
तेरी गवाही हमें आनेवाले एक नये दिन का संदेश देती है।
तेरी गवाही के लिये हमलोग तुझे ढूंढते रहते हैं आसमान में।
पर तूं है कि .......छूप जाता है कभी बादलों में। कभी पेडों के पीछे,
हर नये महिने की शुरुआत, तेरी गवाही के बिना मंज़ूर नहिं।
आज भी इंतेज़ार है रोज़दारों को तेरी गवाही का।
कि तूं आज आसमान में नज़र आयेगा।
और एक महिने के रोज़दार , एक महिने की "ईबादत" के बाद....
तेरी गवाही के बाद कल "ईद" मनायेंगे।
बढ़िया.
ReplyDeleteईद मुबारक.
बहुत सुन्दर अन्दाज
ReplyDeleteईद मुबारक
गवाही रंग लाई..ईद मुबारक़.
ReplyDeleteअच्छा लिखा है .. ईद मुबारक !!
ReplyDeleteमसरुफ़ियात की वजह से देर से आने के लिए माज़रत.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी रचना.
मेरी तरफ़ से सभी ब्लोगर्स को ईद की ढेरों बधाइयां.
ईद मुबारक!
देर से पढ सका फिर भी लुत्फ में कमी नहीं आई, बेहतरीन
ReplyDeleteरज़िया जी. ईद मुबारक. इस मौके पर इतनी खुबसूरत नज़्म. बधाई स्वीकार करें.
ReplyDeleteहर नये महिने की शुरुआत, तेरी गवाही के बिना मंज़ूर नहिं।
ReplyDeleteसही कहा आपने
क्या खूब फरमाया है आपने
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