Wednesday, September 16, 2009

मस्तिष्क के बारे में कुरआन का नजरिया

सिर का सामने का हिस्सा योजना बनाने और अच्छे व बुरे व्यवहार के लिए प्रेरित करता है। मस्तिष्क का यही पार्ट सच और झूठ बोलने के लिए जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों को पिछले साठ सालों में इस बात का पता चला है जबकि कुरआन तो चौदह सौ साल पहले ही यह बता चुका है।
अल्लाह ने कुरआन में पैगम्बर मुहम्मद सल्ललाहो अलेहेवस्सल्लम को काबा में इबादत करने से रोकने वाले विरोधियों की एक बुराई का जिक्र कुछ इस तरह किया है-
कदापि नहीं,यदि वह बाज नहीं आया तो हम उसके नासिया (सिर के सामने के हिस्से) को पकड़कर घसीटेंगे। झूठे, खताकार नासिया। (कुरआन ९६:१५-१६)
सवाल उठता है कि कुरआन ने मस्तिष्क के सामने के हिस्से को ही झूठा और गुनाहगार क्यों कहा है?कुरआन ने उस व्यक्ति को गुनाहगार और झूठा कहने के बजाय उस हिस्से को दोषी क्यों माना? पेशानी और झूठ व गुनाह में आखिर ऐसा क्या संबंध है कि कुरआन ने व्यक्ति के बजाय पेशानी को झूठ और गुनाह के लिए जिम्मेदार माना?
अगर हम सामने के सिर के ढांचे पर गौर करें तो मस्तिष्क के सामने की ओर एक हिस्सा पाएंगे। शरीर विज्ञान का मस्तिष्क के इस हिस्से के बारे में क्या कहना है? एसेन्शियल्स ऑफ एनाटॉमी एण्ड फिजियोलोजी नामक किताब मस्तिष्क के इस भाग के बारे में बताती है-योजनाएं बनाने और इसकी क्रियान्वयन संबंधी गतिविधियों का केन्द्र मस्तिष्क का यह सामने वाला हिस्सा ही होता है। मस्तिष्क का यह भाग प्रेरित करने में ही शामिल नहीं होता बल्कि आक्रामकता का केन्द्र बिन्दु भी यही होता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सिर का सामने का हिस्सा ही योजना बनाने और अच्छे व बुरे व्यवहार के लिए प्रेरित करता है। मस्तिष्क का यही पार्ट सच और झूठ बोलने के लिए जिम्मेदार है। यही वजह है कि जब कोई झूठ और गुनाह करता है तो झूठा और गुनाहगार उसके सिर का सामने का हिस्सा होता है,जैसा कि कुरआन ने गुनाह करने पर उस व्यक्ति के बजाय उस हिस्से केलिए कहा है-ए झूठे, खताकार नासिया (सिर के सामने के हिस्से )
प्रोफेसर कीथ एल मूर के मुताबिक पिछले साठ वर्षों में ही वैज्ञानिकों को मस्तिष्क के इस हिस्से की कार्यप्रणाली का पता चला है।

7 comments:

  1. मित्रों आपकी अनेक बातों से सहमति है जो कि सभी धर्मों में लगभग एक जैसी ही रहती हैं किन्तु एक बात शीशे की तरह साफ़ है कि जब भी धर्म की विवेचना साइंस के आधार पर करते हैं तो साइंस उसी हद तक स्वीकार रहता है जहां तक आपका हित है शेष आपको हज़म नहीं होता। सिर के सामने वाले हिस्से को पकड़ घसीटेंगे तो जो प्रभाव उस व्यक्ति के ऊपर पड़ेगा ठीक वही प्रभाव टांग पकड़ कर घसीटने से होगा। एक चिकित्सक होने के नाते खूव समझता हूं इस बात को। आप लिखते हैं----
    कुरआन ने उस व्यक्ति को गुनाहगार और झूठा कहने के बजाय उस हिस्से को दोषी क्यों माना? पेशानी और झूठ व गुनाह में आखिर ऐसा क्या संबंध है कि कुरआन ने व्यक्ति के बजाय पेशानी को झूठ और गुनाह के लिए जिम्मेदार माना
    क्या वो हिस्सा व्यक्ति से अलग है,सारी अनुभूतियां तो मस्तिष्क में ही होती हैं,सच जानने का कौतूहल से लेकर बलात्कार करने की कुत्सित इच्छा सभी मस्तिष्क से उपजती हैं क्योंकि शरीर का अन्य कोई अंग विचार का कार्य नहीं करता इसलिये प्रत्येक कौतूहल या तर्क के लिये इसी हिस्से को दंडित करा जाना सही है आपके अनुसार। एक स्पष्ट बात कि तर्क और आग्रह भी मस्तिष्क के इसी हिस्से से उपजते हैं क्या कहीं ऐसा नहीं लिखा कि तर्क करने वाले को सिर पर हाथ रख कर सराहा जाएगा। क्या कुरान शरीफ़ में राष्ट्रवाद जैसी बात है? लोकतंत्र की क्या अवधारणा है? अन्य धर्मों के लिये कोई स्थान है? बहत्तर अलग हो चुके फिरकों के आपसी विवादो का हल है? मेरी बातों को आग्रह मुक्त होकर मनन करें और सवालों का उत्तर बिना किसी पूर्वाग्रह के दीजिएगा क्योंकि मैं मानता हूं कि मैं टार्जन की तरह वनवासी हूं और ईश्वर या धर्म आदि जैसी गरिष्ठ बातों को जब आप समझाएंगे और तर्क/तथ्य से संतुष्ट करेंगे तब ही स्वीकार पाउंगा।

    ReplyDelete
  2. रुपेश जी, वन्दे-ईश्वरम,

    आपने कई सवाल पूछ डाले जैसे क्या कुरान शरीफ़ में राष्ट्रवाद जैसी बात है? लोकतंत्र की क्या अवधारणा है? अन्य धर्मों के लिये कोई स्थान है? बहत्तर अलग हो चुके फिरकों के आपसी विवादो का हल है?

    सवाल संख्या एक: क्या कुर-आन में राष्ट्रवाद जैसी भावना है? इसका सीधा जवाब यही है हर मुसलमान चाहे वो किसी भी मुल्क़ में रहता हो, अपने मुल्क़ की तरक़्क़ी की भावना रखे और उसके मुताबिक अपने कर्तव्य का निर्वहन करे. लेकिन मुसलमान के लिए यह फ़र्ज़ है कि अल्लाह के बताये रास्तों पर चले. अगर कोई भी कार्य एकेश्वरवाद के खिलाफ़ जाता है तो वह हम मुसलामानों के लिए अस्वीकार होगा. एकेश्वरवाद (तौहीद) इस्लाम की नींव है इससे समझौता हमें मंज़ूर ही नहीं है. मिसाल के तौर पे "वन्दे-मातरम्" या नमस्ते कहना. इन शब्दों के जो अर्थ हैं वह एकेश्वरवाद के खिलाफ़ जाते हैं. इसलिए हमें स्वीकार नहीं. अगर आप देशभक्ति की बात करते है उस नज़रिए से जिससे देश की तरक़्क़ी हो तो हम देशभक्त हैं और अगर आप कहते है वन्दे-मातरम् कहने मात्र से ही हम देश-भक्त होंगे. तो हम देश-भक्त नहीं. देश की तरक़्क़ी के लिए चाहे वो आर्थिक हो सामाजिक हो या कोई भी हो.. हम मुसलमान देशभक्त है लेकिन अगर आप कहें कि हम अपने बुनियादी उसूल के बरखिलाफ जाएँ तो हम देशभक्त नहीं...

    ReplyDelete
  3. आपका दूसरा सवाल कि लोकतंत्र की क्या अवधारणा है?

    लोकतंत्र की नीवं ही इस्लाम ने रखी, अगर आप इस्लामी तारीख़ (इतिहास) का मुताला (अध्ययन) करेंगे तो पाएंगे कि उस वक़्त के सियासी तौर-तरीक़े को जानकर आप आसानी समझ जायेंगे. अगर आप लोकतंत्र से मतलब वर्तमान के हालत से लगा रहें है जिसके अर्न्तगत कोई भी चाहे वो अपराधी ही क्यूँ न हो, जनता का करता-धरता बन जाता है तो शायेद यह थोडा अलग सा लगेगा आपको क्यूंकि इस्लाम के सियासी तरीक़े इससे थोडा ज्यादा ही शुद्ध है.

    ReplyDelete
  4. एक रोचक जानकारी ........ऐसे ही नयी जानकारियाँ लाते रहे और ज्ञानवर्धन करवाते रहे ....

    ReplyDelete
  5. भाई रूपेश जी
    बड़ी खुशी हुई आपने इस आलेख को पढऩे के लिए वक्त निकाला।
    आलेख का असली भाव यही था कि कुरआन ने शरीर के उस हिस्से को जिम्मेदार ठहराकर साबित किया है कि यह हलचल शरीर के इस खास हिस्से में होती है। ना मस्तिष्क के उपरी हिस्से में होती है,ना दाएं हिस्से में,ना बाएं में और ना मस्तिष्क के पीछे के हिस्से में। आप तो डॉक्टर हैं इसकी बारीकी को आपसे बेहतर भला कौन समझ सकता है।
    मैं यहां एक और बात बताना चाहूंगा कि कुरआन में इंसानों को दुबारा जिंदा करके हिसाब लेने का कई जगह जिक्र है। इसी मामले में कुरआन मे एक जगह इंसानों को कहा गया है कि हम तुम्हें फिर जिंदा करेंगे तो तुम्हारी अगुंलियों के पौरों को भी वैसा का वैसा बना देंगें।
    आखिर कुरआन ने अंगुलियों के लिए ऐसा क्यों कहा?
    विज्ञान ने साबित कर दिया है कि फिंगर प्रिंट हर इन्सान के अलग होते हैं। कुरआन का इशारा भी इसी तरफ था।
    कुरआन की कई बातों पर साइंस ने मुहर लगा दी है। यहां तो अंशमात्र चर्चा है। आप नेट पर quraan and modern science नाम से सर्च करें आपको बहुत मैटर मिलेगा।
    रही बात राष्ट्रवाद की तो मैं बताना चाहूंगा कि मुहम्मद सल्ल़ ने कहा है-
    हुब्बुल वतने मिनल ईमान यानी वतन से मोहब्बत करना ईमान का हिस्सा है। आप सोचें जिस बात को ईमान से जोड़ा गया है उसकी क्या अहमियत होगी। यहां गौर करने लायक बात यह भी है कि इस्लाम में वफा पर बहुत जोर दिया गया है। वफा चाहे फिर बीवी से हो या वतन से ,पड़ोसी से हो यह फिर अपनी कंपनी से ,वह होनी ही चाहिए। वैसे भी एक मुस्लिम अपने वतन की मिट्टी में दफन होता है। उसकी हड्डियां उसी वतन की मिट्टी में मिलती है पानी में बहकर देश की सीमाओं के बाहर नहीं जाती।
    रही बात अन्य धर्मों के मामले में इस्लाम का नजरिया तो मै यह बताना चाहूंगा कि हम ईसाइयों और यहूदियों के पैगम्बरों को भी अपने पैगम्बर के रूप में मानते हैं। कुरआन के मुताबिक दुनिया के हर हिस्से और दौर में लगभग एक लाख चौबीस हजार पैगम्बर आए। इस अवधारणा के मुताबिक इस्लाम की अन्य धर्मोे के बारें में क्या सोच है,इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं।

    ReplyDelete
  6. इस्लामिक वेबदुनियाँ द्वारा बेहद सटीक विश्लेषण.

    ReplyDelete
  7. @स्वच्छ
    लोकतंत्र की नींव ही इसलाम ने रखी !!! माशाल्लाह , क्या बात कही है | कृपया इतिहास न बिगाड़ें, मैं नास्तिक हूँ लेकिन इतिहास पर भरोसा है और जानकारी भी!
    @डॉक्टर रुपेश
    मामला सही रखा है | कमोबेश सभी धर्म की यही हालत है | मुर्गे की टांग खा लेने के बाद मेरे गाँव की एक पंडित ने कहा था बाकी हिस्सा हराम (उसने कोई और शब्द प्रयोग किया था ) है, दूसरी टांग ही लेके आओ |
    @islamicwebdunia.com
    अच्छी बात कही आपने | वासी आप किसी धर्म या धर्मग्रन्थ की साथ माडर्न साइंस का नाम लगाकर सर्च करेंगे तो अच्छी खासी सामग्री मिलेगी आपको | और देश वेश छोडिये , पूरी मानव जाति की भली इसी में है की साइंस को सारे धर्मो से ऊपर का दर्जा मिले और साइंस से धर्म की व्याख्या हो ना की धर्म से साइंस की |

    ReplyDelete