की गारंटी देती है, वरना इन्सान तो जानवर बन जाए और जहाँ चाहे, जिस खेती में चाहै मुँह मारता फिरे।........गुलामी सच्ची आजादी की गारंटी है....क्योंकि इस्लाम एक किताब का गुलाम है....अब इसको आप चाहे बंद आंख से देखों या खुले आंख से देखो....कोई फर्क नहीं पड़ता है...गुलामी भी किसके आगे, जिसे देखा न हो...जो दिखाई नहीं देता हो...बस आदेश देता हो...वो भी बंद आदेश...कायनात का रंग एक किताब कैसे बंद कर सकती है....दुनिया नीली है, पीली है, हरी है, गुलाबी है, और चित्रों में ढली हुई है...बंद किताब को जिंदगी में नहीं उतारा जा सकता...दुनिया घूम रही है....ऋषियों ने यहां पर अपनी बंद आंखों से वेदों को रचा था....चाहते तो पंद्रह हजार कड़ोड़ रसूल पैदा कर सकते थे, लेकिन नहीं लोगों के दिमाग का ढक्कन खोल रखा....वेद खुला था..बंद नहीं हुआ....इस्लाम और बुद्द एक ही समय में थे...दोनों ने बूतपूजा का विरोध किया था...बुद्ध एक रियेक्शन था...वह पुरुषों को औरते से दूर रखकर उन्हें सुरक्षित करना चाहता था जबकि रसूल को सुनने वाला मोहम्मद औरतों को एक सुरक्षित बुरका व्यवस्था देकर उन्हें सुरक्षित करना चाहता था। मोहम्मद किताब को बंद करते हुये कहता है कि बस मैं अंतिम पैंगम्बर, किताब बंद। सब कुछ लिख दिया...अब इस्लाम का औरतों को लेकर ज्यामितीय व्यवस्था निसंदेह बुद्ध के समय की जो दुनिया थी उसके अनुसार थी...बुद्ध को फिर पंगोल पंथियों ने भगवान विष्णु का ही अवतार घोषित करके उनकी इतनी मूर्ति बनाई, इतनी मूर्ति बनाई अब पूरी दुनिया में बुद्ध ही बुद्ध है। अब प्रैक्टिकल रूप में इस्लाम ने बुद्ध को बामियान से उड़ा कर क्या किया...इस्लाम बूतों को तलवार के बदौलत तोड़ता गया और बुद्ध बूतो को छोड़ने के लिए समझाते गये..डाक्टर ने बूतों को भी अपने घरों से हटाया...अनगिनत देवी देवताओं ी पूजा करने से अच्छा उन्होंने एक निरंकार के आगे सिर झूकाना बेहतर समझा...निसंदेह उन्हें एकाग्रता मिली होगी...और बूरके में सकून मिला होगा...
kmladas unmukt vicharo vali lady thin. unke lekhan mein ye baat saaf tor pe dikhti hai. islam wale kmala urf suraiyajaisi kisi mhila ko brdast nhi krte agar woh pedaysi muslman hotin. sania mirza ki khel dress pe kya hungama mcha tha. saleem miyan agar wakai islam ke shi follower hain to osama bin laden, talibani aaankiyon,ISI, mahmood gazni, alauddin khilji, babar jaise dharmsthal bhanjkon ki ninda krein, agar nhi to......
ReplyDeleteदोस्तो ! बात किसी धर्म के बेहतर होने की नहीं, बात ये है कि किताब और अमल में अंतर कितना है.
ReplyDeleteइस अंजुमन में आना है बार बार, देखें क्या फूल खिलते हैं यहाँ.
@ satish ali-जितने आपने नाम गिनाये उनमें से मुझे कोई पसन्द नहीं, इस लिये कभी उनकी निंदा भी कर देंगे, कमला जी का लेख आपने सही से नहीं पढा वह इस्लाम में आने से पहले ऐसी थीं, बाद में केसी हो गईं उन्होंने बताया है, फिर भी आप नहीं मानते तो साबित किजिये, हम मान लेंगे
ReplyDeleteSuresh Chiplunkar जी कुप्रचारी लोग हमें कुछ लिखने की कहां फुर्सत देते हैं, फिर भी आपको मायूस नहीं करूंगा,…निम्न लेख पिछले हफते का है, पढ लो कैरानवी जागती आंखों कैसे सपने देख लेता है, पढकर बताइयेगा किस श्रेणी अर्थात रचनात्मक, सुधारात्मक या राजनीति-समाज में आयेगा,अगर आपने नेस्ले का दूध नहीं पी रखा तो कमेंटस से हाजिरी लगाइयेगा,सांकल खुली है यह कोई जनानियों की दुकान नहीं मकान थोडे ही ना है कि किसी को गाली दी और दरवाजा बंद कर लिया,
ReplyDeleteगाँधी जयन्ती पर आओ याद करें उस पोस्ट को जिस में सर्वोधर्म प्रेम देखने को मिला था
डायरेक्ट लिंक
तू ही मेरा अल्लाह...तू ही मेरा भगवान
ReplyDeleteसबको सदबुद्धि मिले..यही है असली ज्ञान
साहब फिराक गोरखपुरी ने एक शेर में कहा है की-
ReplyDelete'हम तो इंसान को दुनिया का खुदा कहते हैं'
उन्ही की तर्ज़ पे कुछ पंक्तियाँ हैं -
'जिन्हें भरोसा नहीं खुद पे वो बदलते फिरें खुदा,
हम तो फिराक तेरे खुदा को दिल दे बैठे.
बड़े खुदा हों मुबारक बड़े लोगों को,
हम तो छोटे हैं, छोटे खुदा के संग जा बैठे.
कब कहा खुदा ने कि बाँट दो मुझको,
वो तो हम हैं जो खुद को ही बाँट के बैठे.'
दीपक 'मशाल'
माफ़ करें जनाब हम सब निकले थे हिंदी को बढावा देने, बेहतर था अपने अपने खुदा को दिल में ही रखते. ये तो वही बात हुई कि 'निकले थे हरी भजन को, ओटन लगे कपास'
swarnimpal.blogspot.com
@ mashal - फिराक ने और भी बहुत कुछ कहा है, खास तौर से लोंडों के बारे में, शायरी की दुनिया में कैरानवी जर्मन पत्रीका का एडिटर रह चुका, किस शायर ने यह कहा किसने क्या कहा सब जानूं हूं,
ReplyDeleteमैं हिन्दी पर कम फिदा नहीं हूं, शुरू में अपनी हिन्दी युनिकोड की अपनी समस्या फिर उसके समाधान पर लिखता भी रहा हूं, लिखूंगा भी यह अधिक दिनों चलेगा भी नहीं, क्यूंकि यह बडे स्कूलों के पढे लोगों का कुछ अध्ययण नहीं है, यह इस्लाम मुखालिफ की किताब से कुछ टीप लाते हैं उसका हमारा जवाब तो पढा नहीं होते, अपने ग्रंथों के तो पता नहीं नाम भी जानते हैं कि नहीं,
मुझ जैसा जो अपनी गुन्हगारी पर शर्माता है को 'मौलाना' बना के रख दिया, मैं तो अपने कस्बे को लेके ब्लाग में आया था, यहां देखा अल्लाह कुरआन पर बके जा रहे हैं, तो भाई हमने दिखा दिया कि हम एक दो भी इनकी भाषा(अंदाज) में बकने लगें तो, यह हालत होजायेगी जो आज हो चुकी,
मैं कभी कुछ लिखता हूं तो एक लाइन उर्दू में तो दूसरी लाइन हिन्दी में लिख जाता हूं, वह इस लिये कि किसी ने इनको दो बहिन की तरह माना है, यह बात सच भी है, आखिर हमारे बुजुर्गों ने नोट पर 15 भाषाओं की सूची दी है फिर भी लोग उर्दू को पाकिस्तानी कहते हैं, यह उसकी नहीं होसकती उसकी सरकारी जबान है, लेकिन उर्दू है तो भारतीय भाषा, यह बात यूं कहनी पडी आप लोग हिन्दी का भला तो करना चाहते है, लेकिन उर्दू दुश्मन बनके करते हो, आप
kairana.blogspot.com देखिये यह मैं कहां था जो मुझे बना दिया गया, कुछ बात मेरी सच लगें तो दोबारा कमेंटस देने आईयेगा यहां सांकल खुली है आपने देख ही ली,
उपर चिपलूनकर साहब को कमेंटस किया है उस पर भी ध्यान दिजिये आपके कमेंटस की प्रतीक्षा करूंगा
आप गांधीवादी लग रहे हैं तो इधर घूम आईये नीचे लिंक है
ReplyDeleteगाँधी जयन्ती पर आओ याद करें उस पोस्ट को जिस में सर्वोधर्म प्रेम देखने को मिला था
डायरेक्ट लिंक
@अलबेला जी, आप नरों से मेल मिलाप कराना चाहते हैं या नारियों से? नर तो वह हैं जो आपके खिलाफ हुये थी कोई इधर टिप्पणी करने ना आये अपने वादे पर ना चल सके, नारियों का साथ देने पर आप की एक गाली मेरे पर उधार है, जो महिलाओं को सपोर्ट करने वालों को आपने दी थी, निम्न पोस्ट पर 2 न. कमेंटस कैरानवी ने विरोध दरज किया था, याद ना हो तो उसका लिंक भी ढूंडा जाय, यह वही बात है देने वाला भूल जाता है जिसे दी जाती है उसे याद रहती है, आज यही नारियां इस्लाम का मजाक उडाकर सांकल लगा के बैठ गयीं जबकि उनकी पोस्ट पर ध्यान दो किनका मजाक उड रहा है यह ना जान सके,
ReplyDelete''अलबेला खत्री आप हिन्दी ब्लॉग जगत की लेखिकाओ के प्रति जो शब्द इस्तमाल कर रहे हैं मुझे आपति है और ये एक
प्रकार का सेक्सुअल हरासमेंट हैं। हिन्दी ब्लॉग जगत मे पहले भी लेखिकाओ के प्रति इस प्रकार की भाषा का प्रयोग हुआ हैं और तब भी आपति हुई हैं ।
जेंडर बायस ना फैलाये हिन्दी ब्लॉग जगत मे अलबेला खत्री जी क्युकी हमने इसको दूर करने के लिये बहुत परिश्रम किया हैं''
http://indianwomanhasarrived.blogspot.com/2009/07/blog-post_29.html
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आपने SAANKAL लगा रखी है, हैरत की बात है, यह चिपलूनकर साहब ने मशवरा दिया होगा वह अपनी खिडकी दरवाजे खोलकर सबको कहते फिरते हैं बंद करलों अन्यथा कैरानवी आ जायेगा,
@Rakesh Singh जी हम बहिष्कृत से खुश नहीं हो रहे बल्कि यह पोस्ट एक मक्कार को जवाब है, मेरा तो वह मामूली सा केवल हाजिरी का कमेंटस भी ना रख पाईं, चलीं हैं नारी शक्ति दिखाने, रही बात बहिष्कार की तो यही एक धर्म है जिसमें हर कोई आ सकता कोई छोटी जात का नहीं कोई विधवा या सती जैसे बातें नारियों के साथ नहीं होती, जिसमें सब एक लाइन में खडे होसकते हैं, यह नहीं कि फलां जात मस्जिद में नहीं घुस सकती, नर-नारी बराबर,
ReplyDeleteअगर कमला जी ऐसी थी जिसे आप बता रहे हो तो मुसलमान बनने के बाद कैसी थीं इस चित्र की ओर देख कर बताओ, हम तो नमस्तक हैं
मुख्य सलाहकार जी की सभी सलाह उम्दा हैं, धन्यवाद.
ReplyDeleteइस पोस्ट को स्वच्छ-सन्देश पर लगाने की इजाज़त चाहता हूँ, कैरानवी भाई!
ReplyDeleteभाई इजाजत की कोई बात नहीं, जब पूछ लिया तो कुछ बातों का खयाल रखना आज करोगे तो स्वयं निबट लेना, कल करोगे उसी समय तो मैं भी साथ रहूंगा, चटखारे ले सकेंगें, तुम समझ गये होंगे वह मक्कार है अभी में अपना जवाब नहीं लिख सका, शायद रात तक तुम्हें भेज पाउं इस लिये अच्छा हो कल लगाओ, अब इधर के लिये ऐलान कर दो जिसे पोस्ट डालनी हो पहले इधर आपसे आपसे इजाजत ले, पिछली से पिछली नासमझी में उतना वार ना कर सकी,
ReplyDeleteभाई यह सारा ब्लागजगत मिलके अलबेला जी का कुछ नहीं बिगाड सका था, आज मैं उन्हें सलाम मारके आया इनका साथ देके क्या मिला, इन महिलाओं का साथ देके गाली मिली थी,
वेभाई इजाजत की कोई बात नहीं, जब पूछ लिया तो कुछ बातों का खयाल रखना आज करोगे तो स्वयं निबट लेना, कल करोगे उसी समय तो मैं भी साथ रहूंगा, चटखारे ले सकेंगें, तुम समझ गये होंगे वह मक्कार है अभी में अपना जवाब नहीं लिख सका, शायद रात तक तुम्हें भेज पाउं इस लिये अच्छा हो कल लगाओ, अब इधर के लिये ऐलान कर दो जिसे पोस्ट डालनी हो पहले इधर आपसे आपसे इजाजत ले, पिछली से पिछली नासमझी में उतना वार ना कर सकी,
ReplyDeleteभाई यह सारा ब्लागजगत मिलके अलबेला जी का कुछ नहीं बिगाड सका था, आज मैं उन्हें सलाम मारके आया इनका साथ देके क्या मिला, इन महिलाओं का साथ देके गाली मिली थी,
@ सलीम साहब - हमेशा की तरह सच की जीत हुई, यह पोस्ट जिस मकसद से डाली गयी थी हम उसमें सफल हुये, साबित हुआ सबर बहुत काम की चीज है, कभी कभी चाणक्य को आजमा लेने में भी कोई बुराई नहीं, मैं अकेला ऐसा शख्स था जिसने फोन पर टाइटिल सुनते ही कह दिया था वह मक्कार है, जिसने उसे बहिन मानने से इन्कार कर दिया था, 66 महान विचारक अपने विचार देने वहां पहुचे सबको save कर लिया गया है, 66 अर्थात दो छक्कों का संगम हुआ वहां,13 भारी पडा, यह हेदी डोना अपना चंद्रमा जयपुरी हो सकता है जो आखिर तक धोके में रहा, आप इसके कमेंटस को ध्यान से पढें हिन्दी और उर्दू का संगम देखें, इसे समझा लें मेरा रूख इसकी तरफ होगया तो अन्जुमन के लिये बुरा होगा,
ReplyDeleteमुबारक हो, कहानी का अंत इस पोस्ट पर भी देखा जा सकता है
रचना जी की चाहत, मेरी उलझन, आपकी भावनाएँ: क्या करूँ?
डायरेक्ट Pabla ji ke pas
wah kiya jabardast lekh tumne likha islam dharm hahi aisa dharm jo isko samajh le islam qubul kiye bina jinda na rahe
ReplyDelete@ सलीमुद्दीन साहब- लेख तो आपने समझ लिया, कमेंटस को पढकर कोई उलझन हो तो आगे की कहानी यहां पढें
ReplyDelete"http://hindustaniaawaz.blogspot.com/2009/10/blog-post.html
डायरेक्ट लिंक
ऐ अन्जुमन वालों सुन लो इस पोस्ट में कमेंटस एरिया में एक अलग निति से काम लिया गया था, मेरे कमेंटस से किसी मेम्बर या किसी को भी आपत्ति हो मैं हटा लूंगा, अपना 1 हटाया भी है जो अन्जुमन के मिजाज पर नहीं था, लेकिन समय की पुकार थी,
ReplyDeleteइस विषय पर शायद आगे की बातें खुर्शीद साहब की पोस्ट पर देखने को मिलें,
"http://hindustaniaawaz.blogspot.com/2009/10/blog-post.html
दुनियां वालों इस्लाम और भी बहुत महान लोगों ने कबूल किया है. उनके नाम और लिंक इस प्रकार हैं :
ReplyDeletehttp://www.religionnewsblog.com/17555/michael-jackson-islam
http://www.youtube.com/watch?v=-q_RoK_wrDw
http://skakanpur-bhusawar-gossip.blogspot.com/2009/01/blog-post_30.html
sureshchiplunkar.mywebdunia.com/.../1236063360000.html