Friday, September 25, 2009

खुदा ने मेरे लिए इस्लाम को चुना


पीटर सैंडर्स ने अपना कैरियर साठ के दशक के मध्य में शुरू किया। वे अपने वक्त के संगीत के सितारों बॉब डायलन,जिमी हैंडरिक्स, द डोर्स और रोलिंग स्टोन्स की अगली पीढ़ी के नुमाइंदे थे। लेकिन संगीत से सैंडर्स के दिल की प्यास नहीं बुझ सकी। १९७० के आखिर में उन्होंने भारत की आध्यात्मिक यात्रा की। साल भर बाद जब वे ब्रिटेन लौटे तो इस्लाम धर्म ग्रहण कर चुके थे और उन्होने अपना नाम बदलकर अब्दुल अदीम रख लिया था।
सैंडर्स अब प्यासे नहीं थे। इस्लाम ने उनके काम को नई ऊर्जा दे दी थी। इसी वर्ष उन्होंने मुस्लिम देशों की यात्राएं शुरू की। १९७१ में उन्होंने काबा और हज यात्रियों की करीब से तस्वीरें खींची जो पहली बार पश्चिमी अखबारों-द सण्डे टाइम्स और द ऑब्जर्वर में छपीं। आज सैंडर्स या अब्दुल अदीम मुस्लिम समाज के सबसे बड़े फोटोग्राफर के रूप में जाने जाते हैं,संभव है वे इकलौते भी हों। अब्दुल अदीम एक फोटो प्रदर्शनी लगाने जकार्ता आए। रिपब्लिका में प्रकाशित इमान यूनियार्ता एफ़ द्वारा लिए गए उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।
१९७१ में भारत की यात्रा के बाद आपने इस्लाम धर्म अपना लिया। यह कैसे हुआ?
जब मैं बीस साल का हो रहा था,मौत के बारे में सोचता था कि क्या हम इसके बाद खत्म हो जाते हैं? यह सवाल मुझे आतंकित किए हुए था। आखिरकार मैंने संगीत में अपने कैरियर को छोडऩे का फैसला किया। मै भारत गया और वहां पर हिंदू,बौध्द,सिक्ख और इस्लाम धर्मों के बारें में सीखा।
आपने इस्लाम को ही क्यों चुना?
मैं पक्का नहीं जानता। खुदा ने मेरे लिए इसे चुना। लेकिन भारत में मेरे साथ एक अद्भुत घटना घटित हुई। एक सुबह मैं स्टेशन पर रेल का इंतजार कर रहा था। स्टेशन खचाखच लोगों से भरा था। भीड़ के बीच एक महिला ने अचानक मेरे बगल में अपनी जाजम बिछा ली और नमाज पढऩे लगी। मेरे लिए यह घटना चौंकाने वाली थी। ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मैंने एक व्यक्ति से पूछा-यह सब क्या है? उसने जवाब दिया-यह मेरी दादी है। यह मुस्लिम है और प्रार्थना कर रही है। संभव है यही कारण रहा हो। अल्लाह ने वह क्षण एक तस्वीर की तरह मुझे दिया जो आज भी मेरी स्मृतियों में है। जब मैं ब्रिटेन लौटा तो मेरे कई साथी नशे के लती हो चुके थे और कुछ इस्लाम धर्म अपनाकर इससे बचे हुए थे, तब मुझे लगा कि यही मेरा रास्ता है। इसके तीन महीने बाद मेरी जिंदगी में निर्णायक मोड़ आया। मैं हज करने मक्का गया और फिर मैंने चालीस विभिन्न मुस्लिम देशों की एक अंतहीन यात्रा शुरू कर दी।
आपको दुनिया का सबसे दिलचस्प हिस्सा कौनसा लगता है?
यह सवाल मुझसे अक्सर पूछा जाता है। मेरा जवाब यही होता है-ब्रिटेन। हालाकि मुझे अन्य स्थान भी पसंद है। मैं चीन तीन बार गया। मैं इस बार फिर वहां जाऊंगा। पूरी दुनिया दिलचस्प है और हर देश अपने आप में विशिष्ट है।
तस्वीरें खींचने के लिए एक यात्रा में आप कितना वक्त बिताते हैं?
जब मै जवान था, एक देश में मैं छह महीने तक रह जाता था। लेकिन अब मैं दो सप्ताह से ज्यादा नहीं रुकता हूं खासकर कठिन इलाकों में।
आप विभिन्न देशों के लोगों से कैसे घुल मिल जाते हैं?
सिर्फ मुस्कराते रहना ही काफी है,इससे मैं संबंध बना लेता हूं। आप मानें या न मानें इंसान गजब की चीज है। वह जितना गरीब होता है उतना ज्यादा उदार होता है। चीन में नब्बे साल की एक वृध्दा से मैं मिला। यह जानकर कि मैं भी एक मुस्लिम हूं,उसने मुझे अपने यहां बुलाया। उसके यहां पहुंचते ही मैंने देखा कि वहां सिर्फ एक पतला गद्दा और एक दुबली बिल्ली थी। लेकिन इस्लाम हमें मेहमानों का सत्कार करना सिखाता है। उसने मेरा अच्छा स्वागत किया और सबसे अच्छे खाने लगाए। जिस देश में मैं पैदा हुआ,वहां के लोग बहुत संकुचित सोच के हैं। वे पहली मुलाकात में आपको अपने घर आने का न्यौता नहीं देंगे। लेकिन,हम दुनिया के गरीब लोगों में उनकी बदहाली के बावजूद यह दिलचस्प उदार भाव पाते हैं।
आपके द्वारा मुस्लिम समाज की ली गई तस्वीरें पश्चिम मीडिया में काफी छपी हैं। आपको उनसे क्या उम्मीद है?
कई घटनाओं ने मुस्लिमों के खिलाफ नफरत पैदा की है। अमेरिका में ११/९ और ब्रिटेन में ७/७ की घटना। ये लोग डरे हुए हैं। लेकिन आपको जानना चाहिए कि अधिकतर मुस्लिम अमनपसंद है। इस्लाम के मायने ही अमन के है। इस्लाम को हिंसा से जोडऩा गलत है।मैंने संबंधों को जोडऩे की कोशिश की। मैं ब्रिटिश नागरिक हूं। मैं लन्दन में जन्मा हूं। इस्लाम का सम्मान करता हूं। इस्लाम एक महान धर्म है। मैं कई मुस्लिमों से मिलता हूं। सबसे बेहतर वे मुस्लिम है जो अपनी जिंदगी में इस्लाम को अपनाए हुए होते हैं
क्या आप मुस्लिम समाज के खूबसूरत पक्ष की तस्वीरें उतारते हैं या सच्चाई बयान करने को प्राथमिकता देते हैं?
मैंने सकारात्मक तस्वीरें बनाने और मुस्लिमों की खूबसूरती को सामने लाने की कोशिश की है। हमें इस जीवन में खूबसूरती की जरूरत है। खुदा को भी खूबसूरत चीजें पसंद हैं। मैं अक्सर गरीब मुस्लिम समुदाय के बीच रहता हूं और मेरा मानना है कि इन लोगों में अब भी खूबसूरती और रहमदिली बाकी है।
तमाम यात्राओं के बाद मुस्लिम समुदाय के बारें में आपकी क्या राय है? इस्लाम एक ऐसी स्वच्छ नदी है जिसमें तमाम संस्कृतियां घुलमिल कर एक साथ रह सकती हैं। जब इस नदी की धारा काली चट्टानों से होकर गुजरती है तो पानी काला दिखता है और जब यही धारा पीली चट्टान पर से गुजरेगी तो पानी पीला दिखेगा। यही वजह है कि अफ्रीका में इस्लाम अफ्रीकी है,यूके में इस्लाम ब्रितानी है और चीन में चीनी इस्लाम है।
आपका एक प्रोजेक्ट परंपरागत मुस्लिम समुदायों के बारे में दस्तावेजीकरण का है। क्यों?
मैंने पैंतीस साल यात्रांए की और पाया कि इस्लाम पारंपरिक माहौल में बेहतर पनप सकता है जहां कुछ विशिष्ट समुदाय पैदा हो जाते हैं। लेकिन आधुनिक विश्व में यह चीज खत्म हो रही है। पारंपरिक इस्लाम मॉरिशेनिया जैसे स्थानों पर ही बचा है। जहां लोग एक दूसरे की रक्षा करते हैं और अध्यात्म के उच्चतम स्तर पर आपस में जुड़े हैं। यह मैंने पश्चिम में नहीं पाया। मैंने अपने बच्चों को ऐसा माहौल देने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो सका। मैं क्या करता? मैं जबरदस्ती नहीं कर सकता। इस्लाम में जोर जबरदस्ती नहीं चलती। अपनी समझ से ही सच्चाई तक पहुंचा जा सकता है। मैंने इंडोनेशिया में देखा कि यहां आधुनिकता और परंपरागत मान्यताओं के बीच एक संतुलन है।
साभार: स्पैन,अंक:फरवरी-मार्च,पेज:२८-२९

12 comments:

  1. मेरी टिपण्णी को गलत अर्थ में न लें. मेरा विश्वास है कि खुदा का कोई मजहब नहीं होता और न ही खुदा किसी के लिए कोई मजहब चुनता है. मजहब इंसान द्वारा बनाये गए हैं. खुदा के लिए कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन किस धर्म को मानता है. खुदा केवल प्रेम के सम्बन्ध को मानता है. जो इंसान दूसरे इंसानों को प्रेम करता है, खुदा उसे प्रेम करता है.

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  2. हमेशा की तरह बहुत ही अच्छा लेख...

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  3. bhot khoob.lajawab jaankari,,,,aap nirantar mehnat kar rahe hen,,,allah aapki himaat ko banaye,,hamari anjuman ki ..safat aalam sahb shan hen to..aap jaan hen..
    aap keh rahe the phone karoge mujhe intezar he...men is liye nahin kar raha ke aap bhot masroof ho aapke kamon khalal na pad jaye.

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  4. @ saleem khan sahb dhiyan do aaj phone par mene kuch baton ki taraf dhiyan dilaya tha, nateeja dekh lo... aage aisa na ho aap kiya kar rahe hen.

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  5. जी भाई मैंने वहां जवाब दे दिया है...

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  6. बहुत ही अच्छा लेख है । बहुत बहुत बधाई विशेष रूप में मुझे यह जान कर खुशी हुई कि वह एक मुस्लिम महिला की नमाज़ से प्रभावित हुए। कहते है भारत में मेरे साथ एक अद्भुत घटना घटित हुई। एक सुबह मैं स्टेशन पर रेल का इंतजार कर रहा था। स्टेशन खचाखच लोगों से भरा था। भीड़ के बीच एक महिला ने अचानक मेरे बगल में अपनी जाजम बिछा ली और नमाज पढऩे लगी। मेरे लिए यह घटना चौंकाने वाली थी। ऐसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मैंने एक व्यक्ति से पूछा-यह सब क्या है? उसने जवाब दिया-यह मेरी दादी है। यह मुस्लिम है और प्रार्थना कर रही है। संभव है यही कारण रहा हो।

    जी हाँ ! आज ज़रूरत है कि मुसलमान स्वयं इस्लाम को अपने जीवन में उतारले। यहाँ पर एक घटना याद आ रही है।
    महाकवि टैगोर के साथ एक बार रेल में यात्रा कर रहे थे मौलाना सय्यद सुलैमान नदवी, इस्लाम के इतिहासकार, इन दोनों दोनों महान विद्वानों को एक साथ देख कर किसी व्यक्ति ने कुछ यूं प्रश्न कर दिया कि आज इस्लाम इतनी तेज़ी से क्यों न फैल रहा है जितनी तेज़ी से मुहम्मद सल्ल० और पहले युग में फैसा - सय्यद साहिब ने टैगोर से इस प्रश्न का उत्तर देने की प्रार्थना की । तब टैगोर ने बताया कि
    ( तब सत्य धर्म की अच्छाइयों और भलाइयों को जानने के लिए लोगों को पुस्तकालयों का रुख़ नहीं करना पड़ता था, वह हर मुसलमान के जीवन ही में विधमान था। )
    क्या भारत के मुसलमान गुरु देव की बात पर ध्यान देंने ?
    जी हाँ । आज सब से बड़ी बाधा हमारे देशवासियों के लिए कुछ मुसलमानों के घृणित कर्तव्य हैं । आज वह अपने ही धर्म इस्लाम का इस कारण विरोध कर रहे हैं कि वह मुसलमानों को उसके अनुसार चलते हुए नहीं देखते ।

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  7. Suresh Chnadra Gupta भाई ! आपकी टिप्पणी का बहुत बहुत धन्यवाद। मैं आपको आपके चित्र से ही पहचान लेता हूं,और आपके ब्लौग का भी अध्ययन करता हूं। वैसे भी आप बहुत महान लगते हैं।(ईश्वर आपको और महानता प्रदान करे) हमने आपकी टिप्पणी का कोई गतल मफहूम नहीं लिया है। पर यदि धार्मिक ज्ञान का आदान प्रदान हो जाए तो अच्छा है इसी लिए मैं यह टिप्पणी डाल रहा हूँ ज़रा ध्यान दें
    ईश्वर ने ही मानव को तुच्छ वीर्य से पैदा किया, धरती पर बसाया, बुद्धि ज्ञान दिया,हर प्रकार का उस पर उपकार किया, तो क्या आप समझते हैं कि उसने अपने उद्देश्य से मानव को अवगत न किया ? जिस प्रकार एक कम्पनी कोई सामान बनाती है तो उसके प्रयोग करने का नियम भी बताती है उसी प्रकार ईश्वर ने मानव को पैदा किया तो जीवन बिताने का उन्हें एक जीवन व्यवस्था भी दिया, जिसे उसने संदेष्टाओं ने (जिनकी संख्या 124000 तक पहुंचती है)हर युग और हर देश में मानव तक यह संदेश पहुंचाया कि तुम्हारा ईश्वर तुम से क्या चाहता है, उन सब का संदेश एक ही था कि एक ईश्वर की पूजा की जाए,धरती को परीक्षास्थल समझा जाए, और सम्पूर्ण मानव से अच्छा व्यवहार किया जाए। सब से अन्त में यही संदेश अन्तिम अवतार (जिनकी आज हिन्दू लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं) के द्वारा ईश्वर ने कुरआन के रूप में सम्पूर्ण संसार के लिए उतारा। जिसका सम्बोधन प्रत्येक मानव जाति से है। बस आवश्यकता है कि आप इस्लाम का अध्ययन कर के देखें। आप पाएंगे कि यह मुसलमानों की सम्पत्ति नहीं जैसा कि ताब्दियों से कहा जा रहा है बल्कि यह तो सारे मानव के लिए उसके ईश्वर का उपहार है।
    अंत में आपकी टिप्पणी का बहुत बहुत धन्यवाद

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  8. चलो जहाँ मौका मिले इसलाम का प्रचार करो.इसलाम तो सही है लेकिन उसके मानाने वालों में कुछ गलत लोग है और ऐसा सभी धर्मों में है इसलाम के अनुयाई कट्टरता को बढावा देते हैं यही सबसे बड़ी बुराई है.कल को चाँद मोम्मद और फिजा इसलाम की बड़ाई करें तो इसमें इसलाम की महानता की बड़ाई न होकर उनकी अपनी स्वार्थ सिद्धि पूरी होने की बड़ाई है.

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  9. कुरआन और इसलाम के आगे भी कुछ सोचना सीखो

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  10. @Suresh Chnadra Gupta
    सही कहा |
    @safat alam:
    वैसे तो मुझे किसी मजहब पे यकीन नहीं और इस बात पर तो बिलकुल नहीं कि खुदा ने इंसान को पैदा किया , दरअसल खुदा ही इंसान कि पैदाइश है | पर हाँ, आपके समझाने का तरीका और बात कहने का लहजा अच्छा लगा | ऐसी बातों पर अमूमन लोग बहुत जल्दी उखड जाते हैं | लिखते रहिये , हमारी दिमागी कसरत होती रहेगी :)
    @बेनामी
    अगर कुछ कहना है तो हिम्मत के साथ सामने आकर कहो | किसको किस चीज़ के आगे जाकर सोचना चाहिए वो उन्हें पता है और कम से कम एक बेशक्ल को तोह कोई हक नहीं ऐसा बोलने का | अपने घर्मं का बढ़ावा करने का अधिकार हर किसी को है, तुम भी करो |

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  11. Irfan From Gujarat
    to, Fakeer Saahab...
    jyadatar aapki Comments laajawab hei...

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  12. Irfan From Gujarat
    to, Fakeer Saahab...
    jyadatar aapki Comments laajawab hei...

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