
१९८० में इस्लाम ग्रहण करने वाले डॉ हॉफमेन १९३१ में जर्मनी कैथोलिक ईसाई परिवार में पैदा हुए। उन्होने न्यूयार्क के यूनियन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और म्यूनिख यूनिवर्सिटी से कानूनी शिक्षा हासिल की। १९५७ में धर्मशास्र में डॉक्टरेट की। १९६० में हार्वर्ड लॉ स्कूल से उन्होने एलएलएम की डिग्री हासिल की। १९८३ से १९८७ तक ब्रूसेल्स में उन्होने नाटो के सूचना निदेशक के रूप में काम किया। वे १९८७ में अल्जीरिया में जर्मनी के दूत बने और फिर १९९० में मोरक्को में चार साल तक जर्मनी एम्बेसेडर के रूप में काम किया।
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इस्लाम दीने-फ़ितरत है, इसे कोई भी कॉमन सेंस इस्तेमाल कर समझ सकता है. यह तार्किक और रूहानी दोनों आधार पर आसानी से समझा जा सकता है और यह तार्किक और रूहानी दोनों आधार पर खरा उतरता है. बस ज़रुरत है तो एक सार्थक पहल की जैसा कि जर्मनी के राजदूत डॉ विलफराइड हॉफमेन ने किया.
ReplyDeleteअच्छा लेख!
Samiuddin 'Neelu'
Press Reporter
Amar Ujala, (Lakhimpur Kheri)
इस्लामिक वेबदुनिया द्वारा बेहतरीन लेख और समीउद्दीन 'नीलू' जी की सधी हुई टिपण्णी... बधाई...
ReplyDeleteइस्लाम कृपा एंव दया का धर्म है और इसके बताये गए तरीक़े इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह की ओर से इस भटकती हुई मानवता के लिए करुणा का भण्डार हैं, अतः इस धरती पर बसने वाला हर मनुष्य इस्लाम धर्म में दया का पात्र है, चाहे वह नास्तिक ही क्यों न हो.
ReplyDeleteख़ूबसूरत और प्रेरणामय लेख के शुक्रिया.
{इस्लाम कृपा एंव दया का धर्म है}
ReplyDeleteइस्लाम की दया से तो सारी दुनिया वाकिफ है]आप के कईं भाईबन्ध इस कृ्पा को करने के वास्ते हाथ में ए.के.47 ओर हथगोले,बम पकडकर यहां हिन्दोस्तान में आते हि रहते है]
जय इस्लाम---जय पाकीस्तान---जय तालिबान--जय लादेन---जय अल-जवाहिरी
@ बेनामी - वह हमारे भाई बन्धु नहीं हैं, हमारे भाई बन्धुत्व तुमसे है, वह बहकाये हुये हैं, इस्लाम की शिक्षा तो एक बेगुनाह तक को मारने नहीं देती, अगर ऐसा कोई इस्लामिक शिक्षा तुम जानते हो है तो लाओ सामने,
ReplyDeleteदूसरी बात तुम हमें उन्हें कुछ कहने का मौका ही नहीं देते हो, पहले ही हमें उनकी तरफ गिन लेते हो, कभी हमें साथ मिला के उनसे बात करो, कारगिल जंग में सबने माना है कि मुसलमान किधर है