Wednesday, September 23, 2009

इस्लाम- जिंदगी गुजारने का एक खास तरीका

दिली सुकून इस्लाम में ही मिलेगा। इस्लाम सच्चा धर्म है। यही वजह है कि मैं इस्लाम में आया।
यूसुफ योहान्ना अब मुहम्मद यूसुफ,पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर
पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर यूसुफ योहान्ना ने सितम्बर २००५ में इस्लाम कबूल किया। उन्होंने अपना नाम मुहम्मद यूसुफ रखा। मुहम्मद यूसुफ का कहना है कि उन्होंने इस्लाम अपनाने के ऐलान से तीन साल पहले ही इस्लाम अपना लिया था लेकिन पारिवारिक कारणों के चलते उन्होंने इसका ऐलान नहीं किया था। यूसुफ की बीवी ने भी यूसुफ के साथ ही इस्लाम अपना लिया और अपना नाम तानिया से फातिमा रख लिया। यहां पेश है मोहम्मद यूसुफ का इन्टरव्यू जिसमें उन्होंने इस्लाम कबूल करने से जुड़े विभिन्न सवालों के जवाब दिए है।
आपका बचपन कहां और कैसे गुजरा?
मेरा बचपन कराची की रेलवे कालोनी में गुजरा। मुझे बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था। बचपन में धर्म आपके जीवन में क्या अहमियत रखता था। आपने बचपन में अपने धर्म की शिक्षा ली?मैं बचपन में सण्डे को चर्च जाता था। हालांकि मैं चर्च नियमित नहीं जाता था। समझदार होने के बाद मैं हर सण्डे चर्च जाने लगा था।आपका इस्लाम की तरफ रुझान कैसे हुआ?मैं मुस्लिम माहौल के बीच ही पला-बढ़ा। मेरे बचपन के सारे दोस्त मुस्लिम थे और मैं मुस्लिम इलाके में ही रहता था। लेकिन सच्चाई यह है कि मुझे इनका अमल इस्लाम के मुताबिक नजर नहीं आता था। अमल के मामले में वे बाकी लोगों की तरह ही थे, इस वजह से उनका कोई खास असर मुझ पर नहीं हुआ।
आखिर आप में ऐसा बदलाव कैसे आया?
मेरे में अचानक ही बदलाव नहीं आया। जब मैंने तब्लीगी जमात के लोगों का व्यवहार और जिंदगी के प्रति उनका नजरिया देखा तो उनसे बेहद प्रभावित हुआ। हालांकि उन्होने मुझे कभी यह नहीं कहा कि आप मुसलमान बन जाइए। दरअसल मैं उनसे बेहद प्रभावित हुआ और उनको देखकर ही मैं मुस्लिम हो गया। मैं ही क्या तब्लीगी जमात अमेरिका के कैलीफोर्निया गई हुई थी तो वहां का एक यहूदी इनके अमल से बेहद प्रभावित हुआ और वह मुस्लिम हो गया।
इस्लाम के खिलाफ जबरदस्त दुष्प्रचार के बावजूद लोग इस्लाम कबूल कर रहे हैं।
दरअसल यह हमारा ही कसूर है। हम मुसलमान इसके लिए जिम्मेदार हैं। कहने को पाकिस्तान इस्लामिक देश है लेकिन बाहर से आने वाले व्यक्ति को यहां का माहौल देखकर कतई नहीं लगे कि यहां के लोग इस्लामिक उसूलों क ो अपनाए हुए हंै। अगर हम पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहो अलेहेवसल्लम की जिंदगी को फोलो करें तो मुसलमानों पर कोई उंगली नहीं उठा सकता।
इस्लाम में आपको ऐसा क्या खास लगा कि आपने ईसाई धर्म छोड़कर इस्लाम अपना लिया?
जिन बाअमल मुसलमानों से प्रभावित होकर मैं मुसलमान बना उनमें मैंने पाया कि इस्लाम जिंदगी गुजारने का एक खास तरीका है। इस्लाम में पीस है,सुकून है,हर एक के साथ अच्छा व्यवहार,लोगों की भलाई की सोच आदि ऐसी बातें हैं जिनसे मैं बेहद प्रभावित हुआ।
आपके लिए यह फै सला लेना कितना मुश्किल था। इस्लाम कबूल करने पर आपके परिवार वालों की किस तरह की प्रतिक्रिया हुई।
परिवार वालों ने मेरे इस फैसले का विरोध किया। मुझे अहसास था मेरे घर वाले मुझसे नाराज होंगे लेकिन सच तो यह है कि दुनिया की कामयाबी ही कामयाबी नहीं है। क्योंकि एक दिन सब को मरना है और अपने कर्मों का हिसाब देना है। दुनिया का सबसे बड़ा सच मौत है और सबसे बड़ा झूठ-जिंदगी।
आपने अपनी पत्नी को मुसलमान होने के बारे में बताया तो उनकी शुरूआती प्रतिक्रिया क्या रही?
मैंने उसको यह नहीं बताया था कि मैं मुसलमान हो गया हूं। मैंने उसको बताया कि आजकल मैं ऐसा कुछ कर रहा हूं जिससे मुझे सुकून हासिल हो रहा है,अच्छा महसूस हो रहा है। तुम भी इस्लामिक तालीम को समझो और तुम्हेे अगर यह अच्छी लगती है तो इन बातों को अपना लो। क्योंकि इस्लाम में जबरदस्ती नहीं है। इस्लाम जबरदस्ती से नहीं फै लाया गया है। इस्लाम प्यार से फैला है,भलाई से फैला है। इस्लाम मन को पवित्र करता है जिससे लोग खुद को ईश्वर के करीब महसूस करते हैं।
आपको इस राह पर लाने में सबसे बड़ा हाथ किसका है?
अल्लाह के हुक्म और पैगम्बर के तरीके के मुताबिक जिंदगी गुजारने वालों से मैं बेहद प्रभावित हुआ। ऐसे लोगों की जिंदगी मेरे लिए अनुकरणीय बनी। इनमें से एक है पाकिस्तानी क्रिकेटर सईद अनवर।
पाकिस्तानी क्रिकेट टीम का रुझान भी अब इस्लाम की तरफ देखने को मिलता है। टीम में यह बदलाव कैसे आया?
मैं काफी समय से टीम में रहा लेकिन पहले मैंने टीम के लोगों में ऐसी अच्छी बातें नहीं पाईं। इस बदलाव का कारण टीम के लोगों का इस्लामिक मूल्यों को अपनी जिंदगी में लागू करना है। सईद अनवर जैसे लोग दुनिया भर में इस्लामिक उसूलों को फैला रहे हैं।
आप उन लोगों को क्या मैसेज देना चाहते हैं जो इस्लाम की हकीकत को जानना चाहते हैं लेकिन किसी दबाव की वजह से घबराते हैं। झिझकते हैं। क्या वास्तव में इस्लाम अपनाना बेहद मुस्लिम है?
देखिए मैंने महसूस किया है कि गैर मुस्लिम का मुस्लिम होना इतना मुश्किल नहीं है जितना एक पैदाइशी मुसलमान का इस्लाम के मुताबिक जिंदगी गुजारना। मुसलमानों के बीच इस्लामिक शिक्षा के प्रचार प्रसार की ज्यादा जरूरत है। मैं तो दूसरे धर्म से आया हूं, मुझे पता है दूसरे धर्मों में सुकून और आत्मिक शंाति नहीं है । दिली सुकून इस्लाम में ही मिलेगा। इस्लाम सच्चा धर्म है। यही वजह है कि मैं इस्लाम में आया। मेरा तो मुस्लिम भाइयों से यही गुजारिश है कि वे अल्लाह के हुक्म और पैगम्बर मुहम्मद साहब की जिंदगी को अपनाएं।
आप जब ईसाई थे तो मुसलमानों को देखकर क्या महसूस करते थे?
इस्लाम के मुताबिक जिंदगी गुजारने वाले मुसलमानों को देखकर मुझे लगता था कि वास्तव में यह अलग हटकर मजहब है। अल्लाह के हुक्म और पैगम्बर की सुन्नतों के मुताबिक जिंदगी गुजारने वाले लोगों को देखकर ही तो मैं मुस्लिम हुआ हूं। मुझे लगता था सच्चे ईश्वर की तरफ से ही यह मजहब है।

13 comments:

  1. हिन्दुओ से कुछ कहना चाहता हूँ ;

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  2. हिन्दुओ से कुछ कहना चाहता हूँ ; अरे काफिरों, अपने इन मुसलमान भाइयो से कुछ सीखो ! आप लोगो ने अपनी कायरता छुपाने के लिए सेक्युलरिज्म का चोल ओढ़ सिवाए अपने धर्म की धज्जियाँ उडाने के क्या सीखा ? कभी कहते हो की नगन मूर्तिया क्यों पूजते हो कभी कहते हो की नारियल क्यों चढाते हो मंदिरों में, कभी कहते हो... ! इस्लाम के अनुयायी को दिन में कम से कम तीन बार नमाज अता करनी होती है, इसाई को हर सन्डे चर्च जाना जरूरी होता है, लेकिन एक यह आपका बेचार धर्म है जो कहता है की बस कुछ मत करो अपना आचरण सही रख, मगर हमसे/तुमसे वह भी नहीं हो पाता ! वो चाहे कुछ मुट्ठी भर लोगो की वजह से ही क्यों न हो, मगर आज सारी दुनिया इस्लाम को हेय दृष्ठि से देख रही है, और उसके बाबजूद ये लोग कहते है कि दिली सुकून इस्लाम में ही मिलेगा। इस्लाम सच्चा धर्म है।.............................! हिन्दू हर गली कूचे के नुक्कड़ पर अपने धर्म पर कीचड उछालता हुआ मिल जाएगा लेकिन किसी मुसलमान को तुमने अपने धर्म की बुराई करते सुना ? लानत है हम हिन्दुओ पर !!

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  3. एक मशहूर क्रिकेटर युसूफ योहान्ना के बारे में इतनी महत्वपूर्ण जानकारी देकर आपने वाकई बहुत अच्छा काम किया.

    कोई भी, मैं कहता हूँ कोई भी जब सकारात्मक होकर इस्लाम की शिक्षाओं का अध्ययन करेगा तो वह यक़ीनन... अल्लाह के बताये रास्ते पर आ जायेगा...क्यूंकि इस्लाम की शिक्षाएं ऐसी हैं जिसे कोई भी कॉमन सेंस से आसानी से समझ सकता है क्यूंकि यही एक दीं है जिससे आपका दिल ही खुश नहीं होता बल्कि दिमाग भी संतुष्ट हो जाता है.

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  4. आपने सही कह सलीम भाई, इस्लाम की शिक्षाएं ऐसी हैं जिसे कोई भी कॉमन सेंस से आसानी से समझ सकता है क्यूंकि यही एक दीं है जिससे आपका दिल ही खुश नहीं होता बल्कि दिमाग भी संतुष्ट हो जाता है.

    इस्लामिकवेबदुनिया बढाए स्वीकार करें आपके लेख सर्वथा उचित और ज्ञानवर्धक ही होते हैं.

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  5. @गोदियाल बाबू, अपने सामान्य ज्ञान में इज़ाफा कर लें. मुसलमान दिन में तीन बार नहीं पांच बार नमाज़ पढ़ते हैं.

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  6. इस्लामिक वेबदुनियाँ का आभार इतने बढियां लेख को प्रकाशित करने के लिए.

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  7. मैं भी सलीम की इस बात से सहमत हूँ कि "कोई भी जब सकारात्मक होकर इस्लाम की शिक्षाओं का अध्ययन करेगा तो वह यक़ीनन... अल्लाह के बताये रास्ते पर आ जायेगा...क्यूंकि इस्लाम की शिक्षाएं ऐसी हैं जिसे कोई भी कॉमन सेंस से आसानी से समझ सकता है क्यूंकि यही एक दीं है जिससे आपका दिल ही खुश नहीं होता बल्कि दिमाग भी संतुष्ट हो जाता है."

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  8. @ खुर्सीद मिंया , ज्ञान वर्धन के लिए आपका तहे दिल से सुक्रिया !

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  9. मैं मुसलमानो से कुछ कहना चाहता हूँ, हे हिन्‍दुओ की भाषा में अधर्मियों,वेद द्वेषियों तुम्‍हें कोई काफिर (इन्‍कार करने वाला अर्थात Non-Muslim) कैसे भी चिडाता रहे,चिंता नहीं करना जितने हम कष्‍ट उठायेंगे वेसा ही फल हमें मिलेगा तुम सब अच्‍छे कार्य करते रहता मगर किसी खा पी के नेट की गोदी में आलिये कुप्रचारी की तरह किसी को भडकाना नहीं, और तुम नमाज जो कमसे कम पांच बार अनिवार्य है जरूर पढते रहना, उससे 5 बार हाथ पैर भी धुल जाते हैं और कसरत भी होजाती है, विश्राम भी मिल जाता और तुम यह ना समझना कि तुम मुटठी भर हो 55 मुल्‍कों में तुम्‍हारा झंडा फहरा रहा है, यहां भी इतनी आबादी है कि इन्‍होंने गणना ही बतानी बंद करदी, इस्‍लाम को आज सारी दुनिया इस दृष्टि से देख रही है कि दुनिया के हर धर्म से आँख मिला के यही धर्म बात कर सकता है, यह कहने की ज़रूरत तो है ही नहीं कि किस धर्म में सकून मिलेगा दुनिया जाने है जो नहीं जानता उन्‍हें बताने को यह अन्‍जुमन कायम की गई है, हिन्‍दू केवल अपने धर्म पर ही नहीं दूसरे धर्मों पर भी कीचड उछालता मिल जायेगा उनकी नक्ल मत करना,

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    विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्‍टा? हैं या यह big Game against Islam है?
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    छ अल्लाह के चैलेंज सहित अनेक इस्‍लामिक पुस्‍तकें
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  10. वास्तव में जब एक व्यक्ति विशाल हृदय से इस्लाम का अध्ययन करता है तो उसका हो कर रह जाता है। क्योंकि इस्लाम ही ऐसा धर्म है जो मानव प्रकृति से मेल खाता है। और किसी जाति विशेष की ओर नहीं बल्कि अपने ही पालनकर्ता ईश्वर की ओर बोलाता है।
    इसी लिए आज के युग में भी अमेरिका आदि देशों में सब से ज्यादा लोग इस्लाम क़बूल करने वाले लोग पाए जाते हैं।
    स्वयं मुसलमानों की गलती यह रही कि उन्हों ने इस्लाम को विश्वव्यापी धर्म के रूप में पेश नहीं किया जिसके कारण आज तक गैरमुस्लिम भाई यह समझ रहे हैं कि इस्लाम अन्य धर्मों के समान एक धर्म है। जबकि इस्लाम ही सारे मानव का धर्म है। लेकिन माता पिता से जो कुछ सुनते आए आज तक लोग उसी की रट लगा रहे हैं, ज़रूरत है कि इस्लाम को गैरमुस्लिम भाइयों की अमानत समझ कर उनकी सेवा में पेश किया जाए।

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  11. इस अवसर पर मुझे एक घटना याद आई एक नवमुस्लिम भाई ने इस्लामी विद्वान के पास पत्र लिखा जिसमें वह कहता हैः
    जब मैं मुसलमानों का चिहरा देखता हूं तो मेरा दिल चाहता है कि उनका चिहरा नोच लूं। क्योंकि उन्हों ने हमें इस्लाम उस समय बताया जब कि मेरे माता पिता का देहांत हो गया था, यदि उन्होंने मुझे माता पिता के रहते में इस्लाम बताया होता तो मैं अपने माता पिता को भी इस्लाम में प्रवेश करके स्वर्ग का अधिकार बना सकता था। इसी लिए मेरा दिल करता है कि जिन लोगों ने मुझे बहुत देर से इस्लाम बताया उनका चिहरा नोच लूं।
    इस पर टिप्पणी करने की आवश्यकता नहीं, इसी से आप समझ सकते हैं कि इस्लाम स्वीकरा करने के बाद इनसान की कैसी भावना बनती है।

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  12. पी.सी.गोदियाल साहिब !
    आप जैसी शैली चाहें अपनी जाति के लिए प्रयोग कर लें पर इस्लाम हमें कहता है कि हम किसी को बुरे शब्दों में न पुकारें। सब से प्रेम का व्यवहार करें चाहे किसी भी धर्म का पालन करने वाला हो। क्योंकि इस्लाम प्रत्येक मानवजाति को एक कुटुम्ब के समान समझता है।

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  13. @गोदियाल
    आपने कोरी बकवास करी है , पता नहीं हिन्दुओं को गाली दी या मुसलमानों या खुद को ही ! अपने धर्म या किसी धर्म को गाली देना बुरी बात है पर अगर कोई अपने धर्म पर बहस करता है और उसके स्थापित मानकों पर सवाल उठता है तो यह बहुत ही अच्छी और नेक बात है , और अगर किसी धर्म या समाज ने इस ऑप्शन को ही बंद कर रखा है तो यह उसके बंद होने कि निशानी है | बंद दरवाजे के पीछे होने कि निशानी, जहाँ रौशनी नहीं पहुचती |
    @कैरानावी
    पूरी पोस्ट का मजा किरकिरा कर दिया | कितने कमेंट्स से देख रहा हूँ ५५ मुल्कों का झंडा लिए हुए | क्या यार, यहाँ धर्म कि बात हो रही है | अगली बार से सारे देश के और सब आँकडे डाल लेना |
    @सफत
    इस्लाम धर्म कि जितनी जानकारी मुझे अपने दोस्तों से मिली है इस से तो कोई शक नहीं है कि यह मानव जाति को एक कुटुंब समजता है पर यहाँ जब ५५ मुल्कों के झंडे कि बात आती है तो मन खट्टा हो जाता है ..

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