Tuesday, September 15, 2009

क्या कोरी बकवास है इसलाम का परलोकवाद !

कुछ लोग इस बात पर आश्चर्य करते हैं कि एक ऐसा व्यक्ति जिसकी सोच वैज्ञानिक और तार्किक हो वह परलोकवाद को किस तरह स्वीकार कर सकता है। लोग समझते हैं कि परलोकवाद में विश्वास करने वाले अंधविश्वास से ग्रस्त होते हैं। वास्तविकता यह है कि परलोक धारणा एक तर्कसंगत धारणा है।

परलोक की धारणा के तार्किक आधार
पवित्र कुरआन में एक हजार से अधिक ऐसी आयतें हैं जिनमें वैज्ञानिक तथ्यों को बयान किया गया है। (देखिये पुस्तक Quran and Modern Science Compatible Or Incompatible) इन तथ्यों में वे तथ्य भी शामिल हैं जिनका पता पिछली कुछ शताब्दियों में चला है बल्कि वास्तविकता यह है कि विज्ञान अब तक इस स्तर तक नहीं पहुँच सका है कि वह कुरआन की हर बात को सिद्ध कर सके। मान लीजिए कि पवित्र कुरआन में उल्लेखित तथ्यों का 80 प्रतिशत भाग विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है तो बाकी 20 प्रतिशत के बारे में भी सही कहने की बात यह होगी कि विज्ञान उनके संबंध में कोई निर्णायक बात कहने में असमर्थ है। क्योंकि वह अभी अपनी उन्नति के उस स्तर तक नहीं पहुँचा है कि वह पवित्र कुरआन के बयानों की पुष्टि या उनका इंकार कर सके। हम अपनी सीमित जानकारियों के आधार पर विश्वास के साथ नहीं कह सकते कि कुरआन के बयानों का एक प्रतिशत अंश भी गलत और गलती पर आधारित है। देखने की बात यह है कि कुरआन के सम्पूर्ण बयानों का अगर 80 प्रतिशत वास्तविक रूप से सही सिद्ध होता है तो तार्किक तौर पर शेष 20 प्रतिशत के बारे में भी यही निर्णय किया जाएगा। इस्लाम में परलोक या मृत्यु के पश्चात जीवन की कल्पना इसी 20 प्रतिशत हिस्से से संबंधित हैजिसके बारे में बुद्धि और तर्क की माँग है कि उसे सही और त्रुटिहीन स्वीकार किया जाए।
परलोक की धारणा के बिना शान्ति तथा मानवीय मूल्यों की कल्पना व्यर्थ है
डकैती या लूटमार अच्छी चीज़ है या बुरी एक आम सरल स्वभाव व्यक्ति उसे एक बुरी चीज़ समझेगा। एक ऐसा व्यक्ति जो परलोक पर विश्वास नहीं रखता किसी बड़े अपराधी को किस तरह संतुष्ट कर सकता है कि डकैती या लूटमार का काम एक बुरी चीज़ है। मान लीजिए कि मैं दुनिया का एक बहुत बड़ा अपराधी हूँ और साथ ही मैं एक अत्यंत बुद्धिमान और तर्क के आधार पर कोई बात मानने वाला व्यक्ति भी हूँ। मैं कहता हूँ कि लूटमार करना सही है क्योंकि इससे मुझे ऐश व आराम से भरपूर जि़न्दगी गुजारने में मदद मिलती है, इसलिए लूटमार मेरे लिए सही है। अब अगर कोई व्यक्ति उसके बुरे होने का कोई एक तर्क भी पेश कर सके तो में उससे तुरंत रुक जाऊँगा। लोग आमतौर से निम्रलिखित तर्क पेश कर सकते है: ((क) जिस व्यक्ति को लूटा जाता है वह कठिनाई में पड़ जाता है कोई कह सकता है कि जिस आदमी को लूटा जाता है वह बड़ी मुसीबतों का शिकार हो जाता है। मैं भी इस बात से सहमत हूँ कि जिसे लूटा जाता है उसके लिए यह बुरा है। लेकिन मेरे लिए यह अच्छा है। अगर मैं एक लाख रुपए लूटमार करके हासिल कर लूँ तो मैं किसी भी पाँच सितारा होटल में स्वादिष्ट खानों से आनन्दित हो सकता हूँ। (ख) कुछ लोग आपको भी लूट सकते हैं कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि आपके साथ भी ऐसा हो सकता है कि आप लूट लिए जाएँ। लेकिन इसके जवाब में मैं कह सकता हूँ कि मेरे साथ ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि मैं एक अत्यनत शक्तिशाली अपराधी हूँ और अपने साथ सैकड़ों बॉडीगार्ड रखता हूँ। इसलिए मैं तो किसी को भी लूट सकता हूँ लेकिन कोई दूसरा मुझे नहीं लूट सकता लूटमार करना एक आम आदमी के लिए तो खतरनाक हो सकता है लेकिन एक प्रभावशाली व्यक्ति के लिए नहीं। (ग) पुलिस आपको गिरफ्तार कर सकती है कुछ लोग कह सकते हैं कि अगर आप लूटमार करते हैं तो पुलिस आपको गिर$फ्तार कर सकती है। इसका जवाब मैं यह दे सकता हूँ कि पुलिस मुझे इसलिए गिरफ्तार नहीं कर सकती कि पुलिस मेरे प्रभाव में है। इसी तरह कई मंत्री भी मेरे प्रभाव में हैं। मैं यह बात मानता हूँ कि अगर एक आम आदमी डकैती या लूटमार करता है तो वह गिर$फ्तार हो सकता है और यह बात उसके लिए बुरी हो सकती है लेकिन किसी असाधारण शक्ति और पहुँच रखने वाले अपराधी का पुलिस कुछ नहीं बिगाड़ सकती। (घ) लूटमार की कमाई बेमेहनत की कमाई है कुछ लोग कह सकते हैं कि यह आसानी के साथ प्राप्त की हुई कमाई है। मेहनत की कमाई नहीं है। मैं इस बात से पूर्ण रूप से सहमत हूँ कि यह आसानी की कमाई है। यही कारण है कि मैं लूटमार करता हूँ। अगर एक बुद्धिमान व्यक्ति के सामने दो विकल्प हों यानी वह आसानी के साथ भी दौलत कमा सकता है और परिश्रम के साथ भी तो नि:संदेह वह आसानी को पसन्द करेगा। (ङ) लूटमार करना मानवता के विरूद्ध है कुछ लोग कह सकते हैं कि लूटमार करना मानवता के विरूद्ध है और एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के हितों क ख़्ायाल रखना चाहिए। मैं इस तर्क का यह कहकर जवाब दे सकता हूँ कि आिखर मानवता नाम का यह नियम किसने बनाया है और मैं क्यों इसका पालन करूँ? यह नियम भावुक लोगों के लिए तो अच्छा हो सकता है लेकिन चूँकि मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो तर्क में विश्वास करता हूं, मुझे दूसरों के हितों का खयाल रखने में कोई लाभ नजर नहीं आता। (च) लूटमार करना एक स्वार्थपूर्ण कार्य है कुछ लोग कह सकते हैं कि यह एक स्वार्थपूर्ण कार्य है। यह बात सत्य है कि लूटमार करना एक स्वार्थपूर्ण कार्य है, लेकिन मैं स्वार्थी क्यों न बनूँ?इससे मुझे आनन्दपूर्ण जीवन गुज़ारने में मदद मिलती है।
(१) लूटमार के बुरा होने का कोई तार्किक कारण नहीं है वे सभी तर्क जो इस बात को साबित करने के लिए दिए जा सकते हैं कि लूटमार एक बुरा काम है, इस प्रकार उपरोक्त स्पष्टीकरण की रोशनी में व्यर्थ सिद्ध होते हैं। यह प्रमाण और तर्क आम लोगों को तो संतुष्ट कर सकते हैं लेकिन किसी शाक्तिशाली और प्रभावशाली अपराधी को नहीं। इनमें से किसी भी प्रमाण को तार्किक आधारों पर स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसमें आश्चर्य की भी कोई बात नहीं है कि इस दुनिया में अपराधी लोग भरे पड़े हैं। इसी प्रकार धोखा-धड़ी और बलात्कार आदि अन्य बुराइयों का मामला है। किसी भी प्रभावशाली और शक्तिशाली अपराधी को किसी भी तार्किक प्रमाण के साथ इन चीज़ों के बुरा होने के बारे में संतुष्ट नहीं किया जा सकता।
(२) एक मुस्लिम किसी प्रभावशाली और शक्तिशाली अपराधी को संतुष्ट कर सकता है अब हम समस्या पर एक-दूसरे रुख से वार्ता करते हैं। मान लीजिए कि आप दुनिया के एक अत्यन्त प्रभावशाली और शक्तिशाली अपराधी हैं। आपके प्रभाव में पुलिस व मंत्री हैं तथा आपके पास आपकी सुरक्षा के लिए फौज ही फौज है। आपको एक मुस्लिम कायल कर सकता है कि लूटमार करना, धोखा-धड़ी करना, बलात्कार और कुकर्म करना ये सारी चीज़ें गलत और बुरे कर्म हैं। (३) प्रत्येक व्यक्ति न्याय चाहता है प्रत्येक व्यक्ति न्याय चाहता है। अगर वह दूसरों के लिए न्याय का इच्छुक न भी हो फिर भी वह अपने लिए तो अवश्य ही न्याय की अभिलाषा करता है। कुछ लोग ताकत और प्रभाव के नशे में चूर होते हैं और दूसरों को दुख और तकलीफ पहुंचाते हैं। अगर इन लोगों के साथ कोई अन्याय होता है तो उन्हें इस पर शिकायत होती है। ऐसे लोग जो दूसरों के दुख-दर्द को महसूस नहीं करते वास्तव में ताकत और प्रभाव के पुजारी होते हंै। यह ताकत और प्रभाव न केवल उन्हें दूसरों पर अत्याचार करने पर उभारता है बल्कि दूसरों को उन पर अत्याचार करने से रोकने में भी सहायक होता है।
खुदा सबसे ज्य़ादा शक्तिशाली और न्यायी है
एक मुस्लिम की हैसियत से एक व्यक्ति किसी अपराधी को $खुदा के अस्तित्व के बारे में कायल कर सकता है। यह खुदा किसी भी अपराधी से ज्य़ादा शक्तिशाली है और हरेक के साथ न्याय करने वाला भी। पवित्र कुरआन में है- ''खुदा कभी कण-भर भी अन्याय नहीं करता।ÓÓ (कुरआन, 4:40)
खुदा सज़ा क्यों नहीं देता? एक ऐसा अपराधी व्यक्ति जो बुद्धि और विज्ञान में विश्वास रखता है वह कुरआन के वैज्ञानिक तथ्यों को देखने के बाद इस बात से सहमत है कि खुदा मौजूद है। वह यह तर्क दे सकता है कि खुदा शक्तिशाली और न्यायी होने के बावजूद उसे अपराधों पर सज़ा क्यों नहीं देता।
जो लोग किसी के साथ अन्याय करते है उन्हें सज़ा दी जाएगी
हर वह व्यक्ति जिसके साथ अन्याय हुआ हो यह देखे बगैर कि उसकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति क्या है, चाहता है कि अत्याचारी को सजा दी जाए। एक आम और सामान्य व्यक्ति चाहता है कि डकैत या बलात्कारी को शिक्षाप्रद सज़ा दी जाए। हालाँकि बहुत-से अपराधियों को सजा हो जाती है फिर भी बहुत-से अपराधी कानून की पकड़ से बच निकलने में सफल हो जाते हैं। वे भोग-विलास से पूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं और आराम और चैन से रहते हैं। अगर ऐसे लोगों के साथ कोई ऐसा व्यक्ति अत्याचार करता है जो उनसे ज्य़ादा शक्तिशाली और प्रभावशाली होता हैं तो ये लोग इस बात के अभिलाषी होते हैं कि इस अत्याचारी को सज़ा दी जाए।
यह जीवन परलोक के लिए आज़माइश है
यह दुनिया परलोक के लिए परीक्षा स्थल है। पवित्र कुरआन में है- ''जिसने मौत और जिन्दगी को पैदा किया ताकि तुम लोगों को आजमाकर देखे कि तुममेे से कौन अच्छे से अच्छा कर्म करने वाला है और वह प्रभुत्वशाली भी है और क्षमा करने वाला भी।ÓÓ (कुरआन, 67:2)
फैसले के दिन पूर्ण न्याय किया जाएगा
पवित्र कुरआन में है- ''हर जान को मौत का मज़ा चखना है और तुम सब अपनी पूरी-पूरी मज़दूरी प्रलय के दिन पाने वाले हो, सफल वास्तव में वह है जो वहाँ नरक की आग से बच जाए और स्वर्ग में दािखल कर दिया जाए। रहा यह संसार तो यह केवल एक जाहिरी धोखे की चीज़ है।ÓÓ (कुरआन, 3:185) इंसान के साथ आिखरी और पूर्ण न्याय का मामला बदले के दिन होगा। सारे इंसानों को परलोक में हिसाब के दिन उठाया और जि़न्दा किया जाएगा। यह संभव है कि किसी व्यक्ति की उसके किए कि सज़ा का एक भाग इस दुनिया में ही मिल जाए, लेकिन फाइनल सज़ा या इनाम उसे आिखरत में दिया जाएगा। महान खुदा एक डकैत या बलात्कारी को चाहे इस दुनिया में सज़ा न दे लेकिन परलोक में फैसले के दिन वह ज़रूर अपराधी को सज़ा देगा।
इंसानी कानून हिटलर को भला क्या सज़ा दे सकता है?
हिटलर ने लगभग 60 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतारा। पुलिस अगर उसे गिरफ्तार कर लेती तो इंसानी कानून उसे क्या सज़ा दे पाता? ज्य़ादा से ज्यादा जो सज़ा ऐसे व्यक्ति को मिल सकती है वह यह है कि उसे भी गैस चेम्बर में भेज दिया जाए। लेकिन देखा जाए तो यह सिर्फ एक यहूदी को किसी प्रकार गैस चैम्बर में जला देने की सज़ा होगी, लेकिन बाकी 59 लाख 99 हजार 99९ जलाकर मारे गए लोगों के बारे में आप क्या कहेंगे?
खुदा हिटलर को 60 लाख से ज्य़ादा बार नरक में जला सकता है
पवित्र कुरआन में है- ''जिन लोगों ने हमारी आयतों का इंकार किया उन्हें हम जल्द ही आग में झोकेंगे। जब भी उनकी खालें पक जाएँगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल दिया करेंगे। ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें। निस्संदेह खुदा प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी है।ÓÓ (कुरआन, 4:56) अगर खुदा चाहे तो वह हिटलर को 60 लाख से ज्य़ादा बार नरक में जला सकता है।
परलोक की धारणा के बिना मानवीय मूल्यों और भलाई-बुराई की कोई कल्पना नहीं
यह बात बिल्कुल स्पष्ट है कि परलोक की धारणा के बगैर आप किसी अत्याचारी के सामने भलाई-बुराई और मानवीय मूल्यों की वास्तविकता को सिद्ध नहीं कर सकते। विशेष रूप से ऐसे व्यक्ति के सामने जो अत्याचारी, दमनकारी और शक्तिशाली हो।

5 comments:

  1. दिल को खुश रखने को 'ग़ालिब' ख़याल अच्छा है।

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  2. " खुदा हिटलर को 60 लाख से ज्य़ादा बार नरक में जला सकता है "

    तो फिर खुदा ने ऐसे व्यक्ति को पैदा ही क्यों होने दिया ! इतना खून खराबा कर देने वाले व्यक्ति को सब करने के बाद खुदा फले ही ६० लाख बार जलाए या ६० करोड़ बार , अब क्या फायदा ? मानवता को तो तब फायदा होता जब हिटलर जैसे आदमी को खुदा पैदा ही नहीं होने देता |

    दिनेश जी ने सच कहा "दिल को खुश रखने को 'ग़ालिब' ख़याल अच्छा है।"

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  3. कुर-आन की शिक्षाएं और ज्ञान आज से चौदह सौ साल पहले से ही तार्किक रूप से और सामाजिक रूप से ग्रहणीय थे और आज भी हैं. विज्ञान ने जब से तरक़्क़ी शुरू की है; से ले लेकर आज तक दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन और शोध के द्वारा कुर-आन की लगभग 80% बातों को 100% सही मन है. बची 20% विज्ञान अभी सिद्ध नहीं कर पाया है, जिनमें से यह परलोकवाद की अभिधारणा भी है. वजह यह है कि अभी विज्ञान ने इतनी तरक़्क़ी नहीं कर पाया है...

    अब जब कुर-आन की 80% तथ्य और बातें विज्ञान ने भी अपनी कसौटी पर खरी उतार दिन हैं तो यह कहना गैर-मुनासिब नहीं होगा कि बची 20% भी सही ही होएंगी क्यूंकि अभी विज्ञान ने इतनी तरक़्क़ी नहीं कर पाया है...

    दूसरी चीज़ आज "बिग बैंग" की थ्योरी को विज्ञान मानता है कि दुनिया या ब्रह्मांड बना एक विस्फोट के ज़रिये यही चीज़ कुर-आन में भी लिखी है कि "हमने ज़मीन को आसमान से अलग किया....." आज से चौदह सौ साल पहले यह बात कुर-आन में लिखी हुई है...

    और हम जानते हैं कि दुनिया के सभी इंसान के अंगूठे का निशान यकसां नहीं होता है सबका अलाहिदा होता है. ये तो विज्ञानं ने अब जाकर पता लगाया कि ऐसा है जबकि यह कुर-आन में यह चौदह सौ साल पहले ज़िक्र किया जा चुका है...

    कहने का तात्पर्य यह है कि यह केवल दिनल को खुश रखने के लिए ही नहीं है अगर आप पूर्वाग्रह से ग्रस्त हुए बिना कुर-आन का अधययन करेंगे तो इंशा-अलाह यह आपके दिमाग को भी खुश कर देगा क्यूंकि इस्लाम दीन-ए-फितरत है, इसे कॉमन सेंस के ज़रिये आसानी से समझा जा सकता है...

    यह आपके दिल को ही नहीं, दिमाग को भी खुश कर देगा क्यूंकि यही वह दीन है जो सारी इंसानियत के लिए है केवल मुसलमानों और अरबों के लिए नहीं. अल्लाह सुबहान व-ताला कई जगह इसका ज़िक्र कुर-आन में करते हैं...

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  4. @ Ratan Singh Shekhawat ji,
    you asked a very good question.

    " खुदा हिटलर को 60 लाख से ज्य़ादा बार नरक में जला सकता है "

    तो फिर खुदा ने ऐसे व्यक्ति को पैदा ही क्यों होने दिया ! इतना खून खराबा कर देने वाले व्यक्ति को सब करने के बाद खुदा फले ही ६० लाख बार जलाए या ६० करोड़ बार , अब क्या फायदा ? मानवता को तो तब फायदा होता जब हिटलर जैसे आदमी को खुदा पैदा ही नहीं होने देता |

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    अल्लाह सुबहान व त-आला फरमाते हैं कि हमने तुम्हे एक जोड़े से पैदा किया और कबीलों और समुदायों में फ़ैला दिया ताकि तुम एक दुसरे को पहचान सको (कि कौन नेक अमल करता है और कौन बुरे)...

    ऐसा नहीं है कि अल्लाह सुबहान ने इंसान को पैदा किया जो बुरे हैं बल्कि बुरे वो अपने कर्मों से है जिसको वे स्वयं करता है और आपकी तरह दोष उस ईश्वर पर डाल देता है...

    अगर कोई बुरा काम कर रहा है; इसका इल्म अल्लाह को है लेकिन वह बुरे काम करेगा इसके लिए अल्लाह जिम्मेदार नहीं वह स्वयं है, क्यूंकि अल्लाह सुबहान ने कुर-आन के ज़रिये हमें हिदायत भी दी है, और यही नहीं इससे पहले भी अल्लाह सुबहान व त-आला ने कई किताबें नाज़िल की जिसमें इंसानियत के बारे में हमें समझाया गया. हो सकता है कि वेदों को भी ईश्वर ने नाज़िल किया हो.. जिसकी कई शिक्षाएं कुर-आन की शिक्षाओं से मिलती हैं...

    "आओ उस बात की तरफ जो हममें और तुममें यकसां हो."

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  5. मेरे पास कुछ प्रश्न हैं जरा उनका उत्तर चाहिए ?
    हमें इस धरती पर किसने पैदा किया? हम क्यों पैदा किए गए? हमें कहाँ जाना है?
    जाहिर है कि इसका उत्तर लोग यही देंगे कि हमें ईश्वर ने पैदा किया, इस धरती पर परिक्षा के लिए रखा, एक दिन मरना है और मरने के पश्चतान हमें अपने कर्मों का हिसाब चुकाना है। फिर या तो नरक है या स्वर्ग।
    यदि ऐसी सोच नहीं रखते तो हमें बताएं कि क्या हमारी पैदाइश का कोई उद्देश्य नहीं? जबकि धरती में कोई भी जीज़ बे फाइदा नहीं ?

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