
इस्लाम में पडोसी का पूरा खयाल रखने,उसके सुख दुख में भागीदार बनने और किसी भी तरह उसको दुख न पहुचाने की सख्त ताकीद की गई है। पडोस से बेपरवाह व्यक्ति को उसकी जिम्मेदारी का एहसास कराकर बताया गया है कि एक पडोसी के रूप में उसकी क्या-क्या जिम्मेदारियां हैं। पडोसी चाहे किसी भी मजहब का मानने वाला हो ,उसके प्रति ये पूरे हक अदा किए जाने चाहिए।
कुरआन और हदीस में पडोसियों के साथ अच्छे बर्ताव के हुक्म दिए गए हैं। इस्लाम के आखरी पैगम्बर मुहम्मद सल्लललाहो अलैहेवसल्लम ने फरमाया-जिसकी तकलीफों और शरारतों से पडोसी सुरक्षित नहीं,वह ईमानवाला नहीं है।पडोसी के साथ जुडाव लगाव और उसका हमदर्द बनने पर कितना जोर दिया गया है,इसका अंदाजा पैगम्बर की इस बात से होता है-पैगम्बर कहते हैं-’अल्लाह जिबी्रल फरिशते के जरिए मुझे पडोसी के बारे में बराबर ताकीद करते रहे,यहां तक कि मुझे खयाल होने लगा कि पडोसी को सम्पति का वारिस बना देंगे।‘ पडोसी का हर मामले में खयाल रखने पर जोर दिया गया है।खाने-पीने की चीजों में भी पडोसी को शामिल करने का हुक्म दिया गया है। हुजूर ने फरमाया-जो शख्स खुद पेट भरकर सोया और उसका पडोसी उसके पडोस में भूखा पडा रहा वह मुझ पर ईमान नहीं लाया।
इस्लाम में नमाज,रोजा,जकात आदि इबादतों के जरिए कर्मों को सुधारकर इंसानी भाईचारे,इंसानियत और इंसाफ पर जोर दिया गया है। नमाज,रोजा ,जकात को साधन और इनके असर से होने वाले अच्छे अमल को साध्य माना गया हैै। पडोसी के साथ अच्छे अमल के इस उदाहरण से इस बात को समझा जा सकता है- एक आदमी ने पैगम्बर मुहम्मद साहब से कहा कि फलां औरत नमाज पढती है,रोजे उपवास रखती है, खैरात गरीबों को मदद देती है लेकिन पडोसियों को गलत जुबानी से सताती रहती है। पैगम्बर ने कहा ऐसी औरत जहन्नुम में जाएगी। इसी तरह एक दूसरी औरत के बारे में उनसे कहा गया उसकी नमाज,रोजा कम है,खैरात भी कम देती है लेकिन उसके पडोसी इससे महफूज है। पैगम्बर ने कहा-वह औरत जन्नत में जाएगी। एक मौके पर मुहम्मद साहब ने कहा-पडोसी का बच्चा घर आ जाए तो उसके हाथ में कुछ न कुछ दो कि इससे मोहब्बत बढेगी। पडोसी का पडोसी से रिश्ता अच्छा और मजबूत बनाने के मकसद से कई हिदायतें दी गईं। हिदायत दी गई है कि पडोसी किसी भी तरह अपने पडोसी पर जुल्म न करे।
पैगम्बर साहब ने फरमाया-जिसने पडोसी को सताया उसने मेरे को सताया और जिसने मेरे को सताया उसने खुदा को सताया। इन सब बातों से जाहिर है कि कैसे पडोसी से पडोसी के रिश्ता को मजबूत करने की कोशिश की गई है । इसके पीछे मकसद है विशव बन्धुत्व की भावना को बढावा देना। क्योंकि भौगोलिक आधार पर देखा जाए तो सबसे छोटी इकाई पडोस ही है। पडोसों में भाईचारा होगा तो बस्ती या इलाके में भाईचारा होगा और फिर यह भाईचारा कस्बे,शहर,राज्य,देश से बढते-बढते बढेगा विशव बन्धुत्व की ओर।
बहुत अच्छा लेख प्रस्तुत किया है आपने,बहुत बहुत धन्यवाद। यह इस्लाम की उदारता है कि उसने पड़ोसी चाहे मुस्लिम हों अथवा गैर-मुस्लिम सबके साथ अच्छा सम्बन्ध बनाए रखने की ताकीद की है। आज धर्म मात्र पूजा-पाट तक सीमित रह गया है लेकिन इस्लाम जीवन के सारे भाग में हमारा मार्गदर्शन करता है। चाहे आस्थायें हों,उपास्नायें हों,मानव आचरण हों,अथवा मानव जाति के पारस्परिक सम्बन्ध हर मोड़ पर इस्लाम हमारा मार्गदर्शन करता है।
ReplyDeleteसफ़ात भाई से पूर्णतया सहमत
ReplyDeleteआज धर्म मात्र पूजा-पाट तक सीमित रह गया है लेकिन इस्लाम जीवन के सारे भाग में हमारा मार्गदर्शन करता है। चाहे आस्थायें हों,उपास्नायें हों,मानव आचरण हों,अथवा मानव जाति के पारस्परिक सम्बन्ध हर मोड़ पर इस्लाम हमारा मार्गदर्शन करता है।
इस्लाम में नमाज,रोजा,जकात आदि इबादतों के जरिए कर्मों को सुधारकर इंसानी भाईचारे,इंसानियत और इंसाफ पर जोर दिया गया है...
ReplyDeleteअगर पड़ोसी ने इस्लाम न स्वीकारा और बुतपरस्ती करता रहा या अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चलता रहा तो क्या जज़िया देकर आपका प्रेम हासिल कर पाएगा या अन्य कोई व्यवस्था है? प्रसन्नता होगी जानकर कि ये बात सिर्फ़ व्यक्तिगत न होकर राष्ट्रगत भी हों तो हम पड़ोसी मुल्कों के बारे में भी ऐसा ही विचार कर सकेंगे। आनंद का विस्तार होगा। दुनिया एक मंच हो जाएगी।
ReplyDeleteसादर
रहा सवाल पड़ोसी के गैर-मुस्लिम होने का तो इसके लिए हम मुसलमान जो उसके पड़ोसी है का यह फ़र्ज़ बनता है कि उसे ईश्वर के सत्य के ज्ञान (अर्थात इस्लाम के सिद्धन्तों से) अवगत कराएँ. और हमारा काम बस यही है कि हम अवगत करा दें बाकी का काम ईश्वर के हाथों है वह चाहे तो उस व्यक्ति हो हिदायत दे और न चाहे तो न दे. और ईश्वर ने बुद्धि और विवेक भी दिया है जिसका प्रयोग कर कोई भी सत्य का खोजी बन सकता है.
ReplyDeleteडॉ. साहब हमारी अन्जुमन पर आने का शुक्रिया.
ReplyDeleteइस्लाम आलमी भाईचारे World Unity में, वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वाश रखता है, जब पुरे विश्व की एकता की ही बात की जा रही हो तो राष्ट्र हित या पडोसी हित स्वमेव ही समाहित हो जाता है.
और रहा सवाल जज़िया देकर प्रेम हासिल करने का तो उसका उत्तर "हाँ" में है.
ReplyDeleteठीक उसी तरह से जिस तरह से भारत सरकार को हर वह व्यक्ति, संस्था या कंपनी इनकम टैक्स (आय कर) दे कर भारत सरकार के नियमों का पालनकर्ता बनते हुए अच्छा नागरिक कहलाता है, वहीँ जो इनकम टैक्स (आय कर) की चोरी करने वाला भारत सरकार के नियमानुसार दंड का भोगी भी होता है.
और इनकम टैक्स सब पर लागू नहीं होता है केवल उसी पर लागू होता है जो हैसियतमंद हो, सब पर नहीं. जो नहीं देने लायक है वह इस परिधि में नहीं आते.
डा.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)
ReplyDeleteहम भी आपका हमारी अंजुमन में स्वागत करते हैं। आपके संदेह का सलीम भाई ने उत्तर दे दिया है। पर मैं इतना कहूंगा कि एक गैर-मुस्लिम के सम्बन्ध में इस्लाम की शिक्षा यही है कि उसके साथ अच्छा व्यवहार किया जाए. मुहम्मद सल्ल0 अपने गैरमुस्लिम पड़ोसी की देख रेख करने में सब से आगे थे। मुस्लिम प्रेम करता है और प्रेम चाहता है और यह प्रेम सारे इनसानों से होना चाहिए क्योंकि इस्लाम विश्वभाईचारा में विश्वास रखता है। अर्थात सारे मानव एक ही इनसान की संतान हैं। इसलिए उन में परस्पर भाद भाव नहीं होना चाहिए।
लेकिन यदि आपका कोई भला चाहने वाला होगा तो हर प्रकार से भला चाहेगा,इस्लाम यही कहता है कि गैरमुस्लिम भाइयों के साथ हर प्रकार से भलाई करो, और सब से पहले उनको अपने ईश्वर का परिचय कराओ, यदि वह सुन कर क्रोधित हों तो गम न करो, क्योंकि उनको पता नहीं है। हाँ! यदि तुमने उनकी अमानत उनके सामने पेश कर दी, वह उसे जान भी गए लेकिन स्वीकार नहीं करते तो अब तुम उन पर ज़बरदस्ती नहीं कर सकते, और इस कारण उनसे सम्बन्ध भी नहीं काट सकते। बल्कि तुम्हें उनके साथ सम्बन्ध बनाए रखना है।
केवल इस्लाम के मानने वाले ही विश्व-बंधुत्व में विश्वास रखते हैं।
जहाँ तक जिज्या का सम्बन्ध है तो यह इस्लामी देश में ऐसा हो सकता है पाकिस्तान में नहीं। और आपके मस्तिष्क में जो भ्रम पैदा हुआ है इस कारण कि आपकी समझ के अनुसार टेक्स मात्र गैर-मुस्लिमों से ही लिया जाता है। बात ऐसी नहीं है,मुसलमानों से भी ज़कात(अनिवार्य दान)ली जाती है। टेक्स तो दोनों से लिया जाता है एक का नाम जिज्या है और दूसरे का नाम ज़कात है ( जो टेक्स नहीं बल्कि मुसलमान स्वयं पर अनिवार्य और धार्मिक जिम्मेदारी समझ कर इसे हुकूमत को जमा करता है)अब आप ही बताएं कि एक ही देश में कुछ लोगों से टेक्स लिया जा रहा हो और कुछ लोगों से नहीं लिया जा रहा हो तो क्या यह न्याय है ? इस्लाम न्याय में विश्वास रखता है इसलिए जब मुसलमानों से ज़कात लेता है तो गैरमुस्लिमों से टेक्स, और यह देश के हित में लिया जाता है।
बहुत अच्छी जानकारी है...इस्लाम में पड़ौसी का भी ख़्याल रखने की हिदायत दी गई है...
ReplyDeleteसफ़ात भाई शुक्रिया कि आपने विस्तृत रूप से कर के बारे में बताया.
ReplyDeleteइस्लाम का जन-सेवा से संबन्धित दावा है कि वह सम्पूर्ण मानव जाति और समस्त समाज के सारे मामलों में भरपूर रहनुमाई करता है, सिद्धांत देता है, सुनिश्चित नियम भी रखता है और नैतिक व भौतिक, हर स्तर पर समस्याओं का निवारण करता और जटिलताओं को सुलझाता है। उसका यह दावा, अपने पास निरी दार्शनिकता (Indialism) ही नहीं रखता, बल्कि व्यावहारिक स्थलों में अपने साथ मजबूत दलील व सबूत की शक्ति भी रखता है। मानव-अधिकार व कर्तव्य का एक सन्तुलित प्रावधान इस्लाम की बेमिसाल विशेषता है। मुसलिम समाज की बहुत-सी त्रुटियों, कमजोरियों और कोताहियों के बावजूद, उसपर इस्लाम की इस विशेषता का रंग सदा ही छाया रहा है। इतिहास भी इसका साक्षी रहा है और वर्तमान युग में समाजों का तुलनात्मक व निष्पक्ष अवलोकन भी इस बातत की गवाही देता है।
ReplyDeleteअधिक जानकारी के लिये देखें पुस्तक ''जन सेवा और इस्लाम''
डायरेक्ट लिंक
हैं तो सब बहुत अच्छी अच्छी बातें पर करते तो हम सब इसका उल्टा ही हैं ना। आपकी क्या राय है भाईजान ?
ReplyDeleteये सब बातें ओसामा बिन लादेन को क्यों पता नही हैं? जिया-उल-हक, परवेज मुसर्रफ, उसके काश्मीरी आतंकवादियों को यह बात क्यों नहीं पता?
ReplyDeleteमुल्ला उमर और तालिबानियों ने क्या 'वेद' की ऋचायें पढ़ ली है और शैतानी हरकते कर रहे हैं?
सही बात यह है कि मुहम्मद पहला आतांकवादी था जिसने 'खुदा' का नाम लेकर लोगों को मूर्ख बनाया। कुरान वस्तुत: 'आतंकवाद का मैनिफेस्टो' है। कैरान्वी और सलीम दोनो पहले ही मान चुके है कि पूरे कुरान में पाँचा आयतें भी नहीं हैं जिन्हें किसी विद्वानों की मंडली के सामने सुनाया जा सके।
अनुनाद जी,
ReplyDeleteआप अपशब्दों का प्रयोग न करें, यदि आपके पास कोई तथ्य परक ज्ञानपरक बातें हों या विरोध भी हो या नाराज़गी तो उसे एक चिट्ठकार होने के नाते आप शब्दों के उन दायरों में भी व्यक्त कर सकते हैं, जिससे सार्थकता आये.
वैसे जब आपने जब यह सब लिखा ही है तो जवाब भी सुन लें...
जारी...
एक ही व्यक्ति, एक ही कार्य के लिए दो अलग-अलग लेबल (पैमाना) i.e. आतंकवादी और देशभक्त
ReplyDeleteभारत को जब फिरंगियों से आज़ादी नहीं मिली थी तब भारत देश को आज़ाद कराने के लिए लड़ने वालों को ब्रिटिश सरकार आतंकवादी कहती थी. उन्हीं लोगो को उसी कार्य के लिए भारतीय देश भक्त कहते थे. इस प्रकार एक ही कार्य के लिए, एक ही व्यक्ति के लिए दो अलग-अलग लेबल (पैमाना) हुआ. एक उन्हें आतंकवादी कह रहा है तो दूसरा देश भक्त. जो भारत पर ब्रिटिश हुकुमत के समर्थन में हैं वे उन्हें आतंकवादी ही मानते हैं वहीँ जो भारत पर ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ़ थे वे उन्हें देश भक्त या स्वतंत्रता सेनानी मानते हैं.
बहुत महत्वपूर्ण है किसी के बारे में इंसाफ करने से पहले या उसके बारे में राय कायम करने से पहले उसे स्वस्थ ह्रदय से सुना जाये, जाना जाये. दोनों तरह के तर्कों को सुना समझा जाये, हालातों को विश्लेषित किया जाये. उसके कृत्य के कारण और इरादे को भली प्रकार समझा और महसूस किया जाये, तब जाकर उसके बारे में राय कायम की जाये.
इस्लाम का अर्थ "शांति" होता है.
इस्लाम शब्द का उद्भव अरबी के "सलाम" शब्द से हुआ है जिसका अर्थ होता है "शांति".यह शांति का धर्म है और हर मुसलमान को चाहिए कि वह इस्लाम के बुनियादी (fundamentals) ढांचें को माने और जाने और उस पर अमल करे और पूरी दुनिया में इसके महत्व को बताये. इस प्रकार हर मुस्लिम को इस्लाम के मौलिक (fundamentals) कर्तव्यों का पालन करते हुए fundamentalist होना चाहिए और terrorist* होना चाहिए.
आतंकवादी वह व्यक्ति होता है जो आतंक (भय) का कारण हो. जिसके आतंक अथवा भय से दूसरा डरे. एक चोर जब एक पुलिस वाले को देखता है तो उसे भय होता है. पुलिस वाला चोर की नज़र में आतंकवादी है. उसी तरह से हर एक मुस्लिम को असामाजिक तत्वों के लिए आतंकवादी ही होना चाहिए, मिसाल के तौर पर हर एक मुस्लिम को आतंक का पर्याय होना चाहिए, उनके लिए जो चोर हैं, डाकू हैं, बलात्कारी हैं...
ReplyDeleteजब कभी उपरोक्त क़िस्म के असामाजिक तत्व किसी मुसलमान को देखें तो उनके मन-मष्तिष्क में आतंक का संचार हो. हालाँकि यह सत्य है कि "आतंकवादी" शब्द सामान्यतया उसके लिए इस्तेमाल किया जाता है जो जन-सामान्य में आतंक का कारण हो लेकिन एक सच्चे मुसलमान के लिए चाहिए कि वह आतंक का कारण बनें, चुनिन्दा लोगों के लिए जैसे असामाजिक तत्व ना कि निर्दोष के लिए. वास्तव में एक मुसलमान को जन-सामान्य के लिए शांति का पर्याय होना चाहिए.
मुझे ओसामा बिन लादेन या मुल्ला उमर या तालिबानियों से कोई लेना देना नहीं. न ही मैं उनको जानता हूँ. न ही वे मेरे दोस्त हैं, न ही दुश्मन. न ही मैं उनका समर्थक हूँ न ही विरोधी क्यूंकि मैंने उनके बारे में तस्दीक नहीं की.
ReplyDeleteवही पश्चिमी मीडिया और अँगरेज़ जो भगत सिंह को आतंकवादी कहते थे वही इन सबको भी आतंकवादी कहते हैं.
कुर-आन में लिखा है कि अगर तुम्हें कोई 'दूसरा' कोई खबर सुनाये तो उस पर यकीन करने से पहले उसकी तस्दीक़ कर लो.
तो अनुनाद बाबू सकारात्मक होकर अपने अध्ययन का दायरा बढाईये. मैं जो भी बातें लिखता हूँ उसका हवाला भी देता हूँ. अगर मैं कहता हूँ कि हिन्दू धर्म में भी लिखा है मांस खाना तो उसका हवाला मैं वेद या पुराण या महाभारत या मनुस्मृति से देता हूँ. मैं आवेशित होकर यूँ ही नहीं कहता.
आप भी ऐसा ही कीजिये.
स्वच्छ संदेश:हिन्दोस्तान की आवाज़ से पूर्णतया सहमत लेकिन सलीम भाई उसका क्या करेंगे जब टेप को आन कर दिया जाए। आज यही हो रहा है लाख आप समझा दें तर्क दे दें लेकिन फिर अगली बार वही केसिट डालेंगे तो जाहिर है केसिट तो बदल नहीं जाएगी।
ReplyDeleteइस लिए ज़रूरत है उदारता के साथ विशाल हृदय से सत्य की खोज करने की औऱ जो न चाहे उसे लाख समझाएंगे समझ नहीं सकता सिवाए उसके कि ईश्वर उसका हृदय खोल दे।
@anunad singh jee,
ReplyDeleteज़रा ध्यान से अपनी किताबों का मुताला (अध्ययन) करें तो आपको स्वतः ज्ञान हो जायेगा कि स्वयं आपकी किताबों में भी हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के आने का ज़िक्र आपकी किताबों में विद्यमान है, यहाँ तक कि तुलसीदास दास रचित राम चरित मानस में भी हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) का ज़िक्र है.
तो जब सत्य सामने आ जाये तो उसे एक्सेप्ट कर लेना चाहिए, यही बुद्धिमानी हैं.
"आईये उस बात की तरफ जो हममें और तुममें यकसां (समान) है"
All the rules that you have mentioned about neighbor's does imply to person living next door or also applied to neighboring countries ??
ReplyDeleteI think pakistan, bangaladesh need to retake the faith test then / probably after centuries also they are not smarter than converted Muslims of india .... ??
By the way conversion means Faith Shift/ Faith Changing :)
@ अनुवाद सिंह जी, अभी आप यह सीख लो कि क़ुरआन ऐसे नहीं xकुरानx लिखा जाता, देखो quranhindi.com , कुरआन को उर्दू शब्द बताने वाले, तेरे ब्लाग में तुझे जवाब दे के आया था, अन्जुमन से पेशगी क्षमा के साथ यहां प्रस्तुत है,
ReplyDelete''मेरा कहा भूल गये मैंने कहा था इज्जत से पोस्ट बनाके डालो, सर्वधर्म को चैलेंज करेंगे अपने धर्म के गुरूओं को भी कहूंगा वह जवाब दें, वह तुम्हें मुतमइन ना कर सकेंगे, क्यूंकि तुम्हें तो केवल चाणक्य प्रतिपादित ही संभाल सकता है, जब वह नहीं दे सकेंगे तो में दूंगा तो मैं अपने धर्म में महान विचारक बन जाउंगा,यह सब इसलिये कि कह रहा हूं कि मुझे 6666 आयतों में से एक ही ऐसी आयत मिल गयी जिसमें 40 गुण निकल आयेंगे, एक दूसरा कारण यह भी है कि तुम्हें अभी यही सिखा रहा हूं कि कुरआन शब्द अरबी भाषा का है, जब थोडा ज्ञान तुम्हारा बढ जायेगा, यानी तुम अभी प्राइमरी में हो कुरआन की शिक्षा ग्रहन करने के काबिल तुम्हें में बनाउंगा,
चाणक्य को तो मैंने पढ लिया आपने ही ध्यान दिलाया था, धन्यवाद
मनु स्म़ति का अध्ययन कर रहा हूं मजा आगाया, महिला और दलित तो खुश हो जायेंगे जब मैं मनु स्म़ति ज्ञान प्रस्तुत करूंगा''
http://pratibhaas.blogspot.com/2009/09/blog-post_24.html
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