Wednesday, September 16, 2009

रोज़ाः और मानव जीवन पर उसका प्रभाव

विज्ञान के इस आधुनिक युग में इस्लामी उपवास के विभिन्न आध्यात्मिक, सामाजिक, शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक लाभ सिद्ध किए गए हैं। जिन्हें संक्षिप्त में बयान किया जा रहा है।

आध्यात्मिक लाभः

(1) इस्लाम में रोजा का मूल उद्देश्य ईश्वरीय आज्ञापालन और ईश-भय है, इसके द्वारा एक व्यक्ति को इस योग्य बनाया जाता है कि उसका समस्त जीवन अल्लाह की इच्छानुसार व्यतीत हो। एक व्यक्ति सख्त भूक और प्यास की स्थिति में होता है, खाने पीने की प्रत्येक वस्तुयें उसके समक्ष होती हैं, एकांत में कुछ खा पी लेना अत्यंत सम्भव होता है, पर वह नहीं खाता पीता। क्यों ? इस लिए कि उसे अल्लाह की निगरानी पर दृढ़ विश्वास है। वह जानता है कि लोग तो नहीं देख रहे हैं पर अल्लाह तो देख रहा है। इस प्रकार एक महीने में वह यह शिक्षा ग्रहण करता है कि सदैव ईश्वरीय आदेश का पालन करेगा और कदापि उसकी अवज्ञा न करेगा।

(2) रोज़ा ईश्वरीय उपकारों को याद दिलाता औऱ अल्लाह कि कृतज्ञता सिखाता है क्योंकि एक व्यक्ति जब निर्धारित समय तक खान-पान तथा पत्नी के साथ सम्बन्ध से रोक दिया जाता है जो उसकी सब से बड़ी इच्छा होती है फिर वही कुछ समय बाद मिलता है तो उसे पा कर वह अल्लाह ती प्रशंसा बजा लाता है।

(3) रोज़ा से कामवासना में भी कमी आती है। क्योंकि जब पेट भर जाता है तो कामवासना जाग उठता है परन्तु जब पेट खाली रहता है तो कामवासना कमज़ोर पड़ जाता है। इसका स्पष्टिकरण मुहम्मद सल्ल0 के उस प्रबोधन से होता है जिसमें आया है कि "हे नव-युवकों के समूह ! तुम में से जो कोई विवाह करने की शक्ति रखता हो उसे विवाह कर लेना चाहिए क्योंकि इसके द्वारा आँखें नीची रहती हैं और गुप्तांग की सुरक्षा होती है।"

(4) रोज़े से शैतान भी निदित और अपमानित होता है क्योंकि पेट भरने पर ही कामवासना उत्तेजित होता है फिर शैतान को पथभ्रष्ट करने का अवसर मिलता है। इसी लिए मुहम्मद सल्ल0 के एक प्रवचन में आया है "शैतान मनुष्य के शरीर में रक्त की भांति दौड़ता है। भूक (रोज़ा) के द्वारा उसकी दौड़ को तंग कर दो"।
शारीरिक लाभ

(1) मनुष्य के शरीर में मेदा एक ऐसा कोमल अंग है जिसकी सुरक्षा न की जाए तो उस से विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार रोज़ा मेदा के लिए उत्तम औषधि है क्योंकि एक मशीन यदि सदैव चलती रहे और कभी उसे बंद न किया जाए तो स्वभावतः किसी समय वह खराब हो जाएगी। उसी प्रकार मेदे को यदि खान-पान से विश्राम न दिया जाए तो उसका कार्यक्रम बिगड़ जाएगा।

(2) डाक्टरों का मत है कि रोज़ा रखने से आंतें दुरुस्त एंव मेदा साफ और शुद्ध हो जाता है। पेट जब खाली होता है तो उसमें पाए जाने वाले ज़हरीले किटानू स्वंय मर जाते हैं और पेट कीड़े तथा बेकार पदार्थ से शुद्ध हो जाता है।उसी प्रकार रोज़ा वज़न की अधिकता, पेट में चर्बी की ज्यादती, हाज़मे की खराबी(अपच), चीनी का रोग(DIABATES) बलड प्रेशर,गुर्दे का दर्द, जोड़ों का दर्द, बाझपन, हृदय रोग, स्मरण-शक्ति की कमी आदि के लिए अचूक वीण है।

डा0 एयह सेन का कहना हैः "फाक़ा का उत्तम रूप रोज़ा है जो इस्लामी ढ़ंग से मुसलमानों में रखा जाता है।मैं सुझाव दूंगा कि जब खाना छोड़ना हो तो लोग रोज़ा रख लिया करें।"इसी प्रकार एक इसाई चिकित्सक रिचार्ड कहता हैः "जिस व्यक्ति को फाक़ा करने की आवश्यकता हो वह अधिक से अधिक रोज़ा रखे। मैं अपने इसाई भाइयों से कहूंगा कि इस सम्बन्ध में वह मुसलमानों का अनुसरण करें। उनके रोज़ा रखने का नियम अति उत्तम है।" (इस्लाम और मेडिकल साइंस 7) तात्पर्य यह कि उपवास एक महत्वपूर्ण इबादत होने के साथ साथ शारीरिक व्यायाम भी है। सत्य कहा अन्तिम ईश्दूत मुहम्मद सल्ल0 नेः "रोजा रखो निरोग रहोगे"
नैतिक लाभः

रोजा एक व्यक्ति में उत्तम आचरण, अच्छा व्यवहार, तथा स्वच्छ गुण पैदा करता है, कंजूसी,घमंड,क्रोध जैसी बुरी आदतों से मुक्ति दिलाता है। इनसान में धैर्य, सहनशीलता और निःस्वार्थ भाव को जन्म देता है। जब वह भूक की पीड़न का अनुभव करता है तो उसके हृदय में उन लोगों के प्रति दया-भाव उभरने लगता है जो प्रतिदिन अथवा सप्ताह या महीने में इस प्रकार की पीड़नाओं में ग्रस्त होते हैं। इस प्रकार उसमें बिना किसी स्वार्थ और भौतिक लाभ के निर्थनों तथा ज़रूरतमंदों के प्रति सहानुभूति की भावना जन्म लेती है, और उसे पूर्ण रूप में निर्धनों की आवश्यकताओं का अनुभव हो जाता है।

सामाजिक लाभः

रोजा का सामाजिक जीवन पर भी बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है।

(1) वर्ष के विशेष महीने में प्रत्येक मुसलमानों का निर्धारित समय तक रोज़ा रखना, फिर निर्धारित समय तक खाते पीते रहना, चाहे धनवान हों या निर्धन समाज को समानता एवं बंधुत्व के सुत्र में बाँधता है।

(2) धनवान जब भूख एवं प्यास का अनुभव करके निर्धनों की सहायता करते हैं तो उन दोंनों में परस्पर प्रेम एवं मुहब्बत की भावनायें जन्म लेती हैं और समाज शत्रुता, घृणा और स्वार्थ आदि रोगों से पवित्र हो जाता है, क्योंकि सामान्यतः निर्धनों की सहायता न होने के कारण ही चोरी एवं डकैती जैसी घटनाएं होती हैं। सारांश यह कि रोज़ा से समानता, भाईचारा तथा प्रेम का वातावरण बनता है। समुदाय में अनुशासन और एकता पैदा होता है। लोगों में दानशीलता, सहानुभूति और एक दूसरों पर उपकार करने की भावनायें उत्पन्न होती हैं।

मानसिक लाभः

रोजा में एक व्यक्ति को शुद्ध एवं शान्ति-पूर्ण जीवन मिलता है। उसका मस्तिष्क सुस्पष्ट हो जाता है। उसके हृदय में विशालता आ जाती है। फिर शरीर के हल्का होने से बुद्धि विवेक जागृत होती है। स्मरण-शक्ति तेज़ होती है। फलस्वरूप एक व्यक्ति के लिए कठिन से कठिन कामों को भलि-भांति कर लेना अत्यंत सरल होता है।

2 comments:

  1. सफत आलम साहब आपने बेहतर तरीके से रोजे के फायदे बताए हैं।
    मेरा तो सौ फीसदी यकीन है कि अल्लाह के हर हुक्म में इन्सान के लिए ढेरों फायदे होते हैं। इन्सान को उनमें से कुछ फायदे समझ में आ जाते हैं और बहुत कुछ छूट जाते हैं।

    ReplyDelete
  2. .
    .
    .
    जहां तक सवाल धार्मिक आस्था का है आस्थावान को रोजे रखने से फायदे होंगे...
    मैं वैज्ञानिक पक्ष रखना चाहता हूँ जो नेदरलैंड रेडियो कि साइट पर एक लेख में मुझे दिखा...

    Is fasting during Ramadan good for your health?
    Published on : 22 August 2009 - 3:32pm | By Chaalan Charif
    Filed under:

    * Dr Muhammad Alabdooni
    * Dutch Moroccan Physicians Association
    * fasting
    * health
    * Islam
    * Ramadan
    * Sharia law
    * the Netherlands

    With the beginning of Ramadan, Muslims’ holy month of fasting, the annual debate starts up about the effect of fasting on the health. It is accepted that fasting is not a good idea for sick people. But, does it benefit those in good health, or is it merely a religious practice that has nothing to do with one’s well-being?

    Islam only says that healthy adults should fast. Sick people, whether suffering from temporary or chronic disease, are exempt. Many scholars of Islamic sharia law say fasting is prohibited if it is harmful.

    Muslims quote the Prophet Muhammad as saying: "Fast so as to be healthy". Some Muslim scholars have been trying to get support from doctors to prove the health benefits of fasting. Each year, much of the Islamic media covers the benefits of fasting during Ramadan, and the hazards for sick people if they try to do without food.

    Psychological benefits
    Dr Muhammad Alabdooni, the chairman of the Dutch Moroccan Physicians Association, maintains there is no scientific proof that Islamic fasting is physiologically beneficial, but says it may benefit psychological health:

    "Positive aspects of fasting in Ramadan are related to relaxation that happens due to worship, which increases in the holy month. These worship practices give a feeling of psychological and physical relaxation."

    On the other hand, Dr Alabdooni explains that fasting has some negative effects on health, but he doesn't consider these very serious.

    "Effects of fasting on a healthy person are limited. Negative effects are inconveniences, especially in the early days of Ramadan, such as headaches, nausea, sleeplessness, etc."

    No scientific study
    Dr Alabdooni says this is the prevailing opinion of the medical profession, at least in the Netherlands. He admits that no scientific study has been conducted to date on the effects of Ramadan fasting on healthy people:

    "Studies have focused on sick people, particularly on chronic-disease patients. There are a lot of studies in this area, but they haven't given any attention to the effects on healthy bodies."

    Effects on health
    Dr Albdooni has never been interviewed in the media about Ramadan fasting, but his immediate acquaintances often quiz him about the effects of the practice on their health. He explains the risks associated with the sort of fasting people practice nowadays - abstaining totally from food and drink during daylight hours, and then eating a wide range of food after sunset. Most people who come to him with questions admit to eating excessively in short bursts during Ramadan.

    "Many people agree with me when I say fasting in this time produces results that are not intended by Ramadan fasting. They recognise that they eat large amounts of sugar and fat after breaking their fast, and this leads to them putting on more weight instead of losing it, the effect fasting is expected to achieve."

    Dr Alabdooni remains non-committal about the doctors who appear on Arab TV channels during Ramadan to talk about the health benefits of fasting, preferring to let them decide for themselves what they say. However, he does believe the medical and religious professions should be strictly separated:
    "Doctors are not religious scholars or preachers, they should always be aware of the limits of their profession".

    धन्यवाद!

    ReplyDelete