

यह सत्य है कि इस्लाम उसी समय से है जिस समय से मानव है। प्रथम मानव को इस्लाम ही की शिक्षा दी गई थी। औऱ इसी शिक्षा को मानव तक पहुचाने के लिए हर युग में संदेष्टा आते रहे। शुरु में हर एक जाति में अलग-अलग संदेशवहाक आते थे,उनकी शिक्षायें उनकी जाति तक ही सीमित रहती थीं। और उन्हें एक पूर्ण जीवन व्यवस्था भी नही दिया जाता था। उसका कारण यह था कि उस समय प्रत्येक जातियाँ एक दूसरे से अलग थीं। उनके बीच अधिक मेल जूल न था। भाषायें विभिन्न होती थीं, जिन्हें सीखने की ओर लेग बहुत कम ध्यान देते थे। मानव बुद्धि भी बहुत सीमित थी, ऐसी स्थिती में एक ही शिक्षा का प्रत्येक जातियो में फैलाना अत्यन्त कठिन था, क्यों कि मानव जाति की प्रगति उसी प्रकार हुई है जिस प्रकार एक बच्चे की प्रगति होती है। बाल्यावस्था से किशोरावस्था फिर युवावस्था। इस प्रकार ईश्वरीय संदेश का भी उसी युग के अनुसार होना आवश्यक था। अतएवं ईश्वर ने रोगी की सामर्थ्य के अनुकुल औषधि का भी चयन किया और मानव जाति को इतने ही आदेश दिए जिसकी वह शक्ति रखती हो।इसी लिए उनको पूर्ण-जीवन व्यवस्था नहीं दिया गया। यह उस तत्वदर्शी ईश्वर की तत्वदर्शीता थी।
जबकि हम देखते हैं कि सातवीं शताब्दि ई0 मे ऐसी स्थिती नहीं थी। यातयात के साधन बहुत हद तक ठीक हो गए थे। व्यापार, कला-कौशल, की उन्नति के साथ साथ जातियों में परस्पर सम्बन्ध का़यम हो गये थे। चीन और जापान से लेकर यूरोप और अफ्रीक़ा के देशों तक जलीय तथा स्थलीय यात्राओं की शुरुआत हो गई थी बड़े बडे़ विजेताओ ने कई कई देशो को एक राजनीतिक व्यवस्था से जोड़ दिया था। इस प्रकार वह दूरी और जुदाई जो पहले मानव जाति के बीच पाई जाती थी धीरे धीरे कम होती गई और यह सम्भव हो गया कि इस्लाम की एक ही शिक्षा और एक ही धर्म विधान प्रत्येक संसार के लिए भेजा जाय़े। इस संक्षिप्त विवरण से शायद संदेह का निवारण हो गया होगा ।
विश्व संदेश मक्का में क्यों?
(1) यह देश एशिया और अफ्रीका के ठीक मध्य में स्थित है और यूरोप भी यहां से बहुत निकट है। अन्य अधिक लोगों ने भौगोलिक खोज द्वारा यह सिद्ध किया है कि थल भाग में मक्का भूतल के बीचोबीच स्थित है। इस प्रकार विश्व नायक का संसार के मध्य में आना अधिक उचित था।
(2) अरब हर प्रकार की बुराइयों में लतपथ होने के बावजूद भी वीर थे ,निडर थे,दानशील और उदार थे, स्वतन्त्र विचार रखने वाले थे, अपनी प्रतिष्ठा के लिए प्राण निछावर कर देना उसके लिए सरल था।
(3) इस देश में कोई शासक भी नहीं था,जो ईश्वरीय आदेश के विरोद्ध में खडा़ होता। क्यों कि इतिहास साक्षी है कि जिस दश एवं जाति में भी ईश्दूत भेजे गए सर्वप्रथम उस देश के राजाओं एवं प्रजाओं ने उन का विरोध किया कि कहीं हमारी हुकुमत न छिन जाये। यहाँ तक कि किसी की हत्या की गई,किसी को देश निकाला कर दिया गया।
इस्लाम ही क्यो?
अब प्रश्न यह उठता है कि इंसान के लिए वह कौन सी प्रकाशना है जिस का वह पालना करके स्वर्ग का अधिकार बन सकता है तो उस का उत्तर बिल्कुल आसान है कि बाद के लोगों के लिए वही प्रकाशना पालना करने योग्य हो सकती है जो सब के बाद आई हो।
सरकार एक देश में किसी व्यक्ति को अपना राजदूत बनाकर भेजती है स्प्रष्ट है कि उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व उसी समय तक के लिए है जब तक वह अपने पद पर आसीन है, जब उसकी अवधि समाप्त हो जाये और दूसरे व्यक्ति को उस पद पर नियुक्त कर दिया जाये तो उसके बाद वही व्यक्ति सरकार का प्रतिनिधि समझा जाएगा। इस एतबार से मुहम्मद सल्ल० ही वह अन्तिम संदेष्टा हैं जो आज और आगे प्रलय के दिन तक मानवता के पथप्रदर्शक और नायक हैं। आपका प्रत्येक संदेष्टाओं के बाद आना इस बात का पर्याप्त कारण है कि आपको और केवल आपको वर्तमान और भविष्य के लिए ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाये।
हो सकता है कि मानव इतिहास की सब से आरंभिंक और प्रचीन धार्मिक पुस्तक ऋवग्वेद हो जो ईश्वर के आदेसानुसार संपादित की गई हो जैसा कि बाईबल भी ईश्वरीय ग्रन्थ था परन्तु यह सब अब निरस्त हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त इस में से कोई ग्रन्थ भी अपने आपको अन्तिम और स्थाई ग्रन्थ के रुप में प्रस्तुत नहीं करता, यदि रामचन्द्र जी की शिक्षा शुद्ध रुप में मौजूद होती तो श्रीकृष्ण जी की आवश्कता न पड़ती, अतः केवल यह बात कि कुरआन अन्तिम ग्रन्थ है उस से पूर्व आने वाले प्रत्येक ग्रन्थों को निरस्त करता है।
बहुत खूब सफात आलम साहब आपने साबित कर दिया,आप हमारे सिनियर हैं, बेहतरी पोस्ट, सज्जन को बेहतर जवाब, यह आपने सच दोहाराया कि 'कुरआन अन्तिम ग्रन्थ है उस से पूर्व आने वाले प्रत्येक ग्रन्थों को निरस्त करता है।'
ReplyDeletesafat sahab ne achchhe andaz me
ReplyDeleteapani baat rakhi ha
islam ko sahi tareeke se pesh karane ke liye bahut bahut shukaraya
मानव इतिहास की सब से आरंभिंक और प्रचीन धार्मिक पुस्तक ऋवग्वेद हो जो ईश्वर के आदेसानुसार संपादित की गई हो जैसा कि बाईबल भी ईश्वरीय ग्रन्थ था परन्तु यह सब अब निरस्त हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त इस में से कोई ग्रन्थ भी अपने आपको अन्तिम और स्थाई ग्रन्थ के रुप में प्रस्तुत नहीं करता, यदि रामचन्द्र जी की शिक्षा शुद्ध रुप में मौजूद होती तो श्रीकृष्ण जी की आवश्कता न पड़ती, अतः केवल यह बात कि कुरआन अन्तिम ग्रन्थ है उस से पूर्व आने वाले प्रत्येक ग्रन्थों को निरस्त करता है
ReplyDeleteअंतिम संदेष्ठा हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) पर निम्न महान लोगों की टिप्पणियां:
ReplyDeleteप्रोफेसर रामाकृष्णा राव के शब्दों में – {आप के द्वारा एक ऐसे नए राज्य की स्थापना हुई जो मराकश से ले कर इंडीज़ तक फैला और जिसने तीन महाद्वीपों – एशिया, अफ्रीक़ा, और यूरोप- के विचार और जीवन पर अपना असर डाला} ( पैग़म्बर मुहम्मद , प्रोफेसर रामाकृष्णा राव पृष्ठ 3)
गाँधी जी के शब्दों में – « मुझे पहले से भी ज्यादा विश्वास हो गया है कि यह तलवार की शक्ति न थी जिसने इस्लाम के लिए विश्व क्षेत्र में विजय प्राप्त की, बल्कि यह इस्लाम के पैग़म्बर का अत्यंत सादा जीवन, आपकी निःसवार्थता, प्रतिज्ञापालन और निर्भयता थी.