कहते हैं कि हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के पास मौत का फरिश्ता आता रहता था। एक बार जब मौत का फरिश्ता आया तो उनके सामने एक आदमी बैठा बातें कर रहा था जिसे मौत के फरिश्ते ने घोड़ कर देखा। जिससे उस आदमी को भय हुआ। उसके जाने के बाद उसने सुलैमान अलैहिस्सलाम से पूछाः यह कौन साहिब थे ? सुलैमान अलैहिस्सलाम ने बताया कि यह मौत के फरिश्ता थे। इतना सुनना था कि वह भय से काँपने लगा, उसने हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम से अनुरोध किया कि आप हवा को आदेश दें कि वह हमें भारत के किसी कोने में पहुंचा दे। अतः सुलैमान अलैहिस्सलाम ने ऐसा ही किया। जब कल हो कर मौत का फरिश्ता हजरत सुलैमान अलैहिस्सलाम के पास आया तो आपने उस व्यक्ति के सम्बन्ध में बताया कि उसने मौत के भय से हम से अनुरोध किया कि उसे भारत के किसी कोने में पहुंचा दिया जाए। फरिश्ते ने कहा कि जिस समय मैं आप से बात किया था उसी समय मैंने उसकी रूह (आत्मा) भारत में जा कर निकाली थी।
जी हाँ! इनसान की मृत्यु कब होगी ? और कहां होगी ? इसका ज्ञान अल्लाह के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं जानता। उस आदमी ने सोचा था कि वह भारत के किसी खाड़ी में पहुंचा दिया जाएगा तो मौत से बच जाएगा। परन्तु सत्य यह है कि इनसान कितनी भी तदबीर कर ले मौत से भाग नहीं सकता। हम जहां भी जाएं वहाँ भी मौत आ कर रहेगी। इसी लिए कुरआन में कहा गया है "तुम जहाँ कहीं भी रहोगे मौत तुझे आकर रहेगी"। और सूरः लुकमान में अल्लाह ने फरमायाः "कोई इनसान नहीं जानता कि वह किस धरती पर मरेगा"।
जब बात यह ठहरी तो हमें निम्नलिखित तीन महत्वपूर्ण उपदेशों को सदैव अपने सामने रखना चाहिए क्योंकि मरने के बाद यही तीन चीज़े हमें काम आ सकती हैं।
(1) सदक़ए जारिया (जारी रहने वाला दान) उदाहरणस्वरूप पानी का क़ुवाँ खोदवा देना, धार्मिक स्थल बना देना, मस्जिद बना देना अच्छी पुस्तक खरीद कर दान कर देना आदि। इस लिए जो कुछ आपके पास है उसमें से अवश्य खर्च करें चाहे एक रुपया ही सही क्योंकि अल्लाह की दृष्टि में मात्रा का महत्व नहीं बल्कि दिली कैफियत का एतबार है। नेक दिली से खर्च किया गया एक रूपया लाखों रूपयों पर भारी पड़ जाता है। यदि एक व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं है तो उसे भी अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने दान करने का तरीक़ा बता दिया है, आप ने फरमायाः "तुम्हारा अपने भाई से हंसी ख़ूशी मिलना भी दान है"।
(2) इस्लामी ज्ञान प्राप्त करना और दूसरों को इस्लाम का ज्ञान देना।
(3) अपने बच्चों की दीनी तर्बियत करना।
क्योंकि यह तीनों वह माध्यम हैं जिनके द्वारा हमें मरने के पश्चात भी पुन्य मिलता रहेगा। अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमायाः जब आदमी मर जाता है तो संसार से उसका सम्बन्ध कट जाता है मात्र तीन चीज़ें बाक़ी रहती हैं सदकए जारिया,दीनी इल्म जिस से फायदा उठाया जाता हो, या नेक लड़का जो उसके लिए दुआ करे। (मुस्लिम)
जी हाँ! इनसान की मृत्यु कब होगी ? और कहां होगी ? इसका ज्ञान अल्लाह के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं जानता। उस आदमी ने सोचा था कि वह भारत के किसी खाड़ी में पहुंचा दिया जाएगा तो मौत से बच जाएगा। परन्तु सत्य यह है कि इनसान कितनी भी तदबीर कर ले मौत से भाग नहीं सकता। हम जहां भी जाएं वहाँ भी मौत आ कर रहेगी। इसी लिए कुरआन में कहा गया है "तुम जहाँ कहीं भी रहोगे मौत तुझे आकर रहेगी"। और सूरः लुकमान में अल्लाह ने फरमायाः "कोई इनसान नहीं जानता कि वह किस धरती पर मरेगा"।
जब बात यह ठहरी तो हमें निम्नलिखित तीन महत्वपूर्ण उपदेशों को सदैव अपने सामने रखना चाहिए क्योंकि मरने के बाद यही तीन चीज़े हमें काम आ सकती हैं।
(1) सदक़ए जारिया (जारी रहने वाला दान) उदाहरणस्वरूप पानी का क़ुवाँ खोदवा देना, धार्मिक स्थल बना देना, मस्जिद बना देना अच्छी पुस्तक खरीद कर दान कर देना आदि। इस लिए जो कुछ आपके पास है उसमें से अवश्य खर्च करें चाहे एक रुपया ही सही क्योंकि अल्लाह की दृष्टि में मात्रा का महत्व नहीं बल्कि दिली कैफियत का एतबार है। नेक दिली से खर्च किया गया एक रूपया लाखों रूपयों पर भारी पड़ जाता है। यदि एक व्यक्ति के पास कुछ भी नहीं है तो उसे भी अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने दान करने का तरीक़ा बता दिया है, आप ने फरमायाः "तुम्हारा अपने भाई से हंसी ख़ूशी मिलना भी दान है"।
(2) इस्लामी ज्ञान प्राप्त करना और दूसरों को इस्लाम का ज्ञान देना।
(3) अपने बच्चों की दीनी तर्बियत करना।
क्योंकि यह तीनों वह माध्यम हैं जिनके द्वारा हमें मरने के पश्चात भी पुन्य मिलता रहेगा। अल्लाह के रसूल सल्ल0 ने फरमायाः जब आदमी मर जाता है तो संसार से उसका सम्बन्ध कट जाता है मात्र तीन चीज़ें बाक़ी रहती हैं सदकए जारिया,दीनी इल्म जिस से फायदा उठाया जाता हो, या नेक लड़का जो उसके लिए दुआ करे। (मुस्लिम)
एकदम दुरुस्त लिखा है
ReplyDeleteआपसे सहमती न होने की कोई वजह नज़र नहीं आती है जनाब..
बहुत बेहतर लिखा है आपने
ReplyDeleteमौत जिंदगी की वो कड़वी सच्चाई है जिसे लोग भुलाये रखते हें और यही भुलावा उनको एक दिन साथ ले जाता है .इन्सान को मौत का सामना करने के लिए तय्यारी करनी चाहिए
या खुदा मेरे दुश्मन को रखना सलामत
वरना मेरी मौत की दुवा कौन करेगा
लेखनी प्रभावित करती है.
ReplyDeleteदेखिए एक जिंदगी के वास्ते
ReplyDeleteग़म हैं कितने आदमी के वास्ते
हैं बहुत ही कम वह इंसा आजकल
जान दे दें जो किसी के वास्ते
दिल किसी का भी न तोड़ो दोस्तों
अपनी एक अदना ख़ुशी के वास्ते
तंज़ करते हैं वही अब देखिए
हम मिटे जिनकी ख़ुशी के वास्ते
मौत का चखना है सब को ज़ायका
मौत बरहक़ है सभी के वास्ते
कर गुज़रते हैं न क्या क्या हम
चार दिन की जिंदगी के वास्ते
...वह भय से काँपने लगा, उसने हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम से अनुरोध किया कि आप हवा को आदेश दें कि वह हमें भारत के किसी कोने में पहुंचा दे। अतः सुलैमान अलैहिस्सलाम ने ऐसा ही किया। जब कल हो कर मौत का फरिश्ता हजरत सुलैमान अलैहिस्सलाम के पास आया तो आपने उस व्यक्ति के सम्बन्ध में बताया कि उसने मौत के भय से हम से अनुरोध किया कि उसे भारत के किसी कोने में पहुंचा दिया जाए। फरिश्ते ने कहा कि जिस समय मैं आप से बात किया था उसी समय मैंने उसकी रूह (आत्मा) भारत में जा कर निकाली थी।
ReplyDeleteGreat Article
मौत बरहक़ है.
ReplyDeleteसफत भाई का बहुत ही अच्छा लेख और हज़रत सुलेमान (अ.) काबहुत ही अच्छा क़िस्सा.
'हमारी अंजुमन' का काफ़िला यूँ ही दिन दुनी रात चौगुनी सफलता हासिल करे.
अच्छा लेख ....!!
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